पाकिस्तान की सैन्य व्यवस्था में ऐतिहासिक बदलाव करते हुए सरकार ने फील्ड मार्शल सैयद असीम मुनीर को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) नियुक्त किया है। यह पहली बार है जब कोई अधिकारी एक साथ CDF और सेना प्रमुख (COAS) दोनों पद संभाल रहा है। राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी की मंजूरी के बाद यह कदम पाकिस्तान की रक्षा कमान को अगले पाँच साल तक एक ही नेतृत्व के तहत केंद्रीकृत करता है। इसके साथ ही एयर चीफ मार्शल जहीर अहमद बाबर सिद्धू को भी दो साल का विस्तार दिया गया है।
असीम मुनीर कौन है ?
फील्ड मार्शल सैयद असीम मुनीर (जन्म 1968) पाकिस्तान के पहले चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) और 11वें सेना प्रमुख (COAS) हैं। इससे पहले वे GHQ में क्वार्टरमास्टर जनरल रहे और पाकिस्तान की दोनों प्रमुख खुफिया एजेंसियों—ISI और मिलिट्री इंटेलिजेंस का नेतृत्व कर चुके हैं।
20 मई 2025 को भारत-पाक संघर्ष के दौरान नेतृत्व के लिए उन्हें फील्ड मार्शल बनाया गया। वे अयूब खान के बाद यह पद पाने वाले दूसरे व्यक्ति हैं। उन्हें हिलाल-ए-जुरअत सम्मान भी मिल चुका है।
राष्ट्रपति कार्यालय ने क्या कहा ?
राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा कि राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने प्रधानमंत्री द्वारा भेजे गए प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत फील्ड मार्शल सैयद असीम मुनीर को पाँच साल के कार्यकाल के लिए रक्षा बलों का प्रमुख नियुक्त किया गया है।
देश के दूसरे फील्ड मार्शल तथा पहले चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF):
मुनीर की यह नई जिम्मेदारी उन्हें कुछ महीने पहले फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किए जाने के बाद मिली है। वह पाकिस्तान के इतिहास में फील्ड मार्शल की उपाधि पाने वाले दूसरे सैन्य अधिकारी हैं। इससे पहले जनरल अयूब खान को यह पद मिला था, जिन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान का नेतृत्व किया था।
अब असीम मुनीर एक साथ दो बड़े पद संभालेंगे—पहले चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) और दूसरे सेना प्रमुख (COAS) के रूप में। इस तरह वह पाकिस्तान के पहले रक्षा प्रमुख (CDF) बन गए हैं। CDF के चेयरमैन के साथ ही, जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी की जगह भी ली है और इस पद को खत्म कर दिया गया है।
तीन साल में समाप्त होना था मुनीर का पद:
जनरल आसिम मुनीर को 29 नवंबर 2022 को सेना प्रमुख बनाया गया था और उनका मूल कार्यकाल तीन साल का था, जो 28 नवंबर 2025 को खत्म होना था। हालांकि उन्हें CDF बनाने के लिए 29 नवंबर तक नोटिफिकेशन जारी करना जरूरी था।
पिछले साल संसद ने कानून बदलकर सेना प्रमुख का कार्यकाल तीन से बढ़ाकर पाँच साल कर दिया था, इसलिए कानूनी तौर पर मुनीर के पद को कोई खतरा नहीं था। अब नई नियुक्ति के साथ मुनीर एक साथ दो अहम पद संभालेंगे—सेना प्रमुख (COAS) और रक्षा बलों के पहले प्रमुख (CDF)। यह कदम पाकिस्तान की सैन्य संरचना और शक्ति संतुलन में एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है।
पाकिस्तानी परमाणु हथियारों की कमान मुनीर के हाथों में:
12 नवंबर को संसद ने सेना की शक्तियों को बढ़ाने वाला 27वां संवैधानिक संशोधन पास किया था, जिसके बाद मुनीर को CDF नियुक्त किया गया। मुनीर, अब पाकिस्तान के पहले सैन्य अधिकारी बन गए हैं जो एक साथ CDF और सेना प्रमुख दोनों पद संभाल रहे हैं। इस संयुक्त पद से पाकिस्तान की पहले से ही मजबूत सेना का असर और बढ़ गया है। यह पद मिलते ही पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की कमान भी उनके पास आ गई, जिससे वे देश के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति बन गए हैं।
