अजरबैजान

‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना..’ ये कहावत बचपन से लेकर अब तक कई बार आपके कानों में पड़ी होगी. हर बार संदर्भ और प्रसंग कुछ ना कुछ रहा ही होगा. शाब्दिक मायने पर गौर करें हमें बताया गया कि कोई दूसरों की खुशी में इतना लीन है मानो उसे अपनी खुशी समझ बैठा हो…लेकिन-लेकिन क्या आपने कभी इस अनदेखे ‘अब्दुल्ला’ की तरफ गौर फरमाया. आपने कभी सोचा कि ये ‘अब्दुल्ला’ कौन था और किस मिजाज का इंसान रहा होगा.

क्या वाकई वो आला दर्जे का फकीर था या एकदम ही नासमझ…खैर आज हम किसकी शादी और कौनसे अब्दुल्ला का जिक्र कर रहे हैं..बातों को गोलमोल ना घुमाते हुए चलिए सीधे मुद्दे पर आते हैं. दरअसल आज हम किसी शादी की नहीं बल्कि भारत और हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ रिश्तों में आई ताजा टकराहट की बात कर रहे हैं जहां बीते कुछ हफ्तों पहले दोनों पड़ोसी देश जंग के मुहाने पर आ खड़े हुए थे…लेकिन इस तनाव के माहौल में हमारे यहां एक तीसरे देश की भी चर्चा जोरों से हो रही थी.

लोग जितना गुस्सा पाकिस्तान के खिलाफ निकाल रहे थे तो उस देश के लिए भी आक्रोश जोरदार था लेकिन ऐसी क्या वजह रही कि पाकिस्तान के साथ-साथ उस देश के खिलाफ भी लोग भड़क उठे…आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह, उस देश का नाम और उसकी पूरी कहानी क्योंकि शुरू में हमनें एक कहावत के जरिए जिस ‘अबदुल्ला’ का जिक्र किया था वो भी यही है.

जी हां दोस्तों, हम बात कर रहे हैं भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान तुर्की के बाद पाकिस्तान का खुलकर साथ देने वाले देश अजरबैजान की जहां दुनिया के बड़े-बड़े देश पाकिस्तान की तरफ झुकने से बच रहे थे तब ये देश आतंक फैलाने वाले राष्ट्र को खुला समर्थन दे रहा था.

जैसा कि आप जानते हैं कि कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों ने 26 बेकसूर लोगों की नृशंस हत्या की थी जिसके बाद अपने जमीन पर पनपने वाली आतंक की नर्सरी पर पाकिस्तान की वैश्विक स्तर पर जोरदार घेराबंदी हुई. पाक ने 2-3 देशों को छोड़ खुद को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अकेला पाया..इन देशों में चीन, तुर्की, अजरबैजान जैसे देश शामिल थे.

चीन और तुर्की पर विस्तान से बात फिर किसी दिन लेकिन आज हम बात करेंगे खुद को तुर्की का छोटा भाई और पाकिस्तान का हितैषी बताने वाले अजरबैजान की, आइए जानते हैं अजरबैजान की कहानी..कि कैसे रूसी साम्राज्य के पतन के बाद 1918 में मुस्लिम देशों में वो पहला देश जहां सबसे पहले डेमोक्रेसी आई…वो देश जिसने अमेरिका से पहले अपनी महिलाओं को वोट का अधिकार दिया…तो चलिए फिर शुरू करते हैं.

दोस्तों, अज़रबैजान वास्तव में यूरोप और एशिया दोनों का हिस्सा माना जाता है, जो पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया के बीच में है. दक्षिण काकेशस में यह अंतरमहाद्वीपीय देश रूस, जॉर्जिया, आर्मेनिया, ईरान और यहां तक कि कुछ तुर्की की सीमा से लगा हुआ है. चारों ओर से भूमि से घिरा होने के बावजूद भी यह कैस्पियन सागर को भी छूता है.

आधिकारिक रिकॉर्ड के हिसाब से देखें तो इसका नाम रिपब्लिक ऑफ अज़रबैजान है. अपने भूगोल, प्राकृतिक संसाधन और तेल के बड़े भंडारों के चलते इस देश ने वैश्विक ऊर्जा के बाजार में एक अहम खिलाड़ी के रूप में अपनी जगह बनाई है.

