न्यायपालिका में AI क्रांति: ChatGPT का इस्तेमाल करने वाले जज को सुप्रीम कोर्ट की समिति में मिली जगह

भारतीय न्यायपालिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उपयोग को लेकर एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पुनर्गठित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समिति में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अनूप चितकारा को सदस्य नियुक्त किया है। यह नियुक्ति इसलिए खास है क्योंकि जस्टिस चितकारा देश में पहले ऐसे न्यायाधीश हैं जिन्होंने अपने न्यायिक फैसले में चैट जीपीटी का उल्लेख किया था।

 

भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की पहल पर गठित यह समिति न्यायिक व्यवस्था के आधुनिकीकरण और डिजिटलीकरण की दिशा में एक महत्वाकांक्षी प्रयास है। इस पुनर्गठित समिति का लक्ष्य अदालती प्रणाली में एआई प्रौद्योगिकी का सुचारू रूप से समावेश करना और न्याय वितरण प्रक्रिया को अधिक तीव्र एवं प्रभावी बनाना है।

AI revolution in the judiciary

समिति की संरचना और नेतृत्व

इस महत्वपूर्ण समिति की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा करेंगे। समिति में देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों के प्रतिष्ठित न्यायाधीशों को शामिल किया गया है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा, केरल न्यायालय से न्यायमूर्ति राजा विजया राघवन वी के, और कर्नाटक उच्च न्यायालय से न्यायमूर्ति सूरज गोविंद राज इस समिति के अन्य प्रमुख सदस्य हैं।

 

यह विविध भौगोलिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है कि समिति देश के विभिन्न क्षेत्रों की न्यायिक आवश्यकताओं और चुनौतियों को समझते हुए व्यापक सुझाव दे सके। प्रत्येक सदस्य अपने-अपने क्षेत्र में तकनीकी नवाचार और न्यायिक दक्षता के लिए जाने जाते हैं।

 

समिति के प्रमुख उद्देश्य और कार्यक्षेत्र

पुनर्गठित समिति को व्यापक जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। इसका मुख्य लक्ष्य सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ अधीनस्थ न्यायालयों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उपकरणों के विकास और कार्यान्वयन में तेजी लाना है। समिति AI संचालित न्यायिक सुधारों के लिए रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करेगी और सभी तकनीकी आयामों की गहन समीक्षा करेगी।

 

यह समिति अदालतों की कार्य प्रणाली को तीव्र, पारदर्शी और अधिक दक्ष बनाने के लिए ठोस उपाय सुझाएगी। डिजिटल केस प्रबंधन व्यवस्था, स्वचालित समय निर्धारण प्रणाली, दस्तावेज़ों के बेहतर प्रबंधन, आंकड़ों पर आधारित कार्य प्रवाह व्यवस्था, और मुकदमेबाजों के लिए प्रक्रियाओं को सरल बनाने की दिशा में यह समिति कार्य करेगी।

 

समिति का दूरगामी उद्देश्य न्यायपालिका में एआई के माध्यम से व्यापक परिवर्तन की तैयारी करना है। यह केवल तकनीकी उन्नयन तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी न्यायिक प्रक्रिया को आधुनिक युग की जरूरतों के अनुरूप ढालने का एक समग्र प्रयास है।

 

जस्टिस चितकारा का अभूतपूर्व योगदान

न्यायमूर्ति अनूप चितकारा की इस समिति में नियुक्ति एक स्वाभाविक चयन प्रतीत होती है। वर्ष 2023 में उन्होंने भारतीय न्यायिक इतिहास में एक नया अध्याय लिखा था जब उन्होंने अपने एक जमानत संबंधी आदेश में पहली बार AI टेक्स्ट जेनरेटर का संदर्भ लिया था। यह घटना भारतीय न्यायपालिका में प्रौद्योगिकी के उपयोग की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुई।

 

क्रूरता से संबंधित हमले के आरोपों वाले एक मामले में, जस्टिस चितकारा ने अंतरराष्ट्रीय न्यायशास्त्र की तुलनात्मक समझ विकसित करने के उद्देश्य से चैट जीपीटी का उपयोग किया था। उन्होंने इस AI टूल से प्रश्न पूछा था कि ऐसी विशिष्ट परिस्थितियों में विश्व के अन्य देशों में जमानत के मानदंड किस प्रकार निर्धारित होते हैं।

 

जस्टिस चितकारा ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि चैट जीपीटी का संदर्भ विश्वभर में प्रचलित कानूनी दृष्टिकोणों और न्यायिक प्रथाओं को समझने का एक प्रयास था। उनका यह कदम दर्शाता है कि तकनीक का उपयोग न्यायिक निर्णय का प्रतिस्थापन नहीं, बल्कि एक सहायक उपकरण के रूप में किया जा सकता है।

 

न्यायपालिका में AI का भविष्य

इस समिति का गठन भारतीय न्यायपालिका के लिए एक परिवर्तनकारी दौर की शुरुआत का संकेत देता है। लाखों लंबित मामलों से जूझ रही अदालतों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक संभावित समाधान के रूप में उभर सकती है। स्वचालित केस सारांश तैयार करना, प्राथमिकता के आधार पर मामलों को क्रमबद्ध करना, कानूनी अनुसंधान में सहायता, और दस्तावेज़ों का विश्लेषण जैसे कार्य AI के माध्यम से तेज और कुशल बनाए जा सकते हैं।

 

हालांकि, तकनीक के इस उपयोग के साथ कई चुनौतियां भी जुड़ी हैं। डेटा सुरक्षा, गोपनीयता, AI की निष्पक्षता, और मानवीय निर्णय की अपरिहार्यता जैसे मुद्दों पर ध्यान देना आवश्यक होगा। समिति को इन सभी पहलुओं पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा।

 

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट की यह पहल दर्शाती है कि भारतीय न्यायपालिका परंपरागत मूल्यों को बनाए रखते हुए आधुनिक तकनीक को अपनाने के लिए तैयार है। जस्टिस चितकारा जैसे दूरदर्शी न्यायाधीशों का इस समिति में शामिल होना सुनिश्चित करता है कि तकनीकी नवाचार न्यायिक बुद्धिमत्ता और अनुभव के साथ संयुक्त होगा।

 

आने वाले समय में यह समिति जो सिफारिशें करेगी, वे न केवल भारतीय न्यायपालिका बल्कि पूरे विश्व के न्यायिक सुधारों के लिए एक मिसाल बन सकती हैं। न्याय में देरी को रोकने और न्यायिक प्रक्रिया को जनसुलभ बनाने की दिशा में यह एक ऐतिहासिक कदम है।