हाल ही में, गूगल ने एक आंतरिक सलाह जारी कर एच-1बी और एच-4 वीजा धारकों से अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर पुनर्विचार करने या उसे स्थगित करने का आग्रह किया है। यह चेतावनी अमेरिका में वीजा आवेदनों की भारी प्रोसेसिंग में देरी के मद्देनजर में जारी की गई है, जिसके कारण कर्मचारी 12 महीने तक देश से बाहर फंसे रह सकते हैं।
H-1B वीज़ा प्रक्रिया में अमेरिकी सरकार का नया एवं कड़ा रुख
- दिसंबर 2025 के मध्य में अमेरिका की विदेश विभाग ने वीज़ा प्रक्रिया से जुड़ा एक बड़ा नीतिगत बदलाव लागू किया। यह बदलाव विशेष रूप से H-1B वीज़ा आवेदकों और उनके H-4 आश्रितों पर केंद्रित है।
- नई व्यवस्था के तहत अब आवेदकों की डिजिटल गतिविधियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से गंभीरता से परखा जा रहा है। इस निर्णय ने वीज़ा प्रणाली को पहले की तुलना में कहीं अधिक सख्त बना दिया है।
- नई नीति के अनुसार, हर आवेदक को अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल कम से कम पिछले पाँच वर्षों के लिए सार्वजनिक रखना होगा। अधिकारियों को यह अधिकार दिया गया है कि वे आवेदक की ऑनलाइन उपस्थिति की गहराई से जांच करें। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी तरह की संदिग्ध गतिविधि पहले ही सामने आ सके।
- डिजिटल रिकॉर्ड की विस्तृत समीक्षा के कारण दूतावासों में काम का दबाव अचानक बढ़ गया है। प्रत्येक आवेदन पर विस्तृत राष्ट्रीय सुरक्षा जांच अनिवार्य होने से रोज़ होने वाले इंटरव्यू की संख्या में भारी गिरावट आई है। इसका सीधा असर वीज़ा प्रसंस्करण की गति पर पड़ा है।
- भारत में चेन्नई, हैदराबाद और मुंबई जैसे प्रमुख वीज़ा केंद्रों पर हजारों अपॉइंटमेंट अचानक रद्द कर दी गईं। जो साक्षात्कार 2025 के अंत में तय थे, उन्हें अब मार्च, जून या अक्टूबर 2026 तक टाल दिया गया है। इससे छात्रों और पेशेवरों की योजनाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।
- प्रशासन ने वीज़ा जांच के साथ-साथ एक एकमुश्त 1,00,000 डॉलर शुल्क भी लागू किया है। यह शुल्क नए H-1B वीज़ा आवेदनों पर लगाया गया है। सरकार का तर्क है कि इससे प्रणाली के कथित दुरुपयोग पर रोक लगेगी, लेकिन इससे योग्य आवेदकों पर आर्थिक दबाव बढ़ा है।
तकनीकी क्षेत्र पर असर: अनिश्चितता में फंसा वैश्विक कार्यबल
- वैश्विक तकनीकी उद्योग H-1B वीज़ा प्रणाली पर गहराई से निर्भर रहा है। बड़े अमेरिकी टेक संस्थान अपनी नवाचार क्षमता और उत्पाद विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिभा पर भरोसा करते हैं। वर्ष 2024 में ही Google ने पाँच हजार से अधिक और Apple ने लगभग चार हजार H-1B आवेदन दायर किए। यह आंकड़े दिखाते हैं कि विदेशी कुशल पेशेवर इस उद्योग की रीढ़ हैं। नई वीज़ा सख्ती ने इसी आधार को हिला दिया है।
- वीज़ा देरी के कारण कई तकनीकी विशेषज्ञ अमेरिका के बाहर फंसे हुए हैं। कुछ कर्मचारियों को एक वर्ष तक प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। इसका सीधा प्रभाव सॉफ्टवेयर विकास, क्लाउड सेवाओं और AI प्रोजेक्ट्स पर पड़ा है। समय पर डिलीवरी, क्लाइंट कमिटमेंट और टीम समन्वय में गंभीर बाधाएं सामने आ रही हैं। कंपनियों के लिए दीर्घकालिक योजना बनाना कठिन हो गया है।
- अमेरिकी कानून कई मामलों में कर्मचारियों को लंबे समय तक विदेश से रिमोट वर्क करने की अनुमति नहीं देता। इस स्थिति में फंसे कर्मचारी न तो अमेरिका लौट पा रहे हैं और न ही पूरी तरह काम कर पा रहे हैं। कई पेशेवरों के सामने अनिश्चित अवकाश या नौकरी समाप्त होने का खतरा खड़ा हो गया है। इससे मानसिक दबाव और करियर अस्थिरता बढ़ी है।
