देशभर में जीएम-फूड की बिक्री-आयात पर रोक: हाईकोर्ट ने कहा- भोजन मानसिक और चेतनात्मक विकास का आधार, छह महीने के भीतर नियम बनाने का आदेश..

राजस्थान उच्च न्यायालय ने भारत में जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) खाद्य पदार्थों को लेकर सख्त कदम उठाया है। अदालत ने FSSAI और केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वे GM खाद्य पदार्थों की बिक्री, निर्माण, वितरण या आयात से पहले व्यापक सुरक्षा मानक और नियामक तंत्र स्थापित करें।

यह आदेश उस याचिका के आधार पर दिया गया, जिसमें GM खाद्य उत्पादों की निगरानी के लिए आवश्यक नियमों की कमी और इससे जनता के स्वास्थ्य पर संभावित खतरे को उजागर किया गया था।

Ban on sale and import of GM food across the country

GM फसलें क्या हैं?

आनुवंशिक रूप से परिवर्तित (Genetically Modified – GM) फसलें वे पौधे हैं जिनके डीएनए (DNA) को आनुवंशिक अभियांत्रिकी (Genetic Engineering) तकनीकों द्वारा संशोधित किया जाता है। ताकि इनमे कीट प्रतिरोधी, जहर सहिष्णु या पोषण बढ़ाने जैसी खासियत विकसित की जा सके। अमेरिका, ब्राज़ील और कनाडा जैसे देशों में GM फसलें बड़े पैमाने पर उगाई जाती है, जबकि भारत में केवल Bt Cotton को ही स्वीकृति प्राप्त है।

GM फसलों के उदाहरण है:

  • Bt कपास (Bt Cotton)
  • गोल्डन राइस (Golden Rice)
  • GM मक्का और सोयाबीन (GM Maize & Soybean)
  • GM बैंगन (Bt Brinjal)

 

GM फसलों के लाभ:

  • ज्यादा उत्पादन और कम फसल नुकसान।
  • कीटनाशकों का कम उपयोग।
  • मिट्टी और पानी में कम प्रदूषण।
  • ज्यादा पोषक तत्व वाली फसलें।
  • सूखा और तापमान जैसी कठिन परिस्थितियों में टिकाऊ।

 

GM फसलों के नुकसान:

  • पर्यावरण और जैव विविधता पर असर।
  • स्वास्थ्य पर संभावित जोखिम।
  • कीटों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने की संभावना।
  • किसानों की बड़ी कंपनियों पर निर्भरता और पेटेंट विवाद।

 

दायर याचिका में क्या कहा गया?

कृतेश ओसवाल, अभय सिंगला और दीपेश ओसवाल द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि FSSA की धारा 22 के बावजूद, आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) घटकों वाले खाद्य तेल बिना उचित जांच और निगरानी के भारतीय बाजार में आ रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि सही प्रमाणीकरण या परीक्षण के बिना यह तय करना मुश्किल है कि इन आयातित उत्पादों में GM जीव या कोशिकाएँ मौजूद हैं या नहीं।

 

अदालत ने क्या आदेश दिया?

अदालत ने आदेश दिया कि किसी भी GM खाद्य पदार्थ या उसके आयात को तब तक अनुमति नहीं दी जाएगी जब तक वह निर्यातक देश द्वारा ‘GM मुक्त’ प्रमाणित और लेबल नहीं किया गया हो। अदालत ने सीमा शुल्क और बंदरगाह अधिकारियों को इन नियमों का कड़ाई से पालन करने का निर्देश भी दिया।

न्यायालय ने कहा कि GM खाद्य पदार्थों को भारतीय घरों तक पहुँचने से पहले गहन कानूनी और सुरक्षा जांच से गुजरना जरूरी है और प्रमाणन या परीक्षण की कमी से संभावित स्वास्थ्य जोखिम हो सकते हैं।

 

भोजन मानसिक और चेतनात्मक विकास का आधार: अदालत

अदालत ने कहा कि भोजन सिर्फ शरीर को पोषण देने का साधन नहीं है, बल्कि यह मन और चेतना के विकास का भी आधार है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण भोजन का अधिकार, जीवन के अधिकार का हिस्सा है। इसलिए भोजन की गुणवत्ता और सुरक्षा सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है।

 

छह महीने के अंदर नियम तैयार करने के आदेश:

राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ, जिसमें कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा और न्यायमूर्ति संजीत पुरोहित शामिल हैं, ने FSSAI और जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) को आदेश दिया है कि वे अगले छह महीनों में खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (2006) के तहत GM खाद्य पदार्थों के लिए नियम तैयार करें। इस दौरान किसी भी GM खाद्य पदार्थ की बिक्री, निर्माण या आयात की अनुमति नहीं दी जाएगी।

 

खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (2006) के बारे में:

खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006, भारतीय संसद द्वारा पारित एक कानून है जिसे 23 अगस्त, 2006 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली। इसका उद्देश्य भारत में खाद्य से जुड़े सभी कानूनों को एकत्रित करना, विज्ञान आधारित खाद्य मानक तय करना और खाद्य पदार्थों के निर्माण, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात को नियंत्रित करना है। ताकि लोगों को सुरक्षित और स्वास्थ्यप्रद खाद्य पदार्थ उपलब्ध हो सकें।

इसके तहत 2008 में  भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) की स्थापना की गई, लेकिन इसके नियमों और प्रमुख विनियमों को अधिसूचित किये जाने के  उपरांत वर्ष 2011 में खाद्य प्राधिकरण का कार्य प्रभावी ढंग से शुरू हुआ।

 

FSSAI के कार्य:

  • खाद्य सुरक्षा मानक और नियम तय करना।
  • खाद्य व्यवसायों को लाइसेंस और प्रमाणन देना।
  • प्रयोगशालाओं के लिए प्रक्रिया और दिशा-निर्देश बनाना।
  • सरकार को नीति निर्माण में सलाह देना।
  • खाद्य उत्पादों में संदूषण की जानकारी इकट्ठा करना और चेतावनी देना।
  • देशभर में खाद्य सुरक्षा सूचना नेटवर्क बनाना।
  • जनता में खाद्य सुरक्षा और मानकों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।

 

निष्कर्ष:

राजस्थान उच्च न्यायालय का यह निर्णय देश में खाद्य सुरक्षा से जुड़े मानकों को और अधिक मजबूत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल जनस्वास्थ्य की रक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि वैज्ञानिक परीक्षण और नियामक पारदर्शिता को भी प्रोत्साहित करेगा। जीएम खाद्य पदार्थों के संबंध में कठोर मानदंड तय होने से उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ेगा और भारत में सुरक्षित, स्वस्थ एवं जिम्मेदार खाद्य प्रणाली के विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।

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