बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की शीर्ष नेता और देश की पहली महिला प्रधानमंत्री खालिदा जिया का मंगलवार, 30 दिसंबर को सुबह छह बजे राजधानी ढाका में निधन हो गया। 80 वर्षीय खालिदा पिछले लगभग तीन सप्ताह से वेंटिलेटर सपोर्ट पर थीं और ढाका के एवरकेयर हॉस्पिटल में उनका इलाज चल रहा था।
उनके परिवार के सदस्यों और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने इस दुखद खबर की पुष्टि की है। खालिदा जिया ने 1991 से 1996 तक और फिर 2001 से 2006 तक दो कार्यकाल में बांग्लादेश का नेतृत्व किया था। वे पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान की पत्नी थीं।
लंबी बीमारी से जूझती रहीं
खालिदा जिया लंबे समय से कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही थीं। उन्हें हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, यकृत और गुर्दे की बीमारी, गठिया तथा आंखों से संबंधित परेशानियां थीं। विशेष रूप से छाती और फेफड़ों में बार-बार संक्रमण होना उनके लिए चिंता का विषय बना हुआ था।
उन्हें 23 नवंबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इसके बाद जब उनकी तबीयत गंभीर होती गई, तो उन्हें आईसीयू में स्थानांतरित कर दिया गया। 11 दिसंबर से उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। विदेश से आए चिकित्सकों की विशेषज्ञ टीम लगातार उनका उपचार कर रही थी।
खालिदा के बेटे तारिक रहमान ने 25 और 27 दिसंबर को अस्पताल में अपनी मां से मुलाकात की थी। तारिक 17 वर्षों के निर्वासन के बाद हाल ही में लंदन से बांग्लादेश लौटे हैं।
जीवन परिचय और राजनीतिक यात्रा
खालिदा जिया का जन्म 15 अगस्त 1945 को भारत के जलपाईगुड़ी में हुआ था। उनके पिता इस्कंदर मजूमदार व्यवसायी थे और माता तैयबा मजूमदार गृहिणी थीं। परिवार में उन्हें प्यार से ‘पुतुल’ कहकर बुलाया जाता था।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिनाजपुर मिशनरी स्कूल से प्राप्त की और 1960 में दिनाजपुर गर्ल्स स्कूल से मैट्रिकुलेशन पूरा किया। उसी वर्ष उनका विवाह एक सैनिक अधिकारी जियाउर रहमान से हुआ। उस समय किसी को अनुमान नहीं था कि यह साधारण गृहिणी एक दिन देश की सबसे शक्तिशाली राजनीतिक नेता बनेंगी।
1971 का संघर्ष और कैद
1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान खालिदा जिया को पाकिस्तानी सेना ने हिरासत में ले लिया था। जुलाई से दिसंबर तक वे पाकिस्तानी सैनिकों की कैद में रहीं। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की पराजय के बाद उन्हें मुक्त किया गया।
उनके पति जियाउर रहमान बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख योद्धाओं में से एक थे। उन्होंने रेडियो पर स्वतंत्र बांग्लादेश की घोषणा की थी। युद्ध समाप्ति के बाद वे सेना में वापस लौटे और धीरे-धीरे देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे।
पति की हत्या और राजनीति में प्रवेश
1975 में शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार की हत्या के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू हुआ। इस उथल-पुथल के बीच जियाउर रहमान 1977 में देश के राष्ट्रपति बने। उन्होंने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की स्थापना की।
लेकिन 30 मई 1981 को चटगांव में सैन्य विद्रोह के दौरान जियाउर रहमान की गोलीबारी में हत्या कर दी गई। पति की मृत्यु के बाद BNP बिखरने लगी। पार्टी के नेताओं ने खालिदा से नेतृत्व संभालने का आग्रह किया। शुरुआत में वे राजनीति में आने को तैयार नहीं थीं, लेकिन अंततः 1984 में उन्होंने पार्टी की कमान संभाली।
1984 में वे BNP की उपाध्यक्ष बनीं और बाद में पार्टी की अध्यक्ष चुनी गईं। उनके नेतृत्व में पार्टी ने तानाशाही शासन के विरुद्ध मजबूत आंदोलन चलाया।
