भारतीय वायुसेना की शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) से जुड़ी कई महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन (PC) न देने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं की सुनवाई बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल भूयान और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि देश को इन महिला अधिकारियों की सेवाओं पर गर्व है।
भारतीय वायुसेना की शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) के बारे में:
भारतीय वायुसेना की शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) युवाओं को सीमित अवधि के लिए वायुसेना में अधिकारी बनने का अवसर देती है। इसके तहत उम्मीदवार फ्लाइंग ब्रांच, ग्राउंड ड्यूटी (टेक्निकल) और ग्राउंड ड्यूटी (नॉन-टेक्निकल) में चयनित हो सकते हैं। SSC की प्रारंभिक सेवा अवधि 10 वर्ष होती है, जिसे प्रदर्शन और आवश्यकता के आधार पर 4 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है-अर्थात कुल 14 वर्ष तक सेवा। चयन प्रक्रिया AFCAT परीक्षा या NCC स्पेशल एंट्री, उसके बाद AFSB इंटरव्यू और मेडिकल परीक्षण के माध्यम से पूरी होती है।
यह कमीशन उन युवाओं के लिए आदर्श है जो वायुसेना के रोमांच, अनुशासन और प्रतिष्ठा के साथ अपने करियर की शुरुआत करना चाहते हैं। SSC अधिकारियों को आकर्षक वेतन, उड़ान भत्ता (Flying Allowance), मेडिकल सुविधाएँ, आवास, CSD सुविधाएँ और उत्कृष्ट प्रशिक्षण मिलता है, जिससे यह एक सम्मानजनक और अवसरपूर्ण करियर विकल्प बन जाता है।
कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
सीजेआई सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान कहा, “हर ड्यूटी महत्वपूर्ण होती है, चाहे वह जमीन पर हो या हवा में। देश को आपकी सेवाओं पर गर्व है। हम आपकी सेवाओं पर गर्व करते हैं।” यह टिप्पणी तब आई जब एक महिला SSC अधिकारी ने स्वयं अदालत में अपने कार्य प्रोफाइल के बारे में तर्क प्रस्तुत किए।
न्यायमूर्ति कांत ने यह भी कहा कि सशस्त्र बलों में SSC अधिकारियों के लिए भर्ती के बाद से ही कठिन जीवन शुरू हो जाता है, जिसके लिए 10 या 15 वर्ष की सेवा के बाद परमानेंट कमीशन देने का प्रोत्साहन आवश्यक है।
याचिका की मुख्य बातें
विंग कमांडर सुचेता एडन और अन्य महिला अधिकारियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनीका गुरुस्वामी ने याचिका प्रस्तुत की। याचिका में निम्नलिखित मुद्दे उठाए गए:
भेदभाव के आरोप
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि 2019 की मानव संसाधन (HR) नीति के बाद परमानेंट कमीशन के लिए विचार किए जाने के मानदंडों में बदलाव करके महिलाओं के साथ भेदभाव किया गया। यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) का उल्लंघन है।
गर्भावस्था और मातृत्व अवकाश के आधार पर भेदभाव
याचिका में विशेष रूप से कई महिला अधिकारियों के मामलों का उल्लेख किया गया, जिन्हें इसलिए परमानेंट कमीशन के लिए नहीं माना गया क्योंकि वे गर्भवती थीं या मातृत्व अवकाश पर थीं। यह तब हुआ जब उनका संचयी ग्रेड पॉइंट औसत (CGPA) अच्छा था और वे अन्य सभी मानदंडों को पूरा करती थीं।
वरिष्ठ अधिवक्ता गुरुस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि गर्भावस्था और मातृत्व अवकाश के आधार पर किसी भी महिला कर्मचारी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
जिम्मेदारियों को कमतर आंकना
सुप्रीम कोर्ट में एक महिला अधिकारी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उनकी जिम्मेदारियों और योगदान को कमतर आंका गया है। उन्होंने अपने कार्य प्रोफाइल के बारे में विस्तार से बताया और स्पष्ट किया कि वायुसेना में उनकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है।
विंग कमांडर निकिता पांडे का मामला
इस मुद्दे पर एक अन्य महत्वपूर्ण मामला विंग कमांडर निकिता पांडे का है, जिन्होंने ऑपरेशन बालाकोट (2019) और ऑपरेशन सिंदूर (2025) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
22 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय वायुसेना को निर्देश दिया था कि विंग कमांडर निकिता पांडे को सेवा से न निकाला जाए। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने अगले आदेश तक उन्हें सेवा में बनाए रखने का आदेश दिया।
निकिता पांडे की पृष्ठभूमि
विंग कमांडर निकिता पांडे एक विशेषज्ञ फाइटर कंट्रोलर हैं, जिन्होंने इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (IACCS) में विशेषज्ञता के साथ काम किया। वह देश की विशेषज्ञ एयर फाइटर कंट्रोलर्स की मेरिट लिस्ट में दूसरे स्थान पर हैं।
