26/11 मुंबई आतंकी हमला: दर्द, संघर्ष और सुरक्षा सुधार

26 नवंबर 2008 की रात मुंबई में हुए आतंकी हमले भारत के इतिहास का सबसे दर्दनाक अध्याय बन गए। आज इस घटना को हुए पूरे 17 साल हो चुके हैं यह केवल एक घटना नहीं थी, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा व्यवस्था, खुफिया तंत्र और समुद्री सीमाओं की तैयारी को पूरी तरह नए सिरे से सोचने का कारण बन गई। 62 घंटे तक चले इस आतंकी हमले ने भारत को एक शक्तिशाली, सतर्क और बेहतर समन्वित राष्ट्र बनाने की प्रेरणा दी, जिसकी वजह से आज देश का सुरक्षा ढांचा पहले की तुलना में कहीं मजबूत माना जाता है। आइए जानते हैं इस घटना को विस्तार से जानते हैं इस आर्टिकल के मध्याम से और साथ ही ये भी जानने का प्रयास करेंगे की तब से लेकर आज तक इस घटना के बाद क्या क्या सुधार हुए ?

26/11 mumbai terror attacks

26 नवंबर की रात क्या हुआ?

26 नवंबर 2008 को रात लगभग 8 बजे मुंबई में एक के बाद एक फिदायीन हमले शुरू हुए, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया। पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े 10 हमलावर समुद्र के रास्ते कराची से निकले और भारतीय मछली पकड़ने वाली नाव ‘कुबेर’ को रास्ते में ही हाइजैक कर लिया। इसके बाद छोटे रबर बोट से वे मुंबई के कोलाबा तट पर उतरे।​

 

हमलावरों के पास AK-47 राइफलें, पिस्तौल, हैंड ग्रेनेड और IED (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) थे। उन्होंने दक्षिण मुंबई के सबसे भीड़-भाड़ वाले इलाकों को अपना निशाना बनाया छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (CST), लियोपोल्ड कैफे, कामा व आल्ब्लेस हॉस्पिटल, मेट्रो सिनेमा के पास, ताज महल पैलेस होटल, ओबेरॉय-ट्राइडेंट होटल और नरीमन हाउस (यहूदी प्रार्थना स्थल)।

 

26 नवंबर की रात से 29 नवंबर की सुबह तक लगभग 62 घंटे तक सरकारी बलों और आतंकवादियों के बीच खूनी मुठभेड़ चलती रही। मुंबई पुलिस, मरीन कमांडो (MARCOS), NSG (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड) और सेना ने मिलकर ताज, ओबेरॉय और नरीमन हाउस को आतंकियों से मुक्त कराया। इस ऑपरेशन में 9 हमलावर मारे गए और एक आतंकी अजमल आमिर कसाब को जीवित पकड़ा गया, जो बाद में इस साजिश का मुख्य चेहरा बन गया।​

फोटो : क्षतिग्रस्त ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल

 

कितने लोग मारे गए और किन देशों के नागरिक थे?

26/11 के इस हमले में 166 लोगों की जान चली गई और 230 से ज्यादा लोग घायल हुए। यह संख्या भारतीय सुरक्षा के इतिहास में सबसे ज्यादा आतंकी हमले में हताहतों का आंकड़ा था।

 

मरने वालों में शामिल थे:

  • आम भारतीय नागरिक – होटल में काम करने वाले कर्मचारी, रेलवे स्टेशन पर आने-जाने वाले मुसाफिर
  • सुरक्षा कर्मी – NSG कमांडो, आतंकवाद विरोधी दस्ते (ATS) के अधिकारी, जिनमें हेमंत करकरे (देश के सबसे सफल आतंकवाद विरोधी अधिकारी), विजय सालस्कर और अशोक काम्टे जैसे नाम शामिल हैं
  • विदेशी नागरिक – मुंबई की यात्रा कर रहे सैलानी और व्यावसायिक लोग​

 

अंतरराष्ट्रीय आयाम: विदेश मंत्रालय के अनुसार, कुल 166 मृतकों में से 14 अन्य देशों के नागरिक भी शामिल थे। इन देशों में शामिल थे: अमेरिका, ब्रिटेन, इजराइल, जर्मनी, इटली, जापान, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया। यह इस बात को दर्शाता है कि यह हमला केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि वैश्विक आतंकवाद की एक भयानक कार्रवाई थी।

 

हमले की योजना कैसे बनी?