और क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तान का साथ देने के चलते जिस देश पर हमारी आबादी का गुस्सा फूट रहा है वही देश अजरबैजान महज एक साल पहले भारत के लोगों की प्रमुख ट्रैवल डेस्टिनेशन बना हुआ था. Skyscanner’s Travel Trends 2024 की एक रिपोर्ट कहती है कि साल 2023 में इस देश की राजधानी बाकू के बारे में इंटरनेट पर 438% सर्च किया गया. खैर समय का कौन सानी है.

अजरबैजान : आग की लपटों वाला देश और पारसी धर्म की जड़ें

दोस्तों, अज़रबैजान का नाम फ़ारसी शब्दों, अज़ार (“फ़ारसी में अग्नि”) और बैजान (“रक्षक”) शब्दों के संयोजन से पड़ा है जिसका मतलब “वह जो अग्नि रखता है”। इस देश के नाम में ही सबकुछ छुपा हुआ है जैसे कैसे इसका नाम पड़ा, नाम का मतलब क्या है और नाम के मतलब में छुपा हजारों सालों पुराना इतिहास और यहां की संस्कृति की झलक और इसके साथ ही व्यापार का एक लंबा इतिहास…सबसे पहले अज़रबैजान को समझने के लिए आपको इस देश के आग के साथ पवित्र संबंध को समझना होगा जिसके प्रसंगों की यहां सालों पुरानी जड़ें हैं. हालांकि सदियों के गुजरने के दौरान साम्राज्यों और संस्कृतियों के बीच प्रभुत्व और प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा के कारण साम्राज्यों का उदय और पतन होता चला गया.

अज़रबैजान को “आग की भूमि ” या लैंड ऑफ फायर के रूप में जाना जाता है जिसकी वैसे मुख्य वजह है तेल और प्राकृतिक गैस के यहां मौजूद भंडार…13वीं शताब्दी में जब प्रसिद्ध खोजकर्ता मार्को पोलो और कई अन्य सिल्क के व्यापारी इस देश में आए तो उन्होंने यहां जमीन से उठने वाली आग की लपटों का जिक्र किया था.

मार्को पोलो ने पूर्वी काकेशस (यह काकेशस पर्वत शृंखला का वह भाग है जो रूस, जॉर्जिया, आर्मेनिया और अज़रबैजान के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ है और यह ब्लैक सी और कैस्पियन सागर के बीच बना एक पहाड़ी इलाका है) को लेकर अपने संस्मरणों में इस इलाके के प्राकृतिक “तेल के फव्वारे” और आग के बारे में बहुत कुछ लिखा था.

कहा जाता है कि बारिश हो या बर्फबारी या फिर तेज हवाएं यहां की आग नहीं बुझती है. ऐसे में जमीन की दरारों से लगातार निकलने वाली आग की लपटों के चलते ही इसे ‘लैंड ऑफ फायर’ कहते हैं और इसे आग की धरती का नाम देने की वजह रही है यहां के प्राकृतिक गैसों के भंडार.

वैसे दुनिया भर से आने वाले लोगों के लिए पहाड़ी इलाकों में जमीन से उठती ये आग रहस्यमयी है लेकिन यहां के बाशिंदे आग को पवित्रता से जोड़कर देखते रहे हैं और इसी पवित्रता में बसी थी यहां कि दुनिया के सबसे पुराने एकेश्वरवादी धर्मों में से एक, पारसी धर्म की 3,000 साल पुरानी जड़ें..जी हां, अज़रबैजानी संस्कृति और पौराणिक कथाओं में यहां आग गहराई से समाई हुई है.

जैसा कि हम जानते हैं कि पारसी धर्म में पृथ्वी, जल और अग्नि को बेहद पवित्र माना गया है इसलिए शवों को जलाने या दफनाने को लेकर पारसियों का मानना है कि मृत शरीर को जलाने से अग्नि तत्व अपवित्र हो जाता है. पारसी धर्म में अग्नि की उपस्थिति के बिना कोई भी अनुष्ठान नहीं किया जाता है.

इसलिए ही अजरबैजान में आतेशगाह मंदिर भी एक देखने लायक जगह है जहां पर्यटक अग्नि पूजा करने के लिए आते हैं. इन्हें फायर टेम्पल भी कहा जाता है. बता दें कि अतेशगाह नाम फ़ारसी से “आग का घर से आया है जो गोल गुंबद वाला एक मंदिर होता है और प्राकृतिक गैस के भंडार पर बनाया गया है. बताया जाता है कि 1969 तक यहां की वेदी पर आग की लौ नेचुरली ही जलती थी लेकिन वर्तमान में आग बाकू की मुख्य गैस आपूर्ति से जलाई जाती है.

