प्रसिद्ध मूर्तिकार राम वनजी सुतार का 18 दिसंबर, 2025 को नोएडा में 100 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने 182 मीटर ऊंची स्टैच्यू ऑफ यूनिटी और विश्व स्तर पर 500 से अधिक प्रतिष्ठित स्मारकों की डिजाइन तैयार की थी।
भारत की स्मारक मूर्तिकला के महान शिल्पकार राम वानजी सुतार
- प्रारंभिक जीवन: राम वानजी सुतार का जन्म 19 फरवरी 1925 को महाराष्ट्र के वर्तमान धुले जिले के गोंदूर गांव में हुआ था। उनका परिवार साधारण था और कला से जुड़ी कोई पारंपरिक विरासत नहीं थी। इसके बावजूद बचपन से ही उनका झुकाव सृजन की ओर था। मिट्टी से आकृतियां बनाना और छोटे-छोटे रूप गढ़ना उनके स्वभाव का हिस्सा बन गया था।
- औपचारिक कला शिक्षा: अपनी प्रतिभा को दिशा देने के लिए सुतार ने मुंबई के प्रतिष्ठित सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट एंड आर्किटेक्चर में प्रवेश लिया। यह संस्थान भारत की कला शिक्षा का मजबूत स्तंभ माना जाता है। यहां उन्होंने मूर्तिकला और मॉडलिंग में गहन प्रशिक्षण प्राप्त किया। अध्ययन के दौरान उन्होंने स्वर्ण पदक के साथ स्नातक की डिग्री हासिल की। इस शिक्षा ने उन्हें कांसा, पत्थर और धातु जैसे माध्यमों में तकनीकी दक्षता दी, जो आगे चलकर उनके विशाल कार्यों की नींव बनी।
- व्यावसायिक जीवन: औपचारिक शिक्षा के बाद सुतार ने 1954 में अपने करियर की शुरुआत की। उन्हें भारतीय पुरातत्व विभाग के दक्षिण-पश्चिमी परिमंडल, औरंगाबाद में मॉडलर के रूप में नियुक्ति मिली। यहां उन्होंने अजंता और एलोरा की गुफाओं में प्राचीन मूर्तियों के संरक्षण और पुनर्स्थापन का कार्य किया। यह अनुभव उनके लिए ऐतिहासिक और कलात्मक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। 1958 में वे कुछ समय के लिए दिल्ली में विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय से भी जुड़े, जहां उन्हें तकनीकी सहायक के रूप में कार्य करने का अवसर मिला।
- कलात्मक दृष्टिकोण: राम वानजी सुतार मानते थे कि सार्वजनिक कला समाज को जोड़ने की शक्ति रखती है। उनके लिए मूर्तिकला केवल सौंदर्य का माध्यम नहीं थी। वह इसे राष्ट्रीय चेतना, सांस्कृतिक स्मृति और सामूहिक गौरव को व्यक्त करने का साधन मानते थे। उनकी कृतियों में यथार्थवादी अभिव्यक्ति और गहन प्रतीकात्मकता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
- सम्मान और पुरस्कार: उनके योगदान को देश और राज्य स्तर पर व्यापक मान्यता मिली। उन्हें 1999 में पद्म श्री और 2016 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। ये दोनों सम्मान भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में गिने जाते हैं। इसके अतिरिक्त 2025 में महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार प्रदान किया गया, जो राज्य का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
- अंतिम समय: अपने अंतिम वर्षों में उन्होंने अपने पुत्र अनिल राम सुतार के साथ मिलकर कार्य किया। अनिल भी एक स्थापित मूर्तिकार बने और कई परियोजनाओं में पिता के सहयोगी रहे। 18 दिसंबर 2025 को नोएडा, उत्तर प्रदेश में 100 वर्ष की आयु में राम वानजी सुतार का निधन हुआ। वे आयुजनित स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे।
राम वानजी सुतार की प्रमुख मूर्तिकला कृतियाँ
- 1960 में सुतार जी ने अपनी पहली बड़ी राष्ट्रीय पहचान वाली कृति पूरी की। यह मूर्ति मध्य प्रदेश के गांधी सागर बांध पर स्थापित की गई। लगभग 45 फीट ऊँची इस संरचना में माता चंबल को दो बच्चों के साथ दर्शाया गया। ये बच्चे मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्यों के प्रतीक थे। इस मूर्ति का संदेश जल-साझेदारी के बाद राज्यों के बीच सहयोग और एकता को दिखाना था।
