इज़राइल के कतर पर हमलों के बीच कच्चे तेल की कीमतों में लगभग 2% उछाल, सप्लाई संकट और महंगाई बढ़ने की आशंका-

तेल बाज़ार में बुधवार को शुरुआती कारोबार के दौरान दामों में तेजी देखी गई। यह उछाल उस समय आया जब खबरें सामने आईं कि इज़राइल ने क़तर की राजधानी दोहा में हमास नेताओं को निशाना बनाते हुए हमला किया है।

इस हमले के बाद से ही तेल के दामों में तेजी देखी गई। 10 सितंबर 2025 को शाम 06:00 बजे ब्रेंट क्रूड (Brent Crude) 66.71 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड कर रहा था, जबकि वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (West Texas Intermediate) की कीमत 63.30 डॉलर प्रति बैरल रही। दोनों बेंचमार्क मंगलवार के मुकाबले ऊंचे स्तर पर रहे, जिससे यह साफ है कि हालिया घटनाक्रम ने बाज़ार की धारणा को प्रभावित किया है।

Crude oil prices jump by nearly 2% amid Israel's attacks on Qatar

क़तर में हमास पर इज़राइल का हमला:

 

मंगलवार देर रात इज़राइल ने दोहा में हमास के नेतृत्व को निशाना बनाया है। इजरायली वायु सेना ने हमास के नेताओं को निशाना बनाकर टारगेटेड स्ट्राइक की और नेतृत्व को मारने का प्रयास किया।  हालांकि इस कार्रवाई की क़तर और अमेरिकी अधिकारियों ने कड़ी निंदा की और आशंका जताई कि ऐसा कदम जारी शांति वार्ताओं को पटरी से उतार सकता है।

 

तनाव के बीच तेल की कीमतों पर असर: हमले के बाद मंगलवार को तेल की कीमतों में करीब 2% तक की तेजी आई थी, लेकिन अमेरिकी अधिकारियों के आश्वासन के बाद कि इस तरह का हमला दोबारा नहीं होगा, जिससे बाज़ार में तेजी कुछ हद तक कम हो गई है

 

अमेरिका और क़तर की प्रतिक्रिया:

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि वह इस हमले से “बेहद नाराज़” हैं और बुधवार को इस पर विस्तृत बयान जारी करेंगे। क़तर, जो अमेरिका का सुरक्षा सहयोगी है, अल-उदीद एयर बेस की मेज़बानी करता है, जो मध्य पूर्व में अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है। क़तर और मिस्र लंबे समय से इज़राइल और हमास के बीच वार्ता के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं।

 

अमेरिका-रूस तनाव और नए व्यापारिक प्रतिबंध की आशंका:

तेल के दामों में गति देने वाले प्रमुख कारणों में अमेरिका की ओर से रूस पर संभावित नए प्रतिबंध भी शामिल रहे। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक और हलचल तब हुई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूरोपीय संघ से चीन और भारत पर 100 फीसदी टैरिफ लगाने की मांग की। उनका उद्देश्य इन दोनों देशों को रूसी कच्चा तेल खरीदने से रोकना बताया जा रहा है।

  • चीन और भारत रूसी तेल के प्रमुख खरीदार हैं, जिसने 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण शुरू करने के बाद से रूस के खजाने को समर्थन देने में मदद की है।

अचानक बने इन हालातों का असर तुरंत तेल बाज़ार में देखने को मिला। आपूर्ति संकट और बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के बीच निवेशकों ने तेजी से दांव लगाए। नतीजा यह हुआ कि वैश्विक तेल कीमतों में मजबूती दर्ज की गई।

 

इज़राइल के कतर पर हमलों के बीच कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण:

  • सप्लाई बाधा का खतरा: खाड़ी क्षेत्र दुनिया का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है। यहां किसी भी प्रकार की सैन्य गतिविधि से तेल सप्लाई प्रभावित होने का डर बढ़ जाता है।
  • भूराजनीतिक अस्थिरता: इज़राइल और कतर जैसे देशों के बीच तनाव से निवेशकों को लगता है कि बड़े स्तर पर संघर्ष फैल सकता है, जिससे ऊर्जा आपूर्ति अस्थिर होगी।
  • ऊर्जा सुरक्षा की चिंता: यूरोप और एशिया जैसे बड़े उपभोक्ता क्षेत्रों को डर है कि संघर्ष बढ़ने पर उन्हें महंगे दामों पर तेल खरीदना पड़ेगा।

 

कच्चे तेल के उत्पादन में कतर की भूमिका:

