पिछले पांच वर्षों में तेलंगाना का कर संग्रह लगभग चार गुना बढ़ गया है, लेकिन केंद्र सरकार की राजस्व वितरण व्यवस्था में राज्य को उसके योगदान का महज 42 प्रतिशत ही वापस मिल रहा है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि बढ़ते उपकर और असमान वितरण फॉर्मूले से संघीय संतुलन बिगड़ रहा है और आर्थिक रूप से मजबूत राज्यों को नुकसान हो रहा है।
संसद के चालू सत्र में केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020-21 में तेलंगाना का केंद्रीय विभाज्य कोष में योगदान 35,243 करोड़ रुपये था, जो 2024-25 में बढ़कर 1.33 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया। इस तरह 2020-21 से 2024-25 के बीच राज्य ने कुल 4.32 लाख करोड़ रुपये का योगदान दिया, जो देश के प्रत्यक्ष कर और घरेलू जीएसटी संग्रह का 3.87 प्रतिशत है।
मिला सिर्फ 1.84 लाख करोड़
लेकिन बदले में तेलंगाना को केवल 1.84 लाख करोड़ रुपये प्राप्त हुए, जो राष्ट्रीय कर हस्तांतरण, वित्त आयोग अनुदान और केंद्र प्रायोजित योजनाओं में केंद्र के हिस्से का महज 2.45 प्रतिशत है। सीधे शब्दों में कहें तो तेलंगाना द्वारा दिए गए प्रत्येक 100 रुपये पर केंद्र ने मात्र 42 रुपये लौटाए।
राष्ट्रीय राजमार्गों सहित केंद्रीय परियोजनाओं और ऋणों के माध्यम से अप्रत्यक्ष लाभों को भी ध्यान में रखते हुए, राज्य को कुल 3.27 लाख करोड़ रुपये मिले। इस प्रकार पांच वर्षों में तेलंगाना को केंद्रीय धन में केवल 6,300 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई – 2020-21 में 60,590 करोड़ रुपये (कोविड-19 सहायता सहित) से 2024-25 में 66,295 करोड़ रुपये।
अन्य राज्यों को मिल रहा ज्यादा हिस्सा
इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश ने 4.6 प्रतिशत योगदान दिया, लेकिन कुल हस्तांतरण का 15.82 प्रतिशत हासिल किया। इसी तरह बिहार को महज 0.68 प्रतिशत योगदान के बदले 8.66 प्रतिशत धनराशि मिली, जबकि मध्य प्रदेश को 1.94 प्रतिशत योगदान देने पर 7.4 प्रतिशत राशि प्राप्त हुई। उत्तर प्रदेश और बिहार को अपने योगदान से क्रमशः तीन गुना और 12 गुना अधिक धन मिला।
यहां तक कि आंध्र प्रदेश को भी प्रति 100 रुपये के योगदान पर लगभग 97 रुपये वापस मिले। आंध्र प्रदेश ने केंद्रीय खजाने में 3.32 लाख करोड़ रुपये का योगदान दिया और बदले में 3.23 लाख करोड़ रुपये प्राप्त किए।
उपकर और अधिभार की बढ़ती चिंता
अर्थशास्त्रियों ने इस ओर ध्यान दिलाया कि केंद्र सरकार ने उपकर और अधिभार के माध्यम से भारी राजस्व जुटाया है। यह राजकोषीय रणनीति केंद्र सरकार को राज्यों के साथ हिस्सेदारी किए बिना अपना राजस्व बढ़ाने की अनुमति देती है।
2020-25 के दौरान अर्जित 111.75 लाख करोड़ रुपये के कर राजस्व के मुकाबले, केंद्र ने प्रमुख उपकरों के माध्यम से 19.41 लाख करोड़ रुपये और अधिभारों के माध्यम से 4.84 लाख करोड़ रुपये एकत्र किए। अनुमान है कि तेलंगाना ने उपकर और अधिभार के माध्यम से राष्ट्रीय खजाने में लगभग 85,000 करोड़ रुपये का योगदान दिया है।
कृषि उपकर, कच्चे तेल पर उपकर, जीएसटी मुआवजा उपकर, स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर जैसे विभिन्न उपकरों में साल दर साल तेजी से वृद्धि हुई है।
संघीय संतुलन पर खतरा
विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति सहकारी संघवाद के बजाय केंद्रीकरण की ओर झुकाव दर्शाती है। केंद्र सरकार का राजस्व फॉर्मूला नई दिल्ली के नियंत्रण को बढ़ा रहा है और आर्थिक रूप से प्रगतिशील राज्यों को नुकसान पहुंचा रहा है।
यदि नई दिल्ली बढ़ते उपकर व्यवस्था और असमान वितरण फॉर्मूले पर पुनर्विचार नहीं करती है, तो भारत का संघीय संतुलन अपरिवर्तनीय रूप से केंद्रीकरण की ओर झुक सकता है। इस स्थिति में तेलंगाना जैसे राज्यों को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
मुख्य आंकड़े एक नजर में
तेलंगाना का योगदान (2020-21 से 2024-25):
- पांच वर्षों में योगदान चार गुना: 35,243 करोड़ रुपये से 1.33 लाख करोड़ रुपये
- केंद्र को कुल योगदान: 4.32 लाख करोड़ रुपये
- राष्ट्रीय पूल में हिस्सेदारी: 3.87%
- उपकर और अधिभार के माध्यम से अतिरिक्त योगदान: लगभग 85,000 करोड़ रुपये (जो राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता)
तेलंगाना को प्राप्त राशि:
- कुल केंद्रीय हस्तांतरण: 1.84 लाख करोड़ रुपये (कर हस्तांतरण, वित्त आयोग अनुदान और केंद्र प्रायोजित योजनाओं का हिस्सा)
- राष्ट्रीय हस्तांतरण में हिस्सेदारी: 2.45%
- पांच वर्षों में वृद्धि मात्र 6,300 करोड़ रुपये
राज्य सरकार की चिंता
राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि यह असमानता न केवल तेलंगाना बल्कि सभी आर्थिक रूप से सक्षम राज्यों के विकास को प्रभावित कर रही है। जो राज्य अधिक कर संग्रह कर रहे हैं, उन्हें उचित हिस्सा नहीं मिल रहा है, जबकि कम योगदान देने वाले राज्यों को अधिक राशि मिल रही है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि केंद्र सरकार को वित्त आयोग की सिफारिशों को गंभीरता से लागू करना चाहिए और उपकर तथा अधिभार पर निर्भरता कम करनी चाहिए। साथ ही, कर वितरण का फॉर्मूला अधिक न्यायसंगत होना चाहिए ताकि योगदान देने वाले राज्यों को उचित प्रोत्साहन मिले और वे अपने विकास कार्यों को बेहतर ढंग से संचालित कर सकें।
यह मुद्दा संघीय ढांचे की मजबूती और राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता से जुड़ा है, जो भारतीय लोकतंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
