कैप्टन इब्राहिम ट्रोरे: एक राष्ट्रपति से लोगों का मसीहा बनने की कहानी

पश्चिम अफ्रीका का एक छोटा सा लैंडलॉक्ड देश है..बुर्किना फासो, जो पिछले दो दशक से लगातार स्थानीय उथल-पुथल, डगमगाते राजनीतिक हालात और आतंकवाद की मार से जूझ रहा है…इस देश में आतंकवाद की अति इस कद्र हो गई है कि अब पाकिस्तान भी कहीं पीछे छूट गया है…साल 2024 के अगस्त महीने में यह देश सबसे ज्यादा चर्चा में तब आया…

….जब अल कायदा से जुड़े एक आतंकी संगठन ने यहां 200 लोगों मौत के घाट उतार दिया था…हालांकि इससे पहले भी दोस्तों, बुर्किना फासो में लंबे अरसे से अल-कायदा और आईएसआईएल जैसे चरमपंथी संगठन आतंकी हमलों को अंजाम देते रहे हैं…यूरेनियम जैसे खनिजों को भंडार…सोने उगलने वाली इस जमीन के बाशिंदे आतंक के साए और उपनिवेशवाद की जंजीरों में जकड़े हुए हैं…

….लेकिन जहां एकदम घुप अंधेरा छा जाता है वहां रोशनी की कोई ना कोई किरण किसी दिन उठती ही है…इस देश में भी वैसा ही हुआ जब 36 साल का एक युवा ने इस देश की कमान संभाली..जी हां, हम बात कर रहे हैं बुर्किना फासो के वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम ट्रोरे की जिन्होंने अपनी उम्र, साहसिक फैसले और क्रांतिकारी दृष्टिकोण से ना केवल बुर्किना फासो, बल्कि पूरे अफ्रीकी महाद्वीप और दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है…

….ये युवा नेता पश्चिमी देशों को आंख दिखाकर ललकारता है, अपने लोगों को सुनहरे दिन लाने का भरोसा दिलाता है..जिनका दुनिया में बोलबाला है उनसे सीधा मोर्चा लेता है…अपने काम करने की शैली और अंदाज के चलते बुर्किना फासो की आवाम ट्रोरे को एक मसीहा के तौर पर देख रही है…तो दोस्तों, आज इसी शख्सियत के बारे में आपको बताएंगे कि कैसे ट्रोरे के फैसलों से हिंसा, आर्थिक तंगी, भूखमरी की कगार पर खड़े इस अफ्रीकी देश को नई उम्मीद जगी है और किन नीतियों के चलते वो देश में बदलाव की एक मिसाल बने हुए हैं…तो चलिए शुरू करते हैं.

दोस्तों, इब्राहिम ट्रोरे का जन्म 1988 में हुआ था और 2009 में वह बुर्कीना फासो की सेना में शामिल हो गए थे. ट्रोरे सेना में रहने के दौरान शुरू से ही अपने साथियों के साथ तालमेल बनाने से लेकर लीडरशिप क्वालिटी में अव्वल दर्जे के सिपाही थे. सेना में कुछ साल शानदार काम करने के बाद उनकी काबिलियत के दम पर उन्हें 2020 में कैप्टन बना दिया गया.

आपको बता दें कि जब ट्रोरे सेना में कैप्टन बने तब उनका देश एक बहुत ही बुरे दौर से गुजर रहा था और ये वो समय था जब बुर्कीना फासो में जोरदार हिंसा फैली हुई थी और हिंसा के आगे तत्कालीन राष्ट्रपति रोच मार्क क्रिश्चियन काबोरे एकदम बेबस नजर आ रहे थे. अब जब हालात कंट्रोल से बाहर हो गए तो सेना की एंट्री हुई और कर्नल दामिबा ने जनवरी 2022 में देश की कमान संभाल ली…लेकिन दामिबा भी कुछ समय बाद लाचार पड़ गए और देश के हालात बिगड़ते चले गए.

इस बीच दोस्तों आपको बता दें कि, बुर्किना फासो की कुल आबादी में से 64 फीसदी बसने वाली आबादी मुस्लिम है और बीते 2 दशक से बुर्किना फासो का माहौल अशांत है…यहां सेना के तख्ता पलट करने के बाद से ही लगातार विद्रोही गुटों का सेना से आमना-सामना होता रहता है. इस दौरान यहां के लोगों ने बहुत कुछ सहा है और बीते कालखंड में यहां हजारों लोगों की हत्या की जा चुकी है और लाखों लोग बेघर हुए हैं.

