APEC 2025 दक्षिण कोरिया सम्मेलन एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सबसे बड़ी आर्थिक बैठकों में से एक है। यह शिखर सम्मेलन नवंबर 2025 में दक्षिण कोरिया के ग्योंगजू शहर में आयोजित किया जा रहा है। इसमें 21 प्रशांत रिम देशों के नेता भाग ले रहे हैं, जो आपसी व्यापार, निवेश और क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने पर चर्चा करेंगे।
यह दूसरी बार है जब दक्षिण कोरिया इस महत्वपूर्ण सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है- पहली बार उसने 2005 में किया था। इस बार की बैठक पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की वैश्विक टैरिफ नीतियों और चीन सहित अन्य देशों के साथ व्यापार तनाव का असर देखने को मिल सकता है।
APEC Summit 2025: मुख्य जानकारी
स्थान और आयोजन:
- मेजबान शहर: ग्योंगजु, दक्षिण कोरिया (आधिकारिक चयन – जून 2024)
- अन्य आयोजन स्थल: बुसान, इंचियोन और जेजू
- थीम: “Building a Sustainable Tomorrow: Connect, Innovate, Prosper”
- मुख्य स्थल: ग्योंगजु हुआबेक इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर- नेताओं की बैठक का मुख्य सम्मेलन स्थल
महत्वपूर्ण बैठकें और तिथियां:
- APEC Economic Leaders’ Week (AELW): 27 अक्टूबर – 1 नवम्बर 2025
- APEC CEO Summit: 29–31 अक्टूबर 2025, ग्योंगजु आर्ट्स सेंटर में
- APEC Ministerial Meeting (AMM): 29–30 अक्टूबर 2025
- Concluding Senior Officials’ Meeting (CSOM): 27–28 अक्टूबर 2025
मुख्य फोकस क्षेत्र:
- आर्थिक सहयोग और व्यापार: वैश्विक व्यापार संबंध, सप्लाई चेन सुदृढ़ीकरण, और WTO की भूमिका पर जोर
- सतत विकास: ऊर्जा परिवर्तन, कार्बन न्यूट्रैलिटी, और जलवायु परिवर्तन पर चर्चा
- डिजिटल नवाचार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI): डिजिटल अर्थव्यवस्था के रूपांतरण और जिम्मेदार AI उपयोग पर ध्यान
- समावेशी विकास: महिलाओं, लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs), और वंचित समूहों की भागीदारी को बढ़ावा देना
यह सम्मेलन एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक सहयोग, नवाचार और सतत विकास को दिशा देने वाला प्रमुख मंच माना जा रहा है।
ट्रम्प और जिनपिंग की मुलाकात संभव:
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प बुधवार को ग्योंगजू पहुंचेंगे, लेकिन उनका कार्यक्रम APEC नेताओं के शिखर सम्मेलन के औपचारिक समापन से पहले ही प्रस्थान करने का है। यह उनके दूसरे कार्यकाल की पहली आमने-सामने अंतरराष्ट्रीय बैठक होगी। इस दौरान ट्रम्प के चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करने की उम्मीद है, क्योंकि दोनों देश हाल के महीनों में बढ़े व्यापार तनाव को कम करने और सहयोग के नए रास्ते तलाशने की कोशिश कर रहे हैं।
एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) क्या है?
एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) एक अंतर-सरकारी मंच है जिसमें एशिया-प्रशांत क्षेत्र की 21 अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं। इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाना और मुक्त व खुला व्यापार आसान बनाना है। APEC देशों को आपस में संवाद, नीतियों के तालमेल और आर्थिक एकता के लिए एक साझा मंच देता है। इसका ध्यान सतत विकास, क्षेत्रीय एकीकरण और लोगों की भलाई पर केंद्रित है। सदस्य देश व्यापार, निवेश, तकनीकी सहयोग और आपसी संपर्क जैसे विषयों पर मिलकर काम करते हैं।
APEC का इतिहास:
APEC का विचार सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री बॉब हॉक ने 31 जनवरी 1989 को सियोल, कोरिया में अपने भाषण में पेश किया था। इसके लगभग दस महीने बाद, एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 12 देशों ने ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा में मिलकर APEC की स्थापना की। इसके संस्थापक सदस्य थे— ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, कनाडा, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूज़ीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और अमेरिका।
बाद में 1991 में चीन, हांगकांग और चीनी ताइपे शामिल हुए; 1993 में पापुआ न्यू गिनी और मेक्सिको जुड़े; 1994 में चिली शामिल हुआ; और 1998 में वियतनाम, पेरू और रूस के जुड़ने से सदस्यों की कुल संख्या 21 हो गई।
शुरुआती वर्षों (1989-1992) में APEC की बैठकें केवल मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर होती थीं। 1993 में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने नेताओं की वार्षिक APEC आर्थिक बैठक की परंपरा शुरू की, जिससे इस मंच को एक स्पष्ट दिशा और मजबूत पहचान मिली।