- नई स्थिति ने कंपनियों की कानूनी लागत भी बढ़ा दी है। बड़ी टेक कंपनियां अब विशेष इमिग्रेशन लॉ फर्मों की मदद ले रही हैं। ये फर्में कर्मचारियों को यह समझाने में जुटी हैं कि उनकी ऑनलाइन गतिविधियां अब करियर की दिशा तय कर सकती हैं। हर प्रोफाइल का गहन मूल्यांकन हो रहा है, जिससे मानव संसाधन प्रबंधन अधिक जटिल बन गया है।
निजता, नैतिकता और वैश्विक शासन की नई चुनौती
- 2025 की नई जाँच व्यवस्था ने डिजिटल निजता के अधिकार और राष्ट्रीय सुरक्षा की जरूरतों के बीच एक गहरी बहस को जन्म दिया है। अब किसी व्यक्ति की ऑनलाइन उपस्थिति केवल निजी अभिव्यक्ति नहीं मानी जा रही। इसे सुरक्षा मूल्यांकन का हिस्सा बना दिया गया है।
- इस व्यवस्था में पहली बार सोशल मीडिया पर किए गए लाइक, टिप्पणियां और राय किसी व्यक्ति की पेशेवर पात्रता को प्रभावित कर सकती हैं। कार्य वीज़ा जैसे कानूनी अधिकार अब डिजिटल व्यवहार से जुड़े हैं। इससे निजी जीवन और पेशेवर अवसरों के बीच की सीमा धुंधली होती जा रही है। कई लोगों के लिए यह एक असहज स्थिति है।
- यह नीति व्यापक “अमेरिका फर्स्ट” दृष्टिकोण का स्पष्ट प्रतिबिंब मानी जा रही है। इसका उद्देश्य घरेलू श्रम बाजार की रक्षा करना और राष्ट्रीय सुरक्षा को सख्त डिजिटल निगरानी से मजबूत करना है। ऑनलाइन ऑडिटिंग को आधार बनाकर सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है।
भारत–अमेरिका संबंधों पर प्रभाव
- H-1B वीज़ा कार्यक्रम भारत और अमेरिका के बीच बनी डायस्पोरा कूटनीति का एक मजबूत स्तंभ रहा है। अमेरिकी तकनीकी और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में भारतीय मूल के पेशेवरों की भूमिका केंद्रीय रही है। लंबे समय से यह देखा गया है कि स्वीकृत H-1B वीज़ा का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा भारतीय नागरिकों को मिलता है। नई सख्त प्रक्रियाएं इस भरोसेमंद सेतु को कमजोर कर रही हैं, जिससे दोनों देशों के बीच लोगों के स्तर पर जुड़ाव प्रभावित हो रहा है।
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा रेमिटेंस प्राप्त करने वाला देश है। इसमें अमेरिका से आने वाली राशि का योगदान महत्वपूर्ण है, खासकर तकनीकी क्षेत्र में कार्यरत भारतीयों से। यदि H-1B कार्यबल में संरचनात्मक कमी आती है, तो इसका असर भविष्य में विदेशी मुद्रा प्रवाह पर पड़ सकता है। यह केवल परिवारों की आय का प्रश्न नहीं है, बल्कि भारत की व्यापक आर्थिक स्थिरता से भी जुड़ा विषय है।
- वीज़ा देरी अब केवल पेशेवरों तक सीमित नहीं है। F, M और J छात्र वीज़ा भी इस प्रक्रिया से प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में भारतीय छात्र अपने करियर और शिक्षा की योजना पर दोबारा विचार कर रहे हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि छात्र अब जर्मनी, कनाडा और फिनलैंड जैसे देशों की ओर रुख कर सकते हैं, जहां आव्रजन नियम अधिक स्पष्ट और समयबद्ध हैं।
- अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है। इसके बावजूद, कड़े वीज़ा नियम iCET जैसे रणनीतिक ढांचों में बाधा पैदा कर रहे हैं। उभरती तकनीकों में सहयोग तभी संभव है जब उच्च कौशल प्रतिभा का मुक्त आवागमन हो। मौजूदा नीतियां इस सहयोग के आधार को प्रभावित करती दिख रही हैं।
H-1B वीज़ा कार्यक्रम क्या हैं?
