बिहार चुनाव 2025: NDA की रिकॉर्ड वापसी-महिला वोटरों की पकड़, कल्याणकारी योजनाएं और विपक्ष की आपसी खींचतान बनी गेमचेंजर

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का नतीजा एक बार फिर साबित करता है कि यदि राजनीतिक रणनीति, सामाजिक समीकरण और कल्याणकारी योजनाएं एक साथ तालमेल में हों, तो सत्ता-विरोधी लहर भी बेअसर हो जाती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने 243 में से 202 सीटें जीतकर अभूतपूर्व सफलता हासिल की है।

bihar elections 2025

इस जीत में जहां JDU के लिए शानदार “कमबैक” रहा और उसे 85 सीटें प्राप्त हुईं, वहीं BJP 89 सीटों पर जीती। चिराग पासवान की LJP(R) ने भी शानदार प्रदर्शन करते हुए 19 सीटें जीतीं। पिछली बार JDU के पास 43, BJP के पास 74 और LJP(R) के पास केवल 1 सीट थी-यानी इस बार प्रदर्शन कई गुना बेहतर रहा।

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चुनाव परिणामों ने स्पष्ट संकेत दिया कि NDA की जीत केवल नारों, सभाओं और गठबंधन भर का नतीजा नहीं थी। इसके पीछे महिला मतदाताओं की भारी समर्थन, प्रत्यक्ष लाभ वाली योजनाओं की बौछार, जातीय गणित का सटीक इस्तेमाल, और विपक्ष की आंतरिक फूट जैसे कई बड़े कारण थे।

 

 

NDA की 10 प्रमुख वजहें, जिन्होंने मिलकर उसे भारी बहुमत दिलाया-

 

  1. महिला वोटरों ने बदली तस्वीर – 21 करोड़ “जीविका दीदी” को 10 हजार, चुनावी मास्टरस्ट्रोक

29 अगस्त 2025 को नीतीश कुमार ने एक बड़ी आर्थिक सहायता योजना की घोषणा की-18 से 60 वर्ष की महिलाओं को छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए 2 लाख रुपए, जिसकी शुरुआत 10,000 रुपए सीधे खाते में भेजकर की गई। 26 सितंबर से पैसे ट्रांसफर होने लगे, और मतदान से पहले 1.21 करोड़ महिलाओं को यह राशि मिल चुकी थी।

यही नहीं-

  • बिहार में 3.51 करोड़ महिला मतदाता हैं।
  • इनमें से 1.34 करोड़ महिलाएं जीविका समूह से जुड़ी हैं।
  • बतौर वोट बैंक, यह संख्या किसी भी दल के लिए निर्णायक है।

योजना इतनी लोकप्रिय हुई कि यह महिलाओं में “10 हजारिया योजना” के नाम से मशहूर हो गई। 2020 में 2.08 करोड़ महिलाओं ने वोट किया था, जिनमें से 38% ने NDA को चुना था। इस बार 10 हजार रुपए की प्रत्यक्ष सहायता ने इस समर्थन को और मजबूत कर दिया।

साथ ही-

  • आशा वर्कर का मानदेय 1,000 से बढ़ाकर 3,000
  • ममता कार्यकर्ताओं की राशि 300 से बढ़ाकर 600

इन फैसलों ने भी महिलाओं और आश्रित परिवारों में NDA के प्रति सकारात्मक धारणा को गहरी किया।

अमिताभ तिवारी (वोट वाइब) के आकलन के मुताबिक, 1.21 करोड़ महिला लाभार्थियों का असर 3.63 करोड़ वोटरों तक पहुंचा-जो बिहार के कुल वोटर बेस का लगभग आधा हिस्सा बनता है।

 

2. लोअर मिडिल क्लास और गांव-शहर दोनों में असर – 125 यूनिट फ्री बिजली, 1.67 करोड़ परिवारों को राहत

1 जुलाई से राज्य में 125 यूनिट फ्री बिजली लागू कर दी गई। 1 अगस्त से यह लाभ 1.67 करोड़ घरों को मिल रहा है-इसमें ग्रामीण (1.2 करोड़) और शहरी (47 लाख) दोनों शामिल हैं।

