राजस्थान में मंगलवार को देश के प्रथम ड्रोन आधारित कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) का प्रयोग किया जाएगा। जयपुर जिले के रामगढ़ बांध क्षेत्र में यह ऐतिहासिक पहल दोपहर 2 बजे कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा द्वारा औपचारिक रूप से शुरू की जाएगी।
इस परियोजना को केंद्र और राज्य सरकार के विभिन्न विभागों से मंजूरी प्राप्त है और यह क्षेत्र में वर्षा वृद्धि के लिए नई तकनीकों के उपयोग की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
डीजीसीए और अन्य विभागों से मिली कृत्रिम बारिश के लिए आवश्यक मंजूरियां
रामगढ़ बांध पर ड्रोन से कृत्रिम बारिश के प्रोजेक्ट के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार के संबंधित विभागों और एजेंसियों से सभी आवश्यक मंजूरियां प्राप्त हो चुकी हैं।
- कृषि विभाग ने इस परियोजना के लिए पूर्व में अनुमति प्रदान की थी।
- इसके बाद मौसम विभाग और जिला प्रशासन ने भी स्वीकृति दे दी है।
- ड्रोन संचालन के लिए डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) की मंजूरी भी सुनिश्चित कर ली गई है।
अमेरिका और बेंगलूरु की कंपनी ड्रोन से क्लाउड सीडिंग का परीक्षण करेगी
क्लाउड सीडिंग के लिए अब तक हवाई जहाज का उपयोग होता रहा है, लेकिन इस बार पहली बार इसे ड्रोन के माध्यम से किया जाएगा। पायलट प्रोजेक्ट के तहत अमेरिका और बेंगलूरु की टेक्नोलॉजी कंपनी “जेन एक्स एआई” कृषि विभाग के सहयोग से यह प्रयोग कर रही है।
योजना के अनुसार, कुल 60 ड्रोन उड़ानें भरकर बादलों में आवश्यक रसायन छोड़ा जाएगा। इस अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाएगा, जिसमें स्थानीय नागरिकों को आमंत्रित किया गया है।
यह परीक्षण मूल रूप से 31 जुलाई को निर्धारित था, लेकिन भारी बारिश की संभावना के कारण इसे स्थगित करना पड़ा। वैज्ञानिकों की टीम पिछले कई दिनों से जयपुर में मौजूद है और ड्रोन के लगातार परीक्षण कर रही है। इस परियोजना को DGCA, मौसम विभाग, जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग की मंजूरी प्राप्त है।
रामगढ़ बांध पर कृत्रिम बारिश का प्रयोग
रामगढ़ बांध, जिसे 1903 में निर्मित किया गया था, कभी जयपुर की जल आपूर्ति का मुख्य स्रोत था। हालांकि, 1981 के बाद से यह बांध लगभग सूख चुका है। राजस्थान में बढ़ते जल संकट और सूखे के बीच यह ड्रोन आधारित कृत्रिम बारिश का प्रयोग एक महत्वपूर्ण और आशाजनक कदम माना जा रहा है। यदि यह प्रयास सफल होता है, तो इस तकनीक को राजस्थान के अन्य जलस्रोतों जैसे कालख बांध, मानसागर और कनोटा बांध में भी लागू किया जा सकेगा।
राजस्थान को ड्रोन-आधारित बारिश से संभावित लाभ
राजस्थान में अक्सर मानसून के दौरान बादल तो आते हैं, लेकिन नमी की कमी या अन्य कारणों से वर्षा नहीं हो पाती। यदि ड्रोन-आधारित क्लाउड सीडिंग का यह प्रयोग सफल होता है, तो भविष्य में सीमित क्षेत्रों में फसलों को सूखे से बचाने के लिए इस तकनीक को अपनाया जा सकता है। यह विशेष रूप से उन इलाकों के लिए लाभकारी होगा, जहां पानी की कमी के कारण खेती पर संकट उत्पन्न होता है।
जयपुर ट्रायल पर राष्ट्रीय स्तर पर नजरें
पिछले वर्षों में विमान से की गई क्लाउड सीडिंग के प्रयास मिश्रित परिणाम दे चुके हैं। उदाहरणस्वरूप, चित्तौड़गढ़ के भैंसुंदा बांध पर लगभग 10 करोड़ रुपये खर्च कर यह तकनीक अपनाई गई थी, लेकिन अपेक्षित वर्षा नहीं हो पाई। इसी कारण अब जयपुर के इस ड्रोन ट्रायल पर पूरे देश का ध्यान केंद्रित है। यदि यह प्रयास सफल होता है, तो यह न केवल राजस्थान बल्कि देश के अन्य सूखा-प्रभावित क्षेत्रों के लिए भी एक नई उम्मीद का स्रोत बन सकता है।
क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग एक कृत्रिम वर्षा उत्पन्न करने की तकनीक है, जिसमें सिल्वर आयोडाइड या ड्राई आइस जैसे रसायनों को हवाई जहाज या अन्य माध्यमों से बादलों में छोड़ा जाता है। ये सूक्ष्म कण बादलों की नमी को आकर्षित करते हैं, जिससे बादल भारी बूंदों में बदल जाते हैं और अंततः बारिश होती है।
क्लाउड सीडिंग कैसे काम करती है?
इस प्रक्रिया में बादलों में सिल्वर आयोडाइड, नमक या ड्राई आइस का छिड़काव किया जाता है। ये रसायन बादलों में मौजूद नमी को जोड़कर वर्षा की बूंदों का निर्माण करते हैं। जब ये बूंदें पर्याप्त भारी हो जाती हैं, तो वे वर्षा के रूप में जमीन पर गिरती हैं।

क्लाउड सीडिंग की शुरुआत कब और कहाँ हुई?
क्लाउड सीडिंग का पहला प्रदर्शन फरवरी 1947 में ऑस्ट्रेलिया के बाथुर्स्ट स्थित जनरल इलेक्ट्रिक लैब में हुआ था। इसके बाद 1940 के दशक में अमेरिका के न्यूयॉर्क में इसका पहला इस्तेमाल हुआ। चीन और अन्य कई देशों ने भी इसका प्रयोग किया।
भारत में क्लाउड सीडिंग का प्रयोग
भारत में इसका पहला परीक्षण 1952 में किया गया था। तमिलनाडु में 1984 में इसका पहली बार औपचारिक प्रयोग हुआ, जिसके बाद आंध्र प्रदेश में भी इसका इस्तेमाल किया गया।
क्लाउड सीडिंग के लाभ:
- पानी की आपूर्ति बढ़ाना: सूखे क्षेत्रों में जल की उपलब्धता में सुधार।
- मौसम नियंत्रण: विभिन्न मौसम की स्थितियों को नियंत्रित करने में सहायता।
- प्रदूषण में कमी: कृत्रिम वर्षा वायु प्रदूषण को कम करने में मददगार।
क्लाउड सीडिंग की सीमाएं:
- उच्च लागत: बड़े पैमाने पर यह प्रक्रिया महंगी हो सकती है।
- सफलता की अनिश्चितता: यह हमेशा सफल नहीं होती और वर्षा की मात्रा बढ़ाना सुनिश्चित नहीं है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: इसके दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभावों पर अभी शोध जारी है।
