चीन ने भारत सीमा के पास ब्रह्मपुत्र पर शुरू किया दुनिया का सबसे बड़ा बांध निर्माण: सामरिक और पर्यावरणीय चिंताएं बढ़ीं

चीन ने भारत और बांग्लादेश की आपत्तियों के बावजूद दक्षिण-पूर्वी तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी (जिसे चीन में यारलुंग त्संगपो कहा जाता है) पर दुनिया के सबसे बड़े बांध के निर्माण की औपचारिक शुरुआत कर दी है। चीन का दावा है कि इस परियोजना से प्रतिवर्ष लगभग 300 अरब किलोवाट घंटे (kWh) बिजली का उत्पादन किया जा सकेगा, जिससे तिब्बत क्षेत्र की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकेगी।

चीन की आधिकारिक समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, इस परियोजना पर 1.2 ट्रिलियन युआन (लगभग 167 अरब अमेरिकी डॉलर या 14 लाख करोड़ रुपये) का निवेश प्रस्तावित है। परियोजना का उद्घाटन चीनी प्रधानमंत्री ली क्यांग द्वारा किया गया।

इस परियोजना की जिम्मेदारी चाइना याजियांग ग्रुप नामक एक नवगठित कंपनी को सौंपी गई है, जिसका औपचारिक उद्घाटन भी शनिवार को किया गया। यह कंपनी तिब्बत के दक्षिण-पूर्व में स्थित निंगची शहर के पास पांच जलप्रपातों वाले जलविद्युत संयंत्र का निर्माण कार्य संभालेगी।

रणनीतिक पृष्ठभूमि और पूर्व परियोजनाएँ

बता दें कि चीन पहले ही वर्ष 2015 में ब्रह्मपुत्र पर 1.5 बिलियन डॉलर लागत वाले जैम हाइड्रोपावर स्टेशन की शुरुआत कर चुका है, जिसे तिब्बत की सबसे बड़ी परियोजना माना जाता है।

वर्तमान में प्रस्तावित यह विशाल बांध परियोजना चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021–2025) का हिस्सा है। वर्ष 2020 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CPC) ने जिस प्रमुख नीतिगत दस्तावेज को स्वीकृति प्रदान की थी, यह परियोजना उसी का भाग है। चीन इसे राष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक विकास की दिशा में एक आवश्यक कदम मानता है और इसे 2035 तक तय दीर्घकालिक लक्ष्यों के अनुरूप बताता है।

 

परियोजना की मुख्य विशेषताएँ

  • बिजली उत्पादन क्षमता: यह डैम प्रति वर्ष 300 अरब यूनिट (kWh) से अधिक बिजली उत्पन्न करेगा। इस मात्रा की बिजली से लगभग 30 करोड़ लोगों की वार्षिक जरूरतें पूरी की जा सकती हैं।
  • संरचना: परियोजना में पाँच सीढ़ीदार (कैस्केड) हाइड्रोपावर स्टेशन शामिल होंगे, जो जलप्रपातों के माध्यम से बिजली उत्पादन करेंगे।
  • स्थान: परियोजना का निर्माण कार्य तिब्बत के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र के निंगची शहर के पास किया जा रहा है।

 

भारत-चीन संबंधों में बढ़ सकता है तनाव

इस परियोजना को लेकर भारत और चीन के बीच कूटनीतिक तनाव की आशंका जताई जा रही है। चीन का यह कहना है कि बांध से निचले इलाकों भारत और बांग्लादेश पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि, कई चीनी पर्यावरणविद इस दावे को लेकर आशंकित हैं। उनका मानना है कि इस क्षेत्र की पारिस्थितिक संवेदनशीलता को देखते हुए यह निर्माण अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय क्षति पहुँचा सकता है।

यह क्षेत्र लगभग 50 किलोमीटर के दायरे में स्थित है, जहाँ ब्रह्मपुत्र नदी करीब 2,000 मीटर (6,560 फीट) की ऊंचाई से गिरती है। यह न सिर्फ एक राष्ट्रीय प्रकृति अभयारण्य है, बल्कि जैव विविधता के दृष्टिकोण से भी यह चीन के प्रमुख प्राकृतिक क्षेत्रों में शामिल है।

विशेषज्ञों का मानना है कि जल संसाधनों के इस तरह के एकपक्षीय उपयोग से न केवल पारिस्थितिक संतुलन प्रभावित होगा, बल्कि इससे सीमापार संबंधों में भी असमंजस और तनाव उत्पन्न हो सकता है।

 

भारत ब्रह्मपुत्र पर चीन के बांध का विरोध क्यों कर रहा है?

भारत ने ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा बनाए जा रहे बांध का विरोध निम्न कारणों से किया है:

  1. जल प्रवाह पर नियंत्रण– बांध से चीन को जल प्रवाह नियंत्रित करने की शक्ति मिलेगी, जिससे अरुणाचल और असम में सूखा या बाढ़ आ सकती है।
  2. पर्यावरणीय खतरा– यह बांध भूकंप-प्रवण क्षेत्र में बन रहा है, जिससे नदी की पारिस्थितिकी और जैव विविधता प्रभावित होगी।
  3. कृषि और आजीविका पर असर– जल और गाद की कमी से पूर्वोत्तर भारत के किसानों और मछुआरों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है।
  4. राजनीतिक तनाव– यह परियोजना भारत-चीन सीमा विवाद को और बढ़ा सकती है।
  5. क्षेत्रीय प्रभाव– बांग्लादेश, भूटान और नेपाल जैसे देशों पर भी असर पड़ेगा; दक्षिण एशिया में जल-सहयोग की कमी चिंता का विषय है।

