पीएम मोदी ने रविवार को असम के गोलाघाट जिले स्थित नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड (NRL) में बायोएथेनॉल प्लांट का उद्घाटन किया और पॉलीप्रोपलीन यूनिट की आधारशिला रखी। इस मौके पर उन्होंने कहा कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ रहा है। यह संयंत्र पूरी तरह ‘शून्य अपशिष्ट’ तकनीक पर आधारित है, जिसमें बांस के पौधे के हर हिस्से का उपयोग किया जाएगा।

असम की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई मजबूती:
अधिकारियों के अनुसार, यह परियोजना असम और पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई ताकत प्रदान करेगी। अनुमान है कि इससे राज्य को हर वर्ष लगभग ₹200 करोड़ का आर्थिक लाभ होगा। संयंत्र का संचालन पूर्वोत्तर के चार राज्यों से आने वाले करीब 5 लाख टन हरे बांस की आपूर्ति पर आधारित होगा।
इसके साथ ही, परियोजना से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 50,000 से अधिक लोगों को रोजगार और आजीविका के अवसर मिलेंगे, जिससे स्थानीय समुदायों की जीवनशैली और आर्थिक स्थिति में व्यापक बदलाव आने की उम्मीद है।
बांस आधारित बायो-रिफाइनरी का आर्थिक और सामाजिक असर:
- बांस की सालाना खरीदारी: संयंत्र असम, अरुणाचल प्रदेश और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से हर साल 5 लाख टन हरा बांस खरीदेगा।
- उत्पादन क्षमता
- 48,900 टन इथेनॉल
- 11,000 टन एसीटिक एसिड
- 19,000 टन फर्फ्यूरल
- 31,000 टन फूड-ग्रेड CO₂
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: परियोजना से असम की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लगभग ₹200 करोड़ का लाभ होगा। इससे किसानों और आदिवासी समुदायों को सीधा फायदा और रोज़गार मिलेगा।
- अंतरराष्ट्रीय साझेदारी: यह प्रोजेक्ट नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड (NRL), फ़िनलैंड की Fortum और Chempolis OY का संयुक्त उपक्रम है। यह ग्रीन टेक्नोलॉजी में भारत की बढ़ती रणनीतिक साझेदारी को दर्शाता है।
इथेनॉल, तेल और गैस का सशक्त विकल्प: प्रधानमंत्री मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इथेनॉल एक ऐसा ईंधन है जो तेल और गैस का बेहतर विकल्प बनकर उभर रहा है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2014 में इथेनॉल ब्लेंडिंग केवल 1.53% थी, जो 2022 में बढ़कर 10% हो गई। जहां 2030 तक 20% ब्लेंडिंग का लक्ष्य रखा गया था, वहीं भारत ने यह उपलब्धि 2025 तक ही हासिल कर ली। यह उपलब्धि दिखाती है कि देश किस तेजी से हरित ऊर्जा की ओर अग्रसर है।
बांस से आत्मनिर्भरता की ओर असम का सफर:
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नुमालीगढ़ में बांस आधारित इथेनॉल संयंत्र के उद्घाटन अवसर पर कहा कि वो दिन भुलाए नहीं जा सकते, जब पिछली सरकारों के दौर में बांस काटने पर लोगों को जेल जाना पड़ता था। उन्होंने याद दिलाया कि बांस आदिवासियों की रोजमर्रा की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है और उनकी सरकार ने बांस काटने पर लगे प्रतिबंध को हटाकर यह अन्याय समाप्त किया।
पीएम मोदी ने कहा कि इस फैसले से पूर्वोत्तर के लोगों को सीधा लाभ मिल रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अब “मेक इन असम” और “मेक इन इंडिया” की नींव और मजबूत होगी।
उन्होंने आगे कहा कि आने वाले समय में असम की पहचान पॉलीप्रोपाइलीन से बने उत्पादों से होगी। साथ ही, असम को आत्मनिर्भर भारत अभियान का केंद्र बताते हुए उन्होंने कहा कि राज्य को अब बड़े अभियानों के लिए चुना गया है। इसमें सबसे अहम है सेमीकंडक्टर मिशन, जो असम को नई औद्योगिक क्रांति का हिस्सा बनाएगा।
