केंद्र सरकार ने मैसेजिंग ऐप्स पर नियंत्रण कड़ा करते हुए नया आदेश जारी किया है, जिसके तहत अब वॉट्सएप, टेलीग्राम, सिग्नल, स्नैपचैट और शेयरचैट जैसे प्लेटफॉर्म बिना एक्टिव सिम कार्ड के नहीं चल पाएंगे। यानी जिस सिम से ऐप रजिस्टर किया गया है, वही सिम फोन में मौजूद होना जरूरी होगा। सरकार का कहना है कि यह कदम साइबर धोखाधड़ी रोकने और फर्जी अकाउंट्स की पहचान करने में बड़ी मदद करेगा।
संचार ऐप्स को दिए गए मुख्य निर्देश:
- सिम कार्ड से ऐप को हमेशा जोड़े रखना (SIM Binding): ऐप कंपनियों को 90 दिनों के अंदर यह व्यवस्था बनानी होगी कि व्हाट्सएप, टेलीग्राम, सिग्नल जैसे ऐप वही काम करें, जब फोन में वही सिम कार्ड लगा हो जिससे अकाउंट बनाया गया था। अगर सिम फोन में नहीं है, तो ऐप को तुरंत इस्तेमाल करने से रोकना होगा।
- वेब वर्ज़न का ऑटो लॉगआउट: व्हाट्सएप वेब जैसे वेब-आधारित ऐप छह घंटे से ज़्यादा लगातार चालू नहीं रह सकेंगे। छह घंटे पूरे होते ही वे अपने आप लॉगआउट हो जाएँगे, ताकि सुरक्षा बनी रहे।
केंद्र सरकार के इस फैसले के पीछे का कारण:
सरकार का कहना है कि कई मैसेजिंग ऐप मोबाइल नंबर से पहचान तो करते हैं, लेकिन बाद में उपयोगकर्ताओं को बिना सिम कार्ड के भी अपनी सेवाएँ इस्तेमाल करने देते हैं। इससे बड़ी समस्या पैदा हो रही है, क्योंकि साइबर अपराधी देश के बाहर बैठकर फर्जी नंबरों के जरिए धोखाधड़ी कर रहे हैं। दूरसंचार विभाग ने इसे दूरसंचार साइबर सुरक्षा के लिए खतरा बताया है।
इसी वजह से सरकार ने अक्टूबर 2025 में बनाए गए नए साइबर सुरक्षा नियमों (Telecom Cyber Security Amendment Rules, 2025) के तहत सख्त कदम उठाते हुए यह आदेश जारी किया, जिसमें उपयोगकर्ता की पहचान को सही और सुरक्षित रूप से जोड़ने के लिए TIUE (Telecom Identifier User Entity) की नई व्यवस्था भी शामिल है।
नए नियम से होने वाली दिक्कतें:
नए निर्देश कई उपयोगकर्ताओं के लिए परेशानी पैदा कर सकते हैं। भारत में व्हाट्सएप के 50 करोड़ से ज्यादा यूज़र्स हैं, जिनमें से कई लोग एक ही अकाउंट को दो फोन, फोन और टैबलेट, या फिर पीसी पर एक साथ इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अब सिम बाइंडिंग अनिवार्य होने से, ऐप तभी चलेगा जब उसी फोन में वह सिम कार्ड लगा हो जिससे अकाउंट बनाया गया था।
इससे अलग-अलग डिवाइस पर लॉगिन करने वाले लोगों को दिक्कत होगी। इसके अलावा, जो लोग स्क्रीन टाइम कम करने के लिए फोन की जगह PC पर व्हाट्सएप वेब चलाते हैं, उन्हें हर छह घंटे में ऑटो लॉगआउट होने से बार-बार रुकावट झेलनी पड़ेगी, खासकर काम के समय।
नए नियम कितना प्रभावशील ?
कई विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ़ सिम बाइंडिंग से साइबर धोखाधड़ी पूरी तरह नहीं रुकेगी। अपराधी फिर भी अलग तरीकों से भारतीय सिम हासिल कर सकते हैं, जबकि कई धोखाधड़ी भारत के अंदर से ही होती हैं।
उनका कहना है कि असली समाधान एक बड़े, मजबूत सिस्टम में है- जैसे सिम कार्ड पर कड़ा नियंत्रण, कानून-प्रवर्तन एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय और उन्नत तकनीक से धोखाधड़ी का पता लगाना। कुछ उद्योग संगठनों ने सरकार से इस नियम को लागू करने से पहले सभी पक्षों से चर्चा करने की मांग भी की है।
वर्तमान में ऐप-आधारित संचार सेवाओं का संचालन:
COAI(Cellular Operators Association of India) के अनुसार, अभी मैसेजिंग ऐप्स और मोबाइल सिम कार्ड के बीच जुड़ाव सिर्फ एक बार होता है, जब आप पहली बार ऐप इंस्टॉल करके उसे अपने मोबाइल नंबर से वेरिफाई करते हैं। इसके बाद ऐप फोन में बिना किसी सिम जांच के लगातार काम करता रहता है, चाहे आप सिम कार्ड निकाल दें, बदल दें या वह निष्क्रिय हो जाए। यानी, ऐप एक बार शुरू हो जाने के बाद सिम कार्ड पर निर्भर नहीं रहता और डिवाइस पर स्वतंत्र रूप से चलता रहता है।
अन्य ऐप्स जिनमें सिम बाइंडिंग जरुरी:
कई वित्तीय ऐप जैसे बैंकिंग ऐप्स और यूपीआई (UPI) ऐप्स पहले से ही यह सुनिश्चित करते हैं कि उनका उपयोग उसी फोन पर हो जहाँ एक्टिव सिम मौजूद हो। यह नियम इसलिए लागू है ताकि धोखाधड़ी और अनधिकृत लेनदेन को रोका जा सके।
फरवरी में, SEBI(Securities and Exchange Board of India) ने भी सुझाव दिया था कि ट्रेडिंग अकाउंट्स को UPI की तरह सिम कार्ड से जोड़ा जाए, ताकि सिर्फ़ असली व्यापारी ही अपने खाते तक पहुँच सके। सेबी ने सुरक्षा बढ़ाने के लिए बायोमेट्रिक या फेस रिकग्निशन जैसी पहचान जांच अनिवार्य करने की भी बात कही थी।
क्या सिम बाइंडिंग से रुकेगी धोखाधड़ी ?
