मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज की एक रणनीति रिपोर्ट के अनुसार, भारत के प्राथमिक इक्विटी बाजार ने 2025 में ऐतिहासिक ऊंचाई हासिल की, जिसमें 365 से अधिक प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकशों (IPO) के माध्यम से रिकॉर्ड ₹1.95 ट्रिलियन जुटाए गए। यह उछाल धन जुटाने के लिहाज से अब तक का सबसे मजबूत वर्ष रहा, जो निवेशकों के मजबूत विश्वास को दर्शाता है।
2025 में भारतीय प्राथमिक इक्विटी बाज़ार
- वर्ष 2025 भारतीय प्राथमिक शेयर बाज़ार के लिए एक ऐतिहासिक पड़ाव साबित हुआ। इस दौरान कंपनियों ने आईपीओ के माध्यम से लगभग ₹1.95 ट्रिलियन की पूंजी जुटाई। यह राशि अब तक के सभी रिकॉर्ड को पार करती है। पूरे वर्ष में 365 से अधिक आईपीओ सामने आए। इतनी बड़ी संख्या में सार्वजनिक निर्गम यह दर्शाती है कि कंपनियाँ विस्तार के लिए बाज़ार को सबसे प्रभावी साधन मान रही हैं।
- 2024 में भारतीय कंपनियों ने 336 आईपीओ के ज़रिये लगभग ₹1.90 ट्रिलियन जुटाए थे। इसके मुकाबले 2025 में पूंजी संग्रह में और तेज़ी देखी गई। 2024 और 2025 को मिलाकर दो वर्षों में करीब ₹3.8 ट्रिलियन की राशि 701 आईपीओ के माध्यम से आई।
- पिछले दो वर्षों में केवल 198 मेनबोर्ड कंपनियों ने मिलकर लगभग ₹3.6 ट्रिलियन जुटाए। यह राशि इससे पहले के पाँच वर्षों के कुल आईपीओ फंड से भी अधिक रही। इससे स्पष्ट है कि मेनबोर्ड कंपनियाँ अब भारतीय वित्तीय ढांचे की रीढ़ बन चुकी हैं।
- संख्या के लिहाज से भले ही एसएमई आईपीओ अधिक रहे हों, लेकिन धन संग्रह का असली भार मेनबोर्ड आईपीओ ने उठाया। 2025 में कुल आईपीओ राशि का लगभग 94% हिस्सा मेनबोर्ड से आया। कुछ निर्गमों में निवेशकों की रुचि असाधारण रही। श्याम धानी इंडस्ट्रीज़ का आईपीओ 918 गुना सब्सक्राइब हुआ, जबकि ऑस्टियर सिस्टम्स लिमिटेड को 749.69 गुना आवेदन मिले।
- 2025 में भारत आईपीओ फंड जुटाने के मामले में दुनिया के शीर्ष बाज़ारों में शामिल रहा। पिछले दस वर्षों पर नज़र डालें तो आईपीओ से पूंजी जुटाने की रफ्तार में कई गुना वृद्धि हुई है, जिसने भारत को वैश्विक निवेश मानचित्र पर मज़बूत स्थान दिलाया।
- पिछले दो वर्षों में सूचीबद्ध 197 मेनबोर्ड कंपनियों में से 108 कंपनियाँ अब भी अपने इश्यू प्राइस से ऊपर कारोबार कर रही हैं। इनमें से 14 कंपनियों ने सूचीबद्ध होने के बाद 100% से अधिक का रिटर्न दिया।
आईपीओ बाज़ार में क्षेत्रीय भागीदारी
- 2025 में आईपीओ बाज़ार का सबसे बड़ा लाभार्थी वित्तीय सेवा क्षेत्र रहा। खास तौर पर गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs) निवेशकों की पहली पसंद बनकर उभरीं। पूरे वर्ष में 24 एनबीएफसी आईपीओ के ज़रिये लगभग ₹635 अरब की पूंजी जुटाई गई। यह कुल आईपीओ राशि का करीब 26.6% हिस्सा था, जो सभी क्षेत्रों में सबसे अधिक रहा।
- हालाँकि आईपीओ की संख्या में छोटे और मध्यम उपक्रम भी सक्रिय रहे, लेकिन पूंजी संग्रह का नेतृत्व मेनबोर्ड कंपनियों ने ही किया। कुल आईपीओ में से 106 मेनबोर्ड लिस्टिंग थीं, जिन्होंने मिलकर लगभग ₹1.83 ट्रिलियन जुटाए। यह आँकड़ा दिखाता है कि स्थिर और स्थापित कंपनियाँ 2025 के बाज़ार की रीढ़ बनी रहीं।
- नई पीढ़ी की टेक कंपनियों ने भी 2025 में सार्वजनिक बाज़ार में मज़बूत उपस्थिति दर्ज कराई। फिनटेक, डिजिटल प्लेटफॉर्म और सॉफ्टवेयर सेवाओं से जुड़ी कंपनियों को निवेशकों से अच्छा समर्थन मिला। उदाहरण के तौर पर ICICI प्रूडेंशियल एसेट मैनेजमेंट कंपनी का ₹10,602 करोड़ का आईपीओ यह संकेत देता है कि डिजिटल फाइनेंस और टेक-सक्षम निवेश सेवाओं में दीर्घकालिक संभावनाएँ देखी जा रही हैं।
- कैपिटल गुड्स सेक्टर ने 2025 के आईपीओ फंड में लगभग 9.5% का योगदान दिया। मशीनरी निर्माण और इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी औद्योगिक कंपनियों को मजबूत मांग मिली। यह रुझान “मेक इन इंडिया” जैसी सरकारी पहलों के अनुरूप रहा, जो घरेलू उत्पादन और बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं।