पाकिस्तान में इस फैसले पर प्रतिक्रिया:
पाकिस्तान में इस फैसले पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने इस संशोधन का स्वागत किया और इसे राष्ट्रीय एकता की मिसाल बताया। उन्होंने हाल के आतंकवाद-रोधी अभियानों में सुरक्षा बलों की भूमिका की भी सराहना की। वहीं सरकार में शामिल पार्टियाँ PPP, PML-N और MQM-P ने इस संशोधन का समर्थन किया।
लेकिन विपक्षी दलों ने इसे असंवैधानिक बताते हुए आलोचना की और कहा कि इससे सेना के पास बहुत ज्यादा शक्ति चली जाएगी। PTI अध्यक्ष गौहर अली खान ने इसे “बाकू संशोधन” कहा और सरकार पर लोकतंत्र को कमजोर करने का आरोप लगाया। डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, PPP के सीनेटर रज़ा रब्बानी ने चेतावनी दी कि यह बदलाव प्रांतीय स्वायत्तता को नुकसान पहुँचा सकते हैं और 18वें संवैधानिक संशोधन के तहत दी गई कुछ शक्तियाँ वापस ली जा सकती हैं।
पाकिस्तान के इस कदम ने बढ़ाई चिंता:
पाकिस्तान के इस कदम ने कई देशों और विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है। सरकार भले ही इसे एक प्रशासनिक सुधार बता रही हो, लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इससे देश में सेना का प्रभाव और बढ़ जाएगा, जहां पहले भी नागरिक सरकारें सेना के दबाव में रही हैं। विश्लेषकों का मानना है कि राजनीतिक दखल कम करने के बजाय पाकिस्तान ने आने वाले समय के लिए अपनी रक्षा व्यवस्था एक ही व्यक्ति के हाथ में सौंप दी है।
पाकिस्तान में हुए इस संवैधानिक संशोधन पर संयुक्त राष्ट्र ने भी चिंता व्यक्त की है। यूएन मानवाधिकार एजेंसी (UNHR) के प्रमुख वोल्कर टर्क ने कहा है कि 27वां संशोधन न्यायपालिका की स्वतंत्रता और कानून-व्यवस्था बनाए रखने वाले जरूरी सिद्धांतों को कमजोर कर सकता है। हालांकि पाकिस्तान ने 30 नवंबर को यूएन की इस चिंता को गलत और आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया।
पाकिस्तान के इतिहास में कई बार लगे सैन्य तानाशाही:
पाकिस्तान के इतिहास में आज़ादी के बाद से ही कभी नागरिक सरकारों और कभी सीधे सैन्य शासन का दौर चलता रहा है। देश में कई बार जनरलों ने तख्तापलट करके सत्ता अपने हाथ में ली और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया। पाकिस्तान में सैन्य शासन के मुख्य दौर अयूब खान (1958-1969), याह्या खान (1969-1971), ज़िया-उल-हक (1977-1988) और परवेज़ मुशर्रफ़ (1999-2008) के समय रहे। इसके अलावा इस्कंदर मिर्ज़ा ने भी 1958 में एक छोटा सैन्य शासन लागू किया था।
कुल मिलाकर पाकिस्तान अपने 75 साल के इतिहास में लगभग 33 साल सैन्य शासन के अधीन रहा है। हर बार सैन्य शासन में या तो मार्शल लॉ लगाया गया या फिर एक नियंत्रित, सीमित लोकतंत्र चलाया गया। इन अवधियों ने पाकिस्तान की राजनीति, उसके लोकतांत्रिक ढाँचे, न्यायपालिका, मीडिया और मानवाधिकारों पर गहरा असर डाला और देश में सेना की भूमिका और अधिक मजबूत होती गई।
निष्कर्ष:
फील्ड मार्शल असीम मुनीर को एक साथ CDF और COAS जैसे दो सर्वोच्च सैन्य पदों का दायित्व सौंपना पाकिस्तान की रक्षा संरचना में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। यह कदम जहाँ सेना की कमान को अभूतपूर्व रूप से केंद्रीकृत करता है, वहीं आने वाले वर्षों में देश के राजनीतिक-सैन्य संबंधों, शक्ति संतुलन और संस्थागत ढाँचे पर इसके व्यापक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।
