आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में बनेगा एशिया का सबसे बड़ा डेटा सेंटर

गूगल आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में एशिया का सबसे बड़ा डेटा सेंटर स्थापित करने जा रहा है, जिसकी अनुमानित क्षमता 1 गीगावॉट होगी। यह क्षमता वर्तमान में पूरे भारत में मौजूद कुल 1.4 गीगावॉट डेटा सेंटर क्षमताओं के लगभग बराबर मानी जा रही है, जो इस प्रोजेक्ट को एक रणनीतिक मील का पत्थर बनाती है।

गूगल करीब ₹50,000 करोड़ का करेगा निवेश:

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गूगल इस परियोजना में करीब ₹50,000 करोड़ का निवेश करेगा। इसमें से ₹16,000 करोड़ केवल रिन्युएबल एनर्जी फेसिलिटी पर खर्च किया जाएगा, जो इस डेटा सेंटर को बिजली सप्लाई देने का मुख्य स्रोत होगी। यह कदम न केवल स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देगा, बल्कि डेटा संचालन को दीर्घकालिक रूप से टिकाऊ भी बनाएगा।

गूगल की पैरेंट कंपनी अल्फाबेट पहले ही 2025 में वैश्विक स्तर पर डेटा सेंटर नेटवर्क विस्तार के लिए 6.25 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा कर चुकी है। विशाखापट्टनम इस बड़े रणनीतिक विस्तार का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनने जा रहा है।

आंध्र प्रदेश के आईटी मंत्री नारा लोकेश ने जानकारी दी कि विशाखापट्टनम में तीन केबल लैंडिंग स्टेशन भी विकसित किए जाएंगे, जिससे हाई-स्पीड इंटरनेट ट्रांसफर संभव होगा। यह न केवल क्षेत्रीय डिजिटल कनेक्टिविटी को मजबूती देगा, बल्कि भारत के डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर को वैश्विक मानकों के करीब ले जाएगा।

क्या होते हैं डेटा सेंटर? कैसे करते हैं आपके डिजिटल जीवन को नियंत्रित

डेटा सेंटर वह स्थान होते हैं जहां इंटरनेट से जुड़ी तमाम गतिविधियों के लिए जरूरी डेटा को सुरक्षित रखा, प्रोसेस किया और जरूरत पड़ने पर पहुंचाया जाता है। यह दरअसल एक नेटवर्क से जुड़े भारी-भरकम कंप्यूटर सर्वरों का समूह होता है, जो सोशल मीडिया, बैंकिंग, हेल्थकेयर, टूरिज्म, ई-कॉमर्स और सरकारी प्रणालियों तक हर क्षेत्र में जरूरी डेटा को संभालते हैं।

फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, वॉट्सऐप जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स और बड़ी कंपनियां अपने सभी यूजर डेटा को इन्हीं डेटा सेंटर में स्टोर करती हैं। यहां हजारों सर्वर एक साथ काम करते हैं और किसी भी कंपनी का पूरा आईटी ढांचा इन्हीं से संचालित होता है।

कैसे स्टोर होता है डेटा?

बड़े स्तर पर डेटा को तीन परतों में संभाला जाता है—मैनेजमेंट लेयर, वर्चुअल लेयर, और फिजिकल लेयर

  • मैनेजमेंट लेयर डेटा को नियंत्रित और मॉनिटर करने का काम करती है। कोई भी सर्च या यूजर इनपुट सबसे पहले यहीं पहुंचता है।
  • वर्चुअल लेयर यूजर के पूछे गए सवालों को एक्सेस करती है और SQL जैसी डेटा भाषाओं के माध्यम से जरूरी जानकारी निकालती है।
  • फिजिकल लेयर सीधे हार्डवेयर से डील करती है—जैसे सर्वर, ड्राइव और नेटवर्क उपकरण, जहां असल में डेटा स्टोर होता है।

 

1 गीगावाट डेटा सेंटर: स्टोरेज क्षमता का अनुमान

यह ध्यान देना जरूरी है कि “1 गीगावाट” का आंकड़ा डेटा स्टोरेज को नहीं, बल्कि बिजली खपत को दर्शाता है। यह माप इस बात को दर्शाता है कि डेटा सेंटर कितनी ऊर्जा की खपत करता है—और यह संकेत देता है कि सेंटर का स्केल कितना बड़ा है। इतने बड़े स्तर का डेटा सेंटर आमतौर पर हाइपरस्केल कैटेगरी में आता है, जैसे कि गूगल, अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट आदि के सर्वर फार्म।

अगर हम सामान्य अनुमान लगाएं तो 1 गीगावाट डेटा सेंटर में लाखों सर्वर लग सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि इसमें 50,000 सर्वर हैं और हर सर्वर में औसतन 10 टेराबाइट (TB) स्टोरेज है, तो:

  • कुल स्टोरेज = 50,000 × 10 TB = 500,000 TB
  • 1 TB = 1,000 GB, तो
  • 500,000 TB = 500 मिलियन GB = 500 करोड़ गीगाबाइट

हालांकि यह सिर्फ एक मोटा अनुमान है। यदि सर्वर अधिक स्टोरेज के लिए डिज़ाइन किए गए हों, तो यह आंकड़ा 1 बिलियन GB (1000 करोड़ GB) तक भी पहुंच सकता है।

अर्थात, 1 गीगावाट क्षमता वाला डेटा सेंटर पूरे देश के डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को संभालने की ताकत रख सकता है—फाइनेंस, हेल्थकेयर, सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स से लेकर सरकारी क्लाउड सेवाओं तक।

 

गूगल का विशाल डेटा सेंटर: भारत की डिजिटल ताकत को नई ऊंचाई

डेटा सेंटरों के सामने सबसे बड़ी चुनौती साइबर अटैक और डेटा लीक की होती है, और यही कारण है कि कंपनियां इसे रोकने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाने में पीछे नहीं हैं। इनमें ऑटोमैटिक डेटा बैकअप, मजबूत डिजास्टर रिकवरी प्रणाली और हार्डवेयर के सुरक्षित विनाश की प्रक्रिया जैसी व्यवस्थाएं शामिल हैं। इन उपायों से न केवल डेटा को सुरक्षित रखा जा सकता है, बल्कि किसी आपातकाल या हैकिंग की स्थिति में भी उसका नुकसान नहीं होता। गूगल द्वारा विशाखापट्टनम में स्थापित किया जा रहा 1 गीगावाट क्षमता का डेटा सेंटर न सिर्फ एशिया में सबसे बड़ा होगा, बल्कि यह भारत को वैश्विक डिजिटल बुनियादी ढांचे की दौड़ में एक नई ऊंचाई पर ले जाएगा। यह परियोजना न केवल देश में तेज़ इंटरनेट ट्रांसफर की दिशा में बड़ा कदम है, बल्कि डेटा सुरक्षा, डिजिटल संप्रभुता और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दृष्टि से भी एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।