अरावली पर्वतमाला को लेकर उठे विवाद पर आज (सोमवार) सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने आदेश दिया है कि विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें और उन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियां फिलहाल लागू नहीं होंगी। अदालत ने साफ कहा कि अगली सुनवाई तक इन सिफारिशों को लागू नहीं किया जाएगा। मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को होगी।
गलतफहमियां फैलाई जा रही हैं: सॉलिसिटर जनरल
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कहा कि इस मामले में अदालत के आदेशों, सरकार की भूमिका और पूरी प्रक्रिया को लेकर कई तरह की गलतफहमियां फैलाई जा रही हैं। उन्होंने बताया कि इन्हीं भ्रमों को दूर करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाई गई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट दी थी, जिसे अदालत ने स्वीकार भी किया था।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि अदालत की भी यही भावना है कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट और उसके आधार पर अदालत द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों का गलत मतलब निकाला जा रहा है। CJI ने संकेत दिया कि इन गलत धारणाओं को दूर करने के लिए स्पष्टीकरण जरूरी है, ताकि अदालत की मंशा को लेकर कोई भ्रम न रहे।
सुप्रीम कोर्ट के अहम सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट या अदालत के फैसले को लागू करने से पहले एक निष्पक्ष और स्वतंत्र मूल्यांकन जरूरी है। मुख्य न्यायाधीश ने कई अहम सवाल उठाए:
- क्या 500 मीटर की सीमा उचित है? – क्या अरावली की परिभाषा को केवल 500 मीटर के दायरे तक सीमित करने से संरक्षण क्षेत्र सिकुड़ जाता है?
- क्या खनन का दायरा बढ़ गया? – क्या इस परिभाषा के कारण नॉन-अरावली क्षेत्रों में नियंत्रित खनन का दायरा बढ़ गया है?
- गैप में खनन की अनुमति? – अगर दो अरावली क्षेत्र 100 मीटर या उससे अधिक के हैं और उनके बीच 700 मीटर का अंतर है, तो क्या उस गैप में खनन की अनुमति दी जा सकती है?
- पारिस्थितिक निरंतरता कैसे बचेगी? – इस पूरी प्रक्रिया में पर्यावरण की निरंतरता को कैसे सुरक्षित रखा जाएगा?
- व्यापक आकलन की जरूरत? – अगर नियमों में कोई बड़ा खालीपन सामने आता है, तो क्या अरावली की संरचनात्मक मजबूती बनाए रखने के लिए व्यापक आकलन जरूरी होगा?
हाई पावर्ड कमेटी बनाने का प्रस्ताव
CJI ने कहा कि अदालत पहले ही संकेत दे चुकी है कि इन सवालों पर गहराई से विचार जरूरी है। इसी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रस्ताव रखा है कि विशेषज्ञों की एक हाई पावर्ड कमेटी बनाई जाए। यह कमेटी मौजूदा विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का विश्लेषण करे और इन मुद्दों पर स्पष्ट सुझाव दे।
क्या है अरावली विवाद
सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की समिति की सिफारिश स्वीकार की। इसमें 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली के रूप में मान्यता देने की बात कही गई। इससे पहले 1985 से चले आ रहे गोदावर्मन और एमसी मेहता मामले में अरावली को व्यापक संरक्षण मिला हुआ था।
नए फैसले के बाद राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर में विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। पर्यावरण कार्यकर्ता इसे पर्यावरण आपदा बता रहे हैं। पर्यावरणविदों और विपक्षी दलों के नेताओं ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाए हैं।
पर्यावरणविदों का तर्क है कि अरावली रेंज में 100 मीटर से छोटी पहाड़ियों में खनन की मंजूरी मिलने से इन पर्वतमालाओं के अस्तित्व के खत्म होने का खतरा पैदा हो गया है। केंद्र सरकार का कहना है कि यह गलतफहमी है और संरक्षण बरकरार रहेगा।
आरपी बलवान की याचिका