ऐसे में अब जब 2022 की शुरूआत में देश के लगातार हालात बिगड़ रहे थे और बिगड़ते जा रहे थे…इस बीच मौका देखकर इब्राहिम ट्रोरे ने एक ही साल में दूसरा सैन्य तख्तापलट कर दिया और सितंबर 2022 में उन्होंने दामिबा से भी देश की कमान छीन ली…अब ट्रोरे बुर्कीना फासो के राष्ट्रपति थे और बनते ही उन्होंने इतिहास रच दिया कि दुनिया भर में वो दूसरे सबसे युवा सर्विंग हेड ऑफ स्टेट थे. वहीं उन्होंने अपने पहले भाषण में कहा – बुर्किना का अस्तित्व खतरे में है…देश को सुरक्षित बनाना ही मेरा मकसद है.

अब देश के मुखिया की कुर्सी पर बैठते ही इब्राहिम देखते ही देखते आतंकवाद, गरीबी और उपनिवेशवादी ताकतों के खिलाफ लिए गए फैसलों से लोगों के बीच एक क्रांतिकारी नेता के रूप में स्थापित हो गए. उनकी नीतियों जैसे मुफ्त शिक्षा, सोने की खदानों का राष्ट्रीयकरण और फ्रांसीसी प्रभाव को एकदम से खत्म करना, में लोगों को आत्मनिर्भर और स्वतंत्र अफ्रीका का सपना दिखने लगा.

आपको अब बताते हैं कि ट्रोरे के कुछ फैसले जिसने उनको रातों-रात देश के लोगों के बीच हीरो बना दिया. महज 36 साल की उम्र में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के ट्रोरे ने पहले ऐसे देशों से सीधा मोर्चा लिया जिनका अर्थव्यवस्था में बोलबाला है जैसे कि बीते दिनों उन्होंने कथित रूप से सऊदी अरब के बुर्किना फासो में 200 मस्जिद बनाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. ट्रोरे ने साउदी अरब से कहा कि वो उनके देश में बुनियादी जरूरतों को पूरा करे…स्कूल, अस्पताल बनवाए और रोजगार के लिए अवसर पैदा करें जिससे उनके देश के लोगों का जीवन स्तर सुधरे.

वहीं इसके बाद उन्होंने इंटरनेशनल मोनेटरी फंड और वर्ल्ड बैंक से किसी भी तरह की वित्तीय मदद लेने से मना कर दिया. इसके जरिए ट्रोरे ने सीधा दुनिया को ये संदेश दिया कि पश्चिमी देशों की मदद बिना भी बुर्किनो फासो विकास की राह पकड़ सकता है. वहीं इसके बाद साल 2023 में उन्होंने फ्रांसीसी सैनिकों को वापस भेजने का आदेश दिया और साफ शब्दों में कहा कि बुर्कीना फासो में अब पश्चिमी देशों की मनमानी नहीं चलने देंगे.

इसके अलावा ट्रोरे ने देश में यूनिवर्सिटी स्तर तक मुफ्त शिक्षा व्यवस्था लागू करने का ऐलान किया जो शिक्षा के क्षेत्र में उनका क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है. वहीं जैसा कि आप जानते हैं कि बुर्कीना फासो खनिजों का बहुत बड़ा भंडार है जिस पर पश्चिम के कई देशों की नजर अटकी रहती है, ये देश यहां से खनिज लगातार निकालते हैं लेकिन ट्रोरे ने आते ही इसे रोकने का फैसला लिया और कई खदानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया..अनरिफाइंड गोल्ड के यूरोप निर्यात पर रोक लगा दी और देश में ही नेशनल गोल्ड रिफाइनरी का उद्घाटन कर दिया.

तो दोस्तों, अब देखना ये है कि इब्राहिम ट्रोरे जिस स्पीड से आगे बढ़ रहे हैं क्या वो आने वाले दिनों में अपने देश की तकदीर बदल सकते हैं. दुनिया के कई देश भी उनके फैसलों को लगातार देख रहे हैं और कई देशों को प्रभुत्व डगमगाने का संकट भी दिख रहा है लेकिन बुर्किनो फासो का भविष्य वहां की गोल्ड माइंस की तरह सुनहरा होगा या नहीं ये वक्त बताएगा.