जर्मन अखबार डेर श्पीगल के अनुसार यूरोपीय नेताओं की एक गुप्त वीडियो कॉल लीक हुई है, जिसमें शामिल कई शीर्ष यूरोपीय नेताओं जैसे; जर्मनी के चांसलर फेडरिक मर्ज, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, फिनलैंड के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर स्टब, नाटो के महासचिव मार्क रूटे, पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क, इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की, ने यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका की मंशा पर गहरा अविश्वास जताया। यह लीक पश्चिमी देशों के बीच बढ़ते मतभेदों को उजागर करती है।
यूरोपीय नेताओं ने क्या कहा ?
- मैक्रों ने कहा कि अगर सुरक्षा गारंटी स्पष्ट नहीं हुई, तो यह भी हो सकता है कि अमेरिका यूक्रेन को धोखा दे दे।
- जर्मनी के चांसलर मर्ज़ ने ज़ेलेंस्की को चेतावनी दी कि आने वाले दिनों में बहुत संभलकर रहें, क्योंकि उनके अनुसार अमेरिका यूक्रेन और यूरोप दोनों के साथ खेल खेल रहा है।
- फिनलैंड के राष्ट्रपति स्टब ने कहा कि हम यूक्रेन और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को अमेरिका के भरोसे अकेला नहीं छोड़ सकते।
- नाटो महासचिव मार्क रूटे ने कहा कि नेताओं को “ज़ेलेंस्की की सुरक्षा करनी चाहिए।”
इस प्रकार, यूरोपीय नेताओं ने कॉल में साफ़ चिंता जताई। लेकिन इन सभी नेताओं ने गोपनीयता के कारण इस लीक पर कोई आधिकारिक टिप्पणी करने से मना कर दिया। साथ ही ज़ेलेंस्की के संचार सलाहकार दिमित्रो लिट्विन ने भी रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा: “हम उकसावे पर टिप्पणी नहीं करते हैं।”
नाटो अधिकारी ने लीक पर क्या कहा ?
जब इस लीक पर नाटो से प्रतिक्रिया मांगी गई, तो एक अधिकारी ने कहा कि नाटो आम तौर पर किसी भी लीक पर टिप्पणी नहीं करता। अधिकारी ने यह भी साफ़ किया कि यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए चल रही कोशिशों पर महासचिव रूटे राष्ट्रपति ट्रंप और उनकी टीम के प्रयासों का समर्थन करते हैं।
वाशिंगटन से क्यों नाराज है यूरोपीय नेता ?
यूरोपीय नेता वाशिंगटन से इसलिए नाराज़ हैं, क्योंकि पिछले महीने अमेरिका ने यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए 28 बिंदुओं का प्रस्ताव तैयार किया था, और यह काम उसने यूरोपीय देशों से कोई सलाह लिए बिना किया। आलोचकों का कहना है कि यह प्रस्ताव रूस की मांगों जैसा लगता है। इसी वजह से यूरोपीय देशों को महसूस हुआ कि अमेरिका ने उन्हें नज़रअंदाज़ भी किया और एक ऐसा प्लान बनाया जो यूक्रेन के नुकसान में जा सकता है।
28-सूत्रीय युद्धविराम प्रस्ताव को लेकर अभी भी बातचीत जारी:
28-सूत्रीय युद्धविराम प्रस्ताव पर अभी भी बातचीत चल रही है। जिनेवा और फ्लोरिडा में अमेरिका–यूक्रेन की बैठक के बाद, राष्ट्रपति ट्रंप के दूत स्टीव विटकॉफ और उनके दामाद जेरेड कुशनर मास्को पहुंचे। लीक नोटों में बताया गया कि यूरोपीय नेता इन दोनों पर बिल्कुल भरोसा नहीं करते और उनकी भूमिका को लेकर काफी बेचैनी महसूस कर रहे हैं।
28-सूत्रीय युद्धविराम प्रस्ताव क्या है?