26/11 हमले की साजिश का पूरा नेटवर्क पाकिस्तान में बुना गया था। मास्टरमाइंड्स में शामिल थे:

  • लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर – संगठन के कानूनी और लड़ाकू नेतृत्व
  • डेविड कोलमैन हेडली (जन्म का नाम दाऊद गिलानी) – एक अमेरिकी-पाकिस्तानी, जो भारतीय आतंकवादी संगठनों का सूचनाकार था
  • ताहवुर राणा – पाकिस्तान से भारत तक संचार और लॉजिस्टिक्स का जिम्मेदार

 

रेकी और प्लानिंग: हेडली और उनके सहयोगियों ने मुंबई की यात्रा की और विस्तृत रूप से:

  • होटल, रेलवे स्टेशन, बार-रेस्तरां जैसे सार्वजनिक स्थानों की मैपिंग की
  • भीड़-भाड़ के समय का अध्ययन किया
  • समुद्री रास्ते और तट पर उतरने की जगहों की पहचान की
  • प्रशिक्षण शिविरों में आतंकवादियों को इन सभी जगहों की विस्तृत जानकारी दी

 

समुद्री रास्ता: हमले के कुछ दिन पहले, 10 आतंकवादी कराची से एक नाव पर निकले। रास्ते में उन्होंने भारतीय मछली पकड़ने वाली नाव ‘कुबेर’ पर कब्जा कर लिया, उसके क्रू को मार दिया, और भारतीय कप्तान को मजबूर करके मुंबई की ओर नाव ले जाने को कहा। तट से कुछ किलोमीटर पहले कप्तान की भी हत्या कर दी गई, और फिर छोटे-छोटे रबर बोट के जरिए आतंकवादी कोलाबा के पास उतरे।

 

रियल-टाइम कमांड: हमले के दौरान आतंकवादी सैटेलाइट फोन और VOIP (इंटरनेट कॉल) के जरिए पाकिस्तान में बैठे हैंडलर्स से लगातार निर्देश लेते रहे। यह बाद में जांच में उजागर हुआ और सबूत के तौर पर भारत ने इसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने रखा।

 

सरकार ने तुरंत क्या कदम उठाए?

  1. तुरंत ऑपरेशन और रेस्क्यू

मुंबई पुलिस, NSG, MARCOS, सीआरपीएफ और सेना ने एक समन्वित रेस्क्यू अभियान चलाया। 62 घंटे की गहन मुठभेड़ के दौरान:

  • ताज होटल को आतंकियों से मुक्त कराया गया।
  • ओबेरॉय-ट्राइडेंट होटल को सुरक्षित किया गया।
  • नरीमन हाउस को तीसरे दिन मुक्त कराया गया, जहां से 2 बंधकों को बचाया गया।
  • 9 आतंकवादियों को मार गिराया गया और अजमल कसाब को जीवित पकड़ा गया।
  1. कानूनी और न्यायिक कार्रवाई

 

अजमल आमिर कसाब पर मुकदमा: लाइव कैमरों से दिए गए सबूतों, CCTV फुटेज, बचे हुए हथियारों और अन्य साक्ष्यों के साथ कसाब पर एक सुव्यवस्थित केस दायर किया गया। 2010 में उसे मौत की सज़ा दी गई, और 2012 में पुणे की यरवदा जेल में उसकी सज़ा पर अमल किया गया। यह भारतीय न्यायिक व्यवस्था की गति और दृढ़ता का प्रतीक बन गया।

 

