आज के डिजिटल दौर में सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप्स जितने सुविधाजनक बन चुके हैं, उतने ही जटिल हो गए हैं डेटा और साइबर सुरक्षा के नज़रिये से। WhatsApp, Telegram, Facebook और अन्य ऐप्स के माध्यम से भले ही दुनिया भर में लोग रियल टाइम संवाद कर पा रहे हों, लेकिन हर देश की सरकार अब इस बात को लेकर चिंतित है कि इन ऐप्स के ज़रिये संवेदनशील सरकारी जानकारी कहीं लीक न हो जाए या विदेशी ताकतें साइबर हमले न कर सकें।
इसी चिंता ने अब एक बड़ा रूप ले लिया है — जब हाल ही में अमेरिका की संसद (US Congress) ने WhatsApp को सभी सरकारी डिवाइसों पर प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया है। इस फैसले के पीछे प्रमुख कारण डेटा सुरक्षा में संभावित सेंध, एन्क्रिप्शन तकनीक की अपारदर्शिता, और फॉरेन इंटेलिजेंस के हस्तक्षेप की आशंका को बताया गया है।
यह कदम उस समय और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब हम देखें कि ईरान जैसे देशों ने भी हाल ही में WhatsApp जैसे प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाए हैं। इन देशों का तर्क है कि इन ऐप्स के सर्वर विदेशी जमीन पर स्थित हैं और इनके ज़रिये साइबर जासूसी, सोशल इंजीनियरिंग, और राजनीतिक अस्थिरता फैलाने की कोशिशें हो सकती हैं।
WhatsApp पर प्रतिबंध को लेकर ईरान और अमेरिका की चिंता: क्या है पीछे की असल वजह?
ईरान और अमेरिका जैसे दो विचारधारात्मक रूप से अलग देशों का एक ऐप पर सख्त रुख अपनाना यह बताता है कि डेटा सुरक्षा अब वैश्विक राजनीति और रणनीति का हिस्सा बन चुकी है। दोनों देशों ने WhatsApp पर जो आरोप लगाए हैं, वे अलग-अलग ज़रूर हैं, लेकिन उद्देश्य एक ही है — राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करना।
ईरान की बात करें तो वहां की सरकारी टेलीविजन और साइबर एजेंसियों ने हाल ही में लोगों से अपील की कि वे अपने स्मार्टफोन से WhatsApp को तुरंत हटा दें। ईरान का आरोप है कि यह ऐप यूजर्स का पर्सनल डेटा इकट्ठा कर उसे इज़रायल तक पहुंचा रहा है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है। कहा गया कि WhatsApp का डेटा ट्रैकिंग सिस्टम इतनी बारीकी से काम करता है कि यूजर्स की गतिविधियों पर गुप्त निगरानी भी रखी जा सकती है। हालांकि, WhatsApp ने इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए दावा किया कि उसकी सेवाएं एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन पर आधारित हैं और किसी तीसरे पक्ष के पास मैसेज पढ़ने की क्षमता नहीं है।
दूसरी ओर, अमेरिका की संसद (यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स) ने एक आंतरिक मेमो जारी करते हुए WhatsApp को “उच्च जोखिम वाला ऐप” (High-Risk Application) बताया है। House Cybersecurity Office ने यह कहा कि WhatsApp न केवल डेटा संग्रहण में पारदर्शिता की कमी दिखाता है, बल्कि इसमें स्टोर किए गए डेटा का भी एन्क्रिप्शन नहीं है। इससे न केवल साइबर हमलों का खतरा बढ़ता है, बल्कि संवेदनशील सरकारी संवाद भी लीक हो सकते हैं।
मेमो के अनुसार, संसद के स्टाफ को सभी सरकारी उपकरणों — मोबाइल, कंप्यूटर और ब्राउज़र — से WhatsApp हटाने के निर्देश दिए गए हैं। अगर किसी डिवाइस में यह ऐप पाया गया, तो संबंधित कर्मचारी से संपर्क कर उसे हटाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इसके विकल्प के तौर पर सरकार ने कुछ सुरक्षित मैसेजिंग ऐप्स की सूची भी जारी की है, जिनमें शामिल हैं: Signal, Microsoft Teams, Wickr, Apple iMessage और FaceTime।
अमेरिका ने यह भी हिदायत दी है कि सभी स्टाफ फिशिंग अटैक्स और अज्ञात नंबरों से आए मैसेज से सतर्क रहें, क्योंकि ऐसे प्रयास डेटा चोरी और साइबर हमले के सामान्य रास्ते बन चुके हैं।
तो क्या अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं करते किसी भी आधुनिक गैजेट्स का इस्तेमाल?