भारत में औसतन एक परिवार में तीन मतदाता होते हैं-इस हिसाब से यह योजना करीब 5 करोड़ वोटरों को प्रभावित कर रही थी।

महागठबंधन ने 200 यूनिट फ्री बिजली का वादा किया, लेकिन NDA की पहले से लागू योजना अधिक विश्वसनीय मानी गई।

 

3. बुजुर्गों और आश्रितों को बड़ी राहत – पेंशन 400 से बढ़कर 1100 रुपए, 1.11 करोड़ लाभार्थी

22 जून 2025 से सामाजिक सुरक्षा पेंशन को 400 से 1100 रुपए मासिक कर दिया गया।
यह राहत 1.11 करोड़ बुजुर्ग, विधवा एवं आश्रित नागरिकों तक पहुंचती है।

महागठबंधन ने 1500 रुपए पेंशन का वादा किया, लेकिन NDA की प्रत्यक्ष और तत्काल बढ़ोतरी अधिक प्रभावी रही।

 

4. युवा और नए मतदाता – बेरोजगार ग्रेजुएट को 1,000 रुपए भत्ता

30 सितंबर को सरकार ने 20-25 वर्ष आयु वर्ग के ग्रेजुएट युवाओं के लिए 1000 रुपए मासिक बेरोजगारी भत्ता शुरू किया। वर्तमान में 7.6 लाख युवा इसका लाभ ले रहे हैं। साथ ही 2030 तक “एक करोड़ रोजगार/नौकरियां देने” की दीर्घकालिक घोषणा भी NDA के पक्ष में गई।

 

5. विद्यार्थियों को बड़ी राहत – स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड पर ब्याज माफ, 4 लाख छात्रों को फायदा

सरकार ने स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड पर-

  • ब्याज पूरी तरह माफ
  • 2 लाख तक के लोन की पुनर्भुगतान अवधि 5 से बढ़ाकर 7 साल
  • बड़े लोन की अवधि 7 से बढ़ाकर 10 साल

लगभग 4 लाख छात्रों पर इसका सीधा असर पड़ा।

 

6. जातीय समीकरण की शतरंज – NDA ने सभी मोर्चों पर संतुलन साधा

नीतीश कुमार और BJP ने टिकट वितरण में जातिगत विविधता का सावधानी से ध्यान रखा। गठबंधन के कुल उम्मीदवारों में-

  • 85 सवर्ण
  • 39 दलित
  • 37 कुर्मी-कोइरी
  • 29 अतिपिछड़ा
  • 27 वैश्य
  • 19 यादव
  • 5 मुस्लिम
  • 2 आदिवासी

यह संतुलित गणित NDA को लगभग हर सामाजिक समूह में बढ़त देता नज़र आया।

  • चिराग पासवान का प्रभाव : पासवान समुदाय (32% आबादी) 40-50 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। LJP(R) ने 19 सीटें जीतकर दिखा दिया कि चिराग का आधार वोट NDA के पक्ष में मजबूती से खड़ा है।
  • उपेंद्र कुशवाहा (RLM) का फायदा: कुशवाहा समुदाय का 27% वोट-70 सीटों पर प्रभावी-NDA के खाते में आया। RLM ने 6 में से 4 सीटें जीतीं।
  • जीतन राम मांझी: गया-दक्षिण बिहार की 35 सीटों पर प्रभाव रखने वाले मुसहर समुदाय का समर्थन NDA के साथ रहा। HAM के 6 में से 5 उम्मीदवार जीते।

 

7. विकास का “कॉम्बो पैकेज” – एयरपोर्ट, पुल और धार्मिक पहचान

चुनाव से पहले सरकार ने विकास कार्यों का तेज़ी से उद्घाटन किया-

पूर्णिया एयरपोर्ट

  • सीमांचल की 24 सीटों पर असर
  • PM मोदी ने उद्घाटन किया
  • क्षेत्र की आवाजाही और अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी उपलब्धि

बेगूसराय का 6-लेन केबल ब्रिज

  • गंगा पर सिमरिया-औंटा के बीच
  • बेगूसराय + मिथिला + मगध = 33 सीटों से जुड़ाव
  • यह ब्रिज सामाजिक-आर्थिक कनेक्टिविटी का बड़ा मुद्दा बना।

