अफगानिस्तान की तालिबान सरकार कुनार नदी पर बांध बनाकर पाकिस्तान की ओर बहने वाले पानी को रोकने की योजना बना रही है। तालिबान के सर्वोच्च नेता मावलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा ने आदेश दिया है कि बांध का निर्माण कार्य जल्द से जल्द शुरू किया जाए। यह फैसला पाकिस्तान के साथ हालिया सीमा संघर्ष और भारत के साथ जल समझौते पर हुई बातचीत के बाद लिया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान सरकार के डिप्टी इंफॉर्मेशन मिनिस्टर मुहाजेर फराही ने अखुंदजादा के निर्देश की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि कुनार नदी पर बांध निर्माण का कार्य शीघ्र शुरू किया जाएगा और इसके लिए घरेलू कंपनियों के साथ अनुबंध किए जाएंगे। फराही ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान को अपने जल संसाधनों के प्रबंधन का पूर्ण अधिकार है।
पाकिस्तान से संघर्ष के बाद तालिबान का बड़ा फैसला:
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने पाकिस्तान की ओर बहने वाले पानी को रोकने के लिए कुनार नदी पर बांध बनाने का फैसला किया है। तालिबान के सर्वोच्च नेता मावलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा ने आदेश दिया है कि निर्माण कार्य जल्द से जल्द शुरू किया जाए। यह निर्णय भारत के साथ जल समझौते पर बातचीत और पाकिस्तान के साथ हालिया संघर्ष के बाद लिया गया है।
तालिबान सरकार के डिप्टी इंफॉर्मेशन मिनिस्टर मुहाजेर फराही ने बताया कि कुनार नदी पर बांधों का निर्माण शीघ्र आरंभ किया जाएगा और घरेलू कंपनियों के साथ अनुबंध किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि अफगानों को अपने जल संसाधनों का प्रबंधन करने का पूर्ण अधिकार है।
पाकिस्तान के साथ संघर्ष की पृष्ठभूमि:
- पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संघर्ष 9 अक्टूबर से शुरू हुआ था।
- पाकिस्तान ने काबुल में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के ठिकानों पर हवाई हमले किए।
- इसके जवाब में अफगानिस्तान ने पाकिस्तान पर सीमा उल्लंघन और नागरिक इलाकों को निशाना बनाने का आरोप लगाया।
- संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार, पाकिस्तानी हमलों में 37 अफगान नागरिक मारे गए और 425 घायल हुए।
- विवाद की जड़ डूरंड लाइन है- यह ब्रिटिश काल में भारत और अफगानिस्तान के बीच खींची गई सीमा रेखा है, जिसे दोनों तरफ के पठान समुदाय आज तक स्वीकार नहीं करते।
कुनार नदी का इतिहास और भूगोल:
कुनार नदी उत्तर-पूर्वी अफगानिस्तान के हिंदू कुश पर्वतों से, पाकिस्तान सीमा के निकट ब्रोघिल दर्रे के पास से निकलती है। लगभग 480 किलोमीटर लंबी यह नदी अफगानिस्तान के कुनार और नंगरहार प्रांतों से होकर बहती हुई दक्षिण दिशा में पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में प्रवेश करती है। जलालाबाद शहर के पास यह काबुल नदी में मिल जाती है, जिसे पाकिस्तान में चित्राल नदी के नाम से जाना जाता है।
काबुल नदी का महत्व:
काबुल नदी, जिसमें कुनार नदी आकर मिलती है, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सबसे बड़ी नदी प्रणाली है। यह अटक के पास जाकर सिंधु नदी में मिल जाती है। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की सिंचाई, पीने के पानी की आपूर्ति और ऊर्जा उत्पादन के लिए यह नदी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि कुनार नदी के जल प्रवाह में कमी आती है, तो इसका असर सीधे सिंधु नदी पर पड़ेगा, जिससे पाकिस्तान के पंजाब प्रांत तक की कृषि और जल आपूर्ति प्रभावित होगी।
कुनार नदी का 75-80% पानी पाकिस्तान उपयोग करता है:
कुनार नदी अफगानिस्तान से निकलकर पाकिस्तान में चित्राल नदी बनती है और काबुल नदी में मिल जाती है। कुल पानी का लगभग 75-80% भाग पाकिस्तान में जाता है। काबुल नदी आगे चलकर सिंधु नदी में मिलती है। यदि अफगानिस्तान कुनार नदी पर बांध बना कर पानी रोकता है, तो पाकिस्तान को गंभीर नुकसान उठाना पड़ सकता है।
पाकिस्तान पर प्रभाव:
- खैबर पख्तूनख्वा (KPK) प्रांत, विशेषकर बाजौर और मोहम्मद जिले, पूरी तरह कुनार नदी पर निर्भर हैं।
- सिंचाई रुकने से इन इलाकों में फसलें बर्बाद होने का खतरा बढ़ जाएगा।
- पानी रोकने से पाकिस्तान के चित्राल जिले में कुनार नदी पर चल रहे 20 से अधिक छोटे हाइड्रो प्रोजेक्ट प्रभावित होंगे। ये सभी रन-ऑफ-रिवर प्रोजेक्ट हैं, जो सीधे नदी के बहाव से बिजली उत्पन्न करते हैं।
तालिबान पर प्रभाव और लाभ:
- तालिबान के जल और ऊर्जा मंत्रालय के प्रवक्ता मतीउल्लाह आबिद के अनुसार, बांध का सर्वे और डिजाइन तैयार हो चुका है।
- प्रोजेक्ट पूरा होने पर 45 मेगावाट बिजली पैदा होगी और लगभग 1.5 लाख एकड़ खेती के लिए सिंचाई उपलब्ध होगी।
- इससे अफगानिस्तान में ऊर्जा संकट और खाद्य सुरक्षा में सुधार की संभावना बढ़ेगी।
तालिबान की जल नीति और प्रभाव:
2021 में सत्ता संभालने के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान की जल संप्रभुता को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया है। उसका लक्ष्य ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने, सिंचाई व्यवस्था का विस्तार करने और पड़ोसी देशों पर जल निर्भरता घटाने का है। इसी उद्देश्य से तालिबान देश की नदियों पर बांध निर्माण और जलविद्युत परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ा रहा है।
पाकिस्तान की चिंता:
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच काबुल नदी और इसकी सहायक नदियों के जल बंटवारे को लेकर कोई औपचारिक द्विपक्षीय समझौता मौजूद नहीं है। इसका मतलब है कि दोनों देशों के बीच जल अधिकार और प्रवाह को लेकर कानूनी रूप से बाध्यकारी नियम नहीं हैं, जिससे क्षेत्रीय जल विवाद और तनाव की संभावना बनी रहती है।
इस्लामाबाद ने तालिबान की इस ‘एकतरफा जल नीति’ को लेकर गहरी चिंता जताई है। पाकिस्तान का कहना है कि यदि अफगानिस्तान ने सीमावर्ती नदियों पर नियंत्रण बढ़ाया, तो इससे उसकी ऊर्जा, सिंचाई और खाद्य सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि कुनार नदी पर तालिबान का यह कदम दोनों देशों के बीच जल विवाद और भू-राजनीतिक तनाव को और बढ़ा सकता है।
भारत ने भी पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को निलंबित किया था:
भारत ने 23 अप्रैल 2025 को सिंधु जल संधि (IWT) को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया। यह कदम जम्मू और कश्मीर के पाहलगाम में 26 नागरिकों की हत्या वाले आतंकवादी हमले के जवाब में उठाया गया, जिसे भारत ने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों से जोड़ा। भारत ने स्पष्ट किया कि निलंबन तब तक लागू रहेगा जब तक पाकिस्तान क्रॉस-बॉर्डर आतंकवाद के खिलाफ ठोस और सत्यापन योग्य कार्रवाई नहीं करता।
निलंबन की शर्तें:
इस निलंबन का तुरंत प्रभाव पाकिस्तान में दिखाई दिया, जहां जल प्रवाह में कमी आई और इसके चलते कृषि क्षेत्र और सिंचाई प्रणाली प्रभावित हुई। इसके अलावा, भारत ने अटारी सीमा चौकी को बंद करने जैसे अन्य कदम भी उठाए।
संधि का पृष्ठभूमि:
सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित हुई थी। यह सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियों के जल बंटवारे को नियंत्रित करती है। treaty पहले भी कई युद्धों और कूटनीतिक तनावों के बावजूद लागू रही थी और छह दशक से अधिक समय तक बनी रही।
सिंधु नदी प्रणाली का विवरण:
सिंधु नदी प्रणाली में कुल 6 नदियां शामिल हैं: सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज। इनके किनारे का क्षेत्रफल लगभग 11.2 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जिसमें भूमि वितरण इस प्रकार है: पाकिस्तान 47%, भारत 39%, चीन 8%, और अफगानिस्तान 6%. इस क्षेत्र में करीब 30 करोड़ लोग निवास करते हैं।
भारत-अफगानिस्तान समझौता:
बीते दिनों अफगानिस्तान के तालिबान शासन के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी भारत दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने अपने भारतीय समकक्ष एस जयशंकर से मुलाकात की और दोनों देशों ने जॉइंट स्टेटमेंट जारी किया। इस कदम से भारत और अफगानिस्तान के रिश्तों में नई जान आई है। भारत ने हाल ही में काबुल में अपने तकनीकी मिशन को दूतावास का दर्जा दे दिया, जिससे स्पष्ट हो गया कि भारत अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति और मजबूत करने जा रहा है। विदेश मंत्रालय का कहना है कि यह कदम दोनों देशों के दोस्ताना और सहयोगी रिश्तों को और गहरा करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
काबुल में दूतावास खोलना क्यों खास है:
भारत का काबुल में दूतावास खुलना सिर्फ औपचारिकता नहीं है। इसका मतलब है कि भारत अब अफगानिस्तान में सीधे तौर पर विकास, मानवीय सहायता और क्षमता निर्माण के कामों में सक्रिय भूमिका निभा सकेगा। दूतावास के माध्यम से भारत अफगान समाज की प्राथमिकताओं के अनुसार मदद प्रदान कर सकेगा और वहां स्थायी राजनीतिक और आर्थिक संपर्क बनाए रख सकेगा।
भारत के अफगानिस्तान में बड़े प्रोजेक्ट:
- साल्मा डैम (2016): हेरात में 300 मिलियन डॉलर की लागत से बना।
- शाहतूत डैम: काबुल नदी की सहायक नदी पर बनेगा, लगभग 2,000 करोड़ रुपए की लागत से। इसका पूरा खर्च भारत उठा रहा है।
- इससे 20 लाख लोगों को पीने का पानी मिलेगा।
- 4,000 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र सिंचाई के लिए उपलब्ध होगा।
- प्रोजेक्ट के 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है।
निष्कर्ष:
तालिबान के इस निर्णय से पाकिस्तान के सिंचाई और हाइड्रो प्रोजेक्ट्स प्रभावित होंगे। यह कदम दोनों देशों के बीच जल विवाद और भू-राजनीतिक तनाव को बढ़ा सकता है, जबकि अफगानिस्तान को अपने कृषि और ऊर्जा क्षेत्र में लाभ मिलेगा।