दुनिया के सबसे ताकतवर पदों में शुमार अमेरिकी राष्ट्रपति की छवि अक्सर ग्लैमर, अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी और सबसे उन्नत सुरक्षा व्यवस्था से जुड़ी होती है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि जिस इंसान के पास न्यूक्लियर कोड्स की एक्सेस होती है, वह अपने स्मार्टफोन या अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का उपयोग नहीं कर सकता! दरअसल, आधुनिक डिजिटल युग में जहां हर चीज एक “स्मार्ट डिवाइस” बन गई है, वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति को जानबूझकर इन उपकरणों से दूर रखा जाता है—और इसके पीछे एक बेहद गंभीर सुरक्षा कारण होता है।
राष्ट्रपति और डिजिटल दूरी
जब भी अमेरिकी राष्ट्रपति किसी से बात करते हैं, वे किसी सामान्य फोन लाइन का उपयोग नहीं करते। उनकी हर बातचीत सुरक्षित एन्क्रिप्टेड कम्युनिकेशन चैनल के ज़रिए होती है। यहां तक कि उनके स्मार्टफोन को भी विशेष साइबर सुरक्षा उपायों के साथ कस्टमाइज़ किया जाता है — ताकि किसी प्रकार की डेटा चोरी, रिमोट एक्सेस, या साइबर हमला न हो सके।
तकनीकी स्वतंत्रता नहीं, सुरक्षा पहली प्राथमिकता
यह कोई तकनीकी अक्षमता नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति खुद से सोशल मीडिया पोस्ट नहीं कर सकते, या टैबलेट का उपयोग नहीं करते। बल्कि यह कदम साइबर सुरक्षा के कड़े प्रोटोकॉल के तहत लिया जाता है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का मानना है कि यदि राष्ट्रपति का कोई डिवाइस हैक हो गया, तो इसके ज़रिए न केवल उनकी व्यक्तिगत जानकारी लीक हो सकती है, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा, सामरिक योजनाएं और विदेश नीति तक जोखिम में आ सकती है।
एसे में एक बार फिर अमेरिका की संसद (यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स) ने एक आंतरिक मेमो जारी करते हुए WhatsApp को “उच्च जोखिम वाला ऐप” बताया है। और इसे सरकारी डिवाइसों पर प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया है। आइए जानते है – क्या संभव है वॉट्सऐप के ज़रिए जासूसी?
हालांकि WhatsApp की ओर से यह साफ-साफ कहा गया है कि उसकी सेवाएं पूरी तरह से एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड हैं और यूजर डेटा किसी के साथ साझा नहीं किया जाता, लेकिन तकनीकी विशेषज्ञ इस दावे को पूरी तरह से अपराजेय नहीं मानते। एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन का अर्थ है कि संदेश भेजने वाला और प्राप्त करने वाला ही उसे पढ़ सकता है, बीच में कोई तीसरा—even WhatsApp खुद भी—उन संदेशों को नहीं पढ़ सकता। इसके बावजूद कुछ बेहद परिष्कृत साइबर तकनीकों के ज़रिए जासूसी की संभावना पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता।
- Zero-Day Exploits: सबसे खतरनाक रास्ता
एक ज़ीरो-डे एक्सप्लॉइट (Zero-Day Exploit) एक ऐसा साइबर हमला होता है जो उस सॉफ्टवेयर की किसी कमजोर कड़ी का फायदा उठाता है जिसे डेवलपर्स ने अभी तक खोजा या ठीक नहीं किया होता। यह हमला इतनी गोपनीयता और तेजी से होता है कि ऐप या यूजर को पता भी नहीं चलता और हमला सफल हो जाता है।
2019 में इज़राइली साइबर फर्म NSO Group पर आरोप लगा था कि उन्होंने WhatsApp के ज़रिए पेगासस स्पाइवेयर को यूज़र्स के फोन में इंस्टॉल किया था। यह स्पाइवेयर बिना यूजर की जानकारी के उसके कैमरा, माइक्रोफोन, चैट, ईमेल, लोकेशन और फोन कॉल तक को एक्सेस कर सकता था। इस कांड के बाद WhatsApp ने NSO Group पर मुकदमा भी किया था।
- सोशल इंजीनियरिंग और फिशिंग अटैक
जासूसी का दूसरा रास्ता तकनीकी से अधिक मनोवैज्ञानिक होता है, जिसे सोशल इंजीनियरिंग कहा जाता है। इसके तहत किसी व्यक्ति को झांसे में लेकर लिंक पर क्लिक करवाया जाता है या गलत ऐप इंस्टॉल करवाई जाती है, जिससे उसकी जानकारियाँ चोरी हो जाती हैं। ये लिंक अक्सर WhatsApp जैसे भरोसेमंद प्लेटफॉर्म के जरिए ही भेजे जाते हैं।
फिशिंग अटैक में यूजर को ऐसा मैसेज भेजा जाता है जो किसी सरकारी एजेंसी, बैंक, या पर्सनल कॉन्टैक्ट की तरह दिखता है। जब यूजर उस लिंक या अटैचमेंट को खोलता है, तब डिवाइस में मैलवेयर घुस जाता है और फोन की निगरानी शुरू हो जाती है।
- बैकअप डेटा की सुरक्षा का सवाल
एक और बड़ा खतरा WhatsApp चैट बैकअप्स को लेकर है। कई बार लोग अपनी चैट का बैकअप Google Drive या iCloud पर सेव करते हैं। ये बैकअप एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन से सुरक्षित नहीं होते (जब तक यूजर इसे मैनुअली ऑन न करे)। इससे इन बैकअप को हैक करके संवेदनशील डेटा निकाला जा सकता है।
- सरकारी निगरानी और मेटाडेटा की भूमिका
भले ही WhatsApp मैसेज को न पढ़ पाए, लेकिन वह मेटाडेटा जैसे — कौन किससे कब बात कर रहा है, कितनी बार, कितनी देर तक — यह सब जानकारी रखता है। और कई देशों में सरकारी एजेंसियाँ राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इन मेटाडेटा को कानूनी प्रक्रिया के तहत एक्सेस कर सकती हैं।