सीतामढ़ी का जानकी मंदिर प्रोजेक्ट

  • अमित शाह व नीतीश कुमार ने भूमिपूजन किया
  • बिहार में हिंदुत्व की राजनीति का नया अध्याय
  • विशेषज्ञों के मुताबिक, यह BJP की “UP वाली रणनीति” की शुरुआत है।

 

8. महागठबंधन की गलतियां – संदेश, चेहरे और रणनीति तीनों में उलझन

महागठबंधन की कुल सीटें 50 के भीतर सिमट गईं। इसके प्रमुख कारण थे-

  • CM फेस पर असमंजस: RJD और कांग्रेस तेजस्वी पर सहमत नहीं थे। जब सहमति बनी, तब तक माहौल बिगड़ चुका था।
  • सीट बंटवारे में खींचतान: पहले फेज़ के नामांकन की आखिरी तारीख तक स्थिति स्पष्ट नहीं थी। इस देरी ने कैडर और वोटर दोनों को भ्रमित किया।

आखिरकार सीट बंटवारा:

  • RJD – 146
  • कांग्रेस – 59
  • VIP – 13
  • CPI-ML – 20
  • CPI – 7
  • CPM – 4
  • IIP – 2
  • 9 सीटों पर आपस में भिड़े उम्मीदवार: महागठबंधन की पार्टियां 9 सीटों पर एक-दूसरे के सामने लड़ीं-और सभी जगह हार गईं। इसके कारण MGB का वोट बंट गया और NDA को आसान जीत मिली।

 

9. प्रशांत किशोर का जन सुराज – चर्चा अधिक, असर कम

PK की पार्टी ने 240 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, आक्रामक अभियान चलाया, लेकिन मतदाताओं ने इसे विकल्प के रूप में नहीं देखा। उनकी एंट्री से NDA को नुकसान होने की आशंका थी, पर नतीजों में ऐसा कुछ नहीं दिखा।

 

10. महागठबंधन के वादों पर भरोसा नहीं-“हर परिवार को नौकरी” पर सवाल

MGB ने बड़ी घोषणाएं कीं-

  • हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी
  • महिलाओं को हर साल 30,000 रुपए
  • 500 रुपए में गैस सिलेंडर
  • 25 लाख तक मुफ्त इलाज
  • 200 यूनिट फ्री बिजली
  • 3-5 डिसमिल जमीन
  • संविदाकर्मियों का स्थायीकरण

लेकिन सबसे बड़ा सवाल “हर परिवार को नौकरी” पर उठा।

बिहार में-

  • कुल परिवार: 2.83 करोड़
  • सरकारी कर्मचारी: 20 लाख
  • खाली पद: केवल 3 लाख

यानी गणित ही मेल नहीं खाता। वोटरों ने भी इसे अव्यावहारिक माना। पटना के निवासी महेंद्र मालाकार ने कहा- “नेता चुनाव में कुछ भी बोल देते हैं, लेकिन वादे पूरे करना अलग बात है।”

 

महागठबंधन की उलझनें, टिकट बंटवारे में आखिरी वक्त तक घमासान

चुनाव के पहले फेज के लिए नामांकन वापस लेने के आखिरी दिन तक महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे पर तीखी तनातनी चलती रही। RJD और कांग्रेस अपनी-अपनी दावेदारी पर अड़ी रहीं।
नतीजा यह निकला कि-

  • उम्मीदवार तो मैदान में उतरते गए
  • लेकिन कौन किस सीट पर लड़ रहा है, यह आखिरी तक स्पष्ट नहीं हो सका

आखिरकार महागठबंधन ने इस तरह मैदान संभाला-

  • RJD – 146 सीटें
  • कांग्रेस – 59 सीटें
  • VIP – 13 सीटें
  • CPI-ML – 20 सीटें
  • CPI – 7 सीटें
  • CPM – 4 सीटें
  • IIP – 2 सीटें

कुल मिलाकर 241 सीटों पर महागठबंधन के 250 उम्मीदवार मैदान में उतरे, जिनमें 2 सीटों पर (सुगौली, मोहनिया) महागठबंधन ने निर्दलीयों को समर्थन दिया।

 

