IMD ने मध्य, उत्तर-पश्चिम और पूर्वोत्तर भारत में तापमान में गिरावट का लगाया अनुमान: ध्रुवीय भंवर और ला नीना मुख्य वजह, जानिए पूरी खबर..

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, दिसंबर 2025 से फरवरी 2026 के बीच कई राज्यों में तापमान सामान्य से काफी नीचे जा सकता है। ध्रुवीय भंवर और ला नीना के असर से हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश सहित कई क्षेत्रों में ठंड तेज रहेगी।

 

IMD का अनुमान है कि इस सर्दी में शीत लहर वाले दिनों की संख्या भी बढ़ जाएगी, जहाँ आमतौर पर 4–6 दिन शीत लहर चलती है, वहीं इस बार यह अवधि 8–11 दिनों तक पहुँच सकती है।

IMD predicts drop in temperatures in central northwest and northeast India

शीत लहर से क्या तात्पर्य है ?

शीत लहर वह स्थिति है जब किसी जगह का रात का तापमान बहुत ज्यादा गिर जाता है।

  • मैदानी इलाकों में यह तब माना जाता है जब न्यूनतम तापमान 10°C या उससे कम हो।
  • पहाड़ी इलाकों में यह सीमा 0°C या उससे कम होती है।
  • इसके अलावा, अगर किसी जगह का तापमान उसके सामान्य तापमान से 5°C से 6.4°C तक नीचे आ जाए, तो भी उसे शीत लहर कहा जाता है।

 

इस बार दिसंबर में कई राज्यों में तापमान सामान्य से कम रहने की संभावना है। इसका मतलब है कि लोगों को 1 से 3 दिन अतिरिक्त शीत लहर का सामना करना पड़ सकता है। यानी महीने में कुल 3 से 6 दिन बहुत तेज ठंड पड़ सकती है।

 

ध्रुवीय भँवर क्या है ?

ध्रुवीय भँवर पृथ्वी के ध्रुवों के ऊपर बनने वाला बेहद ठंडी हवा और कम दाब का एक बड़ा घेरा होता है, जो पूरे साल मौजूद रहता है लेकिन सर्दियों में ज़्यादा सक्रिय हो जाता है। यह भँवर ध्रुवों के आसपास ठंडी हवा को घेरकर रखता है। गर्मियों में इसकी ताकत कम हो जाती है, जबकि सर्दियों में इसकी पकड़ मज़बूत हो जाती है।

 

ध्रुवीय भँवर के प्रकार:

  • क्षोभमंडलीय (Tropospheric) ध्रुवीय भँवर: यह वातावरण की निचली परत, यानी सतह से लगभग 10–15 किमी की ऊँचाई में बनता है, जहाँ रोज़मर्रा का मौसम—बारिश, तूफान और बर्फबारी निर्मित होता है। जब यह भँवर कमजोर या टूट जाता है, तो ध्रुवों की बेहद ठंडी हवा नीचे की ओर फैलने लगती है, जिससे कई क्षेत्रों में तापमान अचानक गिर जाता है।
  • समतापमंडलीय ध्रुवीय भँवर: यह 15–50 किमी की ऊँचाई पर बनने वाली ठंडी, तेज़ हवाओं की एक संगठित परत होती है। यह सर्दियों में सबसे अधिक मजबूत रहता है, लेकिन यदि यह अचानक कमजोर हो जाए या इसमें अचानक गर्माहट (Sudden Stratospheric Warming) आ जाए, तो नीचे के वायुमंडल में भी बड़ा फर्क पड़ता है, जिससे कई बार ठंडक बढ़ जाती है और शीत लहर की घटनाएँ तेज़ हो सकती हैं।

 

ला नीना क्या है ?