कतर का कच्चे तेल का उत्पादन लगभग 1.746 मिलियन बैरल प्रतिदिन है। इसी वजह से कतर दुनिया के शीर्ष 15 तेल निर्यातक देशों में शामिल है। तेल उत्पादन के साथ-साथ कतर दुनिया के प्रमुख उर्वरक उत्पादकों में से भी एक है।

 

2019 में कतर ने ओपेक की सदस्यता छोड़ी-

कतर इस समय ओपेक (Organization of Petroleum Exporting Countries) का सदस्य नहीं है। उसने 1 जनवरी 2019 को संगठन से अपनी सदस्यता वापस ले ली। यह कदम कतर ने इसलिए उठाया ताकि वह अपनी प्राकृतिक गैस उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कर सके, जहाँ वह पहले से ही एक वैश्विक लीडर है।

साथ ही कतर का उद्देश्य था कि वह सऊदी अरब के प्रभाव से अलग होकर अपनी ऊर्जा रणनीति को स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ा सके।

  • ओपेक की सदस्यता: कतर ने 1961 में ओपेक की सदस्यता ली थी और यह संगठन छोड़ने वाला मध्य पूर्व का पहला देश बना।

 

क्यों छोड़ा था, कतर ने ओपेक

  • प्राकृतिक गैस पर फोकस: कतर दुनिया का सबसे बड़ा LNG (Liquefied Natural Gas) निर्यातक है। उसने एलएनजी उत्पादन को 77 मिलियन टन से बढ़ाकर 110 मिलियन टन प्रतिवर्ष करने का लक्ष्य रखा।
  • रणनीतिक स्वतंत्रता: कतर का मकसद अपनी अंतरराष्ट्रीय भूमिका और दीर्घकालिक ऊर्जा रणनीति को मजबूत करना था। इसकी योजना5 मिलियन बैरल ऑयल इक्विवेलेंट प्रतिदिन उत्पादन करने की भी है।
  • बाजार में हिस्सेदारी: ओपेक में कतर की तेल उत्पादन की भूमिका अपेक्षाकृत छोटी थी, जिससे उसके फैसलों पर असर कम पड़ता था। ऐसे में उसने तेल से ज्यादा गैस संसाधनों पर ध्यान देकर वैश्विक ऊर्जा बाजार में बड़ा प्रभाव बनाने का रास्ता चुना।

 

आइए जानते है, दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देशो के बारे में:

कच्चे तेल (Crude Oil) का उत्पादन वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका, सऊदी अरब, रूस, चीन और कनाडा दुनिया के शीर्ष तेल उत्पादक देशों की सूची में शामिल हैं। हालांकि समय और स्रोत के आधार पर आंकड़ों में हल्का बदलाव हो सकता है, लेकिन ये देश लगातार अग्रणी बने रहते हैं।

शीर्ष पांच देश और उनका उत्पादन:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका (United States): 14,837,639,510 बैरल प्रतिदिन उत्पादन के साथ अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक है।
  • सऊदी अरब (Saudi Arabia): 12,402,761,040 बैरल प्रतिदिन उत्पादन कर यह देश दूसरे स्थान पर है।
  • रूस (Russia): 11,262,746,200 बैरल प्रतिदिन उत्पादन के साथ तीसरे स्थान पर है।
  • चीन (China): 4,905,070,874 बैरल प्रतिदिन उत्पादन के साथ चौथे स्थान पर है।
  • कनाडा (Canada): 4,596,724,820 बैरल प्रतिदिन उत्पादन के साथ यह देश पांचवें स्थान पर है।

 

भारत की तेल निर्भरता:

भारत तेल के लिए रूस, इराक और अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर है। यूक्रेन युद्ध से पहले भारत के कुल तेल आयात में रूसी कच्चे तेल का हिस्सा 1% से भी कम था, लेकिन 2024 में यह बढ़कर 37% हो गया। इस बढ़ोतरी के बाद भारत दुनिया में रूस के सबसे बड़े तेल ग्राहकों में से एक बन गया।

  • अन्य प्रमुख आपूर्तिकर्ता: इराक भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है, जो कुल आयात का 21% देता है। वहीं, संयुक्त राज्य अमेरिका केवल 9% की हिस्सेदारी रखता है।
  • अमेरिकी टैरिफ का दबाव: आज भारत को वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक अमेरिकी टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है, जिसका मुख्य कारण रूस से तेल आयात है।
  • बड़े खरीदार और कॉरपोरेट भूमिका: पिछले वर्ष भारत ने रूस से प्रतिदिन7 मिलियन बैरल से अधिक कच्चा तेल आयात किया। इसमें से लगभग एक तिहाई तेल रिलायंस इंडस्ट्रीज खरीदती है, जो देश की सबसे बड़ी कंपनी है।

 

भारत की ऊर्जा की स्थिति 2025 में

भारत की ऊर्जा क्षेत्र में वृद्धि विश्वसनीय औसत से तेज़ी से बढ़ रही है। 2024 में भारत ने जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का मुकाम हासिल किया, जिसका सकल घरेलू उत्पाद $4.187 ट्रिलियन तक पहुँच गया। शहरी विस्तार और औद्योगिकीकरण की तेज़ी ने ऊर्जा की मांग को वैश्विक स्तर पर बढ़ा दिया है।

कच्चे तेल की भूमिका:

हालांकि वैश्विक स्तर पर साफ ऊर्जा की ओर रुझान बढ़ रहा है, फिर भी भारत की ऊर्जा खपत में कच्चे तेल का हिस्सा लगभग 30% है।

  • ऊर्जा की मांग वार्षिक 4–5% की दर से बढ़ रही है, जो वैश्विक औसत से अधिक है।
  • 2025 में भारत का दैनिक कच्चे तेल का आयात 7–5 मिलियन बैरल अनुमानित है।
  • भारत का 85% से अधिक कच्चा तेल आयात पर निर्भर है।

 

आर्थिक जोखिम और रणनीति:

विदेशी तेल पर इतनी निर्भरता अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम पैदा करती है, जैसे कि वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव, राजनीतिक अस्थिरता और मुद्रा में बदलाव। इसे कम करने के लिए भारत तेल भंडार बढ़ा रहा है और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का विकास कर रहा है।

 

आइए जानते है, कच्चा तेल के बारे में?

कच्चा तेल (Crude Oil) एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला, बिना परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद है, जो मुख्य रूप से हाइड्रोकार्बन और अन्य कार्बनिक पदार्थों से बना होता है। यह प्राचीन समुद्री जीवों के अवशेषों से बनता है, जो लाखों वर्षों तक समुद्र के तल में दबे रहे।

  • उपयोग और महत्व: कच्चा तेल ऊर्जा का एक मुख्य स्रोत है और इसका उपयोग पेट्रोल, डीज़ल, जेट फ्यूल और पेट्रोकेमिकल्स जैसे कई उत्पाद बनाने में होता है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, उद्योगों, परिवहन और घरों को ऊर्जा प्रदान करता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: हालांकि, कच्चे तेल का उपयोग वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी पर्यावरणीय समस्याओं में योगदान देता है। यही कारण है कि दुनिया साफ़ और हरित ऊर्जा विकल्पों की ओर बढ़ रही है।

 

कतर मे है, विशाल गैस भंडार:  प्राकृतिक गैस भंडार में देश तीसरे स्थान पर:

कतर दुनिया में तीसरे सबसे बड़े प्राकृतिक गैस भंडार वाला देश है (ईरान और रूस के बाद)। इसके पास लगभग 23,871 घन किमी गैस भंडार मौजूद हैं, जो विश्व के कुल प्रमाणित प्राकृतिक गैस भंडार का लगभग 11% है।

नॉर्थ फील्ड एक्सपेंशन परियोजना: कतर वर्तमान में 50 अरब डॉलर की नॉर्थ फील्ड एक्सपेंशन (NFE) परियोजना पर काम कर रहा है, जिसमें पूर्व, दक्षिण और पश्चिम परियोजनाएं शामिल हैं। यह पहल एलएनजी उत्पादन बढ़ाने और वैश्विक ऊर्जा बाजार में कतर की स्थिति मजबूत करने के लिए की जा रही है। अनुमान है कि 2030 तक उत्पादन में 85% की वृद्धि होगी, जिससे अमेरिकी कंपनियों के लिए निवेश और निर्यात के अवसर और बढ़ेंगे।

राजस्व और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: एलएनजी, कच्चा तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात लंबे समय से कतर सरकार के मुख्य राजस्व स्रोत रहे हैं। वर्ष 2024 में हाइड्रोकार्बन क्षेत्र का योगदान कतर के जीडीपी में लगभग 60% रहा। तेल और गैस उद्योग देश का सबसे सक्रिय क्षेत्र बना हुआ है और भविष्य में इसका महत्व और बढ़ने की संभावना है।

 

निष्कर्ष: इज़राइल-कतर तनाव ने वैश्विक तेल बाज़ार में अस्थिरता पैदा कर दी है। सप्लाई बाधा की आशंका और निवेशकों की सतर्कता के कारण कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आई है। यदि यह तनाव लंबे समय तक जारी रहता है, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऊर्जा संकट गहराने के साथ-साथ भारत जैसे आयात-निर्भर देशों पर महंगाई और चालू खाता घाटे का दबाव बढ़ सकता है।