अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर उत्पन्न विवाद के मध्य सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ही आदेश पर सोमवार को रोक लगा दी है। 20 नवंबर को जारी आदेश में 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों पर खनन की अनुमति दी गई थी, परंतु अब 21 जनवरी 2026 तक खनन गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध आरोपित कर दिया गया है।
विशेषज्ञ समिति के गठन का निर्देश
न्यायालय ने निर्देश दिया है कि इस मामले की विस्तृत जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाए। यह समिति वर्तमान विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का सूक्ष्म विश्लेषण करेगी और उसके पश्चात संबंधित मुद्दों पर न्यायालय को सुझाव प्रस्तुत करेगी। न्यायालय ने केंद्र सरकार और अरावली से संबंधित चार राज्यों – राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और हरियाणा – को भी नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर जवाब मांगा है।
विवाद का क्रमिक विकास
20 नवंबर 2025 को सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की समिति की अनुशंसा स्वीकार की थी। इसमें 100 मीटर अथवा उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली के रूप में मान्यता प्रदान करने का प्रावधान किया गया था।
निर्णय के पश्चात राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली-NCR में सोशल मीडिया पर तीव्र विरोध प्रारंभ हुआ। 16 दिसंबर को ‘सेव अरावली अभियान’ से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जुड़े। 20 दिसंबर को अरावली संरक्षण के लिए उदयपुर में अधिवक्ताओं ने प्रदर्शन किया। 22 दिसंबर को राजस्थान के अनेक जिलों में विरोध प्रदर्शन संपन्न हुए।
25 दिसंबर को केंद्र ने अरावली में नवीन खानों पर रोक लगाई। 26 दिसंबर को जयपुर में NSUI ने पदयात्रा आयोजित की। 27 दिसंबर को अलवर में कांग्रेस ने प्रदर्शन किया और उसी दिन अरावली मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लिया।
न्यायालय की आज की सुनवाई
सोमवार को मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति एजी मसीह की अवकाश पीठ ने अरावली प्रकरण की सुनवाई संपन्न की। चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने निर्देश दिया कि विशेषज्ञ समिति की अनुशंसाएं और उन पर सर्वोच्च न्यायालय की ओर से की गई आगामी टिप्पणियां फिलहाल स्थगित रहेंगी।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अगली सुनवाई तक इन अनुशंसाओं को कार्यान्वित नहीं किया जाएगा। इन अनुशंसाओं में से एक में कहा गया था कि 100 मीटर से अधिक ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली पर्वतमाला माना जाए।
सॉलिसिटर जनरल की टिप्पणी
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय से कहा कि इस प्रकरण में न्यायालय के आदेशों, सरकार की भूमिका और संपूर्ण प्रक्रिया को लेकर अनेक प्रकार की भ्रांतियां प्रसारित की जा रही हैं। इन्हीं भ्रमों को दूर करने के उद्देश्य से एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसे न्यायालय ने स्वीकार भी किया था।
चीफ जस्टिस की चिंता
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि न्यायालय की भी यही भावना है कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट और उसके आधार पर न्यायालय द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों को लेकर गलत अर्थ निकाले जा रहे हैं।
चीफ जस्टिस ने संकेत दिया कि इन गलत धारणाओं को दूर करने के लिए स्पष्टीकरण की आवश्यकता हो सकती है, ताकि न्यायालय की मंशा और निष्कर्षों को लेकर कोई भ्रम शेष न रहे।
सर्वोच्च न्यायालय के महत्वपूर्ण प्रश्न
सर्वोच्च न्यायालय यह जानना चाहता है कि क्या अरावली की परिभाषा को केवल 100 मीटर की ऊंचाई तक सीमित करने से संरक्षण क्षेत्र सिकुड़ जाता है और इससे एक प्रकार का संरचनात्मक विरोधाभास उत्पन्न होता है?
