भारत और इजराइल ने सोमवार को एक ऐतिहासिक द्विपक्षीय निवेश समझौते (BIA) पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते से दोनों देशों के निवेशकों को करों में राहत, बेहतर सुरक्षा और पारदर्शिता का भरोसा मिलेगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और इजराइल के वित्त मंत्री बेजालेल स्मोट्रिच की मौजूदगी में हुए इस करार से भारत–इजराइल के आर्थिक रिश्तों को नई मजबूती मिलेगी। खास बात यह है कि इजराइली निवेशकों के लिए स्थानीय उपायों की समाप्ति अवधि पाँच साल से घटाकर तीन साल कर दी गई है, जिससे निवेश प्रक्रिया और तेज व सरल हो जाएगी।
- “स्थानीय उपायों की समाप्ति” का मतलब है कि कोई भी विदेशी निवेशक अंतरराष्ट्रीय अदालत में जाने से पहले उस देश की अदालतों में न्याय पाने की कोशिश करेगा। भारत में यह समय सीमा 5 साल है, लेकिन भारत–इजराइल समझौते में इसे घटाकर 3 साल कर दिया गया है।

भारत–इज़राइल सहयोग पर इज़राइली वित्त मंत्री का बयान:
इज़राइली वित्त मंत्री ने कहा कि सुरक्षा चुनौतियों के बावजूद भारत और इज़राइल ने मज़बूत आर्थिक विकास हासिल किया है। उन्होंने साइबर सुरक्षा, रक्षा, नवाचार और उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच और अधिक सहयोग की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण का बयान:
भारत और इजराइल को निवेश के अवसरों का पूरा लाभ उठाने के लिए आपसी व्यावसायिक संपर्क और सहयोग को और मज़बूत करना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले 10 वर्षों में किए गए व्यापक सुधारों ने भारत को दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनाया है और देश में निवेश के लिए एक अनुकूल माहौल तैयार किया है।
आतंकवाद के खिलाफ भारत–इज़राइल की एकजुटता:
वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने इज़राइल में हुए आतंकी हमले में निर्दोष लोगों की मौत पर गहरी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने कहा कि भारत और इज़राइल साझा सभ्यतागत मूल्यों पर आधारित हैं, जिन्होंने हमेशा वैश्विक शांति में योगदान दिया है। दोनों देशों के वित्त मंत्रियों ने आतंकवाद को एक गंभीर चुनौती मानते हुए इसके खिलाफ मिलकर खड़े होने और एक-दूसरे के प्रति एकजुटता दिखाने पर सहमति जताई।
निवेशकों के लिए सुरक्षा और पारदर्शिता की गारंटी:
यह समझौता भारत और इजराइल के रिश्तों में एक बड़ा कदम है। इससे निवेशकों को सुरक्षा, पारदर्शिता और निष्पक्ष विवाद समाधान मिलेगा। निवेश जब्ती से बचा रहेगा, नुकसान की भरपाई और निवेश के सुचारू हस्तांतरण की गारंटी होगी। साथ ही, यह निवेशकों के हित और सरकार के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखेगा। इस करार से दोनों देशों में निवेश बढ़ेगा, व्यापार को मजबूती मिलेगी और अर्थव्यवस्थाओं को लाभ होगा।
भारत-इज़राइल मुक्त व्यापार समझौते पर प्रगति:
इज़राइली वित्त मंत्री स्मोट्रिच ने कहा कि भारत और इज़राइल के बीच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर सक्रिय चर्चा चल रही है और दोनों देशों की टीमें इसके लिए उचित फ़ॉर्मूला तैयार कर रही हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि आने वाले महीनों में यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।
भारत–इज़राइल आर्थिक सहयोग पर सहमति:
दोनों मंत्रियों ने फिनटेक नवाचार, बुनियादी ढाँचे के विकास, वित्तीय विनियमन और डिजिटल भुगतान कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई। साथ ही, उन्होंने आपसी आर्थिक और वित्तीय सहयोग को मज़बूत करने तथा निवेश को बढ़ावा देने और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने पर सहमति व्यक्त की।
दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक निवेश समझौता:
इस करार के साथ इज़राइल, भारत के नए मॉडल संधि ढाँचे के तहत निवेश समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला पहला OECD सदस्य देश बन गया है। यह समझौता निवेशकों को सुरक्षा और निश्चितता देगा, पारस्परिक निवेश को बढ़ावा देगा और व्यापार व निवेश प्रवाह को मज़बूत करेगा। यह करार 1996 के पुराने समझौते की जगह लेगा, जिसे 2017 में समाप्त कर दिया गया था।