9 सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ उतरे, सभी जगह हार

आंतरिक सहमति न बनने की वजह से महागठबंधन की पार्टियाँ कई जगह एक-दूसरे के उम्मीदवारों के खिलाफ उतर आईं। ऐसी 9 सीटें थीं जहाँ RJD, कांग्रेस, CPI जैसी पार्टियाँ एक-दूसरे से ही लड़ गईं-और सभी 9 सीटों पर हार हुई

कुछ उदाहरण-

1. बछवाड़ा (बेगूसराय)

  • कांग्रेस: शिवप्रकाश
  • CPI: अवधेश कुमार राय
  • दोनों के वोट जोड़ें – BJP से 5,920 वोट ज्यादा फिर भी दोनों अलग-अलग लड़ते रहे और BJP के सुरेंद्र मेहता ने 15,593 वोट से जीत ली।

2. बिहार शरीफ (नालंदा)

  • कांग्रेस और CPI दोनों मैदान में।
  • BJP के डॉ. सुनील कुमार 29,168 वोट से विजयी।

3. राजापाकर (वैशाली)

  • कांग्रेस बनाम CPI
  • JDU ने 48,189 वोट से जीत दर्ज की।

4. वैशाली सीट

  • कांग्रेस बनाम RJD
  • JDU के सिद्धार्थ पटेल 32,590 वोट से जीते।

5. सिकंदरा (जमुई)

  • RJD बनाम कांग्रेस
  • HAM के प्रफुल्ल कुमार मांझी 23,907 वोट से विजयी।

6. कहलगांवसुल्तानगंज, करगहर, चैनपुर

  • हर जगह महागठबंधन के वोट आपस में टूटे और JDU या BJP उम्मीदवारों ने आसानी से जीत दर्ज कर ली।
  • ये सीटें साफ दिखाती हैं कि महागठबंधन की हार एक तरह से “self-inflicted loss” थी।

 

वादे भारी, भरोसा हल्का: जमीनी वोटरों ने गंभीरता से नहीं लिया

प्रचार के दौरान RJD और कांग्रेस ने कई बड़े वादे किए-

  • हर परिवार को एक सरकारी नौकरी
  • माई-बहिन योजना में महिलाओं को ₹30,000 एकमुश्त
  • गैस सिलेंडर ₹500 में
  • 200 यूनिट फ्री बिजली
  • भूमिहीनों को जमीन
  • 25 लाख तक का मुफ्त इलाज
  • विधवा/बुजुर्गों को ₹1500 पेंशन
  • दिव्यांगों को ₹3000
  • विद्यार्थियों को फ्री यात्रा
  • पुरानी पेंशन बहाली
  • सरकारी परीक्षाओं में कोई शुल्क नहीं
  • पंचायत प्रतिनिधियों के मानदेय में बढ़ोतरी

लेकिन सबसे बड़ा वादा- हर परिवार को एक नौकरी यह वोटरों को अविश्वसनीय लगा।

2023 के जाति सर्वे के अनुसार-

  • बिहार में 83 करोड़ परिवार
  • मौजूदा सरकारी कर्मचारी: 20 लाख
  • खाली पद: सिर्फ 3 लाख

यानी 2.63 करोड़ परिवारों को नौकरी देना संभव नहीं था।

 

एक मतदाता महेंद्र मालाकार ने इसे मजाक में कहा- “नेता कुछ भी कह सकते हैं। हम भी कह सकते हैं कि हमें सीएम बना दो, सबको एक लाख दे देंगे। कहना आसान, निभाना मुश्किल।”

 

नेरेटिव नहीं बना पाए, मुद्दे उलटे पड़े

महागठबंधन ने तीन बड़े मुद्दे उठाए-

  • SIR
  • वोट चोरी
  • नीतीश कुमार की सेहत

 

वोट अधिकार यात्रा में भीड़ तो आई पर वोट में नहीं बदली। तेजस्वी यादव ने नीतीश को “अचेत मुख्यमंत्री”, “मानसिक रूप से बीमार” कहकर निशाना बनाया।

लेकिन नीतीश कुमार ने 25 दिनों में 181 रैलियाँ करके यह संदेश दिया कि उनकी सेहत बिल्कुल ठीक है। हर दिन औसतन 7 सभाएँ, लगभग 8 घंटे प्रचार। यानी जिस मुद्दे से RJD को फायदा होना था, वही NDA के पक्ष में गया।