2017 से बांस नीति में परिवर्तन:
सरकार ने एक ऐतिहासिक पहल के तहत भारतीय वन (संशोधन) अध्यादेश, 2017 जारी किया है। इस अध्यादेश के अनुसार, गैर–वन क्षेत्रों में उगाई गई बांस को पेड़ की परिभाषा से बाहर कर दिया गया है। इसके परिणामस्वरूप बांस की आर्थिक उपयोगिता के लिए अब कटाई या परिवहन परमिट की आवश्यकता नहीं होगी। यह बदलाव बांस की खेती, व्यापार और ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
असम में बांस से इथेनॉल प्लांट: किसानों और हरित ऊर्जा को मिलेगा बढ़ावा:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बदलते दौर में भारत को तेल और गैस के विकल्प के रूप में ज्यादा ईंधन की जरूरत है और इथेनॉल इसका अहम समाधान है। उन्होंने नुमालीगढ़ में बांस आधारित इथेनॉल प्लांट का उद्घाटन करते हुए बताया कि इससे असम के किसानों, आदिवासी समुदायों और स्थानीय परिवारों को सीधा फायदा होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत हरित ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। एक दशक पहले भारत सौर ऊर्जा में काफी पीछे था, लेकिन आज यह दुनिया के शीर्ष पांच देशों में शामिल है। इसी तरह, इथेनॉल उत्पादन भी ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
उन्होंने आश्वस्त किया कि प्लांट को चलाने के लिए जरूरी बांस की व्यवस्था की जाएगी। सरकार किसानों को बांस की खेती में मदद करेगी और बांस की खरीद भी करेगी। इसके जरिए हर साल लगभग 200 करोड़ रुपये का निवेश होगा और हजारों लोगों को रोजगार व आय का लाभ मिलेगा।
आइए जान लेते है, बायोएथेनॉल क्या है?
बायोएथेनॉल एक बायोडिग्रेडेबल, रंगहीन ईंधन अल्कोहल (C₂H₅OH) है, जिसे पौधों और बायोमास (जैसे मक्का, गन्ना या कृषि अपशिष्ट) से प्राप्त शर्करा और स्टार्च का किण्वन करके बनाया जाता है।
- यह पेट्रोल का नवीकरणीय विकल्प है, विशेषकर सड़क परिवहन के लिए।
- प्रायः इसे पेट्रोल के साथ मिलाकर (जैसे E10: 10% एथेनॉल + 90% पेट्रोल) प्रयोग किया जाता है।
- यह ऊर्जा सुरक्षा में मदद करता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम कर सकता है।
- हालांकि, इसके बड़े पैमाने पर उत्पादन से खाद्यान्न कीमतों और भूमि उपयोग पर प्रभाव को लेकर चिंताएँ भी उठती हैं।
बायोएथेनॉल कैसे बनाया जाता है?
बायोएथेनॉल उत्पादन सामान्यतः निम्नलिखित चरणों में होता है (फीडस्टॉक पर निर्भर करता है):
- प्री-ट्रीटमेंट (Pre-treatment): मक्का या गन्ने जैसे कच्चे माल को सरल शर्करा में बदलने के लिए तैयार किया जाता है।
- हाइड्रोलिसिस (Hydrolysis): एंज़ाइम्स की मदद से जटिल कार्बोहाइड्रेट (सेल्यूलोज़ और हेमीसेल्यूलोज़) को ग्लूकोज़ और ज़ाईलोज़ जैसी किण्वन योग्य शर्कराओं में तोड़ा जाता है।
- किण्वन (Fermentation): यीस्ट या बैक्टीरिया इन शर्कराओं को पचाकर एथेनॉल में बदलते हैं।
- आसवन (Distillation): पानी और अशुद्धियों से एथेनॉल को अलग करके शुद्ध ईंधन प्राप्त किया जाता है।
बायोएथेनॉल का उपयोग क्यों किया जाता है?
- नवीकरणीय: यह पौधों और बायोमास से प्राप्त होता है, जीवाश्म ईंधनों की तरह सीमित नहीं है।
- पर्यावरणीय लाभ: साफ जलने वाला ईंधन है, जिससे प्रदूषण और दुर्गंध कम होती है।
- ऊर्जा सुरक्षा: घरेलू उत्पादन से विदेशी तेल पर निर्भरता घटती है।
- उच्च ऑक्टेन: इसका ऑक्टेन मान पेट्रोल से अधिक होता है, जिससे इंजन प्रदर्शन बेहतर हो सकता है।
निष्कर्ष: नुमालीगढ़ का बायोएथेनॉल प्लांट असम की ताक़त बढ़ाने के साथ भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भरता और सतत विकास की दिशा में आगे ले जाएगा।