न्यायालय ने प्रश्न उठाया कि क्या इस परिभाषा के कारण गैर-अरावली क्षेत्रों में नियंत्रित खनन का दायरा विस्तृत हो गया है? यदि दो अरावली क्षेत्र 100 मीटर अथवा उससे अधिक के हैं और उनके मध्य 700 मीटर का अंतराल विद्यमान है, तो क्या उस अंतराल में नियंत्रित खनन की अनुमति प्रदान की जा सकती है?
न्यायालय ने पूछा कि इस संपूर्ण प्रक्रिया में पारिस्थितिक निरंतरता को कैसे सुरक्षित रखा जाएगा? यदि नियमों में कोई बृहद नियामक खालीपन सामने आता है, तो क्या अरावली पर्वत श्रृंखला की संरचनात्मक सुदृढ़ता बनाए रखने के लिए एक व्यापक मूल्यांकन आवश्यक होगा?
उच्च स्तरीय समिति का प्रस्ताव
चीफ जस्टिस ने कहा कि न्यायालय पहले ही यह संकेत दे चुका है कि इन प्रश्नों पर गहनता से विचार आवश्यक है। इसी को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्ताव रखा है कि विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाए। यह समिति वर्तमान विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का विश्लेषण करे और इन मुद्दों पर स्पष्ट सुझाव प्रदान करे।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने कहा, “हमें अत्यंत हर्ष है कि सर्वोच्च न्यायालय ने आज स्थगन आदेश जारी किया है। हम इसका स्वागत करते हैं और आशा करते हैं कि सरकार भी जनता की इच्छा को समझेगी। चारों राज्यों की जनता, और वास्तव में संपूर्ण राष्ट्र की जनता, इस आंदोलन में सम्मिलित हुई है। सड़कों पर उतरी है। विभिन्न रूपों में विरोध प्रदर्शन किया है। यह समझ से परे है कि पर्यावरण मंत्री इसे क्यों नहीं समझ पा रहे हैं।”
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “इस मामले का और अधिक विस्तार से अध्ययन करने की आवश्यकता है।” उन्होंने याद दिलाया कि प्रस्तावित पुनर्परिभाषा का भारतीय वन सर्वेक्षण, सर्वोच्च न्यायालय की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति और स्वयं एमिकस क्यूरी ने विरोध किया था। रमेश ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री के तत्काल इस्तीफे की मांग की।
रिटायर्ड अधिकारी की याचिका
हरियाणा के वन विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी आरपी बलवान ने भी पिछले सप्ताह केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की समिति की अनुशंसाओं को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में पहले से चल रहे गोदावर्मन मामले में याचिका दाखिल की, जिस पर न्यायालय ने केंद्र, राजस्थान, हरियाणा सरकार और पर्यावरण मंत्रालय को नोटिस जारी किया था।
केंद्र का पूर्व निर्णय
विवाद बढ़ने पर केंद्र सरकार ने अरावली में नवीन खनन पट्टों पर रोक लगाने के निर्देश जारी किए थे। 24 दिसंबर को केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बयान में कहा था कि संपूर्ण अरावली श्रृंखला में कोई नया खनन पट्टा जारी नहीं होगा।
मंत्रालय से जारी लिखित बयान के अनुसार इस आदेश का उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक विस्तृत सतत भूवैज्ञानिक श्रृंखला के रूप में अरावली की रक्षा करना और समस्त अनियमित खनन गतिविधियों को रोकना था।
अरावली की भौगोलिक महत्ता
अरावली को विश्व की सबसे प्राचीन पर्वतमाला माना जाता है। इसकी कुल लंबाई 692 किलोमीटर है, जबकि राजस्थान में इसका विस्तार 550 किलोमीटर है, जो लगभग 80 प्रतिशत है। सर्वोच्च शिखर माउंट आबू की गुरु शिखर है, जिसकी ऊंचाई 1,727 मीटर है।
अरावली पर्वतमाला गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में विस्तृत है। राजस्थान में सर्वाधिक नदियां इसी से निकलती हैं, जो इसके पारिस्थितिक महत्व को रेखांकित करती है।
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यह प्रकरण पर्यावरण संरक्षण और विकास के मध्य संतुलन स्थापित करने की चुनौती को प्रदर्शित करता है।
