तीरंदाज़ शीतल देवी ने फिर रचा इतिहास, अब सक्षम खिलाड़ियों के साथ एशिया कप में उतरेंगी

भारत की पैरा आर्चरी विश्व चैंपियन शीतल देवी ने गुरुवार सुबह एक और बड़ा मुकाम हासिल कर लिया। उन्होंने एशिया कप 2025 (स्टेज-3) में जगह बनाते हुए भारतीय जूनियर सक्षम टीम में चयन पक्का कर लिया है। यह टूर्नामेंट 10 से 15 दिसंबर तक जेद्दा (सऊदी अरब) में आयोजित होगा। 18 वर्षीय शीतल के लिए यह पहला मौका होगा जब वह सक्षम खिलाड़ियों के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करेंगी।

Archer Sheetal Devi creates history again

पिछले साल नवंबर में अमिताभ बच्चन के शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में जब पैरा-आर्चर शीतल देवी ने कहा था कि उनका सपना है – एक दिन सक्षम खिलाड़ियों के साथ खेलना, तो शायद किसी ने नहीं सोचा था कि यह सपना इतनी जल्दी पूरा होगा। आज, ठीक एक साल बाद, वह सपना हकीकत बन गया है।

 

जम्मू-कश्मीर की रहने वाली शीतल देवी, जो बिना हाथों के पैदा हुईं, अब एशिया कप स्टेज-3 (जेद्दा) के लिए भारत की सक्षम जूनियर टीम में चुनी गई हैं।

 

वह यह उपलब्धि हासिल करने वाली भारत की पहली पैरा-एथलीट बन गई हैं।

“जब मैंने खेलना शुरू किया था, मेरा छोटा-सा सपना था – एक दिन सक्षम खिलाड़ियों के साथ खेलना। कई बार असफल हुई, लेकिन रुकी नहीं। आज वह सपना एक कदम और आगे बढ़ गया,” -शीतल देवी

 

60 खिलाड़ियों में तीसरा स्थान हासिल किया

  • हरियाणा के सोनीपत में हुए राष्ट्रीय चयन ट्रायल्स में शीतल ने 60 से अधिक सक्षम तीरंदाजों के बीच समान परिस्थितियों में मुकाबला किया। चार दिन की कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद उन्होंने कुल तीसरा स्थान प्राप्त किया।
  • क्वालिफिकेशन राउंड में शीतल ने 703 अंक (352+351) हासिल किए, जो शीर्ष खिलाड़ी तेजल साल्वे के बराबर था।
  • अंतिम अंकों में तेजल (75) पहले, वैदेही जाधव (15) दूसरे और शीतल (11.75) तीसरे स्थान पर रहीं।

 

संघर्ष और जज़्बे की मिसाल

शीतल की यात्रा हमेशा से संघर्ष और आत्मविश्वास की कहानी रही है।
पहले वे श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, कटरा में प्रशिक्षण लेती थीं, जहाँ से उन्होंने पैरा-आर्चरी में विश्व खिताब जीता।

वह दुनिया की पहली महिला बिना हाथों की पैरा-आर्चरी विश्व चैंपियन हैं।
हालाँकि, पेरिस पैरालिंपिक में मिक्स टीम ब्रॉन्ज जीतने के बाद उनका सफर आसान नहीं था।

 

शीटल देवी की प्रमुख उपलब्धियाँ:

1. एशियाई पैरा खेल 2023 (हांगझोउ, चीन):

  • स्वर्ण पदक – महिला व्यक्तिगत कंपाउंड इवेंट में
  • स्वर्ण पदक – कंपाउंड मिक्स्ड टीम इवेंट (राकेश कुमार के साथ)
  • रजत पदक – महिला टीम कंपाउंड इवेंट में

2. विश्व पैरा तीरंदाज़ी चैंपियनशिप 2023 (पिलसेन, चेक गणराज्य):