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ़ सिम बाइंडिंग से धोखाधड़ी पूरी तरह नहीं रोकी जा सकती। शोधकर्ता आनंद वेंकटनारायण के अनुसार, कई ठग नकली या उधार ली गई आईडी से आसानी से नए सिम कार्ड खरीद लेते हैं, और केवाईसी नियमों को भी चकमा दे देते हैं।
उनका कहना है कि 100 लोगों को ठगने के लिए ठगों को मुश्किल से 10 सिम कार्ड चाहिए होते हैं, और वे इन सिमों को दोबारा इस्तेमाल नहीं करते। साल में 2–3 फर्जी आईडी हासिल करना भी उनके लिए आसान होता है। ऐसे में, भले ही मैसेजिंग ऐप्स को सिम से जोड़ दिया जाए, ठग फिर भी नए सिम खरीदकर धोखाधड़ी जारी रख सकते हैं। इसलिए यह उपाय केवल सीमित मदद करेगा, लेकिन समस्या को पूरी तरह खत्म नहीं करेगा।
आइए जानते है साइबर धोखाधड़ी के बारे में:
साइबर धोखाधड़ी ऐसी अपराधी गतिविधियाँ हैं जिनमें इंटरनेट या डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करके लोगों या कंपनियों को धोखा दिया जाता है, ताकि पैसे कमाए जा सकें। इसमें अपराधी कंप्यूटर सिस्टम, मोबाइल ऐप्स, वेबसाइटों या लोगों की आदतों और गल्तियों का फायदा उठाकर उनका पैसा, निजी जानकारी या पहचान चुरा लेते हैं।
भारत में वित्तीय साइबर धोखाधड़ी की स्थिति:
I4C के मुताबिक, 2025 की शुरुआत में भारत हर महीने लगभग 1,000 करोड़ रुपये साइबर धोखाधड़ी में गंवा रहा है, और साल भर का नुकसान 1.2 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा हो सकता है। भारतीयों को निशाना बनाने वाली आधे से ज़्यादा ऑनलाइन धोखाधड़ी कंबोडिया, म्यांमार, वियतनाम, लाओस और थाईलैंड जैसे देशों से चल रही है, जहाँ बड़े फर्जी निवेश और स्टॉक ट्रेडिंग घोटाले संचालित होते हैं।
कई मामलों में लोगों को फर्जी नौकरी के बहाने विदेश भेजकर इन घोटालों में शामिल किया जाता है। भारत में डिजिटल बैंकिंग की खामियाँ, फर्जी सिम कार्ड जारी होना और कमजोर सत्यापन प्रक्रियाएँ भी साइबर अपराध को बढ़ावा देती हैं।
साइबर सुरक्षा से जुड़ी सरकारी पहलें:
- कानूनी कदम: IT अधिनियम 2000, डिजिटल डेटा संरक्षण अधिनियम 2023।
- प्रमुख संस्थाएँ: CERT-In, NCIIPC, I4C, साइबर स्वच्छता केंद्र।
- सिस्टम और निगरानी: वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग सिस्टम, फर्जी सिम जारी करने पर सीबीआई की कार्रवाई।
- रणनीतिक पहल: राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013, राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा अभ्यास 2024।
- DoT के प्लेटफॉर्म: चक्षु, जो फर्जी कॉल, मैसेज या व्हाट्सएप धोखाधड़ी की रिपोर्ट करने का टूल है, और डिजिटल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म, जो साइबर अपराधों पर रियल-टाइम समन्वय सुनिश्चित करता है।
- विशेष विनियम: सेबी का साइबर सुरक्षा ढांचा, दूरसंचार क्षेत्र की सुरक्षा नियमावली।
निष्कर्ष:
केंद्र सरकार का यह नया आदेश मैसेजिंग ऐप्स की सुरक्षा मजबूत करने और फर्जी अकाउंट्स रोकने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। सिम बाइंडिंग से उपयोगकर्ताओं की पहचान सुरक्षित होगी और साइबर धोखाधड़ी को रोकने में मदद मिलेगी, जिससे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स अधिक भरोसेमंद बनेंगे।
