भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) अब राष्ट्रीय खेल विधेयक (National Sports Bill) के अधीन लाया जाएगा, ऐसी जानकारी खेल मंत्रालय से जुड़े सूत्रों द्वारा सामने आई है। भले ही बीसीसीआई सरकारी फंडिंग नहीं लेता, लेकिन क्रिकेट टीम के 2028 लॉस एंजेलिस ओलंपिक में भाग लेने की संभावना को देखते हुए इसका शामिल होना पहले से अनुमानित था।
युवा मामले और खेल मंत्रालय ने हाल ही में एक नया ड्राफ्ट स्पोर्ट्स बिल पेश किया है, जिसका उद्देश्य देश में खेल व्यवस्थाओं को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाना है। इस विधेयक के लागू होने के बाद, बीसीसीआई को एक राष्ट्रीय खेल महासंघ (NSF) माना जाएगा और यह मंत्रालय के सभी नियमों और दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य होगा।
जहां 2019 तक बीसीसीआई को NSF की आधिकारिक मान्यता नहीं मिली थी, वहीं 2020 में इसे सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI Act) के तहत लाया गया। अब इस विधेयक के जरिये बीसीसीआई को स्वचालित रूप से एनएसएफ का दर्जा मिलेगा, जिससे उस पर सरकारी निगरानी बढ़ेगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या लोढ़ा समिति की सिफारिशें जैसे आयु सीमा और हितों के टकराव संबंधी नियम आगे भी प्रभावी रहेंगी।

क्या है राष्ट्रीय खेल विधेयक?
राष्ट्रीय खेल विधेयक का उद्देश्य भारत में खेल प्रशासन को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और एथलीट-केंद्रित बनाना है। यह विधेयक राष्ट्रीय खेल महासंघों (NSFs) के संचालन में सुधार लाने के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचा प्रदान करेगा, जिससे खिलाड़ियों के अधिकारों की सुरक्षा और खेल के क्षेत्र में सुशासन को बढ़ावा मिल सके।
विधेयक के प्रमुख उद्देश्य:
- समय पर चुनाव सुनिश्चित करना
- प्रशासनिक जवाबदेही लागू करना
- खिलाड़ियों के कल्याण के लिए नीति ढांचा बनाना
राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक, 2025: प्रमुख प्रावधान
सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) का अनुपालन: भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) सहित सभी मान्यता प्राप्त खेल महासंघों को आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत लाया जाएगा, जिससे सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
खिलाड़ी प्रतिनिधित्व: राष्ट्रीय खेल महासंघों (NSFs) में कम से कम 10% मतदान सदस्य उत्कृष्ट प्रदर्शन वाले खिलाड़ी होंगे। कार्यकारी समितियों में लैंगिक संतुलन सुनिश्चित करना अनिवार्य होगा।
पूर्व खिलाड़ियों को प्रतिनिधित्व: महासंघ की कार्यकारिणी में न्यूनतम 25% सदस्य पूर्व खिलाड़ी होने चाहिए।
सुरक्षित खेल नीति: महिला और नाबालिग खिलाड़ियों के लिए यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार से सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु POSH अधिनियम, 2013 के अनुरूप सुरक्षा उपायों की व्यवस्था।
कार्यकाल सीमा: अध्यक्षों और शीर्ष पदाधिकारियों के लिए सीमित कार्यकाल निर्धारित किए जाएंगे ताकि शक्ति का केंद्रीकरण रोका जा सके।
चुनाव निगरानी: राष्ट्रीय खेल चुनाव समिति का गठन, जिससे महासंघों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए जा सकें।
खिलाड़ी अधिकार और विवाद निवारण प्रणाली: तीन-स्तरीय विवाद निवारण तंत्र प्रस्तावित – पहले आंतरिक खेल विवाद प्रकोष्ठ, फिर राष्ट्रीय खेल अधिकरण, और अंततः सर्वोच्च न्यायालय अंतिम अपील का मंच होगा। यह मॉडल FIFA और कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट (CAS) जैसी वैश्विक प्रणालियों से प्रेरित है।
यह विधेयक वर्षों से रुके सुधारों को दिशा देने, खिलाड़ियों के अधिकारों को संरक्षित करने और खेल निकायों में संस्थागत पारदर्शिता सुनिश्चित करने की मंशा से लाया गया है। साथ ही, यह भारत के खेल शासन को ओलंपिक और पैरालंपिक चार्टर के अनुरूप बनाकर, भारत की 2036 ओलंपिक मेज़बानी की संभावना को भी बल देता है।