पांडे ने 2011 में शॉर्ट सर्विस कमीशन के माध्यम से वायुसेना में प्रवेश किया और 13.5 वर्षों से अधिक समय तक सेवा की है। हालांकि, 2019 की नीति परिवर्तन के कारण उन्हें परमानेंट कमीशन नहीं दिया गया।
कोर्ट की प्रशंसा
न्यायमूर्ति कांत ने सुनवाई के दौरान कहा, “हमारी वायुसेना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संगठनों में से एक है। अधिकारी बहुत सराहनीय हैं। उनके द्वारा प्रदर्शित समन्वय की गुणवत्ता अद्वितीय है। इसलिए, हम हमेशा उन्हें सलाम करते हैं। वे राष्ट्र के लिए एक बड़ी संपत्ति हैं। वे एक तरह से राष्ट्र ही हैं। उनके कारण, हम रात में शांति से सो पाते हैं।”
सरकार का पक्ष
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने केंद्र और वायुसेना की ओर से तर्क देते हुए कहा कि वे सक्षम अधिकारियों को सेवा में जारी रखने में कोई आपत्ति नहीं है। हालांकि, उन्होंने वायुसेना की “स्टीप पिरामिडल संरचना” का हवाला दिया।
भाटी ने बताया कि इस संरचना के तहत, 14 वर्षों की सेवा के बाद कुछ अधिकारियों को बाहर जाना होता है ताकि बल को युवा रखा जा सके। उन्होंने कहा कि हालांकि अधिकांश अधिकारी मूल्यांकन के दौरान योग्य पाए जाते हैं, लेकिन तुलनात्मक मेरिट और सीमित रिक्तियों के कारण केवल कुछ ही को परमानेंट भूमिकाओं में शामिल किया जा सकता है।
भाटी ने यह भी कहा कि प्रति वर्ष केवल 250 अधिकारियों को परमानेंट कमीशन दिया जाता है और चयन प्रत्येक बैच के भीतर मेरिट पर आधारित होता है।
परमानेंट कमीशन का महत्व
परमानेंट कमीशन सशस्त्र बलों में एक करियर पथ है जो एक अधिकारी को सेवानिवृत्ति की आयु तक सेवा करने की अनुमति देता है। शॉर्ट सर्विस कमीशन के विपरीत, जिसकी एक निश्चित अवधि होती है, परमानेंट कमीशन निम्नलिखित लाभ प्रदान करता है:
- उच्चतम रैंकों तक पदोन्नति के अवसर
- पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों की पूर्ण पात्रता
- दीर्घकालिक करियर सुरक्षा
- वित्तीय प्रोत्साहन और अन्य लाभ
पृष्ठभूमि और पिछले फैसले
सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में सचिव, रक्षा मंत्रालय बनाम बबिता पूनिया मामले में महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन देने का आदेश दिया था। उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
2020 के फैसले के बाद से, सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन के मुद्दे पर कई आदेश पारित किए हैं। इसी तरह के आदेश नौसेना, भारतीय वायुसेना और तटरक्षक बल के मामले में भी पारित किए गए हैं।
महिलाओं के लिए चुनौतियां
इस मामले ने सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर किया है:
नीतिगत बदलाव
2019 की HR नीति में किए गए बदलावों ने कई योग्य महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन से वंचित कर दिया, भले ही उनका प्रदर्शन उत्कृष्ट था।
लिंग-आधारित प्रतिबंध
महिलाओं को 1992 से वायुसेना में शामिल किया जा रहा है, लेकिन अभी भी उन्हें केवल SSC मार्ग के माध्यम से कमीशन दिया जाता है, जबकि पुरुष समकक्षों को SSC और परमानेंट कमीशन दोनों ट्रैक के माध्यम से शामिल किया जा सकता है।
करियर की अनिश्चितता
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि SSC अधिकारियों के करियर में अनिश्चितता सशस्त्र बलों के लिए अच्छी नहीं है और इससे योग्य अधिकारियों का मनोबल प्रभावित होता है।
आगे की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अंतिम सुनवाई 9 दिसंबर 2024 को निर्धारित की है। यह मामला सशस्त्र बलों में लैंगिक समानता और महिला अधिकारियों के करियर की प्रगति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
न्यायाधीशों की टिप्पणियों और पिछले फैसलों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि अदालत महिला अधिकारियों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि, सशस्त्र बलों की संरचनात्मक सीमाओं और परिचालन आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखना होगा।
निष्कर्ष:
यह मामला न केवल व्यक्तिगत अधिकारियों के करियर का सवाल है, बल्कि भारत की सबसे अनुशासित और सम्मानित संस्थाओं में लैंगिक न्याय के लिए प्रतिबद्धता का परीक्षण भी है। जैसे-जैसे सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विचार करता है, रक्षा समुदाय और नागरिक समान रूप से ध्यान से देख रहे हैं।
महिला अधिकारियों ने बार-बार साबित किया है कि वे महत्वपूर्ण ऑपरेशनों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकती हैं। अब समय आ गया है कि नीतियां उनकी प्रतिभा और समर्पण को पहचानें और उन्हें पुरुष समकक्षों के बराबर अवसर प्रदान करें।
