दुनिया में बढ़ा भारत का दबदबा: एशिया पावर इंडेक्स 2025 में तीसरा स्थान, पाकिस्तान टॉप 10 से बाहर..

ऑस्ट्रेलिया के प्रतिष्ठित लोवी इंस्टीट्यूट की नई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत एशिया पावर इंडेक्स–2025 में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरा है। अमेरिका और चीन के बाद यह स्थान हासिल करना भारत के बढ़ते आर्थिक प्रभाव, मजबूत होती सैन्य क्षमता और ऑपरेशन सिंदूर में उत्कृष्ट प्रदर्शन का परिणाम है। इस रैंकिंग ने भारत को एशिया की ‘प्रमुख शक्ति’ के रूप में स्थापित कर दिया है, जो वैश्विक मंच पर उसकी बढ़ती भूमिका और प्रभाव का स्पष्ट संकेत देता है।

India dominance in the world increases

एशिया पावर इंडेक्स क्या है ?

एशिया पावर इंडेक्स लोवी इंस्टीट्यूट द्वारा 2018 में शुरू किया गया एक वार्षिक सूचकांक है, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र की देशों की शक्ति और प्रभाव को मापता है। यह इंडेक्स क्षेत्र के 27 देशों का आकलन करता है और यह देखता है कि वे अपने आस-पास के माहौल को कितना प्रभावित कर सकते हैं और बदलती परिस्थितियों पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, किसी देश की कुल शक्ति उसके संसाधनों और प्रभाव पर निर्भर करती है। जिन्हे 8 मुख्य क्षेत्रों और 131 संकेतकों के आधार पर मापा जाता है।

 

  • संसाधन चार हिस्सों में देखे जाते हैं: आर्थिक क्षमता, सैन्य क्षमता, लचीलापन और भविष्य के संसाधन।
  • प्रभाव भी चार हिस्सों में मापा जाता है: आर्थिक संबंध, रक्षा नेटवर्क, राजनयिक प्रभाव और सांस्कृतिक प्रभाव।

रिपोर्ट में भारत का स्कोर:

रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष भारत को एशिया पावर इंडेक्स में 100 में से 40 अंक मिले हैं, जो 2024 के 38.1 अंकों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन है। बढ़ते स्कोर की बदौलत भारत अब जापान (38.8) और रूस (32.1) को पीछे छोड़कर तीसरे स्थान पर है।

 

हालांकि भारत की स्थिति मजबूत हुई है, फिर भी वह चीन और अमेरिका से काफी पीछे है, जहाँ चीन को 73.7 और अमेरिका को 80.5 अंक मिले हैं। यह दर्शाता है कि भारत की क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव क्षमता लगातार बढ़ रही है, लेकिन शीर्ष दो महाशक्तियों तक पहुँचने के लिए अभी और प्रगति की आवश्यकता है।

 

भारत के इस प्रदर्शन का कारण:

भारत की बेहतर रैंकिंग का मुख्य कारण उसकी तेज़ आर्थिक वृद्धि और बढ़ती वैश्विक प्रासंगिकता है। लोवी इंस्टीट्यूट के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था मज़बूती से आगे बढ़ रही है, जिससे उसकी कनेक्टिविटी, तकनीकी क्षमता और रणनीतिक प्रभाव भी बढ़ा है। साथ ही, वैश्विक निवेशकों के लिए भारत अब एक बड़ा आकर्षण बन गया है और पहली बार वह चीन को पीछे छोड़कर अमेरिका के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण निवेश गंतव्य बन गया है। यह बदलाव आपूर्ति-श्रृंखला विविधीकरण और भारत के बेहतर होते बुनियादी ढाँचे को भी दर्शाता है।

 

भारत की सैन्य क्षमता में वृद्धि लेकिन रक्षा नेटवर्क स्कोर में गिरावट:

भारत की सैन्य क्षमता इस साल और मज़बूत हुई है, और इसमें ऑपरेशन सिंदूर का बड़ा योगदान रहा। लोवी इंस्टीट्यूट का कहना है कि भारत के हालिया प्रदर्शन ने उसकी सैन्य तैयारी, संचालन क्षमता और जटिल मिशन संभालने की योग्यता पर विश्वास बढ़ाया है। इसी कारण भारत को सैन्य क्षमता में +2.8 अंकों की बढ़त मिली है। लेकिन इसके बावजूद भारत का रक्षा नेटवर्क स्कोर गिरा है। इस साल इसमें -2.6 अंक की कमी आई, यानी भारत अपने बढ़ते संसाधनों को अंतरराष्ट्रीय प्रभाव में बदलने में पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहा है।

 

रिपोर्ट का कहना है कि भारत की “बहु-संरेखण और रणनीतिक स्वायत्तता” वाली विदेश नीति सिद्धांतों पर आधारित तो है, लेकिन इससे तुरंत रणनीतिक प्रभाव बढ़ाने का आसान रास्ता नहीं बनता। यही वजह है कि भारत के संसाधन तो तेज़ी से बढ़ रहे हैं, लेकिन उन्हें प्रभाव में बदलने की गति उतनी तेज़ नहीं है, जिससे एक तरह का “शक्ति अंतराल” पैदा हो रहा है।

