बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने नई गाइडलाइन जारी की है। अब ईवीएम बैलेट पेपर पर उम्मीदवारों की फोटो ब्लैक एंड व्हाइट नहीं बल्कि रंगीन छपी होगी। यह प्रयोग सबसे पहले बिहार से शुरू किया जा रहा है और बाद में अन्य राज्यों में लागू किया जाएगा।
नई व्यवस्था के तहत बैलेट पेपर पर उम्मीदवार का चेहरा तीन-चौथाई हिस्से में दिखाई देगा, जिससे पहचान आसान होगी। साथ ही, क्रम संख्या (सीरियल नंबर) को भी पहले से ज्यादा प्रमुखता दी जाएगी।
आयोग का कहना है कि यह कदम मतदान प्रक्रिया की पारदर्शिता बढ़ाने और मतदाताओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।

चुनाव आयोग के 4 बड़े बदलाव:
भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 49B में संशोधन करते हुए ईवीएम बैलेट पेपर को और अधिक स्पष्ट, पठनीय और आधुनिक बनाने के लिए नई गाइडलाइंस जारी की हैं।
- अब उम्मीदवारों की तस्वीरें रंगीन होंगी और चेहरा फोटो के तीन-चौथाई हिस्से को घेरेगा।
- उम्मीदवारों/NOTA के क्रमांक अंतर्राष्ट्रीय भारतीय अंकों में होंगे, जिन्हें 30 फ़ॉन्ट साइज में बोल्ड अक्षरों में छापा जाएगा।
- सभी नाम एक जैसे फ़ॉन्ट प्रकार और बड़े आकार में होंगे, ताकि आसानी से पढ़े जा सकें।
- बैलेट पेपर 70 GSM कागज़ पर छपेंगे। विधानसभा चुनावों में यह गुलाबी रंग (निर्धारित RGB मानों) पर आधारित होगा।
यह पहल पिछले 6 महीनों में चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी और व्यवस्थित बनाने के लिए की गई 28 सुधारात्मक पहलों का हिस्सा है।
EVM पर क्यों होगी अब उम्मीदवारों की रंगीन फोटो?
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि कई बार एक जैसे नाम वाले उम्मीदवारों के कारण मतदाताओं में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है। इस कन्फ्यूजन को खत्म करने और वोटिंग प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए अब ईवीएम बैलेट पर रंगीन फोटो लगाई जाएगी।
- उम्मीदवार की तस्वीर बैलेट पर तीन-चौथाई हिस्से को घेरेगी, ताकि फोटो स्पष्ट और आसानी से पहचान में आ सके।
- इस बदलाव से मतदाता बिना किसी शक या भ्रम के अपने वांछित उम्मीदवार की सही पहचान कर पाएंगे।
बिहार से होगी शुरुआत:
चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से ईवीएम बैलेट पर उम्मीदवारों की रंगीन फोटो लगाई जाएगी। यह व्यवस्था सबसे पहले बिहार में लागू होगी और इसके बाद धीरे-धीरे अन्य राज्यों में भी इसे अपनाया जाएगा।
- बिहार की सभी 243 सीटों पर होने वाले चुनाव में इस नई प्रणाली का इस्तेमाल किया जाएगा।
- 30 सितंबर को फाइनल वोटर लिस्ट जारी होने के बाद कभी भी चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है।
- इसके बाद 2026 में पश्चिम बंगाल, असम, केरल, पुदुचेरी और तमिलनाडु में भी रंगीन फोटो वाली ईवीएम का प्रयोग किया जाएगा।
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पूरा:
बिहार में हाल ही में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इस दौरान नए मतदाताओं के नाम जोड़े गए, मृत एवं स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाए गए और कई प्रविष्टियों में सुधार किया गया। निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया है कि अब 30 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। इसके बाद बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का औपचारिक ऐलान किसी भी समय किया जा सकता है।
विपक्षी दलों ने किया था विरोध:
विपक्षी दलों ने विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का कड़ा विरोध जताया। उनका कहना है कि निर्वाचन आयोग इस प्रक्रिया की आड़ में लोगों की नागरिकता की जाँच कर रहा है, जबकि आधिकारिक रूप से यह केवल मतदाता सूची को शुद्ध करने की कवायद है। विपक्ष का आरोप है कि-
- इस कदम से बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम सूची से काटे जा सकते हैं।
- यह प्रक्रिया “पिछले दरवाजे से नागरिकता सत्यापन” जैसी है, जिससे विशेष समुदायों और गरीब तबके के लोगों का मताधिकार छीनने का खतरा है।
- सरकार और आयोग पर आरोप लगाया गया कि यह कदम राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया है और मतदाता आधार को प्रभावित कर सकता है।
दूसरी ओर, चुनाव आयोग ने साफ किया कि मतदाता सूची से नाम हटना नागरिकता समाप्त होने के बराबर नहीं है, और केवल फर्जी, अयोग्य या दोहरी प्रविष्टियों को हटाने का काम किया जा रहा है।
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) क्या है?