अंतरराष्ट्रीय मंच: भारत ने मजबूत सबूतों के साथ पाकिस्तान की भूमिका को लेकर UN सिक्योरिटी काउंसिल में शिकायत दर्ज की। हेडली और ताहवुर राणा जैसे साजिशकर्ताओं के विरुद्ध इंटरनेशनल वॉरंट जारी किए गए।

 

हालिया प्रगति: 2025 में, ताहवुर राणा को अमेरिका से भारत की ओर एक्सट्रडाइट (सुपुर्द) किया गया, जो दिखाता है कि भारत 17 साल बाद भी न्याय की अपनी खोज को जारी रखे हुए है।

 

26/11 के बाद भारत में सुरक्षा सुधार कैसे हुए?

  1. समुद्री और तटीय सुरक्षा में क्रांतिकारी बदलाव

26/11 की सबसे बड़ी सीख यह थी कि दुश्मन समुद्र के रास्ते भी आ सकता है। इसके बाद भारत ने अपनी समुद्री सुरक्षा को पूरी तरह नए तरीके से डिज़ाइन किया:

 

संगठनात्मक संरचना:

  • भारतीय नौसेना को पूरी समुद्री सुरक्षा (coastal + offshore security) की लीड एजेंसी बनाया गया।
  • भारतीय कोस्ट गार्ड को तटीय पानी और निकटवर्ती क्षेत्रों में गश्त और निगरानी की ज़िम्मेदारी दी गई।
  • राज्य स्तरीय मरीन पुलिस को स्थानीय निगरानी के लिए सशक्त किया गया।

 

भौतिक और तकनीकी आधुनिकीकरण:

  • “सागर प्रहरी बल” की स्थापना: नौसेना के लिए 80 तेज इंटरसेप्टर बोट और लगभग 1000 प्रशिक्षित कर्मी तैनात किए गए
  • सभी तटीय राज्यों में मरीन/कोस्टल पुलिस स्टेशन, जेट्टी, पेट्रोल बोट और आधुनिक कम्यूनिकेशन सिस्टम स्थापित किए गए
  • Coastal Security Scheme Phase-I और Phase-II के तहत तटीय अवसंरचना को विशाल रूप से बढ़ाया गया
  • तट पर उन्नत रडार नेटवर्क, Automatic Identification System (AIS) (जहाज की पहचान के लिए), और National Command Control and Communication Network (NC3I) जैसी टेक्नोलॉजी लगाई गई, जिससे समुद्री गतिविधियों की रियल टाइम मॉनिटरिंग संभव हुई।

 

नियमित अभ्यास और तैयारी:

  • “सागर कवच” जैसे राष्ट्रीय कोस्टल सिक्योरिटी ड्रिल्स की शुरुआत की गई, जिसमें नौसेना, कोस्ट गार्ड, मरीन पुलिस, कस्टम्स, इंटेलिजेंस एजेंसियां साथ मिलकर नियमित अभ्यास करती हैं
  • तटीय इलाकों में साइबर सिक्योरिटी, कम्यूनिकेशन और तेजी से रिएक्शन के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोले गए
  1. इंटेलिजेंस और इंटर-एजेंसी समन्वय

26/11 से पहले की जांच दिखाती है कि अलग-अलग एजेंसियों के पास अलग-अलग सूचनाएं थीं, लेकिन वे आपस में साझा नहीं की गईं। इस सीख के बाद:

सूचना साझेदारी प्रणाली:

  • मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC) केंद्रीय स्तर पर
  • स्टेट मल्टी-एजेंसी सेंटर (SMAC) राज्य स्तर पर
  • इन सेंटरों के माध्यम से रियल टाइम इंटेलिजेंस शेयरिंग होने लगी, ताकि आतंकी सूचना किसी एक एजेंसी के पास अटकी न रहे।

 

NSG की तैनाती में बदलाव:

  • देश के विभिन्न हिस्सों में NSG हब स्थापित किए गए। मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता, चेन्नई और अन्य महत्वपूर्ण शहरों में
  • उद्देश्य: किसी भी बड़े शहर तक पहुंचने का रिस्पॉन्स टाइम कम करना
  • 26/11 में NSG को दिल्ली से मुंबई पहुंचने में समय लगा था; अब यह सिस्टम चालू हो गया है।
  1. कानूनी और संस्थागत नई संरचना

 

नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) की स्थापना:

  • 2008 में, NIA का गठन विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों और बड़े आतंकी केसों की जांच के लिए किया गया
  • इससे पहले, आतंकवाद की जांच राज्य पुलिस के अधीन होती थी, जिससे अक्सर समन्वय की कमी होती थी
  • अब NIA एक केंद्रीय संस्था है, जिसके पास राष्ट्रव्यापी अधिकार हैं और यह सीमाओं के पार की साजिशों की जांच कर सकता है।

 

कानूनों में सुधार:

  • UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) को और कठोर बनाया गया।
  • आतंकवाद से जुड़ी फंडिंग, साजिश, संगठन और भर्ती पर कार्रवाई के प्रावधान मजबूत किए गए।
  • डीएनए तकनीक, डिजिटल सबूत और इंटरनेशनल सहयोग को कानूनी रूप से मान्यता दी गई।
  1. आतंकी संगठनों की फंडिंग और नेटवर्क पर कार्रवाई

 

26/11 के बाद भारत ने आतंकवादी संगठनों की आर्थिक पृष्ठभूमि पर मजबूत नजर रखना शुरू किया:

  • बैंकिंग सिस्टम पर सख्त निगरानी संदिग्ध लेन-देन पर ट्रैकिंग
  • NGO और चैरिटी संगठनों की गतिविधियों की जांच
  • हवाला नेटवर्क को तोड़ने की कार्रवाई
  • क्रॉस-बॉर्डर मनी फ्लो पर निगरानी

विभिन्न आतंकी संगठनों और व्यक्तियों को UAPA के तहत “टैरेरिस्ट ऑर्गनाइजेशन” या “डिज़ाइनेटेड टैरेरिस्ट” घोषित किया गया है, जिससे उन्हें फंडिंग मिलना कठिन हो गया है

 

वर्तमान व्यवस्था के प्रमुख लाभ:

  • अत्याधुनिक तकनीक (रडार, AIS, NC3I) से समुद्र में किसी भी संदिग्ध गतिविधि की तुरंत जानकारी मिल जाती है।
  • बेहतर इंटेलिजेंस शेयरिंग से षड्यंत्रों की पहले ही खोज हो जाती है।
  • तेज़ रिएक्शन टाइम और बेहतर समन्वय से किसी भी संकट में तुरंत सरकारी बलों को मोतायब किया जा सकता है।

 

आज की चुनौतियां

आतंकवाद का खतरा पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। आज के समय में सुरक्षा एजेंसियों को निम्नलिखित नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है:

  • साइबर अटैक: आतंकवादी अब कंप्यूटर सिस्टम, इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करके हमले की योजना बना सकते हैं
  • ड्रोन और आधुनिक टेक्नोलॉजी: अस्पष्टीकृत इलाकों में ड्रोन का उपयोग करके हथियार या विस्फोटक भेजे जा सकते हैं
  • लोन-वुल्फ अटैक: एक अकेला व्यक्ति बिना किसी बड़ी साजिश के अचानक हिंसा कर सकता है
  • सोशल मीडिया रेडिकलाइज़ेशन: नौजवानों को इंटरनेट के जरिए आतंकी विचारों का शिकार बनाया जा सकता है

 

निष्कर्ष :

26/11 हमला एक दर्दनाक घटना बन गई, लेकिन इससे निकली सीखें भारत को एक ज्यादा मजबूत, ज्यादा सतर्क और ज्यादा एकजुट राष्ट्र बना दीं। हर साल 26 नवंबर को, भारत उन शहीदों को याद करता है और अपने आपसे यह वचन दोहराता है कि ऐसी कोई घटना दोबारा न हो।