तिब्बत में चीन बनाएगा पांच जलप्रपात बांध: भारत के लिए नई चिंता

चीन ने ‘चाइना याजियांग ग्रुप’ नामक एक नई कंपनी लॉन्च की, जो तिब्बत के निंगची क्षेत्र में पांच जलप्रपात (Waterfall) बांधों वाली एक बड़ी जलविद्युत परियोजना का निर्माण करेगी।

  • परियोजना का स्थान: यह परियोजना ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी हिस्से में, भारत के अरुणाचल प्रदेश के पास स्थित है।
  • बिजली आपूर्ति का उद्देश्य: शिन्हुआ के अनुसार, इससे उत्पादित बिजली मुख्य रूप से तिब्बत के बाहर भेजी जाएगी, जबकि कुछ हिस्सा स्थानीय जरूरतों के लिए उपयोग किया जाएगा।
  • भारत की चिंता: इन बांधों से चीन को ब्रह्मपुत्र के जल प्रवाह को नियंत्रित करने की और अधिक शक्ति मिलेगी, जिससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में पर्यावरणीय असंतुलन और जल संकट की आशंका बढ़ जाती है।

 

आइए जानते है, ब्रह्मपुत्र नदी: के बारे में-

ब्रह्मपुत्र, जिसका अर्थ है “ब्रह्मा का पुत्र”, का उद्गम दक्षिण-पश्चिम तिब्बत में कैलाश पर्वत के पास चेमायुंगदुंग हिमनद (Chemayungdung Glacier) से होता है। यह स्थान सिंधु और सतलुज नदियों के स्रोतों के भी निकट है। तिब्बत में इसे ‘सांगपो’ (Tsangpo) के नाम से जाना जाता है, जहाँ यह धीरे-धीरे एक चौड़ी नदी के रूप में लगभग 640 किमी तक बहती है।

यह एशिया की सबसे प्रमुख नदी प्रणालियों में से एक है। ब्रह्मपुत्र तिब्बत, अरुणाचल प्रदेश और असम होते हुए बांग्लादेश से गुजरती है और अंततः बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।

पूर्वोत्तर भारत में यह नदी कृषि, जीवनयापन और पारिस्थितिकी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्रीय जैव विविधता को सहारा देती है और कई दुर्लभ एवं संकटग्रस्त जीव-जंतुओं को आश्रय प्रदान करती है।

 

भारत के लिए ब्रह्मपुत्र नदी का महत्त्व

ब्रह्मपुत्र नदी विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत के लिए जीवनरेखा जैसी है। यह न केवल जलस्रोत के रूप में, बल्कि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकी, परिवहन और संस्कृति में भी गहरा योगदान देती है। नीचे इसके प्रमुख महत्व बिंदुवार दिए गए हैं:

  1. सिंचाई और कृषि: ब्रह्मपुत्र और इसकी सहायक नदियाँ खेतों को पानी उपलब्ध कराती हैं। यह उपजाऊ गाद (मिट्टी) छोड़ती है, जो कृषि के लिए अत्यंत लाभकारी है।
  2. जलविद्युत उत्पादन: यह नदी जलविद्युत परियोजनाओं के लिए उपयुक्त है, जिससे बिजली उत्पादन किया जाता है। इससे क्षेत्र की ऊर्जा ज़रूरतें पूरी होती हैं।
  3. परिवहन का साधन: ब्रह्मपुत्र नदी नौगम्य (navigable) है और अंतर्देशीय जल परिवहन में उपयोग होती है। यह नदी दूरदराज़ के क्षेत्रों को जोड़ने में मदद करती है, जिससे व्यापार और आवागमन में सुविधा होती है।
  4. मत्स्य पालन और जीविका: यह नदी मछलियों की अनेक प्रजातियों का घर है। हज़ारों लोग इस पर निर्भर होकर मत्स्य पालन से अपनी जीविका चलाते हैं।
  5. पारिस्थितिक संतुलन: ब्रह्मपुत्र घाटी में जैव विविधता अत्यधिक है, दुर्लभ वनस्पतियाँ, पक्षी और जलीय जीव यहाँ पाए जाते हैं। यह कई राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों को भी सहारा देती है।

निष्कर्ष:

ब्रह्मपुत्र पर चीन द्वारा बनाए जा रहे बड़े बांध केवल ऊर्जा उत्पादन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह एक रणनीतिक उपकरण भी बन सकते हैं। चीन यदि चाहे तो तिब्बत में जल संचयन कर भारत को बिना पूर्व सूचना के पानी छोड़कर बाढ़ जैसी आपदाओं का सामना करवा सकता है। इससे अरुणाचल प्रदेश और असम जैसे संवेदनशील क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होंगे।

बांधों का निर्माण न केवल पर्यावरण और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि नदी के साथ आने वाली खनिज-समृद्ध गाद को भी रोक देता है, जिससे कृषि और तटीय स्थिरता पर असर पड़ता है।

2020 में लोवी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट ने चेताया था कि तिब्बती नदियों पर नियंत्रण चीन को भारत की अर्थव्यवस्था पर अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण देने में सक्षम बना सकता है। अतः यह स्थिति केवल पारिस्थितिकीय नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक चिंता का विषय भी बन चुकी है।