पाकिस्तान ने औपचारिक रूप से बांग्लादेश को अपने कराची पोर्ट के इस्तेमाल की अनुमति देने की पेशकश की है, जो दशकों बाद दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है। पाकिस्तान का मानना है कि कराची पोर्ट का इस्तेमाल बांग्लादेश को चीन, खाड़ी देशों और सेंट्रल एशिया के बाजारों तक आसान पहुंच दिला सकता है।
यह कदम उस समय आया है जब बांग्लादेश और भारत के बीच व्यापारिक संबंधों में तनाव देखा जा रहा है। भारत सरकार ने हाल ही में सर्कुलर जारी करके बांग्लादेश को तीसरे देश-निर्यात के लिए भारत की जमीन से सामान गुजरने की सुविधा खत्म कर दी थी। इस फैसले के तहत, बांग्लादेशी माल अब भारत के लैंड कस्टम स्टेशनों से होकर, भारत के किसी बंदरगाह या एयरपोर्ट से तीसरे देश नहीं जा सकता था।
कूटनीतिक और आर्थिक महत्व:
ढाका में आयोजित 9वीं पाकिस्तान-बांग्लादेश संयुक्त आर्थिक आयोग (JEC) की बैठक के दौरान यह प्रस्ताव एक प्रमुख उपलब्धि के रूप में सामने आया। यह 20 वर्षों में ऐसी पहली बैठक थी। यह कदम दोनों देशों के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को सुधारने के व्यापक प्रयासों का हिस्सा है, जो 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद से तनावपूर्ण रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक पहल है, लेकिन इसके वास्तविक आर्थिक लाभ बांग्लादेश के लिए अभी स्पष्ट नहीं हैं।
व्यापार पुनर्जीवन: इस समझौते के तहत बंदरगाह तक पहुंच और शिपिंग सहयोग को मंजूरी दी गई है, जिसका उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार को पुनर्जीवित करना है, जो लंबे समय से काफी कम स्तर पर रहा है। नई प्रत्यक्ष शिपिंग रूट से वस्तुओं की परिवहन लागत और समय दोनों घटने की उम्मीद है। दोनों देशों के बीच व्यापार में बांग्लादेश से जूट उत्पाद और पाकिस्तान से कपास जैसी वस्तुएं प्रमुख हैं।
भारत के साथ तनाव से बांग्लादेश के जूट उद्योग पर गहरा असर–
भारत और बांग्लादेश के बीच बढ़ते आर्थिक तनाव ने बांग्लादेश की जूट इंडस्ट्री को गंभीर झटका दिया है। अगस्त में भारत ने सीमाई मार्गों से बांग्लादेशी जूट और रस्सियों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे पहले भारत ने बांग्लादेश में निर्मित कपड़ों के आयात पर भी रोक लगाई थी। इन प्रतिबंधों के बाद बांग्लादेश के पास अपने उत्पादों के निर्यात के लिए केवल समुद्री मार्ग बचा है, जो बेहद महंगा और समय लेने वाला है।
इसके अलावा भारत ने हाल ही में बांग्लादेश का ट्रांजिट एग्रीमेंट भी रद्द कर दिया, जिसके तहत बांग्लादेश अपने उत्पाद भारतीय बंदरगाहों के ज़रिए तीसरे देशों को भेज सकता था। इस निर्णय से बांग्लादेश के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार की लागत और समय दोनों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
इसका सीधा असर बांग्लादेश के जूट निर्यात पर पड़ा है- जुलाई 2025 में जूट निर्यात घटकर केवल 3.4 मिलियन डॉलर रह गया, जबकि पिछले वर्ष जुलाई में यह आंकड़ा 12.9 मिलियन डॉलर था।
भारत के इन कदमों के जवाब में बांग्लादेश ने भी भारत से धागा (यार्न) के आयात पर रोक लगा दी है। इससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव और गहरा हो गया है, जो दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय बन गया है।
पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच पुराने संबंधों का पुनर्जीवन:
पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच हुआ संवाद दोनों देशों के बीच पुराने संबंधों के पुनर्जीवन का प्रतीक है। इन दोनों देशों का इतिहास काफी जटिल रहा है, क्योंकि 1971 में भारत की सहायता से बांग्लादेश ने पाकिस्तान से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। ऐसे में यह नया सहयोग राजनयिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह कभी “पूर्वी” और “पश्चिमी” पाकिस्तान के बीच सहयोग की एक दुर्लभ मिसाल पेश करता है- अब इनके बीच भारत स्थित है।
सहयोग के क्षेत्र:
यह साझेदारी केवल व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण पहल, स्वास्थ्य, सूचना प्रौद्योगिकी, निवेश, पर्यटन और औद्योगिक विकास जैसे कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी है। दोनों देशों ने सीधी उड़ानें शुरू करने पर भी चर्चा की है, ताकि लोगों के बीच संपर्क और व्यावसायिक संबंधों को सुदृढ़ किया जा सके।
इसके अलावा, पाकिस्तान हलाल फूड अथॉरिटी और बांग्लादेश स्टैंडर्ड्स एंड टेस्टिंग इंस्टीट्यूट ने गुणवत्ता मानकों पर सहयोग के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता दोनों देशों को वैश्विक हलाल बाजार में बेहतर अवसर प्राप्त करने और निर्यात क्षमता को बढ़ाने में मदद करेगा।
पाकिस्तान- बांग्लादेश के बीच बढ़ती नजदीकियां:
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से भारत और बांग्लादेश के संबंधों में लगातार तनाव बना हुआ है। दोनों देशों के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक विश्वास में कमी देखी जा रही है।
इसके विपरीत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के रिश्तों में उल्लेखनीय सुधार आया है। अंतरिम नेता मुहम्मद यूनुस बीते एक वर्ष में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से दो बार मुलाकात कर चुके हैं।
- नवंबर 2024 में, 1971 के बाद पहली बार एक पाकिस्तानी कार्गो जहाज चटगांव बंदरगाह पहुंचा, जिसे दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों में नई शुरुआत के रूप में देखा गया।
- अप्रैल 2025 में, ढाका में 15 साल बाद दोनों देशों के विदेश सचिवों की बैठक हुई, जिसमें द्विपक्षीय सहयोग को पुनर्जीवित करने पर चर्चा हुई।
उच्च-स्तरीय कूटनीतिक दौरे:
पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने 27–28 अप्रैल 2025 को ढाका का दौरा किया। यह 2012 के बाद पहली उच्च-स्तरीय यात्रा थी। इस दौरान दोनों देशों ने आपसी सहयोग और क्षेत्रीय साझेदारी को मजबूत करने पर विस्तृत चर्चा की।
भारत के लिए इसका प्रभाव: भारत इन घटनाक्रमों पर बारीकी से नज़र रख रहा है, क्योंकि एक समय के “पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान” के बीच सहयोग से भारत के लिए रणनीतिक चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
हालांकि, बांग्लादेश के विदेशी मामलों के सलाहकार ने कहा है कि भारत के साथ संबंध अभी भी मज़बूत हैं, लेकिन कुछ विश्लेषकों को यह संतुलन बनाए रखने में जोखिम नज़र आ रहा है।
आइए जान लेते है, कराची बंदरगाह के बारे में:
कराची बंदरगाह पाकिस्तान का सबसे बड़ा और व्यस्ततम समुद्री बंदरगाह है। यहां से हर साल लगभग 2.5 करोड़ टन माल का आयात-निर्यात होता है, जो पाकिस्तान के कुल समुद्री व्यापार का करीब 60% हिस्सा है। यह बंदरगाह कराची शहर के कैमाड़ी क्षेत्र के पास स्थित है और देश के व्यापारिक तंत्र का केंद्र माना जाता है।
आर्थिक महत्व:
- कराची बंदरगाह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। सीमा शुल्क, टैरिफ और अन्य शुल्कों के माध्यम से यह सरकार के लिए भारी राजस्व का स्रोत है।
- यह बंदरगाह लाखों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियों जैसे डॉक वर्कर, शिपिंग और लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में रोजगार प्रदान करता है।
- पाकिस्तान की ऊर्जा आवश्यकताओं विशेषकर तेल और एलएनजी आयात का अधिकांश हिस्सा इसी बंदरगाह के माध्यम से पूरा होता है।
- कराची पोर्ट के ठप पड़ने से ऊर्जा संकट और आर्थिक ठहराव जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- यह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत मध्य एशिया और यूरोप से जुड़ने की दिशा में अहम भूमिका निभाता है।
रणनीतिक और सैन्य महत्व:
- कराची बंदरगाह पाकिस्तान नौसेना का मुख्य अड्डा है, जहां से समुद्री सुरक्षा और निगरानी अभियानों का संचालन होता है।
- यह भारत के साथ समुद्री सीमाओं पर निगरानी और रक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- किसी भी प्रकार की सैन्य कार्रवाई या हमले से पाकिस्तान को दोहरा नुकसान हो सकता है- एक ओर आर्थिक गतिविधियाँ ठप होंगी और दूसरी ओर सुरक्षा पर गहरा खतरा उत्पन्न होगा।
भौगोलिक और सामरिक स्थिति:
- यह बंदरगाह दक्षिण एशिया के सबसे बड़े और गहरे पानी के पोर्ट्स में से एक है।
- इसकी स्थिति होर्मुज जलडमरूमध्य जैसे महत्वपूर्ण शिपिंग मार्गों के नजदीक है, जिससे यह मध्य एशियाई गणराज्यों के लिए समुद्री व्यापार का प्रवेश द्वार बनता है।
- करीब 11.5 किलोमीटर लंबे नेविगेशनल चैनल और 12.2 मीटर गहराई वाले इस पोर्ट पर हर साल लगभग 1600 जहाज आते हैं।
1971 के युद्ध में भारत ने किया था इस बंदरगाह को तबाह:
1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय नौसेना ने ऑपरेशन ट्राइडेंट के तहत कराची बंदरगाह पर विनाशकारी हमला किया था।
- भारतीय मिसाइल बोट्स INS निपट, INS वीर और INS निर्घात ने कराची पोर्ट पर हमला किया।
- इस हमले में पाकिस्तानी नौसेना के जहाज PNS खैबर और PNS मुहाफिज डूब गए।
- कराची के तेल टैंकों में आग लग गई, जो एक सप्ताह तक जलती रही और पूरे शहर का आसमान काले धुएं से भर गया।
- इस हमले के बाद कराची पोर्ट कई महीनों तक निष्क्रिय रहा और पाकिस्तान की समुद्री क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई।
निष्कर्ष:
भारत इस पूरे घटनाक्रम पर गहराई से नजर बनाए हुए है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ते आर्थिक व कूटनीतिक संपर्क दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय संतुलन को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि भारत प्रत्यक्ष रूप से इसमें शामिल नहीं है, लेकिन ढाका की नीतिगत दिशा और इस्लामाबाद की सक्रियता पर उसकी सतर्क निगाह बनी हुई है।