- भारत और इज़राइल ने 1996 में निवेश संधि (Investment Treaty) पर हस्ताक्षर किए थे, जिसका उद्देश्य दोनों देशों में निवेश को बढ़ावा देना और निवेशकों के लिए बेहतर माहौल बनाना था। जिसे 2017 में आपसी सहमति से समाप्त कर दिया गया।
भारत–इज़राइल निवेश स्थिति:
वर्तमान में भारत और इज़राइल के बीच कुल निवेश लगभग 80 करोड़ अमेरिकी डॉलर है। यह नया समझौता द्विपक्षीय निवेश को और तेज़ी देगा। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2000 से जून 2025 के बीच भारत को इज़राइल से 33.77 करोड़ डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्राप्त हुआ है। इसी अवधि में भारत का कुल FDI प्रवाह 1 लाख करोड़ डॉलर से अधिक हो गया है, जिससे भारत वैश्विक स्तर पर एक सुरक्षित और आकर्षक निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित हुआ है।
OECD: आर्थिक सहयोग का वैश्विक मंच
OECD (Organisation for Economic Co-operation and Development) में कुल 38 देश शामिल हैं, जिनमें यूरोप, उत्तरी अमेरिका और प्रशांत क्षेत्र के प्रमुख लोकतांत्रिक देश आते हैं, जैसे- ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, अमेरिका और दक्षिण कोरिया। यह संगठन सदस्य देशों को आर्थिक विकास, नीतिगत सुधार और सामाजिक चुनौतियों पर विचार-विमर्श और सहयोग का अवसर प्रदान करता है। इसका मुख्यालय पेरिस, फ्रांस में है.
OECD का इतिहास:
OECD की शुरुआत 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन (OEEC) के रूप में हुई थी. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप के देशों ने अपने पुनर्निर्माण में एक-दूसरे की मदद के लिए इसकी स्थापना की थी. 1960 में इसका नाम बदलकर OECD कर दिया गया और फिर 1961 में यह पूरी तरह से परिचालन में आया.
OECD के मुख्य उद्देश्य:
- आर्थिक विकास और रोज़गार को बढ़ावा देना.
- विश्व अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान देना.
- साझा समस्याओं का समाधान खोजना और सर्वोत्तम प्रथाओं की पहचान करना.
- बाजारों और कार्य करने वाली संस्थाओं में विश्वास बढ़ाना.
- नवाचार, पर्यावरण-अनुकूल रणनीतियों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की स्थिरता सुनिश्चित करना.
भारत किन देशों के साथ कर रहा है निवेश संधियों पर बातचीत?
फिलहाल भारत सऊदी अरब, कतर, ओमान, स्विट्जरलैंड, रूस, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ समेत एक दर्जन से अधिक देशों के साथ निवेश संधियों (Investment Treaties) पर बातचीत कर रहा है।
पिछले साल भारत ने यूएई और उज्बेकिस्तान के साथ निवेश संधियों को लागू किया था, जो भारत की वैश्विक निवेश साझेदारी रणनीति को और मजबूत बनाता है।
भारत–इजराइल के बीच किन सेक्टरों में बढ़ेगा आर्थिक सहयोग?
भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और इजराइल के वित्त मंत्री ने इस अवसर पर दोनों देशों ने कई अहम क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई।
मुख्य सेक्टर जिनमें आर्थिक सहयोग बढ़ेगा:
- फाइनेंशियल-टेक्नोलॉजी इनोवेशन (FinTech Innovation) – आधुनिक डिजिटल तकनीकों का साझा उपयोग।
- इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट – सड़क, रेल और अन्य आधारभूत ढांचे में निवेश।
- फाइनेंशियल रेगुलेशन – वित्तीय क्षेत्र में पारदर्शिता और नियमों को मजबूत करना।
- डिजिटल पेमेंट कनेक्टिविटी – दोनों देशों के बीच डिजिटल भुगतान प्रणालियों को जोड़ना।
सीतारमण ने कहा कि भारत और इजराइल को व्यापारिक संवाद बढ़ाकर निवेश के नए अवसर तलाशने चाहिए, ताकि इस समझौते से अधिकतम लाभ उठाया जा सके।
निष्कर्ष:
भारत और इज़राइल के बीच हुआ यह निवेश समझौता दोनों देशों के रिश्तों को नई मजबूती देगा। इससे निवेशकों को सुरक्षा और पारदर्शिता मिलेगी, व्यापार और निवेश प्रवाह बढ़ेगा तथा नए क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। यह करार आर्थिक समृद्धि और दीर्घकालिक साझेदारी का मजबूत आधार बनेगा।