- H-1B वीज़ा अमेरिका का एक गैर-आप्रवासी वीज़ा है। इसके तहत अमेरिकी कंपनियां ऐसे विदेशी पेशेवरों को अस्थायी रूप से नियुक्त कर सकती हैं जिनके पास उच्च स्तरीय तकनीकी ज्ञान हो। यह वीज़ा उन भूमिकाओं के लिए होता है जहां सैद्धांतिक और व्यावहारिक विशेषज्ञता आवश्यक होती है। आमतौर पर इसमें कम से कम स्नातक डिग्री की अनिवार्यता रहती है।
- H-1B के लिए वही पद मान्य होते हैं जिन्हें स्पेशलिटी ऑक्युपेशन माना जाता है। इनमें आईटी, इंजीनियरिंग, हेल्थकेयर और फाइनेंस जैसे क्षेत्र प्रमुख हैं। आवेदक के पास संबंधित विषय में अमेरिकी स्नातक डिग्री या उसके समकक्ष विदेशी डिग्री होनी चाहिए। नियोक्ता को यह भी सुनिश्चित करना होता है कि कर्मचारी को उसी क्षेत्र में कार्यरत अन्य कर्मियों के बराबर या क्षेत्रीय प्रचलित वेतन दिया जाए।
- अमेरिका हर वर्ष H-1B वीज़ा की एक तय सीमा रखता है। कुल 85,000 नए वीज़ा उपलब्ध होते हैं। इसमें रेगुलर कोटा में 65,000 वीज़ा शामिल हैं, जिनमें से 6,800 चिली और सिंगापुर के लिए आरक्षित रहते हैं। एडवांस डिग्री कोटा में अमेरिकी संस्थानों से मास्टर डिग्री या उससे ऊपर रखने वालों के लिए 20,000 अतिरिक्त वीज़ा दिए जाते हैं।
- 2024 से लागू प्रणाली में लॉटरी अब पंजीकरण के बजाय व्यक्ति आधारित चयन पर आधारित है। इसका उद्देश्य एक ही उम्मीदवार के कई आवेदन से होने वाली धोखाधड़ी को रोकना है। इससे प्रक्रिया अधिक पारदर्शी बनी है।
- H-1B वीज़ा सामान्यतः तीन वर्ष के लिए जारी होता है। इसे बढ़ाकर अधिकतम छह वर्ष तक किया जा सकता है। कुछ विशेष मामलों में, जैसे स्वीकृत I-140 याचिका या 365 दिनों से अधिक समय से लंबित श्रम प्रमाणन होने पर, छह वर्ष से आगे भी विस्तार संभव है।
- यदि नौकरी समाप्त हो जाती है तो वीज़ाधारक को 60 दिन का ग्रेस पीरियड मिलता है। इस अवधि में वह नया प्रायोजक ढूंढ सकता है या अमेरिका छोड़ने की तैयारी कर सकता है। यह प्रावधान पेशेवरों को अचानक असुरक्षा से बचाने में मदद करता है।
- H-1B कार्यक्रम अमेरिका की अर्थव्यवस्था और वैश्विक प्रतिभा प्रवाह का अहम हिस्सा बना हुआ है। यह उच्च कौशल वाले पेशेवरों को अवसर देता है और अमेरिकी उद्योगों को आवश्यक विशेषज्ञता उपलब्ध कराता है।