ला नीना एक प्राकृतिक जलवायु घटना है, जिसमें प्रशांत महासागर के पूर्वी और मध्य हिस्से का समुद्री पानी सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है। स्पेनिश भाषा में इसका अर्थ “छोटी बच्ची” होता है। जब समुद्र की सतह का तापमान लगातार कई महीनों तक सामान्य से काफी कम हो जाता है, तो इसे ला नीना घटना माना जाता है।

इस दौरान महासागर में ठंडा पानी बढ़ने से पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में उच्च दबाव बनता है और इससे दुनियाभर के मौसम पैटर्न पर असर पड़ता है—जैसे कुछ जगहों पर ज्यादा ठंड, कुछ जगहों पर भारी बारिश और कहीं-कहीं सूखे की स्थिति।

 

ला नीना का भारत पर प्रभाव:

ला नीना के साल में दक्षिण-पूर्व एशिया में मानसून की बारिश सामान्य से ज्यादा होती है, खासकर उत्तर-पश्चिम भारत और बांग्लादेश में। इससे भारत की कृषि और उद्योग जैसे क्षेत्र लाभान्वित होते हैं। साथ ही, यह भारत में सामान्य से अधिक ठंड लाता है। साइबेरिया और दक्षिण चीन की ठंडी हवाएँ भारत में आकर मौसम को प्रभावित करती हैं और उत्तर-दक्षिण दबाव प्रणाली बनाती हैं। ठंड का असर कभी-कभी तमिलनाडु तक पहुँच सकता है, लेकिन उत्तर-पूर्व भारत पर इसका असर कम होता है।

 

कहीं पर तापमान कम तो कहीं पर ज्यादा की संभावना:

आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र के अनुसार, दिसंबर 2025 से फरवरी 2026 के दौरान मध्य भारत, प्रायद्वीपीय क्षेत्रों और उत्तर-पश्चिम भारत के ज्यादातर हिस्सों में रात का तापमान सामान्य से कम रहेगा, जिससे इन इलाकों में ठंड ज़्यादा महसूस होगी। वहीं दूसरी ओर, उत्तर-पश्चिम के कुछ हिस्सों, पूर्वोत्तर भारत और हिमालय की तलहटी वाले क्षेत्रों में दिन का तापमान सामान्य से अधिक हो सकता है। यानी इन जगहों पर रातें ज़्यादा ठंडी होंगी, लेकिन दिन के समय अपेक्षाकृत गर्मी महसूस हो सकती है।

 

वर्त्तमान में मौसम का हाल:

नवंबर में उत्तर-पूर्व और प्रायद्वीपीय क्षेत्रों के कुछ हिस्सों को छोड़कर देश के अधिकांश इलाकों में रात का तापमान सामान्य से कम दर्ज किया गया। पूरे भारत में बारिश भी काफी कम हुई और औसत से 42.8% कम वर्षा रिकॉर्ड की गई। सबसे कम बारिश उत्तर-पश्चिम भारत में हुई, जहाँ 78.1% कमी देखी गई। इसके बाद मध्य भारत में 51.3% और दक्षिणी प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में 43.6% कम बारिश दर्ज की गई। इसके विपरीत, पूर्व और उत्तर-पूर्व भारत में बारिश सामान्य से 8.9% ज्यादा हुई। अब जैसे-जैसे सर्दी तेज होती जा रही है, प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को सलाह दी जाती है कि वे अधिक ठंड और संभावित शीत लहरों के लिए पहले से तैयार रहें और आवश्यक सावधानियाँ अपनाएँ।

 

ऐसे मौसम से बढ़ेंगी चुनौतियाँ:

सामान्य से ज्यादा चलने वाली शीत लहर बुजुर्गों, छोटे बच्चों और पहले से बीमार लोगों के लिए ज्यादा खतरा पैदा कर सकती है। सुबह के समय घना कोहरा दिखने की क्षमता कम कर सकता है, जिससे सड़क, रेल और हवाई यात्रा प्रभावित हो सकती है। ठंडी और स्थिर हवा के कारण कई शहरों में हवा की गुणवत्ता भी और खराब हो सकती है। इसके अलावा कृषि, बागवानी और रोज़गार पर निर्भर दिहाड़ी मजदूरों को लंबे समय तक ठंड के कारण कामकाज में कठिनाइयाँ झेलनी पड़ सकती हैं।

 

निष्कर्ष:

यह परिस्थितियाँ बताती हैं कि आने वाली सर्दी सामान्य से अधिक कड़ी हो सकती है। ध्रुवीय भँवर और ला नीना के असर से तापमान में तेज गिरावट और शीत लहर की अवधि बढ़ने की आशंका है। ऐसे में प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को स्वास्थ्य सुरक्षा, यात्रा और दैनिक कार्यों में अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता होगी, ताकि बढ़ती ठंड का प्रभाव कम से कम पड़े।