कूनो नेशनल पार्क में एक बार फिर दुखद खबर सामने आई है। दक्षिण अफ्रीका से लाई गई मादा चीता वीरा के 10 महीने के शावक की मौत हो गई। शुक्रवार दोपहर बाद पारोंद के जंगल में शावक का शव मिला। इस घटना के बाद कूनो में अब कुल 28 चीते बचे हैं। यह मौत भारत सरकार की महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट चीता के लिए एक और चुनौती है।
क्या हुआ था?
गुरुवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने चीता वीरा और उसके दोनों शावकों को कूनो के पारोंद क्षेत्र में खुले जंगल में रिलीज किया था। लेकिन गुरुवार देर रात ही यह शावक अपनी मां से अलग हो गया। शुक्रवार को जब इसकी खोज शुरू की गई तो दोपहर बाद जंगल में इसका शव मिला।
चीता प्रोजेक्ट के फील्ड डायरेक्टर उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि शावक की मौत का असली कारण पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल पाएगा। प्रारंभिक जांच में शावक के शरीर पर किसी तरह की चोट या किसी जानवर से लड़ाई के निशान नहीं मिले हैं।
अच्छी बात यह है कि मादा चीता वीरा और उसका दूसरा शावक पूरी तरह सुरक्षित हैं। वन विभाग के अधिकारी उन दोनों की लगातार निगरानी कर रहे हैं।
कूनो में अब कितने चीते बचे?
इस शावक की मौत के बाद कूनो नेशनल पार्क में चीतों की कुल संख्या घटकर 28 रह गई है। इनमें 8 वयस्क चीते हैं, जिनमें 5 मादा और 3 नर शामिल हैं। बाकी 20 चीते भारत में जन्मे शावक हैं। पार्क प्रबंधन ने बताया कि अन्य सभी चीते स्वस्थ हैं और उनकी सेहत पर चौबीसों घंटे नजर रखी जा रही है।
चीता प्रोजेक्ट के अधिकारी इस घटना की गहराई से जांच कर रहे हैं। इस जांच में शावकों का प्राकृतिक व्यवहार, जंगल में मौजूद खतरे और निगरानी व्यवस्था की समीक्षा भी शामिल है।
प्रोजेक्ट चीता क्या है?
प्रोजेक्ट चीता भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी पहल है जिसका उद्देश्य 1952 में विलुप्त हो चुके चीतों को भारत में वापस लाना है। यह दुनिया की पहली अंतर-महाद्वीपीय जंगली मांसाहारी स्थानांतरण परियोजना है।
1947 में कोरिया के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव द्वारा अंतिम तीन एशियाई चीतों का शिकार किए जाने के बाद भारत से चीते विलुप्त हो गए थे। 1952 में सरकार ने इन्हें आधिकारिक तौर पर विलुप्त घोषित कर दिया।
इस प्रोजेक्ट के तहत भारत को कुल 20 चीते मिलने हैं, जिनमें से 12 दक्षिण अफ्रीका से और 8 नामीबिया से लाए जा रहे हैं। भारत ने इस काम के लिए चीता संरक्षण कोष के साथ साझेदारी की है।
कूनो को क्यों चुना गया?
मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो राष्ट्रीय उद्यान को इसलिए चुना गया क्योंकि यहां की स्थलाकृति और जलवायु दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया जैसी है। यहां का तापमान, बारिश और ऊंचाई चीतों के अनुकूल है। 2006 से इस स्थल की निगरानी की जा रही है।
सरकार ने स्थानीय लोगों को चीतों के बारे में जागरूक करने के लिए “चीता मित्रों” का प्रशिक्षण भी दिया है। 51 गांवों के लगभग 400 लोगों को प्रशिक्षित किया गया है ताकि चीतों और स्थानीय लोगों के बीच किसी तरह का संघर्ष न हो।
पहले भी हो चुकी हैं कई मौतें
कूनो नेशनल पार्क में चीता प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद से अब तक कई चीतों की मौत हो चुकी है:
2023 में हुई मौतें:
- मार्च 2023 में मादा चीता साशा की किडनी इन्फेक्शन से मौत। उसे भारत में लाने से पहले ही किडनी की बीमारी थी।
- अप्रैल में नर चीता उदय की दिल का दौरा पड़ने से मौत
- मई में मादा चीता दक्षा की मेटिंग के दौरान हिंसक झड़प में मौत
- मई में ज्वाला के तीन शावकों की तेज गर्मी, लू और डिहाइड्रेशन से मौत। उस समय तापमान 46-47 डिग्री था।
- जुलाई में नर चीते तेजस और सूरज की चीतों के आपसी संघर्ष में मौत
- अगस्त में मादा चीता धात्री की इन्फेक्शन से मौत
2024 में हुई मौतें:
- जनवरी में नर चीता शौर्य की मौत
- अगस्त में गामिनी के एक शावक की रीढ़ की हड्डी टूटने से मौत
- अगस्त में नर चीता पवन की मौत, शव नाले में मिला था
- नवंबर में चीता निर्वा से जन्मे 2 शावकों की मौत, दोनों के शव क्षत-विक्षत हालत में मिले
सकारात्मक पहलू भी हैं
हालांकि कुछ चीतों की मौत चिंता का विषय है, लेकिन इस प्रोजेक्ट में सफलता के संकेत भी हैं। मार्च 2023 में मादा चीता ज्वाला ने कूनो में चार शावकों को जन्म दिया था। जनवरी 2024 में मादा चीता आशा ने भी तीन शावकों को जन्म दिया। अब तक भारत में 20 शावकों का जन्म हो चुका है, जो इस प्रोजेक्ट की सफलता की निशानी है।
प्रोजेक्ट चीता का महत्व
यह प्रोजेक्ट केवल चीतों को वापस लाने तक सीमित नहीं है। इसके कई महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं:
- पारिस्थितिक संतुलन: चीते सर्वोच्च शिकारी हैं और खाद्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
- जैव विविधता: चीतों की वापसी से जैव विविधता बढ़ेगी
- घास के मैदान: चीता संरक्षण से घास के मैदानों और उनके पर्यावास को पुनर्जीवित किया जा सकेगा
- वन्यजीव पर्यटन: इससे वन्यजीव पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा
- वैज्ञानिक अनुसंधान: चीतों के व्यवहार और स्वास्थ्य पर शोध के अवसर मिलेंगे
चीतों के बारे में रोचक बातें
- चीते शेर की तरह दहाड़ नहीं सकते, बल्कि वे बिल्लियों की तरह गुर्राते हैं और कई बार भौंकते भी हैं
- ये 2 किलोमीटर दूर की आवाज भी साफ सुन सकते हैं
- 8 महीने की उम्र में चीते खुद शिकार करना सीख जाते हैं
- शिकार के समय छुपने के लिए चीते अपने शरीर पर बने धब्बों का सहारा लेते हैं
- चीते के शरीर पर औसतन 2 हजार से ज्यादा धब्बे होते हैं
- सिर्फ 3 हफ्ते में शावक मीट खाने लगते हैं
- चीते दिन में शिकार करते हैं क्योंकि रात में इनकी नजर कमजोर होती है
- एक चीते के आमतौर पर 3 से 5 शावक होते हैं
- एक चीते का वजन 36 से 65 किलो तक होता है
- चीते की औसत उम्र 10 से 12 साल होती है
- चीता 3 फीट तक लंबा होता है
आगे की राह
कूनो नेशनल पार्क प्रबंधन चीतों की सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। विशेषज्ञों की टीम लगातार चीतों की निगरानी कर रही है। चीते विलुप्त होने के मुख्य कारण थे – मानव-वन्यजीव संघर्ष, आवास की कमी, शिकार की हानि और अवैध तस्करी। अब सरकार इन सभी पहलुओं पर ध्यान दे रही है।
प्रोजेक्ट चीता लंबी अवधि की परियोजना है। हालांकि कुछ चुनौतियां हैं, लेकिन भारत में जन्मे 20 शावक उम्मीद की किरण हैं। यह परियोजना न केवल चीतों को बचाने के लिए है, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करने और भारत की खोई हुई प्राकृतिक विरासत को पुनर्स्थापित करने का प्रयास है।
वन विभाग का कहना है कि वे लगातार सीख रहे हैं और अपनी रणनीतियों में सुधार कर रहे हैं ताकि बाकी चीते सुरक्षित रहें और यह महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट सफल हो सके।