- एक उल्लेखनीय बदलाव यह रहा कि 20 वर्ष से कम आयु वाली कंपनियाँ तेजी से सार्वजनिक पूंजी बाज़ार की ओर बढ़ीं। पिछले दो वर्षों में जुटाई गई कुल आईपीओ राशि का करीब 53% हिस्सा इन्हीं युवा और नवाचारी कंपनियों से आया। इससे यह संकेत मिलता है कि नई कंपनियाँ अब शुरुआती चरण में ही बाज़ार से पूंजी जुटाने में सक्षम हो रही हैं।
- छोटे और मध्यम उद्यम (SMEs) भी पीछे नहीं रहे। गुजरात की एसएमई कंपनियों ने अकेले 57 लिस्टिंग के माध्यम से ₹2,212 करोड़ जुटाए। इससे क्षेत्रीय उद्यमिता को नया मंच मिला और छोटे व्यवसायों को पहली बार सार्वजनिक पूंजी तक पहुँच मिली।
- इस साल टाटा कैपिटल का ₹155 अरब का आईपीओ चर्चा में रहा, जो भारत के इतिहास का चौथा सबसे बड़ा निर्गम बना। इसके साथ ही बजाज हाउसिंग फाइनेंस का ₹65.6 अरब का आईपीओ भी यह दर्शाता है कि स्थापित वित्तीय ब्रांडों के प्रति निवेशकों की मांग बेहद मजबूत बनी हुई है।
आईपीओ उछाल के पीछे प्रमुख कारक
- 2025 में भारत की अर्थव्यवस्था ने तेज़ रफ्तार बनाए रखी। जुलाई–सितंबर 2025 तिमाही में देश की जीडीपी वृद्धि लगभग 8.2% रही, जिसे हाल के वर्षों की सबसे तेज़ वृद्धि दरों में गिना गया। शहरी खपत में मजबूती और निजी मांग के विस्तार ने इस गति को सहारा दिया। जब आर्थिक संकेतक सकारात्मक होते हैं, तो निवेशकों का भरोसा स्वाभाविक रूप से बढ़ता है। इसी भरोसे ने प्राथमिक बाज़ार में नए निर्गमों के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया।
- वित्तीय प्रणाली में पर्याप्त तरलता 2025 के आईपीओ उछाल का एक बड़ा आधार बनी। घरेलू संस्थागत निवेशकों, खासकर म्यूचुअल फंड्स, में भारी धन प्रवाह दर्ज किया गया। उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, 2025 के पहले 11 महीनों में इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में ₹3.22 ट्रिलियन से अधिक का शुद्ध निवेश आया। इस पूंजी ने न केवल सेकेंडरी मार्केट को सहारा दिया, बल्कि आईपीओ सब्सक्रिप्शन को भी मजबूती प्रदान की।
- खुदरा निवेशक 2025 में आईपीओ बाज़ार की सबसे मज़बूत ताकत बनकर उभरे। बड़ी संख्या में नए निवेशक सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) और सीधे आईपीओ आवेदन के ज़रिये शेयर बाज़ार से जुड़े। इस व्यापक भागीदारी ने मध्यम आकार और नई पीढ़ी की कंपनियों के निर्गमों को भी अच्छी मांग दिलाई। नतीजतन, कई आईपीओ में सब्सक्रिप्शन स्तर लगातार ऊँचे बने रहे।
- सरकार और बाज़ार नियामकों की सक्रिय भूमिका ने पूंजी निर्माण को और आसान बनाया। हाल ही में वित्त मंत्री ने एक महत्वपूर्ण विधेयक पेश किया, जिसके तहत SEBI Act (1992), SCRA (1956) और Depositories Act (1996) को एक एकीकृत ढांचे में लाने का प्रस्ताव रखा गया। इसके साथ ही SEBI ने बड़ी कंपनियों के लिए न्यूनतम सार्वजनिक हिस्सेदारी (MPO) से जुड़े नियमों में ढील दी। डोमेस्टिक एंकर निवेशकों का आवंटन 33% से बढ़ाकर 40% किया गया, जिससे बड़े निर्गमों को अतिरिक्त स्थिरता मिली।
- अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के बीच भी भारत की साख 2025 में और मजबूत हुई। EY की Q1 2025 IPO ट्रेंड्स रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष की पहली तिमाही में वैश्विक आईपीओ गतिविधि का लगभग 22% हिस्सा भारत के खाते में आया। इस दौरान 62 कंपनियाँ सूचीबद्ध हुईं और करीब $2.8 बिलियन जुटाए गए। टेक्नोलॉजी सेक्टर की मांग, जैसे Hexaware का लगभग $1 बिलियन का आईपीओ, ने इस रुझान को गति दी। भारत का विशाल बाज़ार, तेज़ विकास क्षमता और आकर्षक मूल्यांकन वैश्विक निवेशकों को लगातार आकर्षित कर रहे हैं।
