नवंबर 2025 में, भारत के औद्योगिक क्षेत्र ने असाधारण मजबूती का प्रदर्शन किया, जिसमें औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) 25 महीनों के उच्चतम स्तर 6.7% पर पहुंच गया। यह आंकड़ा वर्ष के अंत तक घरेलू मांग और उत्पादन गति में मजबूत सुधार का संकेत देता है।
भारत के औद्योगिक उत्पादन में तेज उछाल
- नवंबर 2025 में भारत के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में 6.7 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई। यह वृद्धि पिछले 25 महीनों की सबसे तेज रफ्तार मानी जा रही है। अक्टूबर 2025 में संशोधित आंकड़ों के अनुसार औद्योगिक उत्पादन लगभग ठहरा हुआ था, जहां वृद्धि केवल 0.5 प्रतिशत रही थी।
- नवंबर में दर्ज की गई यह तेजी केवल किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रही। उपभोक्ता मांग में बढ़ोतरी, त्योहारों के बाद भंडार पुनः भरने की प्रक्रिया, और उत्पादन गतिविधियों में सुधार इसके प्रमुख कारण रहे। नवंबर 2024 में IIP की वृद्धि करीब 5 प्रतिशत थी। इस तुलना में मौजूदा आंकड़ा औद्योगिक मजबूती का संकेत देता है। यह विस्तार अक्टूबर 2023 के बाद सबसे तेज रहा, जब IIP लगभग 11.9 प्रतिशत तक पहुंच गया था।
- निर्माण क्षेत्र, जो IIP में लगभग 75 प्रतिशत का योगदान देता है, नवंबर 2025 की वृद्धि का सबसे बड़ा चालक रहा। इस दौरान मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट में 8.0 प्रतिशत की सालाना वृद्धि दर्ज हुई। बेसिक मेटल्स, फैब्रिकेटेड मेटल उत्पाद, फार्मास्यूटिकल्स, मोटर वाहन, और उपभोक्ता वस्तुओं जैसे क्षेत्रों में उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई।
- नवंबर 2025 में खनन उत्पादन लगभग 5.4 प्रतिशत बढ़ा। इससे पहले के महीनों में असामान्य मौसम के कारण खनन गतिविधियां प्रभावित हुई थीं। मौसम संबंधी बाधाओं के कम होने से खनन क्षेत्र में फिर से रफ्तार आई, जिससे समग्र औद्योगिक प्रदर्शन को सहारा मिला।
- हालांकि बिजली उत्पादन नवंबर में भी नकारात्मक रहा, लेकिन गिरावट की तीव्रता कम हो गई। नवंबर 2025 में बिजली उत्पादन करीब 1.5 प्रतिशत घटा, जो अक्टूबर की तुलना में बेहतर स्थिति को दर्शाता है।
- पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन नवंबर में लगभग 10.4 प्रतिशत बढ़ा, जो निवेश गतिविधियों के निरंतर बने रहने का संकेत है। वहीं इंफ्रास्ट्रक्चर और निर्माण से जुड़ी वस्तुओं में करीब 12.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई। यह देश में बुनियादी ढांचे की मांग में तेजी को दर्शाता है।
- उपभोक्ता स्तर पर भी सकारात्मक संकेत मिले। उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं का उत्पादन 10.3 प्रतिशत बढ़ा, जबकि गैर-टिकाऊ वस्तुओं में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इससे स्पष्ट होता है कि घरेलू मांग लगातार मजबूत हो रही है और इसका असर औद्योगिक उत्पादन पर साफ दिखाई दे रहा है।
6.7 प्रतिशत IIP वृद्धि का आर्थिक प्रभाव
- नवंबर 2025 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में दर्ज 6.7 प्रतिशत की वृद्धि का सीधा और गहरा असर देश की समग्र अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। यह तेजी उस समय सामने आई है जब भारत की आर्थिक गतिविधियां पहले से ही मजबूती के संकेत दे रही थीं। औद्योगिक उत्पादन में यह उछाल आने वाले महीनों के लिए आर्थिक स्थिरता और निरंतर विकास का आधार बन सकता है।
- औद्योगिक उत्पादन में तेज बढ़ोतरी का सबसे प्रत्यक्ष लाभ सकल घरेलू उत्पाद (GDP) पर पड़ता है। वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में भारत की GDP वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत दर्ज की गई थी। इस मजबूत प्रदर्शन में उद्योग और सेवा क्षेत्रों की बड़ी भूमिका रही। जब फैक्ट्रियों का उत्पादन बढ़ता है, तो औद्योगिक मूल्य वर्धन सीधे GDP में जुड़ता है। इससे आर्थिक वृद्धि अधिक टिकाऊ और संतुलित भी बनती है।
- जब मांग और उत्पादन दोनों बढ़ते हैं, तो उद्योगपति नई मशीनरी, उन्नत तकनीक, और नए संयंत्रों में निवेश बढ़ाने के लिए प्रेरित होते हैं। इससे पूंजीगत व्यय में तेजी आती है। मजबूत औद्योगिक संकेतक घरेलू निवेशकों के साथ-साथ विदेशी निवेशकों का भरोसा भी बढ़ाते हैं, खासकर मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात-केंद्रित क्षेत्रों में।
