अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले असम सरकार ने एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाया है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की अध्यक्षता में हुई विशेष कैबिनेट बैठक में छह समुदायों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने से संबंधित मंत्रियों के समूह (GoM) की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी गई। लंबे समय से अपनी मांग को लेकर विरोध कर रहे इन समुदायों के लिए यह निर्णय एक बड़ी उम्मीद लेकर आया है। अब यह रिपोर्ट मौजूदा विधानसभा सत्र में पेश की जाएगी।
ST का दर्जा पाने के लिए आंदोलन:
असम के छह समुदाय- ताई अहोम, चाय जनजाति या आदिवासी, मोरन, मोटोक, चुटिया और कोच-राजबोंगशी, जो वर्तमान में राज्य की अन्य पिछड़ा वर्ग सूची में हैं और राज्य की करीब 27% आबादी का हिस्सा हैं, लंबे समय से ST दर्जा पाने की मांग कर रहे हैं। पिछले दो महीनों में इन समुदायों के संगठन बड़े पैमाने पर प्रदर्शन कर रहे हैं, ताकि आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सरकार पर दबाव बनाया जा सके।
रिपोर्ट को अंतिम मंजूरी कैसे मिलेगी ?
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बुधवार को बताया कि सरकार छह समुदायों को ST दर्जा देने से जुड़ी GoM रिपोर्ट विधानसभा में पेश करने के लिए पूरी तरह तैयार है। इस रिपोर्ट को रानोज़ पेगू की अध्यक्षता वाली समिति ने तैयार किया है, जिसमें केशव महंत और पीयूष हजारिका भी शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि सरकार स्पीकर से अनुरोध करेगी कि इसे मौजूदा शीतकालीन सत्र जो 29 नवंबर को खत्म हो रहा है, के दौरान ही पेश किया जाए। इसके बाद रिपोर्ट को अंतिम मंजूरी के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय भेजा जाएगा।
ST दर्जा देने के लिए पहले भी हुए है प्रयास:
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इन छह समुदायों को असम की अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने का एक विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया था। लेकिन उस पर न तो चर्चा हुई और न ही इसे पास किया गया।
गृह मंत्रालय के निर्देश पर उसी वर्ष एक मंत्रियों का समूह (GoM) बनाया गया, जिसे बाद में दो बार फिर से गठित किया गया। इस समूह का काम था:
- छह समुदायों के लिए आरक्षण की मात्रा तय करना,
- नई ST श्रेणी बनने के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण में संशोधन का सुझाव देना, और
- असम की मौजूदा अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों, विशेषाधिकारों और हितों की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करना।
आइए जानते है, जनजाति क्या है?
जनजातियाँ वे समुदाय हैं जो इस भूमि के मूल निवासी माने जाते हैं और भारतीय प्रायद्वीप में सबसे पहले बसने वाले लोग थे। इन्हें आमतौर पर आदिवासी कहा जाता है, जिसका मतलब है “मूल निवासी।” प्राचीन और मध्यकालीन साहित्य में भारत में रहने वाली कई जनजातियों का उल्लेख मिलता है।
भारत में अनुसूचित जनजातियाँ (STs):
भारत में अनुसूचित जनजातियाँ ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रही हैं और सांस्कृतिक रूप से विशिष्ट रही हैं। संविधान द्वारा उन्हें मान्यता और कई कानूनी-नीतिगत सुरक्षा उपाय मिलने के बावजूद, उन्हें सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
भारतीय संविधान के अनुसूची V के तहत इन जनजातियों को ‘अनुसूचित जनजाति’ के रूप में मान्यता दी गई है। तथा संविधान के अनुच्छेद 342 के अंतर्गत निर्दिष्ट जनजातियों या जनजातीय समुदायों के रूप में परिभाषित किया गया है। ये समुदाय मुख्यतः दो भौगोलिक क्षेत्रों में रहते हैं: मध्य भारत और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र। सबसे बड़ी अनुसूचित जनजातियाँ ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में पाई जाती हैं।
अनुच्छेद 342:
अनुच्छेद 342 के अनुसार, राष्ट्रपति किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के लिए, और जहां आवश्यक हो वहां राज्य के राज्यपाल की सलाह लेकर, एक लोक अधिसूचना जारी कर उस राज्य या क्षेत्र में रहने वाली जनजातियों या उनके समूहों को अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित कर सकते हैं।
इसके बाद, संसद कानून बनाकर इस सूची में किसी जनजाति या उनके समूह को जोड़ या हटा सकती है। इसके अलावा, राष्ट्रपति की अधिसूचना में बाद में कोई बदलाव केवल संसद के विशेष अधिनियम के माध्यम से ही किया जा सकता है।
ST समुदायों की मुख्य विशेषताएँ:
- आदिम (प्राचीन) लक्षण
- भौगोलिक रूप से अलग रहना
- विशिष्ट संस्कृति और परंपराएँ
- बड़े समाज के साथ कम संपर्क
- आर्थिक रूप से पिछड़े
जनसंख्या और साक्षरता:
2011 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियाँ भारत की कुल जनसंख्या का 8.2% हैं। इनकी साक्षरता दर में भी सुधार देखा गया है। 2001 में अनुसूचित जनजातियों की साक्षरता दर 47.1% थी, जो 2011 में बढ़कर 59% हो गई, जिसमें पुरुषों की साक्षरता दर 68.5% और महिलाओं की 49.4% रही। इन समुदायों के हितों और कल्याण की निगरानी के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की स्थापना 2003 में 89वें संविधान संशोधन के तहत अनुच्छेद 338A के अंतर्गत की गई थी।
अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष पहलें:
शैक्षिक सशक्तिकरण:
- एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय: दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी बच्चों को अच्छी शिक्षा देना।
- जनजातीय स्कूलों का डिजिटल रूपांतरण: स्कूलों में डिजिटल तकनीक लागू करके शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाना।
- पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति (PMS): दूरस्थ और व्यावसायिक, तकनीकी या गैर-व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए छात्रवृत्ति।
- उच्च शिक्षा के अवसर: अनुसूचित जनजाति के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा प्रदान करना।
आर्थिक सशक्तिकरण:
- प्रधानमंत्री वन धन योजना: वन संसाधनों का उपयोग करके जनजातीय समुदाय के लिए स्थायी आजीविका बढ़ाना।
- वन बंधु कल्याण योजना: जनजातीय समुदाय की बुनियादी जरूरतों को पूरा करके उनका विकास करना।
- व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र: युवाओं को कौशल और रोजगार के लिए प्रशिक्षण देना।
सामाजिक सशक्तिकरण:
- सबसे कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) का विकास: कमजोर जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारना।
- विशेष केंद्रीय सहायता (SCA): राज्य सरकार को टीएसपी के अलावा केंद्रीय सहायता, जो आय सृजन योजनाओं जैसे कृषि, बागवानी और पशुपालन में परिवारों की मदद करती है।
निष्कर्ष:
इस निर्णय से न केवल छह समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग पूरी होने की उम्मीद जगी है, बल्कि असम में सामाजिक न्याय और समान अवसरों को मजबूत करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यदि केंद्र सरकार भी इस प्रस्ताव को मंजूरी देती है, तो यह कदम राज्य के आदिवासी समुदायों के लिए आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक लाभ सुनिश्चित करेगा और असम की विविधता और सामाजिक समरसता को और मजबूत करेगा।