हरियाणा के वन विभाग के रिटायर्ड अधिकारी आरपी बलवान ने भी पिछले सप्ताह केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की समिति की सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पहले से चल रहे गोदावर्मन मामले में याचिका दाखिल की, जिस पर कोर्ट ने केंद्र, राजस्थान, हरियाणा सरकार और पर्यावरण मंत्रालय को नोटिस जारी किया था।
केंद्र ने नए खनन पट्टों पर लगाई रोक
विवाद बढ़ने पर केंद्र सरकार ने अरावली में नए खनन पट्टों पर रोक लगाने के निर्देश जारी किए। 24 दिसंबर को केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बयान में कहा कि पूरी अरावली श्रृंखला में कोई नया खनन लीज नहीं जारी होगा।
केंद्र ने राज्य सरकारों को अरावली में किसी भी प्रकार के नए खनन पट्टे देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के निर्देश दिए हैं। ये प्रतिबंध पूरे अरावली पर समान रूप से लागू होंगे।
गुजरात: कोई खनन या व्यावसायिक गतिविधि नहीं
गुजरात के वन मंत्री अर्जुन मोढवाड़िया ने कहा कि सरकार ने कभी भी पर्वत श्रृंखलाओं में किसी खनन या व्यावसायिक गतिविधि की अनुमति नहीं दी है और भविष्य में भी ऐसी अनुमति नहीं देगी।
मोढवाड़िया ने कहा, “गुजरात में हमने अतीत में कभी भी अरावली में खनन या किसी अन्य व्यावसायिक गतिविधि की अनुमति नहीं दी थी, और हम भविष्य में भी ऐसा नहीं करना चाहते। यह प्रचार गलत है कि व्यावसायिक गतिविधि होगी, और हम इस पर्वत श्रृंखला की सुरक्षा के लिए सच्ची प्रतिबद्ध हैं।”
कांग्रेस ने राजस्थान सरकार पर साधा निशाना
कांग्रेस ने सोमवार को आरोप लगाया कि राजस्थान में “डबल-इंजन” सरकार द्वारा न केवल खनन बल्कि रियल एस्टेट विकास भी खोला जा रहा है, जो अरावली के “पहले से तबाह” पारिस्थितिकी तंत्र पर और विनाश ढाएगा।
कांग्रेस महासचिव और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि ऐसे कदम भारतीय वन सर्वेक्षण की सिफारिशों के खिलाफ हैं। उन्होंने ट्वीट किया, “जैसे राष्ट्र सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम निर्देशों का इंतजार कर रहा है, यहां और सबूत है कि अरावली की नई परिभाषा पहले से तबाह पारिस्थितिकी तंत्र में और विनाश कैसे करेगी।”
वाटरमैन ऑफ इंडिया की चिंता
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से पहले, जल संरक्षणवादी राजेंद्र सिंह ने मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत को पत्र लिखकर 20 नवंबर के फैसले पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने अरावली श्रृंखला में प्राकृतिक जीवन की सुरक्षा के लिए उपयुक्त संशोधन का आग्रह किया।
अपने पत्र में सिंह ने कहा कि अरावली पर्वत श्रृंखला सदियों से जीवन, प्रकृति, जल और भूमि के संरक्षण के लिए समर्पित रही है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अत्यंत कष्टदायक बताते हुए कहा कि इसने अरावली श्रृंखला को हजारों छोटी पहाड़ियों में विभाजित करके इसकी अखंडता और पारिस्थितिकी तंत्र की निरंतरता को तोड़ दिया है।
उन्होंने चेतावनी दी कि शेष क्षेत्र का 90 प्रतिशत से अधिक खनन और विकास के लिए खोल दिया गया है। सिंह ने बताया कि दिल्ली-हरियाणा सीमा पर 100 मीटर या उससे अधिक की कोई पहाड़ियां नहीं हैं, जो पूरी अरावली श्रृंखला को नए खनन और विकास के लिए खोल सकती हैं और थार रेगिस्तान को दिल्ली तक आने की अनुमति दे सकती हैं।
अरावली का महत्व
अरावली रेंज पृथ्वी की सबसे पुरानी भूवैज्ञानिक विशेषताओं में से एक है। उत्तर पश्चिम भारत में लगभग 670 किमी से 800 किमी तक फैली यह “हरा फेफड़ा” और क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक ढाल के रूप में कार्य करती है।
अरावली की अहमियत:
- रेगिस्तानीकरण के खिलाफ बाधा: थार रेगिस्तान के पूर्व की ओर फैलने को रोकती है
- भूजल रिचार्ज: गुरुग्राम, दिल्ली और जयपुर जैसे शहरों को पानी देती है
- जलवायु नियंत्रण: मानसून की हवाओं को निर्देशित करती है
- जैव विविधता का केंद्र: सरिस्का टाइगर रिजर्व, कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य जैसे कई अभयारण्य
- खनिज संपदा: तांबा, जस्ता, सीसा, चांदी और संगमरमर
आज अरावली को अवैध खनन, तेजी से शहरीकरण और वनों की कटाई से गंभीर खतरा है।