- नवंबर 2025 में मैन्युफैक्चरिंग उत्पादन में आई तेजी से यह संकेत मिलता है कि उद्योगों को अधिक श्रमिकों की जरूरत पड़ रही है। बेसिक मेटल्स, ऑटोमोबाइल, और फैब्रिकेटेड मेटल उत्पादों जैसे क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ने से फैक्ट्रियों और उनसे जुड़े सहायक उद्योगों में रोजगार के नए अवसर बनते हैं। रोजगार बढ़ने से घरेलू आय में सुधार होता है, जो आगे चलकर उपभोग को सहारा देता है।
- जब उद्योग उत्पादन बढ़ाते हैं, तो केवल अंतिम उत्पाद ही नहीं बनते, बल्कि मध्यवर्ती वस्तुओं और सेवाओं की मांग भी बढ़ती है। इससे सप्लाई चेन के हर स्तर पर गतिविधियां तेज होती हैं। पूंजीगत वस्तुएं, उपभोक्ता टिकाऊ उत्पाद, और इंफ्रास्ट्रक्चर सामग्री की मांग में बढ़ोतरी व्यापक आर्थिक चक्र को सक्रिय करती है।
- मजबूत IIP आंकड़े अक्सर निर्यात प्रदर्शन में भी सुधार का संकेत देते हैं। भारत के निर्यात में मैन्युफैक्चरिंग उत्पादों की बड़ी हिस्सेदारी है। जब उत्पादन क्षमता बढ़ती है और उद्योग स्थिरता के साथ काम करते हैं, तो निर्यात मात्रा में इजाफा संभव होता है। इससे न केवल नए बाजारों में पहुंच बढ़ती है, बल्कि व्यापार घाटा कम करने में भी मदद मिल सकती है।
औद्योगिक उत्पादन में तेजी के पीछे सरकारी नीतियों की भूमिका
- उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना: PLI योजना की शुरुआत वर्ष 2020 में इस उद्देश्य से की गई थी कि देश में रणनीतिक क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ाया जा सके। इस योजना की विशेषता यह है कि इसमें कंपनियों को अतिरिक्त उत्पादन और बिक्री के आधार पर वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाता है। इससे उद्योगों को क्षमता विस्तार और तकनीकी उन्नयन के लिए स्पष्ट प्रोत्साहन मिला। मार्च 2025 तक 14 PLI योजनाओं के तहत देश में लगभग ₹1.76 लाख करोड़ का निवेश आकर्षित हुआ और 12 लाख से अधिक रोजगार सृजित हुए।
- राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन (NMM): केंद्रीय बजट 2025-26 में शुरू किया गया राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में एक अहम कदम है। यह मिशन सतत औद्योगिक विकास पर केंद्रित है। इसके तहत सोलर पीवी मॉड्यूल, इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी, और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे उभरते क्षेत्रों को प्राथमिकता दी गई है। इससे भारतीय उद्योगों को भविष्य की तकनीकों के लिए तैयार किया जा रहा है।
- मेक इन इंडिया पहल: वर्ष 2014 में शुरू की गई मेक इन इंडिया पहल का उद्देश्य मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की हिस्सेदारी को GDP में लगभग 17 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत तक ले जाना है। इस पहल के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, रक्षा उत्पादन, और टेक्सटाइल्स जैसे क्षेत्रों को विशेष समर्थन दिया गया। प्रक्रियाओं के सरलीकरण और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलने से उद्योगों का उत्पादन स्तर मजबूत हुआ।
- राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP): सितंबर 2022 में लागू की गई राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति का मुख्य लक्ष्य देश में लॉजिस्टिक्स लागत को कम करना और परिवहन व्यवस्था को अधिक कुशल बनाना है। इस नीति ने फैक्ट्रियों, बंदरगाहों और बाजारों के बीच मल्टी-मोडल कनेक्टिविटी को बेहतर किया। बेहतर लॉजिस्टिक्स से उत्पादन और वितरण लागत घटी, जिससे औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आई।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) सुधार: सरकार ने मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में वैश्विक पूंजी और तकनीक को आकर्षित करने के लिए FDI नियमों में उदारीकरण किया। अब अधिकांश क्षेत्रों में स्वचालित मार्ग से 100 प्रतिशत FDI की अनुमति है। इससे पहले की अनुमोदन संबंधी बाधाएं कम हुईं और निवेशक भरोसा मजबूत हुआ।