इस विधेयक की एक उल्लेखनीय बात यह है कि यह खिलाड़ियों को नीति-निर्माण में निर्णायक भूमिका देने वाला पहला प्रयास है। भारतीय ओलंपिक संघ, राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति और सभी एनएसएफ को अब एथलीट समितियों की स्थापना करनी होगी, जो खिलाड़ियों को अपनी समस्याएं रखने और निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी का अधिकार प्रदान करेंगी।
प्रमुख चिंताएँ और आलोचनाएँ
आयु और कार्यकाल: प्रशासकों की अधिकतम आयु सीमा 75 वर्ष निर्धारित की गई है तथा कार्यकाल सीमाओं को हटाया गया है। यह वरिष्ठता को बढ़ावा देने का प्रयास है, परंतु इसके कारण पदों पर स्थायी कब्जा होने की आशंका जताई जा रही है।
खेल संगठनों की स्वायत्तता: प्रस्तावित खेल नियामक बोर्ड IOA और NSFs की स्वायत्तता को प्रभावित कर सकता है, जिससे IOC द्वारा ‘सरकारी हस्तक्षेप’ के आधार पर निलंबन का खतरा हो सकता है।
राज्य ओलंपिक संघों की भूमिका: विधेयक में राज्य संघों की भूमिका को लेकर अस्पष्टता है, जिससे विकेंद्रीकरण को झटका लग सकता है।
सरकारी हस्तक्षेप और न्यायिक व्यवस्था: विधेयक निचली अदालतों की भूमिका समाप्त करता है और सीधे सर्वोच्च न्यायालय को अंतिम अपील का मंच बनाता है, जिससे न्यायिक संतुलन पर प्रश्न उठते हैं।
राष्ट्रीय खेल संचालन विधेयक 2025 में स्थापित प्रमुख निकाय:
राष्ट्रीय खेल बोर्ड (NSB): यह निकाय राष्ट्रीय खेल संगठनों को मान्यता देगा, उनकी मान्यता को रद्द भी कर सकेगा और राज्य स्तर की इकाइयों का पंजीकरण करेगा।
- प्रमुख कार्य:
- खेल संगठनों द्वारा सुशासन और एथलीट कल्याण के नियमों का पालन सुनिश्चित करना।
- संगठनों में निष्पक्ष और समयबद्ध चुनाव सुनिश्चित करना।
- नैतिक आचरण की निगरानी करना और संचालन से जुड़े दिशा-निर्देश जारी करना।
- संरचना: केंद्र सरकार अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति करेगी। एक विशेष समिति इन नामों की सिफारिश करेगी।
- वित्तीय प्रावधान: केवल वे खेल संगठन जिन्हें NSB से मान्यता प्राप्त होगी, केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकेंगे।
राष्ट्रीय खेल अधिकरण (NST): यह निकाय खेलों से जुड़े कानूनी विवादों का निपटारा करेगा। यह एक विशिष्ट न्यायिक संस्था होगी।
- संरचना:
- अध्यक्ष: वर्तमान या पूर्व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश।
- दो अन्य सदस्य: खेल, लोक प्रशासन या विधि के विशेषज्ञ।
- निपटाए जाने वाले मामले: चुनाव संबंधी विवाद, खिलाड़ियों के चयन में विवाद, खेल संगठनों के आंतरिक प्रशासन से जुड़े मामले।
- निपटाए नहीं जाने वाले मामले:ओलंपिक, एशियाई खेल या राष्ट्रमंडल खेल जैसे बड़े अंतरराष्ट्रीय आयोजनों से जुड़े विवाद, अंतरराष्ट्रीय खेल निकायों द्वारा नियंत्रित मामले, डोपिंग से जुड़े मामले (ये राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (NADA) के अंतर्गत रहेंगे)।
राष्ट्रीय खेल विधेयक का प्रभाव: भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) पर प्रभाव
BCCI की मौजूदा स्थिति: BCCI एक स्वतंत्र संस्था के रूप में कार्य करता है, जो तमिलनाडु सोसाइटीज पंजीकरण अधिनियम, 1975 के तहत पंजीकृत है।
- अब तक यह सरकार द्वारा राष्ट्रीय खेल महासंघ (NSF) के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं था।
नए विधेयक के तहत प्रभाव:
- मान्यता अनिवार्य: BCCI को अब राष्ट्रीय खेल बोर्ड (NSB) से मान्यता लेनी होगी।
- विवाद निपटारा: BCCI से जुड़े किसी भी विवाद का निपटारा अब राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण (NST) करेगा।
- सूचना का अधिकार (RTI): BCCI अब RTI अधिनियम के अंतर्गत आएगा, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी।