बांग्लादेश की ‘मैंगो डिप्लोमेसी’ : PM मोदी को भेजे गए आमों के जरिये रिश्तों में मिठास लाने की कोशिश

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत के साथ राजनयिक संबंधों को मजबूत करने के उद्देश्य से एक खास पहल की है, जिसे “मैंगो डिप्लोमेसी” कहा जा रहा है। इस कूटनीतिक प्रयास के तहत अंतरिम सरकार के प्रमुख प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस ने भारत को ‘हरिभंगा’ प्रजाति के 1,000 किलोग्राम आम भेजे हैं। इसका मतलब है, राजनीतिक और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए आम जैसे मीठे फलों का ‘उपहार’ के रूप में उपयोग करना। यह ‘सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी’ का एक प्रभावी उदाहरण है।

ये आम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय राजनयिकों और वरिष्ठ अधिकारियों को उपहार स्वरूप भेंट किए जाएंगे।  यह पहल ऐसे समय में की गई है जब बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार की विदेश नीति को लेकर भारत में संदेह की स्थिति बनी हुई है, खासकर पाकिस्तान और चीन के प्रति बांग्लादेश के हालिया झुकाव को देखते हुए। 

भारत और बांग्लादेश के बीच आम के ज़रिए कूटनीतिक रिश्ते निभाने की यह परंपरा नई नहीं है। वर्षों से बांग्लादेश की सरकारें हरिभंगा किस्म के खास आम भारत और अन्य पड़ोसी देशों को उपहार में भेजती रही हैं। यह एक प्रकार की सांकेतिक कूटनीति रही है, जिसे ‘मैंगो डिप्लोमेसी’ कहा जाता है। खास बात यह है कि इस परंपरा की शुरुआत तब हुई थी, जब भारत और बांग्लादेश के संबंध अत्यंत मधुर और सहयोगपूर्ण थे।

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री को भी भेजा गया उपहार

  • कूटनीतिक मिठास केवल राष्ट्रीय स्तर तक सीमित नहीं रही। यूनुस ने गुरुवार को त्रिपुरा के मुख्यमंत्री और राज्य के अन्य गणमान्य व्यक्तियों को भी 300 किलोग्राम हरिभंगा आम उपहार में भेजे। ये आम अखौरा लैंड पोर्ट के ज़रिए 60 डिब्बों में पैक होकर भारत पहुंचे।

     

     बांग्लादेश की ‘मैंगो डिप्लोमेसी’ की शुरुआत:

    बांग्लादेश ने 2021 में कूटनीतिक रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने के उद्देश्य से ‘मैंगो डिप्लोमेसी’ की शुरुआत की थी।  इस पहल के तहत बांग्लादेश ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पूर्वोत्तर के कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को 2,600 किलो ‘हरिभंगा’ किस्म के आम उपहार स्वरूप भेजे थे। इसका उद्देश्य भारत-बांग्लादेश संबंधों में सौहार्द और गर्मजोशी को बढ़ाना था।

    सिर्फ भारत ही नहीं, बांग्लादेश ने श्रीलंका, नेपाल, ब्रिटेन, सऊदी अरब, कतर, कुवैत, UAE, इटली, जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन, कनाडा, फिलीपींस और स्विट्जरलैंड जैसे देशों को भी आम भेजे थे। वर्ष 2021 में बांग्लादेश ने कुल 1,632 टन आम वैश्विक स्तर पर उपहार के रूप में वितरित किए थे। इन आमों में हरिभंगा के अलावा लंगड़ा, हिमसागर, फजली और आम्रपाली जैसी लोकप्रिय किस्में शामिल थीं।

    यह पहल न केवल कूटनीतिक स्नेह दर्शाती है, बल्कि बांग्लादेश की सॉफ्ट पावर को भी वैश्विक मंच पर स्थापित करने की एक सफल कोशिश मानी गई।

     

    भारत से शुरू हुआ चीन का आम से रिश्ता: 1955 में भेजे गए पौधों से खुली मैंगो डिप्लोमेसीकी राह

    भारत और चीन के बीच ‘मैंगो डिप्लोमेसी’ का इतिहास काफी पुराना है। जहां बांग्लादेश ने 2021 में इस कूटनीतिक पहल को अपनाया, वहीं इसकी असली शुरुआत भारत ने 1955 में की थी। उस समय चीन में आम एक लगभग अज्ञात फल था, जिसे कई लोगों ने देखा तक नहीं था। लेकिन आज स्थिति यह है कि चीन आम का दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बन चुका है।

    आम के पौधों से शुरू हुई डिप्लोमेसी

    भारत ने 1955 में चीन को पहली बार आम से परिचित कराया था। भारत की ओर से आम की कुल 8 कलमें भेजी गई थीं, जिनमें 3 दशहरी, 2 चौसा, 2 अल्फांसो और 1 लंगड़ा किस्म के पौधे शामिल थे। इन पौधों के माध्यम से भारत ने चीन के साथ कृषि और सांस्कृतिक साझेदारी का संकेत दिया था। हालांकि, उस समय द्विपक्षीय संबंधों में आई कड़वाहट के चलते इस पहल का विस्तार नहीं हो सका।

    फिर करीब पांच दशक बाद, 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के चीन दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच WTO समझौते के तहत एक द्विपक्षीय व्यापार समझौता हुआ। इस समझौते के परिणामस्वरूप, 2004 में पहली बार भारत से आम की आधिकारिक खेप चीन भेजी गई। इसे भारत और चीन के बीच व्यापार और सांस्कृतिक जुड़ाव को मजबूती देने वाली एक महत्वपूर्ण पहल माना गया।

     

    भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में भी निभाई मैंगो डिप्लोमेसीने भूमिका

    भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक तनाव के बावजूद, दोनों देशों ने कई बार ‘मैंगो डिप्लोमेसी’ के जरिए रिश्तों में मिठास लाने की कोशिश की है। आम ने कई बार ऐसे मौके बनाए जब राजनीतिक कड़वाहट के बीच भी संवाद और सद्भाव के संकेत भेजे गए।

    मनमोहन सिंह सरकार के दौरान:

    तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में, भारत ने पाकिस्तान के शीर्ष नेताओं को सिंधरी और चौसा किस्म के आम उपहार में भेजे थे। यह पहल न केवल परंपरागत मैत्री भाव को दर्शाती थी, बल्कि इससे यह संदेश भी गया कि बातचीत और दोस्ती के दरवाज़े खुले हैं।

    नरेंद्र मोदी सरकार की पहल

    वर्ष 2021 में, जब पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही थी तब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पड़ोसी देशों को दशहरी, लंगड़ा और चौसा जैसे आमों की खेप भेजी। इनमें पाकिस्तान भी शामिल था। यह कदम इस बात का प्रतीक था कि भारत संवाद और मानवता की नींव पर आधारित रिश्तों को प्राथमिकता देता है।

     

    आज की स्थिति

    चीन, जो 1960 तक आम को नहीं पहचानता था, अब वैश्विक मंच पर आम के सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक है। यह रूपांतरण भारत की एक छोटे लेकिन दूरदर्शी कूटनीतिक पहल से संभव हुआ, जिसे सही मायनों में ‘मैंगो डिप्लोमेसी’ कहा जा सकता है। भारत और चीन के संबंधों के इतिहास में यह एक मीठा अध्याय है, जिसने कृषि से परे भी सांस्कृतिक संबंधों की नींव रखी।