वहीं कई अज़रबैजानी इतिहासकार और धार्मिक विद्वानों का मानना है कि यहां पारसी धर्म के पनपने के कई कारण रहे हैं. सिल्क रोड के साथ अज़रबैजान की रणनीतिक स्थिति ने पारसी व्यापारियों के लिए स्थानीय आबादी के साथ तालमेल बनाना आसान बनाया. इसके अलावा, ईरान की तरह, जहां पारसी धर्म की उत्पत्ति हुई, अज़रबैजान में भी प्राकृतिक गैस के अथाह भंडार सालों से मौजूद थे जिससे पारसी लोगों ने अपनी संस्कृति के बीज यहां की जमीन में बोए.

आपको जानकर हैरानी होगी कि वर्तमान में अज़रबैजान के ज़्यादातर लोग मुसलमान हैं लेकिन पारसी मान्यताएं, रीति-रिवाज़ और परंपराएं आज भी यहां की समकालीन संस्कृति में वैसे ही मौजूद है..यहां हर साल वसंत के आगमन का जश्न अज़रबैजान नौरोज़ (फ़ारसी नया साल) के रूप में मनाया जाता है.


आइए अब थोड़ा जियोग्राफिकली समझ लेते हैं कि अजरबैजान कहां है. दोस्तों, अजरबैजान दो महाद्वीपों में फैला देश है जिसके एक तरफ पूर्वी यूरोप और दूसरी तरफ पश्चिमी एशिया की सीमा लगती है. वहीं इसके एक तरफ कैस्पियन सागर और दूसरी तरफ काकेशस पर्वतमाला है जिसके बीच में यह छोटा सा देश बसा है. क्या आप जानते हैं कि अजरबैजान देश हमारे अपने देश के पश्चिम बंगाल राज्य से भी छोटा है.

काकेशस पर्वत एक ऊंची और उबड़-खाबड़ पहाड़ी श्रृंखला है जो कैस्पियन सागर और ब्लैक सी के किनारों पर खत्म होती है. इसी श्रृंखला के कैस्पियन सागर वाले छोर पर अज़रबैजान नाम का यह देश है. इस देश को पहाड़ चारों तरफ से घेरे हुए हैं और कुरा नदी देश के बीच के मैदानों और दक्षिण-पूर्वी नीचे के इलाकों से होकर बहती है जिसके चलते मध्य अज़रबैजान में खेती के लिए सबसे ज्यादा उपजाऊ जमीन पाई जाती है.

जैसा कि हमनें आपको बताया कि अज़रबैजान की सीमाएं पहाड़ी हैं लेकिन फिर भी इसे कई सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. बता दें कि इसके लगभग 13% क्षेत्र पर नागोर्नो-करबाख का कब्जा है जो कि एक अलग गणराज्य है और पड़ोसी देश आर्मेनिया से जुड़ा है. पिछले दो दशकों से इन दोनों देशों के बीच शांति वार्ता चल रही है लेकिन फिर भी हाल के सालों में अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच तनाव लगातार बढ़ा है.

अज़रबैजान का 6% क्षेत्र नखचिवन नाम के एक अलग हिस्से में है जो कि खेती और खनिजों से समृद्ध इलाका है लेकिन पहाड़ी अर्मेनियाई क्षेत्र की वजह से मुख्य अज़रबैजान से यह कटा हुआ है. वहीं मौजूदा संघर्ष के कारण नखचिवन और आसपास के इलाकों में आवागमन बंद सा है. सालों से अर्मेनियाई राष्ट्रवादियों का कहना है कि नखचिवन ऐतिहासिक आर्मेनिया का हिस्सा है और इसे किसी भी हाल में वापस लेना चाहिए लेकिन पेंच यहां फंसा हुआ है कि नखचिवन की 99% से ज्यादा आबादी अज़रबैजानी है और ये संघर्ष लगातार जारी है.

वहीं इस देश की राजधानी बाकू की बात करें तो यह समुद्र तल से नीचे विश्व की सबसे निचली राजधानी है जो समुद्र तल से 92 मीटर नीचे है. बाकू शहर को वहां बहने वाली तेज हवाओं के कारण ‘हवाओं का शहर’ भी कहा जाता है. बाकू देश के पूर्वी हिस्से में है और अबशेरोन प्रायद्वीप पर बनी है. बाकू और इसके आसपास के इलाके में 23 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं जो देश की कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा है.


आइए अब एक नजर डालते हैं भारत और अजरबैजान के रिश्तों पर कि आखिर कितने पुराने हैं दोनों देशों के बीच रिश्ते और क्या भारत से मजबूत है अजरबैजान?