APEC की संरचना और कार्य:
APEC का मुख्यालय सिंगापुर में स्थित है और यह कई स्तरों पर काम करता है— समितियाँ, कार्य समूह, वरिष्ठ अधिकारी, मंत्री और नेता। हर साल इसकी अध्यक्षता एक सदस्य देश करता है, और उसी देश में APEC की मुख्य बैठकें आयोजित की जाती हैं।
APEC के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:
- यह ग्रामीण समुदायों को डिजिटल कौशल सिखाने और स्वदेशी महिलाओं के उत्पादों के निर्यात में मदद करता है।
- सदस्य देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ऊर्जा दक्षता बढ़ाने और वन व समुद्री संसाधनों के सतत उपयोग को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम चलाते हैं।
- APEC क्षेत्र के लोगों को बढ़ती अर्थव्यवस्था में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित करता है।
- संगठन लगातार अपने ढांचे में बदलाव करता है ताकि सदस्य देश नई चुनौतियों का सामना कर सकें- जैसे प्राकृतिक आपदाएँ, महामारियाँ और आतंकवाद से जुड़ी समस्याएँ।
APEC की उपलब्धियाँ:
- इसने क्षेत्र की आर्थिक वृद्धि और सहयोग को बढ़ावा दिया है।
- 21 सदस्य अर्थव्यवस्थाएँ विश्व की लगभग 60% GDP और 48% व्यापार का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- 1989 से 2018 के बीच क्षेत्र की GDP 19 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 9 ट्रिलियन डॉलर हो गई। प्रति व्यक्ति आय में 74% की वृद्धि हुई, जिससे लाखों लोग गरीबी से बाहर आए।
- औसत टैरिफ 17% से घटकर 3% रह गया, जिससे व्यापार सुगम हुआ।
- क्षेत्र का कुल व्यापार सात गुना बढ़ा, जिसमें दो-तिहाई हिस्सा सदस्य देशों के बीच हुआ।
APEC की चुनौतियाँ:
- सदस्य देशों के अलग-अलग आर्थिक लक्ष्य सामंजस्य में बाधा डालते हैं।
- अमेरिका-चीन व्यापार तनाव और बढ़ता संरक्षणवाद क्षेत्र की स्थिरता के लिए खतरा हैं।
- उप-क्षेत्रीय समझौतों के बढ़ने से APEC की भूमिका सीमित हो सकती है।
- स्पष्ट उद्देश्यों और ठोस कार्यप्रणाली की कमी के कारण नीतियाँ प्रभावी नहीं बन पातीं।
भारत-APEC संबंध:
भारत वर्तमान में APEC में ‘पर्यवेक्षक’ (Observer) के रूप में जुड़ा हुआ है, लेकिन वह इस समूह का पूर्ण सदस्य बनना चाहता है। भारत ने 1991 में औपचारिक रूप से APEC में शामिल होने की इच्छा जताई थी। यह अनुरोध भारत की भौगोलिक स्थिति, उसकी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और एशिया-प्रशांत देशों के साथ बढ़ते व्यापारिक संबंधों के आधार पर किया गया था।
भारत के लिए APEC कितना महत्वपूर्ण?
- समूह की ताकत: APEC दुनिया की एक-तिहाई आबादी, वैश्विक व्यापार के लगभग 47% और विश्व जीडीपी के करीब 60% का प्रतिनिधित्व करता है।
- भारत की आकांक्षा: भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में काम कर रहा है और उसे बुनियादी ढांचे में लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत है।
- निवेश के अवसर: एशिया-प्रशांत क्षेत्र में कई ऐसे देश हैं जिनके पास पूंजी अधिशेष है, जो भारत के लिए निवेश का अच्छा स्रोत बन सकते हैं।
- “एक्ट ईस्ट” नीति का हिस्सा: भारत पहले ही शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का सदस्य बन चुका है, और APEC में शामिल होना उसकी “एक्ट ईस्ट” नीति का स्वाभाविक अगला कदम है।
भारत का APEC समूह में ना होने की वजह:
कई सदस्य देश भारत को APEC में शामिल करने के पक्ष में थे, लेकिन कुछ ने भारत की संरक्षणवादी नीतियों और सीमित आर्थिक सुधारों का हवाला देकर विरोध किया। APEC का उद्देश्य मुक्त व्यापार और आर्थिक सहयोग बढ़ाना है, जो उस समय भारत की नीतियों से मेल नहीं खाता था।
इसके अलावा, 1997 में नई सदस्यता पर लगी रोक भी एक कारण रही। हालांकि अब भारत ने अर्थव्यवस्था में सुधार और उदारीकरण के कदम उठाए हैं, इसलिए अधिकतर सदस्य देश मानते हैं कि भारत को शामिल किया जाना चाहिए। इससे क्षेत्रीय व्यापार और रणनीतिक संतुलन दोनों को मजबूती मिलेगी।
निष्कर्ष:
APEC 2025 दक्षिण कोरिया सम्मेलन एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक सहयोग, व्यापार और निवेश के नए आयाम खोलने का अवसर प्रदान करेगा। यह मंच न केवल क्षेत्रीय साझेदारी को सशक्त बनाएगा, बल्कि वैश्विक आर्थिक संतुलन पर भी प्रभाव डालेगा। भारत के लिए यह समय अपनी आर्थिक क्षमता, सुधारों और क्षेत्रीय प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने का है।