प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल
1991 में बांग्लादेश में वास्तविक लोकतांत्रिक चुनाव हुए और खालिदा जिया की BNP ने जीत हासिल की। वे बांग्लादेश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं। उनका पहला कार्यकाल 1996 तक चला।
1996 में उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी, लेकिन 2001 के चुनावों में पुनः विजय प्राप्त कर वे दूसरी बार प्रधानमंत्री बनीं। यह कार्यकाल 2006 तक रहा। दोनों कार्यकालों में उन्होंने देश के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।
भारत के साथ संबंध
भारत के साथ खालिदा जिया के संबंध अधिकतर समय तनावपूर्ण रहे। वे बार-बार कहती थीं कि बांग्लादेश की संप्रभुता और सुरक्षा सर्वोपरि है।
प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने भारत को बांग्लादेश की भूमि से होकर ट्रांजिट सुविधा देने का विरोध किया। भारत पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंचने के लिए यह मार्ग चाहता था। उनका तर्क था कि इससे बांग्लादेश की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होगा। उन्होंने भारतीय वाहनों को बिना टोल शुल्क के बांग्लादेशी सड़कों पर चलने की अनुमति देने का भी विरोध किया।
उन्होंने 1972 की भारत-बांग्लादेश मैत्री संधि को आगे बढ़ाने में भी आपत्ति जताई। उनका मानना था कि यह संधि बांग्लादेश को कमजोर बनाती है। 2018 की एक रैली में उन्होंने कहा था कि बांग्लादेश को ‘भारत का प्रांत’ नहीं बनने दिया जाएगा।
फरक्का बांध मुद्दे पर भी उन्होंने भारत की आलोचना की और आरोप लगाया कि इससे बांग्लादेश को गंगा का जल कम प्राप्त हो रहा है। एक अवसर पर उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने जानबूझकर पानी छोड़कर बांग्लादेश में बाढ़ की स्थिति को और गंभीर बना दिया।
हालांकि, खालिदा जिया पूरी तरह भारत-विरोधी नहीं थीं। वे द्विपक्षीय लाभ में विश्वास करती थीं। उनका कहना था कि यदि बांग्लादेश भारत को कोई सुविधा देता है, तो बदले में उसे भी लाभ मिलना चाहिए। उदाहरण के लिए, वे कहती थीं कि ट्रांजिट से पहले तीस्ता नदी जल समझौता होना चाहिए।
2012 के बाद भारत के साथ उनके संबंधों में कुछ सुधार देखा गया। दिल्ली दौरे के दौरान उन्होंने आश्वासन दिया कि भविष्य की BNP सरकारें भारत-विरोधी आतंकवादी गतिविधियों को बांग्लादेश की भूमि से संचालित नहीं होने देंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी उनकी कई मुलाकातें हुईं। 2015 में मोदी ने ढाका दौरे के दौरान उनसे भेंट की थी।
चीन के साथ निकटता
भारत से दूरी बनाए रखते हुए खालिदा जिया ने चीन के साथ संबंध मजबूत किए। 2002 में उनके कार्यकाल में बांग्लादेश ने चीन से टैंक और युद्धपोत खरीदे। इससे भारत की चिंताएं बढ़ीं। भारत ने आरोप लगाया कि BNP सरकार पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादी समूहों को शरण दे रही है।
शेख हसीना के साथ प्रतिद्वंद्विता
बांग्लादेश की राजनीति दशकों तक दो नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही – शेख हसीना और खालिदा जिया। 1980 के दशक में सैन्य शासन के विरुद्ध दोनों ने मिलकर आंदोलन किया।
1990 में तानाशाह इरशाद की विदाई के बाद लोकतंत्र लौटा। 1991 में खालिदा जिया की चुनावी जीत के बाद दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता तीव्र हो गई। उसके बाद जब भी चुनाव हुए, सत्ता या तो खालिदा के पास गई या हसीना के पास। मीडिया इसे ‘दो बेगमों की लड़ाई’ कहता था।
भ्रष्टाचार मामला और कारावास
8 फरवरी 2018 को ढाका की विशेष अदालत ने खालिदा जिया को जिया अनाथालय ट्रस्ट के नाम पर सरकारी धन के गबन के आरोप में पांच वर्ष की सजा सुनाई। उनके बेटे तारिक और अन्य पांच आरोपियों को दस वर्ष की कठोर सजा मिली।