  • स्वर्ण पदक – कंपाउंड ओपन मिक्स्ड टीम इवेंट (राकेश कुमार के साथ)
  • रजत पदक – महिला व्यक्तिगत कंपाउंड इवेंट में

3. सम्मान और पहचान:

  • बीबीसी की “100 सबसे प्रेरणादायक महिलाओं” की सूची में 2023 में शामिल।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, खेल मंत्रालय और देशभर के खेलप्रेमियों ने उनकी उपलब्धियों की सराहना की।

 

 

नियम बदला, तो करनी पड़ी शुरुआत फिर से

पेरिस के बाद शीतल ने पटियाला में कोच गौरव शर्मा के तहत प्रशिक्षण किया।
इस दौरान वर्ल्ड आर्चरी ने एक नया नियम लागू किया, जिसमें एड़ी (heel) से धनुष पकड़ना प्रतिबंधित कर दिया गया। इस वजह से शीतल को अपना शूटिंग स्टांस पूरी तरह बदलना पड़ा – अब उन्हें केवल पैर की उंगलियों और आगे के हिस्से से निशाना साधना सीखना पड़ा।

“उन्हें सबकुछ दोबारा सीखना पड़ा। कई बार दर्द से पैर अकड़ जाते थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। हर छोटी गलती को सुधारने की लगन ही उनकी असली ताकत है।”
– कोच गौरव

 

‘राइजिंग अबव द व्हिस्पर्स’ – खुद से लड़ाई की कहानी

एक सोशल मीडिया पोस्ट ‘Rising Above the Whispers’ में शीतल ने अपने मुश्किल दिनों के बारे में लिखा था – “कुछ महीने पहले सबकुछ बिगड़ गया था। अभ्यास छूट गया, मैच हारे, और लोग कहने लगे – ‘अब इसका समय गया’। मैंने सोशल मीडिया से दूरी बना ली, ध्यान भटकाने वाली हर चीज़ छोड़ दी। कोच ने कहा – ‘हमें किसी को जवाब नहीं देना, हमारा तीर जवाब देगा।’”

इसी दृढ़ निश्चय के साथ उन्होंने सितंबर 2025 में ग्वांग्जू वर्ल्ड पैरा चैंपियनशिप में गोल्ड जीतकर दुनिया को जवाब दिया।

 

कोच बोले – “वो हमेशा तैयार रहती है”

कोच गौरव शर्मा का कहना है, “शीतल हमेशा स्पष्ट सोच रखती है, बहुत केंद्रित रहती है। जब फाइनल लिस्ट में उसका नाम देखा, तो यकीन नहीं हुआ – एक पैरा-एथलीट अब सक्षम खिलाड़ियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेल रही है।”

अब टीम का लक्ष्य होगा पैरा और सक्षम दोनों इवेंट्स में संतुलन बनाए रखना
शर्मा ने कहा, “अगले साल एशियन पैरा गेम्स हमारी प्राथमिकता रहेंगे, लेकिन हम उन्हें सीनियर सक्षम टीम के लिए भी ट्रायल देंगे। अगर वह एशिया कप में मेडल जीतती हैं, तो यह ऐतिहासिक होगा।”

 

प्रेरणा की मिसाल: ओज़नूर क्यूर गिरदी

शीतल ने तुर्की की पैरा-चैंपियन ओज़नूर क्यूर गिरदी से प्रेरणा ली, जिन्होंने खुद सक्षम खिलाड़ियों के बीच विश्व कप और वर्ल्ड गेम्स में हिस्सा लिया था। ओज़नूर ने मई 2025 में इस्तांबुल कॉन्क्वेस्ट कप में सक्षम वर्ग में अपना पहला मेडल भी जीता था।

 

भारतीय टीम (एशिया कप स्टेज 3, जेद्दा)