- GST संरचना में सरलीकरण: हाल के वर्षों में किए गए GST सुधारों से कर संरचना सरल हुई और कई प्रमुख वस्तुओं पर दरों का युक्तिकरण किया गया। टेक्सटाइल्स और पैकेजिंग सामग्री जैसी वस्तुओं पर कम GST दरों से उत्पादन लागत घटी। इससे विशेष रूप से MSME क्षेत्र को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिली और नकदी प्रवाह बेहतर हुआ।
- सिंगल-विंडो स्वीकृति प्रणाली: कई राज्यों ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस सुधारों के तहत तेज मंजूरी प्रणालियां विकसित की हैं। छत्तीसगढ़ में शुरू किया गया वन-क्लिक सिंगल विंडो सिस्टम 2.0 औद्योगिक अनुमोदनों को तेजी से पूरा करता है। नौकरशाही देरी कम होने से उद्योग जल्दी परिचालन शुरू कर पाते हैं और निवेश आकर्षित होता है।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के बारे मे
- औद्योगिक उत्पादन सूचकांक, जिसे सामान्य रूप से IIP कहा जाता है, भारत में औद्योगिक गतिविधियों की दिशा और गति को समझने का एक महत्वपूर्ण सांख्यिकीय साधन है। यह सूचकांक यह बताता है कि समय के साथ देश के उद्योग किस तरह प्रदर्शन कर रहे हैं और उत्पादन स्तर में किस प्रकार का बदलाव हो रहा है।
- IIP का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था में औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन की मात्रा में होने वाले बदलाव को मापना है। इसके माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि किसी निश्चित अवधि में औद्योगिक उत्पादन बढ़ रहा है, घट रहा है या स्थिर बना हुआ है। नीति-निर्माता, अर्थशास्त्री और निवेशक इस आंकड़े का उपयोग औद्योगिक रुझानों को समझने के लिए करते हैं।
- IIP की गणना वेटेड एवरेज के आधार पर की जाती है। इसका अर्थ है कि सूचकांक में शामिल हर क्षेत्र को उसके महत्व के अनुसार वजन दिया जाता है। गणना में लास्पेयर्स सूत्र (Laspeyres Formula) का प्रयोग होता है, जिसमें आधार वर्ष की उत्पादन संरचना को मानक माना जाता है। इससे समय के साथ उत्पादन में हुए वास्तविक परिवर्तन को स्पष्ट रूप से दर्शाया जा सकता है।
- IIP को एक शॉर्ट-टर्म इंडिकेटर माना जाता है। यह अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में त्वरित संकेत प्रदान करता है। जब तक GDP जैसे विस्तृत राष्ट्रीय लेखा आंकड़े उपलब्ध नहीं होते, तब तक IIP औद्योगिक प्रदर्शन की प्रारंभिक तस्वीर सामने रखता है। इसी कारण यह नीति निर्धारण में उपयोगी भूमिका निभाता है।
- भारत में IIP का संकलन और प्रकाशन राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा किया जाता है। यह कार्यालय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के अंतर्गत कार्य करता है। IIP के आंकड़े हर महीने जारी किए जाते हैं, जिससे औद्योगिक गतिविधियों पर नियमित निगरानी संभव हो पाती है।
- IIP के आंकड़े यह समझने में मदद करते हैं कि मैन्युफैक्चरिंग, खनन, और बिजली उत्पादन जैसे प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों की स्थिति कैसी है। जब इन क्षेत्रों में मजबूती दिखती है, तो इसे समग्र आर्थिक स्वास्थ्य के लिए सकारात्मक संकेत माना जाता है।
- IIP एक आधार वर्ष के सापेक्ष मापा जाता है। आधार वर्ष को 100 का मान दिया जाता है और बाद के वर्षों का उत्पादन इसी के संदर्भ में आंका जाता है। वर्तमान में भारत के IIP के लिए 2011-12 को आधार वर्ष के रूप में अपनाया गया है। इससे उत्पादन में दीर्घकालिक तुलना संभव होती है।
- भारतीय IIP तीन व्यापक क्षेत्रों को शामिल करता है।
मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र: यह IIP का सबसे बड़ा हिस्सा है और इसका वजन लगभग 77.63 प्रतिशत है। इसमें फैक्ट्रियों में बनने वाले अधिकांश औद्योगिक उत्पाद शामिल होते हैं। इसलिए इस क्षेत्र में बदलाव का IIP पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।
खनन क्षेत्र: खनन क्षेत्र में खनिजों के उत्खनन से जुड़ी गतिविधियां आती हैं। IIP में इसका वजन लगभग 14.37 प्रतिशत है। कच्चे माल की उपलब्धता के कारण यह क्षेत्र औद्योगिक उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है।
बिजली क्षेत्र: बिजली उत्पादन और आपूर्ति से संबंधित यह क्षेत्र IIP में करीब 7.99 प्रतिशत का योगदान देता है। ऊर्जा आपूर्ति की स्थिति को समझने में इसका विशेष महत्व है।
