जयपुर कोर्ट ने अडानी के नेतृत्व वाली कंपनी को ₹1400 करोड़ के मामले में दोषी ठहराया

जयपुर की एक जिला अदालत ने पिछले दिनों फैसला सुनाया कि अडानी-नेतृत्व वाली कोयला खनन कंपनी ने परिवहन शुल्क के नाम पर अनुबंध में स्वीकृत न होने वाली रकम वसूलकर राजस्थान राज्य की बिजली उपयोगिता से लगभग ₹1,400 करोड़ अनुचित रूप से प्राप्त किए। अदालत ने माना कि कंपनी द्वारा प्रस्तुत दावा अनुबंध की शर्तों के अनुरूप नहीं था। हालांकि, इस निर्णय के बाद राजस्थान हाई कोर्ट ने जिला अदालत के आदेश पर पर स्टे लगा दिया है, जिससे खनन कंपनी को धन वापसी करने की बाध्यता अस्थायी रूप से स्थगित हो गई है।

Jaipur court convicts Adani-led company in ₹1400 crore case

परसा ईस्ट और कांति बसन कोयला ब्लॉक अनुबंध केस की पृष्ठभूमि:

  • साल 2007 में, केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के हसदेव अरंड जंगल क्षेत्र में स्थित परसा ईस्ट और कांति बसन कोयला ब्लॉक को राज्य-स्वामित्व वाली विद्युत् उत्पादन कंपनी राजस्थान राज्य विद्युत् उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVUNL) को आवंटित किया। इस ब्लॉक में अनुमानित 450 मिलियन टन से अधिक कोयला भंडार था, जो भारत के महत्वपूर्ण कोयला संसाधनों में गिना जाता है।
  • कोयला ब्लॉक के निष्कर्षण और प्रबंधन के लिए, RRVUNL ने 2008 में निजी कंपनी अदानी एंटरप्राइजेज के साथ परसा कांति कॉलियरीज लिमिटेड नामक एक संयुक्त उद्यम (Joint Venture) स्थापित किया। इस साझेदारी में अदानी एंटरप्राइजेज के पास 74% हिस्सेदारी थी, जबकि RRVUNL के पास केवल 26% हिस्सेदारी थी। इस प्रकार, संयुक्त उद्यम का नियंत्रण प्रायः अदानी नेतृत्व वाली कंपनी के पास था।
  • इस अनुबंध के तहत, संयुक्त उद्यम को माइन डेवलपर और ऑपरेटर (MDO) के रूप में काम करना था। MDO मॉडल के अंतर्गत, निजी कंपनी खनन संचालन संभालती और RRVUNL को कोयला प्रदान करती। इसके बदले RRVUNL हर टन कोयले के लिए तय मूल्य के आधार पर भुगतान करता। इस मॉडल की खासियत यह थी कि निजी कंपनियों को केवल खनन और आपूर्ति का जिम्मा दिया गया था।
  • अनुबंध में यह स्पष्ट किया गया कि खनित कोयला निकटतम रेलवे लाइन तक पहुँचाना संयुक्त उद्यम की जिम्मेदारी है। इसके लिए आवश्यक था कि खदान से मुख्य रेलवे नेटवर्क तक एक रेलवे साइडिंग तैयार की जाए। हालांकि, मार्च 2013 में खनन शुरू होने पर यह रेलवे लिंक तैयार नहीं था। इसके चलते दोनों पक्षों ने अस्थायी व्यवस्था अपनाई: कोयला सड़क मार्ग से निकटतम रेलवे स्टेशन तक ले जाया गया। इस अस्थायी व्यवस्था के तहत एक परिवहन एजेंसी को मार्च 2013 में नियुक्त किया गया।
  • यद्यपि सड़क परिवहन मूल अनुबंध का हिस्सा नहीं था, संयुक्त उद्यम ने RRVUNL से पूरे सड़क परिवहन शुल्क की मांग की, जो समय के साथ बढ़कर ₹1,400 करोड़ से अधिक हो गया। इसके अतिरिक्त, अदानी नेतृत्व वाली कंपनी ने दावा किया कि राज्य उपक्रम द्वारा भुगतान में विलंब हुआ। मार्च 2013 के पत्र के अनुसार, भुगतान 15 दिनों (या 7 दिन की छूट अवधि) में होना चाहिए था, लेकिन विलंब के कारण कंपनी ने बैंक से ऋण लिया और ब्याज के रूप में लगभग ₹65 करोड़ की मांग की।
  • RRVUNL ने फरवरी 2018 में ब्याज का भुगतान करने से इनकार किया। अप्रैल 2018 में संयुक्त उद्यम ने मध्यस्थता का प्रयास किया, लेकिन अगस्त 2018 में यह प्रस्ताव अस्वीकृत कर दिया गया। अंततः जुलाई 2020 में अदानी नेतृत्व वाली कंपनी ने न्यायालय का रुख किया, गैर-भुगतान और ब्याज वसूली के लिए केस दायर किया।

 

जयपुर जिला न्यायालय की परसा कांति कॉलियरीज केस पर फैसला:

  • 5 जुलाई 2025 को जयपुर जिला न्यायालय ने परसा कांति कॉलियरीज लिमिटेड और RRVUNL के बीच विवाद पर अपना निर्णय सुनाया। न्यायालय ने पाया कि संयुक्त उद्यम ने सड़क परिवहन शुल्क का दावा किया, जिस पर उसे किसी भी संविदात्मक अधिकार का समर्थन नहीं था। अदालत ने स्पष्ट किया कि अनुबंध में रेलवे साइडिंग का निर्माण करना संयुक्त उद्यम की जिम्मेदारी थी, जिसे उन्होंने पूरा नहीं किया।
  • न्यायालय ने कहा कि अनुबंध के अनुसार खनित कोयला रेलवे हेड तक पहुँचाना अनिवार्य था। सड़क मार्ग से कोयले का परिवहन केवल अस्थायी समाधान था और इसे दीर्घकालीन व्यवस्था के रूप में नहीं लिया जा सकता। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जिस पार्टी ने रेलवे साइडिंग का निर्माण नहीं किया, वह परिवहन शुल्क को राज्य उपक्रम पर नहीं डाल सकती।
  • न्यायालय ने पाया कि संयुक्त उद्यम ने RRVUNL से खदान से रेलवे स्टेशन तक सड़क परिवहन के लिए बिल प्रस्तुत किए, जिनकी कुल राशि ₹1,400 करोड़ से अधिक थी। इसके साथ ही, अदालत ने पाया कि कंपनी ने मूल अनुबंध और वित्तीय खातों की मुख्य प्रतियाँ प्रस्तुत नहीं कीं। इन दस्तावेजों के अभाव ने कंपनी के दावे को कमजोर कर दिया।
  • अदालत ने संयुक्त उद्यम की इस मामले को आंशिक और अप्रमाणित बताया। न्यायालय ने यह भी कहा कि कंपनी ने विलंबित भुगतान पर ब्याज की मांग की, जबकि उसने अपने अनुबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर कर्तव्यों का पालन नहीं किया था। इस प्रकार, कंपनी का दावा कि उसे भुगतान में देरी के कारण ब्याज दिया जाना चाहिए, अनुबंध और वास्तविक कार्यान्वयन के आधार पर अनुचित था।
  • अंत में अदालत ने अपने निर्णय में यह फैसला सुनाया कि संयुक्त उद्यम ने गलत तरीके से ₹1,400 करोड़ से अधिक की राशि प्राप्त की। न्यायालय ने कंपनी पर ₹50 लाख का जुर्माना लगाया। इसके साथ ही, अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस पूरे अनुबंध और लेन-देन की जांच के लिए भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) से अनुरोध करे।

 

भारत के महालेखाकार (CAG) की भूमिका और कार्यक्षेत्र:

भारत में महालेखाकार (Comptroller and Auditor General – CAG) सर्वोच्च लेखा परीक्षा प्राधिकरण है। जिसका प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 में किया गया है। CAG की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा उनके हस्ताक्षर और मुहर के माध्यम से की जाती है।

  • CAG के कर्तव्य और शक्तियों को Comptroller and Auditor General’s (Duties, Powers and Conditions of Service) Act, 1971 के तहत विनियमित किया गया है। 
  • CAG भारतीय लेखा परीक्षा एवं लेखा विभाग (IA&AD) का नेतृत्व करता है, जिसका नेटवर्क पूरे देश में फैला हुआ है। इसमें प्रत्येक राज्य में “Accountants General (Audit)” कार्यालय, केंद्र सरकार के मंत्रालयों, सार्वजनिक क्षेत्र की उपक्रमों (PSUs) और विदेशों में भारतीय मिशनों के लिए कार्यालय शामिल हैं।
  • CAG द्वारा तैयार किए गए लेखा परीक्षा रिपोर्टें राष्ट्रपति को (केंद्र सरकार के खातों के लिए) और राज्यपाल को (राज्य सरकारों के खातों के लिए) प्रस्तुत की जाती हैं।
  • CAG को उच्च स्तर की स्वतंत्रता प्राप्त है और इस पद से हटाना सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान है। 
  • CAG का वेतन और अन्य सेवा शर्तें संयुक्त कोष (Consolidated Fund of India) या संबंधित राज्य कोष से निर्भर करती हैं।
  • CAG केंद्र और राज्य सरकारों के संयुक्त कोष में होने वाले सभी प्राप्तियों और व्यय का ऑडिट करता है। इसके अलावा यह आपातकालीन निधियों (Contingency Funds) और सार्वजनिक खातों (Public Accounts) का भी ऑडिट करता है।
  • सरकारी विभागों के वाणिज्यिक, उत्पादन, लाभ-हानि खाते, बैलेंस शीट और अन्य सहायक खाते भी CAG के ऑडिट के अंतर्गत आते हैं। इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSUs), सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों और निगमों जिनमें सरकार की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है, का ऑडिट भी CAG द्वारा किया जाता है।

 

परसा कांति कॉलियरीज केस की वर्तमान स्थिति:

जयपुर जिला न्यायालय के फैसले के तुरंत बाद संयुक्त उद्यम (Joint Venture) ने उच्च न्यायालय में अपील दाखिल की। इसके परिणामस्वरूप 18 जुलाई 2025 को राजस्थान उच्च न्यायालय ने जिला न्यायालय द्वारा लगाए गए ₹50 लाख जुर्माने और CAG जांच के आदेश पर स्टे लगा दिया। इस निर्णय के तहत राज्य सरकार या संबंधित विभाग फिलहाल किसी भी अतिरिक्त कार्रवाई जैसे जुर्माना वसूली या CAG द्वारा अनुबंध की जांच में कोई कदम नहीं उठा सकते हैं।