रिकर्व वर्ग

  • पुरुष: रामपाल चौधरी (AAI), रोहित कुमार (उत्तर प्रदेश), मयंक कुमार (हरियाणा)
  • महिला: कोंडपावलुरी युक्ता श्री (आंध्र प्रदेश), वैष्णवी कुलकर्णी (महाराष्ट्र), क्रातिका बिचपुरिया (मध्य प्रदेश)

 

कंपाउंड वर्ग

  • पुरुष: प्रद्युम्न यादव, वासु यादव, देवांश सिंह (सभी राजस्थान)
  • महिला: तेजल साल्वे, वैदेही जाधव (महाराष्ट्र), शीतल देवी (जम्मू-कश्मीर)

 

तीरंदाज़ी के बारे में:

·     परिचय: तीरंदाज़ी आज भी दुनिया की सबसे पुरानी और लोकप्रिय कलाओं में से एक है। यह न केवल एक खेल है, बल्कि मानव सभ्यता की प्रगति का प्रतीक भी है। धनुष और बाण का इतिहास मानवता के आरंभिक युग से जुड़ा हुआ है।

·     तीरंदाज़ी की उत्पत्ति और प्रारंभिक उपयोग: प्राचीन काल में तीरंदाज़ी का उपयोग मुख्य रूप से शिकार के लिए किया जाता था। बाद में यह युद्ध की एक महत्वपूर्ण तकनीक बन गई। सबसे पुराने प्रमाण लगभग 20,000 ईसा पूर्व के हैं, जब चकमक पत्थर से बने तीरों के सिरे मिले। माना जाता है कि आदिमानव इससे भी पहले धनुष-बाण का उपयोग करने लगे थे।

·     विभिन्न क्षेत्रों में तीरंदाज़ी का विकास: दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में तीरंदाज़ी की शैली और तकनीकें भिन्न-भिन्न रूप में विकसित हुईं।

एशिया में, जहाँ योद्धा अक्सर घोड़े पर सवार होकर युद्ध करते थे, छोटे मिश्रित धनुष (Composite Bows) अधिक लोकप्रिय हुए।

इंग्लैंड में, यू (Yew) लकड़ी से बने लंबे धनुष (Longbows) का प्रयोग किया गया, जिसने मध्य युग के दौरान इंग्लैंड को एक मजबूत सैन्य शक्ति बना दिया।

o  आज भी कई देशों में पारंपरिक धनुष चलाने वाले तीरंदाज़ों के सक्रिय समुदाय मौजूद हैं, जो इस प्राचीन कला को जीवित रखे हुए हैं।

·     युद्ध से खेल तक की यात्रा: बारूद और आग्नेयास्त्रों के आविष्कार के बाद तीरंदाज़ी धीरे-धीरे युद्ध में अप्रचलित (obsolete) हो गई। इसके बाद यह कला एक खेल के रूप में विकसित हुई, जिसमें कौशल, एकाग्रता और संतुलन को विशेष महत्व मिला।

·     आधुनिक तीरंदाज़ी की शुरुआत: आधुनिक तीरंदाज़ी की पहली दर्ज प्रतियोगिता 1583 में इंग्लैंड के फिन्सबरी (Finsbury) में आयोजित हुई थी, जिसमें लगभग 3,000 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इस प्रतियोगिता ने तीरंदाज़ी को एक मनोरंजन और प्रतिस्पर्धात्मक खेल के रूप में पहचान दिलाई।

·     ओलंपिक खेलों में तीरंदाज़ी: तीरंदाज़ी को पहली बार 1900 से 1908 और फिर 1920 में आधुनिक ओलंपिक खेलों में शामिल किया गया। इसके बाद, इस खेल को स्थायी रूप से ओलंपिक कार्यक्रम का हिस्सा बनाने के लिए 1931 में विश्व तीरंदाज़ी संघ (World Archery Federation) की स्थापना की गई। अंततः 1972 में तीरंदाज़ी को ओलंपिक खेलों में स्थायी स्थान प्राप्त हुआ।