 

9 सीटों पर रोमांचक मुकाबला, 1000 से कम वोटों का अंतर

बिहार चुनाव 2025 के भारी-भरकम जनादेश के बीच कई सीटों पर मुकाबला बेहद रोचक रहा। राज्य की 9 सीटों पर जीत का अंतर 1000 वोटों से भी कम रहा, जहां अंतिम दौर तक परिणाम झूलते रहे। इन सीटों पर जीत-हार कुछ दर्जनों से लेकर सैकड़ों वोटों में तय हुई।

  • संदेश (भोजपुर): जदयू के राधा चरण साह ने RJD के दीपू सिंह को सिर्फ 27 वोटों से हराया – यह इस चुनाव का सबसे करीबी मुकाबला रहा।
  • आगिआंव (भोजपुर): BJP के महेश पासवान ने CPI-ML उम्मीदवार को 95 वोटों से मात दी।
  • फॉरबिसगंज (अररिया): कांग्रेस के मनोज विश्वास ने BJP के विद्या सागर केशरी को 221 वोटों से हराया।
  • रामगढ़ (कैमूर): BSP के सतीश कुमार सिंह यादव ने BJP के अशोक कुमार सिंह को 30 वोटों से पराजित किया।
  • चनपटिया (पश्चिम चंपारण): कांग्रेस के अभिषेक रंजन ने BJP के उमाकांत सिंह को 602 वोटों से हराया।
  • जहानाबाद: RJD के राहुल कुमार ने JDU के चंदेश्वर प्रसाद को 793 वोटों से मात दी।
  • गोह (औरंगाबाद): RJD के अमरेंद्र कुमार ने BJP के डॉ. रणविजय कुमार को 767 वोटों से हराया।
  • बोध गया: RJD के कुमार सर्वजीत ने LJP (राम विलास) के श्यामदेव पासवान को 881 वोटों से पराजित किया।
  • बख्तियारपुर (पटना): लोजपा के अरुण कुमार ने RJD के अनिरुद्ध कुमार को 981 वोटों से हराया।

इन करीबी मुकाबलों में संदेश सीट पर 27 वोटों का अंतर बिहार की चुनावी राजनीति के इतिहास में दर्ज सबसे कम फासलों में से एक माना जा रहा है।

NDA की टाइट कैंपेनिंग vs महागठबंधन की बिखरी रणनीति

जहां NDA ने-

  • पहले से तय उम्मीदवार
  • एकजुट होकर कैंपेन
  • नीतीश-मोदी-पार्टी संगठनों का कॉम्बिनेशन
  • योजनाओं का साफ रोडमैप

इन सब पर काम किया।

वहीं महागठबंधन-

  • उम्मीदवार तय नहीं कर पाया
  • सीट बंटवारे पर अंत तक झगड़ा
  • नेतृत्व का एक स्वर नहीं
  • राहुल गांधी शुरुआती रैलियों के बाद गायब
  • तेजस्वी पर पूरा भार
  • जमीनी संगठन कमजोर

यही अंतर आखिरकार नतीजों में दिख गया।

 

निष्कर्ष:
बिहार चुनाव 2025 में महागठबंधन की हार उनकी खुद की रणनीतिक गलतियों, आखिरी वक्त तक जारी सीट बंटवारे की खींचतान, नौ सीटों पर आपस में भिड़ने जैसी चूक, अविश्वसनीय वादों और एकजुट नेतृत्व की कमी का सीधा नतीजा रही। वहीं दूसरी तरफ NDA ने स्पष्ट संदेश, तय उम्मीदवार, संगठित प्रचार और नीतीश कुमार की आक्रामक रैलियों के दम पर मजबूत पकड़ बनाई। महागठबंधन जहां जनता के बीच भरोसेमंद विकल्प पेश नहीं कर पाया, वहीं NDA ने स्थिरता, व्यवस्था और योजनाओं के आधार पर वोटरों का विश्वास जीत लिया। कुल मिलाकर, यह चुनाव दिखाता है कि राजनीतिक एकजुटता, व्यावहारिक वादे और जमीन पर मजबूत नेटवर्क ही जीत की असली कुंजी हैं।