- 1970 के दशक में सुतार ने महात्मा गांधी की कई मूर्तियों का निर्माण किया। ये मूर्तियाँ भारत के अनेक शहरों और विदेशों में स्थापित की गईं। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना नई दिल्ली के संसद परिसर में स्थापित बैठी हुई गांधी प्रतिमा है। यह कांसे से निर्मित लगभग 7.5 फीट ऊँची मूर्ति है। इसमें गांधी जी को शांत और ध्यानमग्न मुद्रा में दिखाया गया है।
- 1980 में सुतार ने नई दिल्ली में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक प्रभावशाली मूर्ति तैयार की। यह 12 फीट ऊँची कांस्य प्रतिमा है। इसमें नेताजी को सैन्य वेशभूषा में दृढ़ मुद्रा में दर्शाया गया है। उनकी आँखों और शरीर की स्थिति में अनुशासन और संकल्प स्पष्ट दिखाई देता है।
- 1990 के दशक में सुतार की पहचान डॉ. भीमराव अंबेडकर की मूर्तियों के कारण और व्यापक हुई। देश के विभिन्न हिस्सों में उनकी बनाई गई अंबेडकर प्रतिमाएँ स्थापित की गईं। 1995 में लखनऊ में लगी एक मूर्ति विशेष रूप से चर्चित रही। इन प्रतिमाओं की ऊँचाई 10 फीट से लेकर 40 फीट से अधिक तक रही। अंबेडकर को हाथ में भारतीय संविधान के साथ दिखाया गया।
- 2010 में सुतार ने संत रामानुजाचार्य को समर्पित स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी की परिकल्पना और डिजाइन पूरा किया। यह मूर्ति हैदराबाद के पास स्थित है। प्रतिमा की ऊँचाई 216 फीट है। इसके नीचे 54 फीट ऊँचा आधार भवन है। कुल संरचना की ऊँचाई 270 फीट तक पहुँचती है। इसका उद्घाटन बाद में 2022 में हुआ। यह स्मारक समानता, समरसता और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है।
- 2016 में सुतार ने अमरावती के लिए डॉ. अंबेडकर की 125 फीट ऊँची मूर्ति डिजाइन की। इसमें 51 फीट का आधार और 74 फीट की प्रतिमा शामिल है। यह संरचना कांस्य परत से ढकी है और इसका वजन सैकड़ों टन है। यह दुनिया की सबसे ऊँची अंबेडकर प्रतिमाओं में गिनी जाती है।
- 2018 में सुतार ने अपना सबसे ऐतिहासिक और विश्वविख्यात कार्य पूरा किया। उन्होंने स्टैचू ऑफ यूनिटी का निर्माण किया। गुजरात के केवड़िया में स्थित स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की ऊँचाई 182 मीटर या 597 फीट है। यह सरदार वल्लभभाई पटेल को चलते हुए स्वरूप में दर्शाती है। इस संरचना में स्टील फ्रेम और कांस्य क्लैडिंग का उपयोग किया गया है। यह प्रतिमा राष्ट्रीय एकता और अखंडता का वैश्विक प्रतीक बन चुकी है।
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी विशेष:
31 अक्टूबर 2018 को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का भव्य उद्घाटन किया गया। यह तिथि सरदार वल्लभभाई पटेल की 143वीं जयंती से जुड़ी है। इस दिन को राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में चुना गया।
- यह प्रतिमा निर्माण के साथ ही दुनिया की सबसे ऊँची मूर्ति बन गई। इसने चीन की स्प्रिंग टेंपल बुद्ध प्रतिमा को पीछे छोड़ दिया।
- स्टैच्यू ऑफ यूनिटी गुजरात के केवड़िया क्षेत्र में स्थित है। यह नर्मदा नदी के साधु बेट द्वीप पर स्थापित की गई है। यह स्थल सरदार सरोवर बांध के पास है।
- इस प्रतिमा को अत्यंत मजबूत तकनीक से बनाया गया है। यह रिक्टर स्केल पर 6.5 तीव्रता तक के भूकंप को सहन कर सकती है। यह 180 किलोमीटर प्रति घंटा की तेज़ हवाओं का सामना करने में भी सक्षम है।
- प्रतिमा के भीतर 153 मीटर की ऊँचाई पर एक दर्शक दीर्घा बनाई गई है। एक समय में लगभग 200 पर्यटक यहाँ से आसपास के क्षेत्र को देख सकते हैं। यहाँ से सरदार सरोवर परियोजना और नर्मदा घाटी का विस्तृत दृश्य दिखाई देता है।
