109 साल पुराने महल पर झंडा फहराने को लेकर विवाद: भरतपुर राजपरिवार में पिता बनाम पुत्र, पुलिस-प्रशासन में मचा हड़कंप

भरतपुर के 109 साल पुराने शाही महल मोती महल पैलेस पर झंडा फहराने को लेकर विवाद बढ़ गया है। यह झगड़ा पूर्व राजघराने के झंडों को लेकर है। विवाद के कारण जाट समुदाय में फूट पड़ी है और महल के आसपास सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। हाल ही में जाट समाज ने रियासतकालीन झंडा लगाने की घोषणा की थी, लेकिन महाराजा विश्वेंद्र सिंह की अपील के बाद उन्होंने अपना फैसला बदल दिया।

Controversy over hoisting the flag on a 109-year-old palace

पूर्व राजघराने में लंबे समय से चला आ रहा पारिवारिक विवाद:

विश्वेंद्र सिंह, उनकी पत्नी दिव्या सिंह और बेटे अनिरुद्ध सिंह के बीच वर्षों से पारिवारिक विवाद चल रहा है, जिसका मुख्य कारण पूर्व राजपरिवार की करोड़ों की संपत्ति, स्वर्ण आभूषण और प्राचीन वस्तुएं हैं। वर्तमान कानूनी मामला लगभग एक साल पहले तब शुरू हुआ जब विश्वेंद्र सिंह ने भरतपुर में याचिका दायर कर पत्नी और बेटे से भरण-पोषण की मांग की।

ताजा विवाद 23 अगस्त को तब भड़का, जब अनिरुद्ध सिंह ने सोशल मीडिया पर दावा किया कि पैतृक संपत्ति ‘कोठी बंद बरैठा’ को अवैध रूप से बेच दिया गया और न तो उन्होंने और न उनकी माँ ने इसे मंजूरी दी थी। इसके अलावा उन्होंने इसे अदालत में चुनौती देने और स्थगन आदेश की मांग करने की बात कही।

पिता की प्रतिक्रिया और आरोप:

अगले दिन, विश्वेंद्र सिंह ने सोशल मीडिया पर जवाब देते हुए कहा कि ‘कोठी बंद बरैठा’ उनकी निजी संपत्ति है, पूर्व राजपरिवार की नहीं। उन्होंने बताया कि उन्हें इसे बेचने का अधिकार था, लेकिन उनकी पत्नी दिव्या सिंह ने उन्हें मजबूर किया और उस पैसे से नई दिल्ली में अपने नाम पर फ्लैट खरीद लिया।

विश्वेंद्र सिंह ने आरोप लगाया कि अप्रैल 2021 से वे मोती महल में नहीं गए हैं और उनकी अनुपस्थिति में पत्नी और बेटे ने महल की कीमती चीजें, जैसे दरवाजे और खिड़कियाँ, बेच दीं। उन्होंने यह भी कहा कि महल का ऐतिहासिक झंडा बदल दिया गया।

दो झंडों को लेकर कैसे शुरू हुआ विवाद:

विवाद दो झंडों को लेकर है; दोनों ही पूर्व राजघरानों के हैं। एक झंडा बहुरंगी पंचरंगा (हरा, नारंगी, बैंगनी, पीला और लाल) है, जबकि दूसरा सरसों रंग का है, जिस पर लाल और नीले चौकोर निशान और हनुमान जी की तस्वीर है।

पहले लंबे समय तक हनुमान जी वाला झंडा महल पर लहराता था, लेकिन एक महीने पहले इसे पंचरंगा झंडे से बदल दिया गया। इसी बदलाव के कारण समुदाय में बहस शुरू हुई और लोग दो हिस्सों में बंट गए कि महल की प्राचीर से कौन सा झंडा फहराया जाए।

पूर्व राजकुमार अनिरुद्ध सिंह का ब्यान:

पूर्व राजकुमार अनिरुद्ध सिंह ने कहा कि परंपरा के अनुसार दो झंडे होते हैं—एक युद्ध के लिए और एक शांति के लिए। महल उनका घर है और उन्हें किसी भी झंडे को फहराने का अधिकार है, बस वह झंडा अलगाववादी या तोड़फोड़ का प्रतीक न हो।

विश्वेंद्र सिंह ने महल के सामने प्रदर्शन करने से रोका:

समुदाय के कई लोगों ने झंडा बदलने पर आपत्ति जताई और महल के सामने विरोध करने का फैसला किया। जबकि पूर्व विधायक और मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने जाटों से महल के सामने विरोध न करने को कहा और उन्हें रोक दिया। वही प्रशासन ने उन्हें तिरंगा फहराने की सलाह दी थी।

रविवार को और भड़का मामला:

स्थिति पहले कुछ नियंत्रण में लग रही थी, लेकिन रविवार की रात मामला फिर भड़क गया। तीन लोग—मनुदेव सिनसिनी, भगत सिंह और दौलत फौजदार—महल के बंद गेट को तोड़कर कार से अंदर आए और हनुमान जी वाली झंडा गार्ड रूम के ऊपर फहरा दिया। उस वक्त अनिरुद्ध सिंह महल के अंदर थे। घटना के बाद मथुरा गेट थाने आकर अनिरुद्ध सिंह ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

आरोपियों को गिरफ्तार करने के प्रयास में पुलिस:

पुलिस बल तैनात किया गया है ताकि शांति व्यवस्था बनी हुई है। फिर भी तीनों आरोपी मौके से भाग निकले हैं और पुलिस उनकी गिरफ्तारी के लिए प्रयास कर रही है। पुलिस ने जिस गाड़ी से गेट को टक्कर मारी गई थी उसे मनुदेव सिनसिनी के आवास से अपने कब्जे में ले लिया है।

मामले पर SP दिगंत आनंद ने क्या कहा?

Bharatpur के SP दिगंत आनंद ने कहा कि मोती महल निजी संपत्ति है और कानून-व्यवस्था बने रहने तक पुलिस झंडा फहराने में हस्तक्षेप नहीं करेगी। उन्होंने चेतावनी दी कि किसी भी तरह की बाधा डालने पर कार्रवाई होगी।

भरतपुर में झंडा विवाद का पुराना इतिहास:

भरतपुर के पूर्व राजपरिवार में झंडों को लेकर विवाद नया नहीं है। पहले भी दो बार ऐसा हो चुका है:

  • पहला विवाद: भरतपुर में पहला झंडा विवाद 1948 में मत्स्य राज्य के गठन के समय हुआ। महाराजा किशन सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह के राजगद्दी पर आने के बाद, भरतपुर, अलवर, धौलपुर और करौली के विलय की घोषणा हुई। भरतपुर में इस विलय और रियासतकालीन झंडे को उतारने के खिलाफ विरोध शुरू हो गया।
  • भारत सरकार ने सेना भेजी, राजा मानसिंह और ठाकुर देशराज सिंह को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद अंततः राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा और भरतपुर का शाही झंडा दोनों फहराए गए और मत्स्य राज्य का उद्घाटन हुआ।
  • दूसरा विवाद: दूसरा झंडा विवाद 1985 के विधानसभा चुनाव में हुआ। राजा मानसिंह के शाही झंडे को फाड़े जाने पर वे गुस्से में जीप लेकर सभा स्थल पर आये और गुस्से में हेलिकॉप्टर को टक्कर मार दी।
  • अगले दिन पुलिस ने उन्हें और उनके साथियों को रोकते हुए गोलीबारी की, जिसमें राजा मानसिंह और दो साथी मारे गए। इसके बाद CM शिवचरण माथुर ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया।

मोती महल पैलेस की विशेषता:

मोती महल पैलेस 100 एकड़ में फैला हुआ है और चारों ओर से चारदीवारी से घिरा हुआ है। राजस्व अभिलेखों में इसे ‘मोती महल’ के नाम से दर्ज किया गया है।

महल के अंदर कोठी दरबार है, जिसका क्षेत्रफल 87,145 वर्ग फुट है और इसे विश्वेंद्र सिंह ने बनवाया था। इसके साथ ही दरबार के पास सूरज महल स्थित है। महल में एक मंदिर और पूजा स्थल भी मौजूद है।

निष्कर्ष:

भरतपुर के मोती महल पैलेस का झंडा विवाद न केवल शाही परंपरा और विरासत का प्रतीक है, बल्कि यह स्थानीय समुदाय और पूर्व राजपरिवार के बीच संवेदनशील भावनाओं का भी प्रतीक बन गया है।

हालांकि सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है और पक्षकारों ने समझौते की ओर कदम बढ़ाए हैं, यह मामला शाही परिवार के अधिकार और सार्वजनिक भावनाओं के संतुलन को बनाए रखने की चुनौती को दर्शाता है।

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