यह अमेरिका की ओर से बनाया गया एक शांति प्रस्ताव है, जिसका मकसद रूस–यूक्रेन युद्ध को बातचीत के ज़रिए खत्म करना है। इस योजना में कई मुद्दों को शामिल किया गया है—जैसे सुरक्षा व्यवस्था, यूक्रेन में राजनीतिक बदलाव, आर्थिक मदद और कब्ज़े वाले क्षेत्रों के लिए समाधान।
मुख्य उद्देश्य:
- युद्ध को रोकना और दोनों देशों को बातचीत की आखिरी सीमा तक लाना।
- रूस और नाटो के बीच तनाव कम करना और नाटो के विस्तार को सीमित करना।
- यूक्रेन के पुनर्निर्माण के लिए पश्चिमी देशों का निवेश और तकनीक उपलब्ध कराना।
28-सूत्रीय युद्धविराम प्रस्ताव की मुख्य बातें:
- यूक्रेन को क्रीमिया, लुहान्स्क और डोनेट्स्क जैसे क्षेत्रों को रूस के हिस्से के रूप में स्वीकार करना होगा।
- यूक्रेन की सेना के आकार पर पाबंदी लगेगी, यानी उसकी सैन्य शक्ति सीमित कर दी जाएगी।
- रूस पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध धीरे-धीरे हटाए जाएंगे।
- यूक्रेन के लिए अमेरिका एक सुरक्षा ढांचा (Security Guarantee) तैयार करेगा।
- अमेरिका और रूस के बीच आर्थिक साझेदारी का प्रावधान है, जिसमें जापान की तरह पुनर्निर्माण में निवेश और लाभ बाँटने की व्यवस्था शामिल है।
- यूक्रेन को नाटो सदस्यता की मांग छोड़नी होगी और इसके लिए अपने संविधान में बदलाव करना होगा।
- रूस को फिर से G-8 समूह (आठ देशों के समूह) में शामिल करने का रास्ता खोला जाएगा।
भारत के लिए यह युद्धविराम कितना उपयोगी?
- ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी: रूस पर प्रतिबंध हटने से भारत को सस्ता और लगातार मिलने वाला कच्चा तेल और गैस आसानी से मिल सकेगा।
- व्यापार पर असर: पहले लगे प्रतिबंधों की वजह से दवाइयों, कृषि, रसायन और आईटी जैसे क्षेत्रों में भारत का व्यापार कम हुआ था। प्रतिबंध हटने पर भारत-रूस व्यापार फिर से तेज़ हो सकता है।
- रक्षा सहयोग बढ़ेगा: S-400, Su-57, स्पेयर पार्ट्स और संयुक्त उत्पादन जैसी परियोजनाएँ बिना रुकावट आगे बढ़ सकेंगी।
- भुगतान व्यवस्था आसान: रुपये–रूबल व्यापार फिर चालू होने से लेन-देन सस्ता और आसान हो जाएगा।
- नई परियोजनाओं का रास्ता खुलेगा: रूस के खनिज, ऊर्जा परियोजनाओं और नॉर्थ सी रूट तक भारत की पहुँच मजबूत होगी, जिससे लॉजिस्टिक्स और अर्थव्यवस्था दोनों को फायदा होगा।
रूस-यूक्रेन युद्ध के बारे में:
रूस–यूक्रेन युद्ध 2014 में तब शुरू हुआ जब यूक्रेन की राजनीतिक उथल-पुथल के बाद रूस ने क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया और पूर्वी डोनबास क्षेत्र में रूसी समर्थक समूहों की मदद से संघर्ष भड़क गया। आठ वर्षों तक यह लड़ाई सीमित रूप से चलती रही, जिसमें साइबर हमले और नौसैनिक घटनाएँ भी शामिल थीं। लेकिन 24 फरवरी 2022 को रूस द्वारा यूक्रेन पर बड़े पैमाने पर आक्रमण ने इस संघर्ष को यूरोप के सबसे बड़े युद्ध में बदल दिया। इसके परिणामस्वरूप लाखों लोग विस्थापित हुए और सैकड़ों हज़ार लोगों की जानें गईं, जिससे यह युद्ध आधुनिक यूरोप के लिए गहरी मानवीय और सुरक्षा चुनौती बन गया।
निष्कर्ष:
इस लीक ने साफ़ कर दिया है कि यूक्रेन युद्ध को लेकर पश्चिमी देशों के बीच भरोसा कमजोर हुआ है। अमेरिका की मंशा पर उठते सवाल यूरोपीय नेताओं की गहरी चिंता और बढ़ते मतभेदों को दर्शाते हैं। यह स्थिति बताती है कि संकट का समाधान तभी संभव है जब सहयोगी देश पारदर्शी संवाद और आपसी विश्वास के साथ आगे बढ़ें।