 

सांस्कृतिक रूप से भारत की लोकप्रियता में वृद्धि:

सांस्कृतिक स्तर पर भी भारत की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। यात्रा बढ़ने, नई सीधी उड़ानों के शुरू होने और भारत का पर्यटन व शिक्षा केंद्र के रूप में आकर्षण बढ़ने से उसके सांस्कृतिक प्रभाव में +2.8 अंकों की सबसे बड़ी वृद्धि दर्ज की गई है। अब भारत क्षेत्रीय स्तर पर लोगों के बीच संपर्क और सांस्कृतिक जुड़ाव को और मज़बूत कर रहा है।

 

भारत के लिए चुनौतियाँ:

2025 में भारत का प्रदर्शन बताता है कि देश तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन रास्ते में कुछ चुनौतियाँ भी हैं। भारत की ताकत लगातार बढ़ रही है, पर उसकी बड़ी महत्वाकांक्षाएँ अभी पूरी तरह हासिल नहीं हुई हैं। ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की सैन्य स्थिति को मजबूत बनाया है और आर्थिक वृद्धि ने उसका अंतरराष्ट्रीय प्रभाव बढ़ाया है। फिर भी असली चुनौती यह है कि भारत अपनी बढ़ती क्षमता को लंबे समय तक टिकने वाले प्रभाव में कैसे बदलता है—खासकर तब, जब उसकी तुलना चीन की बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय मौजूदगी से की जाती है।

 

 

हर संसाधन माप में अमेरिका की मामूली गिरावट:

रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की शक्ति में इस बार हर संसाधन माप पर हल्की गिरावट आई है, जिससे उसकी एशिया में आर्थिक और सैन्य पकड़ कमजोर होती दिख रही है। तकनीकी शक्ति और लचीलेपन में वह अभी भी सबसे आगे है, लेकिन चीन तेज़ी से अंतर कम कर रहा है—खासकर सैन्य क्षमता में, जहाँ अमेरिका की बढ़त 2017 की तुलना में काफी घट गई है।

 

कूटनीतिक स्तर पर भी अमेरिका कमजोर पड़ा है और उसका विदेश नीति प्रभाव घटकर आठवें स्थान पर आ गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि एशिया पर कम ध्यान, बढ़े हुए टैरिफ और सहायता कम करने जैसी नीतियों ने अमेरिका के क्षेत्रीय नेतृत्व को नुकसान पहुँचाया है।

 

अन्य देशों की स्थिति:

रिपोर्ट के अनुसार, रूस की एशिया में ताकत बढ़ रही है, और वह ऑस्ट्रेलिया को पीछे छोड़कर पाँचवें स्थान पर पहुँच गया है। इसकी मजबूती में चीन और उत्तर कोरिया जैसे सत्तावादी साझेदारों का समर्थन महत्वपूर्ण माना गया है। वहीं ऑस्ट्रेलिया की आर्थिक और सैन्य ताकत अन्य देशों की तुलना में कमजोर हुई है, जिससे उसे क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे। ऑस्ट्रेलिया के बाद सूची में दक्षिण कोरिया सातवें, सिंगापुर आठवें, इंडोनेशिया नौवें और मलेशिया दसवें स्थान पर हैं।

 

इसी बीच पाकिस्तान, जिसने मई 2025 में भारत के साथ छोटा युद्ध लड़ा था और वर्तमान में अफगानिस्तान से संघर्ष कर रहा है, कई देशों से पीछे रह गया है और 16वें स्थान पर है।

 

लोवी इंस्टीट्यूट के बारे में:

लोवी इंस्टीट्यूट ऑस्ट्रेलिया का एक स्वतंत्र थिंक टैंक है, जिसे 2003 में फ्रैंक लोवी ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति, रणनीति और अर्थव्यवस्था पर शोध के लिए स्थापित किया था। इसका मुख्यालय सिडनी के सेंट्रल बिज़नेस डिस्ट्रिक्ट में एक ऐतिहासिक इमारत में स्थित है। संस्थान खुद को गैर-पक्षपाती बताता है और अंतरराष्ट्रीय नीति पर सार्थक बहस को बढ़ावा देता है। 2025 तक, यह अमेरिका और ब्रिटेन के बाहर दुनिया का सबसे ज़्यादा उद्धृत थिंक टैंक माना जाता है।

 

निष्कर्ष:

एशिया पावर इंडेक्स–2025 में तीसरा स्थान हासिल करना दिखाता है कि भारत अब  एक प्रभावशाली शक्ति बन चुका है। आर्थिक मजबूती, सैन्य क्षमता और ऑपरेशन सिंदूर जैसे सफल अभियानों ने उसकी वैश्विक भूमिका को और मजबूत किया है। चुनौतियाँ अभी बाकी हैं, लेकिन भारत की बढ़ती शक्ति उसे क्षेत्र और दुनिया—दोनों में अधिक निर्णायक बनाती है।