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) मतदाता सूची का डोर-टू-डोर वेरिफिकेशन है। इस दौरान हर घर जाकर मतदाताओं के नाम, पते और पहचान की पुष्टि की जाती है।
कानूनी आधार: यह प्रक्रिया जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) और संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत होती है, जो निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची की देखरेख और संशोधन का अधिकार देता है।
हाइब्रिड प्रकृति: SIR को “इंटेंसिव” और “समरी रिवीजन” का मिश्रण कहा जाता है। यानी इसमें मतदाताओं की सामान्य समीक्षा के साथ-साथ, संदिग्ध मामलों में अतिरिक्त दस्तावेज़ जमा करना ज़रूरी हो जाता है।
क्यों ज़रूरी है स्पेशल रिवीजन?
- डुप्लीकेट एंट्री की समस्या: तेज़ी से हो रहे पलायन, शहरीकरण और दोहरी एंट्री के कारण मतदाता सूची फूली हुई है। (ECI, 2025)
- राजनीतिक शिकायतें: महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोप लगे।
- लंबा अंतराल: बिहार में पिछली बार SIR 2003 में हुआ था। पुराने रिकॉर्ड से चुनावी पारदर्शिता प्रभावित हो सकती है।
- विदेशी नागरिकों की चिंता: बिहार जैसे सीमा से लगे राज्यों में अतीत में नेपाली और बांग्लादेशी नागरिकों के नाम वोटर लिस्ट में पाए गए।
- चुनावी पारदर्शिता: हाई-स्टेक्स चुनावों से पहले विश्वसनीय मतदाता सूची बनाना ज़रूरी है।
SIR की प्रक्रिया कैसे चलती है?
- एनेमरेशन फॉर्म्स: BLOs (Booth Level Officers) हर घर जाकर पहले से भरे हुए फॉर्म देते हैं और अपडेटेड जानकारी/दस्तावेज़ लेते हैं।
- नागरिकता का सबूत: खासकर 2003 के बाद शामिल हुए मतदाताओं से जन्म प्रमाणपत्र या माता-पिता के दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं।
- ERO की भूमिका: निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी नाम जोड़ने या हटाने पर अंतिम निर्णय लेते हैं। संदिग्ध मामलों को वे नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत आगे भेज सकते हैं।
बिहार SIR को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा: अदालत ने कहा
यदि यह प्रक्रिया ग़ैरकानूनी साबित होती है, तो इसे रद्द किया जा सकता है। लेकिन, संविधान के तहत चुनाव आयोग को यह अधिकार है कि वह मतदाता सूचियों को संशोधित और जांच सके, इसलिए कोर्ट ने SIR को रोकने से इनकार कर दिया।
आइए जान लेते है, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के बारे मे-
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) एक ऐसी मशीन है जिसका उपयोग चुनावों में मतदान कराने के लिए किया जाता है। इसमें मतदाता को केवल एक बटन दबाना होता है, जिससे उसका वोट सीधे मशीन में सुरक्षित रूप से दर्ज हो जाता है। इस मशीन ने मतदान की पारंपरिक पर्चियों और बैलेट बॉक्स की जगह ले ली है। भारत में पहली बार 1982 में केरल विधानसभा के एक उपचुनाव में EVM का प्रयोग किया गया था। बाद में धीरे-धीरे इसे पूरे देश में लागू किया गया। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में पहली बार सभी संसदीय सीटों पर सिर्फ EVM के जरिए मतदान हुआ।