खाद्यान्न की लागत कम होने से इस वर्ष वेज और नॉन वेज थाली की कीमतों में 13% सस्ती हुई

नवंबर में देश ने घरेलू वेज और नॉन वेज थाली की औसत कीमतों में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई। यह बात क्रिसिल की ताज़ा ‘रोटी राइस रेट (RRR)’ रिपोर्ट में कही गई, जिसके अनुसार थाली में सालाना आधार पर लागत लगभग 13.14% घटी। सब्ज़ियों, दालों और तेलों की थोक कीमतों में कमी से थाली की कुल लागत में कमी आई हैं। इससे परिवारों के मासिक खर्च पर इसका सकारात्मक असर दिखा।

vegetarian and non-vegetarian thali have become cheaper by 13% this year

CRISIL की “रोटी राइस रेट” (RRR) रिपोर्ट 2025 की प्रमुख बातें

 

  • CRISIL द्वारा दिसम्बर 2025 में जारी RRR रिपोर्ट के अनुसार नवंबर 2025 में घर पर बनने वाली शाकाहारी और मांसाहारी थाली का कुल खर्च पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 13% घटा। यह गिरावट उन घरेलू उपभोक्ताओं के लिए राहत का संकेत है, जो पिछले दो वर्षों में लगातार बढ़ती खाद्य महंगाई का सामना कर रहे थे।
  • नवंबर 2024 में जहाँ एक सामान्य शाकाहारी थाली की औसत लागत ₹32.7 थी, वहीं नवंबर 2025 में यह घटकर लगभग ₹28.4 रह गई। यह लगभग 13.14% की वार्षिक कमी को दर्शाता है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार, टमाटर के दाम में करीब 17%, आलू के दाम में लगभग 29%, और प्याज़ की कीमतों में लगभग 53% की भारी गिरावट दर्ज की गई। प्याज़ और आलू जैसी सब्ज़ियाँ रोज़मर्रा की थाली का प्रमुख हिस्सा हैं, इसलिए इनकी कीमतों में बड़ी गिरावट ने कुल लागत पर सीधा प्रभाव डाला।
  • दालों की कीमतों में लगभग 17% की कमी भी शाकाहारी थाली को सस्ता बनाने का एक महत्वपूर्ण कारण रही। इस गिरावट के पीछे 2025 के वित्तीय वर्ष में देश में बंगाल चना, पीली मटर और उड़द जैसी दालों के आयात में तेज़ बढ़ोतरी का प्रभाव रहा। आयात बढ़ने से बाज़ार में आपूर्ति मजबूत हुई और कीमतें घटी। 
  • शाकाहारी थाली की तरह ही गैर-शाकाहारी (मांसाहारी) थाली भी सस्ती हुई। इसकी लागत में कमी का सबसे बड़ा कारण ब्रॉयलर चिकन की कीमतों में लगभग 12% की गिरावट रहा। चूंकि गैर-शाकाहारी थाली के कुल खर्च में चिकन का हिस्सा लगभग 50% माना जाता है, इसलिए इसकी कीमतों में कमी ने थाली को स्पष्ट रूप से किफायती बनाया। 
  • हालाँकि, सभी खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट नहीं आई। वनस्पति तेल की कीमतों में लगभग 6% की वृद्धि दर्ज की गई, जिसने कुल थाली लागत को कुछ हद तक संतुलित भी किया। 
  • रिपोर्ट के अनुसार महीने-दर-महीने (Month-on-Month) तुलना करने पर अक्टूबर से नवंबर 2025 के बीच शाकाहारी थाली की कीमत में करीब 2% की बढ़ोतरी देखी गई, जबकि इसी अवधि में गैर-शाकाहारी थाली लगभग 1% सस्ती हुई। यह उतार-चढ़ाव मौसम, आपूर्ति श्रृंखला और बाजार की विभिन्न स्थितियों पर निर्भर करता है, जो हर महीने बदलती रहती हैं।

 

2025 में खाद्य लागत में आई गिरावट के प्रमुख कारक

  • सबसे प्रमुख कारण आपूर्ति की मजबूत स्थिति रही। हाल के रबी और खरीफ मौसमों में किसानों ने सब्ज़ियों और अनाज की बेहतर पैदावार की, जिससे बाजार में उपलब्धता बढ़ी। उत्पादन में आए इस उछाल ने मंडियों में स्टॉक बढ़ा दिए और थोक के साथ खुदरा कीमतों पर भी दबाव कम हुआ। 
  • सब्ज़ियों की कीमतों में तेज़ गिरावट घर की थाली को सस्ता बनाने का महत्वपूर्ण कारक है। टमाटर, आलू और प्याज़ जैसी रोज़ाना प्रयोग होने वाली सब्ज़ियों के दाम में वर्ष-दर-वर्ष बड़ी कमी देखी गई। सब्ज़ी की टोकरी पर आने वाला खर्च कम हुआ, और इसका सीधा असर नवंबर 2025 में घरेलू थाली के औसत मूल्य पर दिखा। 
  • दालों की कीमतों में नरमी ने भी खाद्य लागत को सस्ता किया। वित्त वर्ष 2025 में भारत ने चना, मटर और उड़द जैसी दालों के आयात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। बाहरी आपूर्ति बढ़ने से घरेलू बाजार में उपलब्धता बेहतर हुई और दालों के दाम लगभग मध्य-दहाई (mid-teens) प्रतिशत तक नीचे आए। आयात नीति में हुए बदलावों ने दालों के बाजार को स्थिर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • मांसाहारी थाली की लागत में कमी का बड़ा कारण ब्रॉयलर चिकन की कीमतों में गिरावट रहा। वर्ष 2025 में पोल्ट्री फार्मों में उत्पादन बढ़ा, जिससे आपूर्ति मांग से थोड़ा अधिक हो गई। परिणामस्वरूप थोक कीमतों में गिरावट आई और गैर-शाकाहारी भोजन की लागत कम हुई। 
  • अन्य महत्वपूर्ण कारक सांख्यिकीय आधार प्रभाव (Base Effect) रहा। वर्ष 2024 में कई महीनों के दौरान खाद्य कीमतें पहले से ही असामान्य रूप से अधिक थीं। इसलिए 2025 में कीमतों में आई कमी का प्रतिशत पिछले वर्ष के ऊँचे स्तरों की तुलना में अधिक दिखा। यह आधार प्रभाव खाद्य वस्तुओं की कीमतों में आई वास्तविक कमी को अधिक स्पष्ट करता है।
  • अनुकूल मौसम परिस्थितियाँ भी खाद्य लागत घटाने का बड़ा कारण बनीं। प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में वर्षा संतुलित रही और तापमान सामान्य रहा। मौसम की स्थिरता से पैदावार मजबूत हुई और मंडियों में अधिक मात्रा में कृषि उपज पहुँची। अच्छी आवक ने खुदरा बाजार में दबाव कम किया और कीमतें स्वाभाविक रूप से नीचे आईं।
  • व्यापार और नीति संबंधी बदलाव भी प्रभावी रहे। सरकार ने कुछ चुनिंदा खाद्य वस्तुओं के आयात शुल्क में समायोजन किए और व्यापारियों को अधिक खेप लाने की अनुमति दी। इससे आपूर्ति श्रृंखला मजबूत हुई और उपभोक्ताओं को किफायती दामों पर भोजन उपलब्ध हो सका।

 

CRISIL थाली मूल्य कैसे तय करता है?