दोस्तों, भारत-अजरबैजान के संबंधों की जड़ें काफी पुरानी है. 1991 में जब अजरबैजान सोवियत संघ का हिस्सा था तब से इसके साथ भारत के संबंध अच्छे रहे हैं जहां उस समय देश के पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू और रविंद्रनाथ टैगोर जैसे नेताओं ने अजरबैजान की यात्रा कर इस संबंध के धागे को और मजबूत किया था. वहीं भारत ने बाकू में अपना मिशन मार्च 1999 में खोला था जो कि दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था. इसके बाद ही दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती मिली.

अगर हम दोनों देशों के बीच व्यापार की बात करें तो भारतीय दूतावास के मुताबिक दोनों देशों के बीच 2023 में 1.435 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था जो कि साल 2005 में केवल 5 करोड़ अमेरिकी डॉलर था. आपको बता दें दोस्तों कि भारत अजरबैजान का सातवां सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है जहां भारत अजरबैजान को चावल, मोबाइल फोन, एल्युमिनियम ऑक्साइड, दवाएं, स्मार्टफोन, टाइल्स, ग्रेनाइट, मशीनरी जैसे सामान निर्यात भी करता है. वहीं भारत की बात करें तो हमारे देश ने 2023 में अजरबैजान से 955 मिलियन डॉलर का कच्चा तेल खरीदा था और करीब 43 मिलियन डॉलर का चावल निर्यात भी किया था.

आइए अब बात करते हैं पर्यटन की…तो भारतीय दूतावास के मुताबिक 2023 में 1 लाख 15 हजार से अधिक भारतीयों ने अजरबैजान की यात्रा की थी जो कि 2022 के मुकाबले में करीब-करीब दोगुना थी. वहीं अजरबैजान के टूरिज्म बोर्ड के मुताबिक 2024 में 2 लाख 43 हजार 589 भारतीय पर्यटक आए थे. क्या आपको पता है कि अगर पड़ोसी देशों को छोड़ दें तो अजरबैजान जाने वाले पर्यटकों में भारतीयों की संख्या सबसे ज्यादा है. इसके अलावा पिछले कुछ सालों में कम से कम 30 भारतीय फिल्मों और विज्ञापनों की शूटिंग भी अजरबैजान की अलग-अलग लोकेशन पर हुई है.

वहीं अगर दोनों देशों की सैन्य ताकत, जीडीपी और अर्थव्यवस्था की बात करें तो साफ है कि अजरबैजान भारत के आगे कहीं भी नहीं टिकता है. आपको बता दें कि दोस्तों कि विश्व बैंक और अन्य आर्थिक स्रोतों के मुताबिक, 2022 में अजरबैजान की जीडीपी 78.7 बिलियन डॉलर थी क्योंकि देश की मुख्य इकॉनोमी तेल-गैस निर्यात और पर्यटन पर टिकी है.

इसके अलावा अगर हम फौजी ताकत की बात करें तो ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स 2025 के मुताबिक, भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है जबकि अजरबैजान 59वें स्थान पर है. तो आप समझ सकते हैं कि सैन्य ताकत के मुकाबले में भारत से अजरबैजान का दूर-दूर तक कोई मुकाबला नहीं है.

वहीं 2024 में जहां भारत का डिफेंस बजट 81.4 बिलियन डॉलर था वहीं अजरबैजान की सेना का बजट भारत की सेना के बजट की तुलना में बहुत छोटा था जो कि महज 3.7 बिलियन डॉलर था. वहीं इस देश के पास कोई भी परमाणु हथियार भी नहीं है क्योंकि अजरबैजान की सेना तुर्की और इजराइल के हथियारों पर निर्भर है.

आखिर में दोस्तों मैं ये कहना चाहूंगा कि वर्तमान में जो घटनाक्रम हुआ उसने अजरबैजान की कूटनीति स्थिति पर सवालिया निशान लगाए हैं और भारत के बहिष्कार के खतरे में डाल दिया है. हालांकि तुर्की और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ इस देश के घनिष्ठ संबंध है लेकिन यह वैश्विक मंच पर अपना सीमित प्रभाव रखता है जिसके चलते भारत जैसे देश के साथ इस जेश को व्यापारिक संबंध और कूटनीतिक संबंध बनाकर चलना जरूरी है. अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच के संबंध किस मोड़ पर जाते हैं क्योंकि भारत का स्टैंड एकदम साफ है कि जो आतंकवाद के साथ खड़ा है उसके साथ ना तो ट्रेड होगा और ना ही टॉक.