खालिदा ने हाईकोर्ट में अपील की। 30 अक्टूबर 2018 को कोर्ट ने उनकी सजा बढ़ाकर दस वर्ष कर दी। इसके बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की।
शेख हसीना के पतन के एक दिन बाद 6 अगस्त 2024 को खालिदा को रिहा कर दिया गया। इसके बाद वे बेहतर उपचार के लिए लंदन चली गईं। चार महीने वहां रहने के बाद वे 6 दिसंबर को देश लौटीं।
अंतिम दिन और चुनावी नामांकन
29 दिसंबर, सोमवार को दोपहर तीन बजे BNP के वरिष्ठ नेताओं ने बोगुरा-7 सीट से खालिदा का चुनावी नामांकन दाखिल किया। उस समय वे वेंटिलेटर पर थीं और उनकी हालत अत्यंत नाजुक थी।
बोगुरा-7 सीट BNP के लिए विशेष महत्व रखती है क्योंकि यह पार्टी संस्थापक जियाउर रहमान का गृह क्षेत्र था। खालिदा ने 1991, 1996 और 2001 में इसी सीट से जीत दर्ज की थी।
राष्ट्रीय शोक और श्रद्धांजलि
अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने तीन दिन के राष्ट्रीय शोक और नमाज-ए-जनाजा वाले दिन सरकारी अवकाश की घोषणा की। उन्होंने कहा कि तानाशाही और फासीवादी विचारधारा के विरुद्ध खालिदा जिया का नेतृत्व अडिग रहा।
बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शाहाबुद्दीन ने कहा कि खालिदा जिया का निधन देश के लिए अपूरणीय क्षति है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शोक व्यक्त किया और कहा कि देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में उनका योगदान अविस्मरणीय रहेगा।
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी संवेदना जताई। उन्होंने कहा कि खालिदा जिया के निधन से बांग्लादेश की राजनीति में बड़ा शून्य उत्पन्न हो गया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी दुख व्यक्त किया।
अंतिम संस्कार की तैयारियां
खालिदा जिया को ढाका के संसद भवन क्षेत्र में स्थित जिया गार्डन में दफनाने की तैयारी की जा रही है। उन्हें अपने पति और पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान की कब्र के पास ही सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा।
BNP ने सात दिनों के शोक की घोषणा की है। इस दौरान पार्टी के सभी कार्यालयों में काले झंडे फहराए जाएंगे और नेता-कार्यकर्ता काले बैज पहनेंगे।
खेल आयोजन स्थगित
खालिदा जिया के सम्मान में बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड ने बांग्लादेश प्रीमियर लीग के मंगलवार के सभी मैच स्थगित कर दिए। बांग्लादेश फुटबॉल फेडरेशन ने भी सभी फुटबॉल मुकाबले टाल दिए। कबड्डी फेडरेशन ने भी राष्ट्रीय चैंपियनशिप के सेमीफाइनल स्थगित कर दिए।
राजनीतिक विरासत और प्रभाव
खालिदा जिया का राजनीतिक जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा। 1971 के मुक्ति संग्राम में कैद से लेकर देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने तक का उनका सफर प्रेरणादायक रहा। 2015 में ढाका मेयर चुनाव के दौरान उनके काफिले पर गोलीबारी और पथराव भी हुआ था, जिसमें वे बाल-बाल बचीं।
उनके निधन के बाद BNP की पूरी जिम्मेदारी उनके बेटे तारिक रहमान पर आ गई है। विश्लेषकों का मानना है कि इससे पार्टी में आंतरिक मतभेद बढ़ सकते हैं।
खालिदा जिया और शेख हसीना के बीच दशकों से चली आ रही राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अब समाप्त हो गई है। उनके जाने से बांग्लादेश की राजनीति एक नए और अनिश्चित दौर में प्रवेश कर रही है।
खालिदा जिया के परिवार में उनके बड़े बेटे तारिक रहमान, दो बहुएं और तीन पोते-पोतियां हैं। उनके छोटे बेटे आराफात रहमान कोको का 2015 में मलेशिया में निधन हो गया था।
देश और विदेश के नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि खालिदा जिया बांग्लादेश की राजनीति में एक युग का प्रतिनिधित्व करती थीं। उनका योगदान इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।