  • CRISIL हर महीने भारतीय परिवारों की भोजन लागत को समझने के लिए सबसे पहले यह निर्धारित करती है कि एक सामान्य भारतीय थाली में कौन-कौन से खाद्य तत्व शामिल होंगे। शाकाहारी थाली के लिए चावल या गेहूँ का आटा, दालें, अलग-अलग सब्ज़ियाँ, मसाले, खाद्य तेल और पकाने के लिए आवश्यक ईंधन अनिवार्य माने जाते हैं। वहीं मांसाहारी थाली में यही सभी तत्व शामिल रहते हैं, लेकिन दाल की एक निश्चित मात्रा की जगह ब्रॉयलर चिकन का हिस्सा जोड़ा जाता है।
  • थाली की लागत तय करने के लिए CRISIL प्रतिदिन देश के चार प्रमुख क्षेत्रों—उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम से खुदरा भाव एकत्र करता है। हर क्षेत्र में कीमतों के आधार पर उस क्षेत्र की अलग-अलग थाली लागत तय की जाती है, फिर इन सभी क्षेत्रों का औसत निकालकर राष्ट्रीय स्तर का थाली मूल्य तैयार होता है।
  • हर थाली सामग्री की निश्चित मात्रा भी पहले से तय रहती है। CRISIL इन निर्धारित मात्राओं को दैनिक खुदरा कीमतों से गुणा करता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी दिन गेहूँ के आटे का खुदरा मूल्य ज्ञात है, तो गणना में उतने ग्राम आटे की कीमत जोड़ी जाती है, जितना आटा एक थाली में शामिल माना जाता है। 
  • थाली की कुल लागत में ईंधन की कीमत को भी शामिल किया जाता है। CRISIL हर महीने के पहले दिन घोषित LPG मूल्य को आधार बनाता है। गैस की कीमत को इस तरह विभाजित किया जाता है कि एक भोजन के लिए आने वाला औसत खर्च थाली की गणना में जोड़ा जा सके। इससे पकाने की वास्तविक लागत भी थाली के अंतिम मूल्य में परिलक्षित होती है।
  • कीमतों में होने वाले बदलाव को समझने के लिए CRISIL दो प्रकार की तुलना करता है। महीने-दर-महीने (MoM) तुलना से यह पता चलता है कि सब्ज़ियों जैसे अस्थायी कारकों के कारण लागत में तात्कालिक उतार-चढ़ाव हुआ या नहीं। दूसरी ओर साल-दर-साल (YoY) तुलना दीर्घकालिक रुझान दिखाती है, जिसमें बेहतर फसल, आयात वृद्धि या बाजार आपूर्ति जैसी संरचनात्मक वजहें शामिल होती हैं।

 

CRISIL के बारे मे 

  • CRISIL, जिसका पूरा नाम क्रेडिट रेटिंग इन्फॉर्मेशन सर्विसेज ऑफ इंडिया लिमिटेड है, भारत से संचालित एक प्रमुख वैश्विक विश्लेषण कंपनी है। संस्था वित्तीय जगत में विश्वसनीय डेटा, गहन अध्ययन और सटीक मूल्यांकन के लिए जानी जाती है। 
  • इसका लक्ष्य निवेशकों, कंपनियों और नीति-निर्माताओं को ऐसी जानकारी प्रदान करना है, जिससे वे बेहतर निर्णय ले सकें और बदलते आर्थिक परिदृश्यों के अनुसार रणनीतियाँ विकसित कर सकें।
  • कंपनी की स्थापना 1987 में हुई थी और कुछ ही वर्षों में यह देश की महत्वपूर्ण वित्तीय विश्लेषण इकाई के रूप में उभरी। 
  • CRISIL विभिन्न संस्थानों—जैसे बैंक, कॉरपोरेट कंपनियाँ और सरकारी निकाय—को क्रेडिट रेटिंग प्रदान करती है, जिससे उनके वित्तीय जोखिम और विश्वसनीयता के स्तर का आकलन किया जा सके। इसके द्वारा जारी की जाने वाली रेटिंग का सीधा प्रभाव उधारी लागत और निवेश निर्णयों पर पड़ता है।
  • यह इक्विटी और फिक्स्ड-इनकम रिसर्च भी तैयार करती है, जो निवेशकों को बाजार की दिशा, जोखिम और अवसरों को समझने में मदद करता है। कंपनी उद्योग आधारित विश्लेषण, आर्थिक संकेतक, सेक्टर रिपोर्ट और दीर्घकालिक पूर्वानुमान भी जारी करती है, जिन्हें कंपनियाँ अपनी नीतियों और विस्तार योजनाओं में उपयोग करती हैं।
  • संस्था ने 2022 में ‘रोटी राइस रेट’ (RRR) नामक एक महत्वपूर्ण सूचकांक पेश किया, जिसका उद्देश्य भारतीय परिवारों के भोजन व्यय में होने वाले बदलावों को सरल रूप में ट्रैक करना था।
  • CRISIL के कार्य को भारतीय बाजार नियामकों, विशेषकर सेबी (Securities and Exchange Board of India), द्वारा मान्यता प्राप्त है। इस वजह से इसके आकलन और अनुसंधान को नीति-निर्माण, निवेश योजना और जोखिम विश्लेषण में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
  • वर्तमान में यह संस्था 30 से अधिक देशों में सेवाएँ प्रदान कर रही है। भारत के वित्तीय ढांचे में CRISIL की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके अनुसंधान रिपोर्ट निवेशकों, संस्थानों और सरकारों को आर्थिक निर्णय लेने में मार्गदर्शन देती हैं।

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