केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को 23वें हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में बोलते हुए घोषणा की है कि सरकार जल्द ही सीमा शुल्क (कस्टम) सिस्टम में बड़े सुधार करेगी। इसका मकसद प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाकर व्यापारियों और कंपनियों के लिए अनुपालन आसान बनाना है। इस सुधार के तहत उच्च ड्यूटी वाले सामानों पर भी ध्यान दिया जाएगा, जिससे व्यापार में सहजता आएगी और अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। इस आशय की घोषणाएँ आगामी बजट में की जा सकती हैं, जो संभवतः 1 फरवरी को पेश किया जाएगा।
आयकर सुधार एवं सेवा कर (GST) की तरह सीमा शुल्क में भी सुधार:
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि जैसे सरकार ने आयकर प्रणाली को सरल और पारदर्शी बनाया है, वैसे ही सीमा शुल्क (कस्टम) विभाग में भी सुधार किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि आयकर में पहले प्रशासनिक कारणों से परेशानियाँ होती थीं, लेकिन फेसलेस असेसमेंट्स के कारण प्रक्रिया अब साफ-सुथरी और आसान हो गई है।
सीतारमण ने कहा कि कस्टम्स में भी यही चुनौती है प्रक्रिया को सरल बनाना और साथ ही अवैध सामान रोकना। इसके लिए स्कैनिंग तकनीक पर भरोसा बढ़ाया जाएगा ताकि अधिकारियों और माल के बीच सीधे संपर्क कम हो और विवेकपूर्ण निर्णय घटें।
सीमा शुल्क में सुधार का उदेश्य:
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सीमा शुल्क में सुधार का उद्देश्य इसे सरल, तेज और पारदर्शी बनाना है। इसके लिए वर्ल्ड कस्टम्स ऑर्गनाइजेशन के मानकों के अनुसार बदलाव किए जाएंगे। पिछले दो सालों में ड्यूटी दरें कम की गई हैं, और जिन आइटम्स पर अभी भी अधिक दरें हैं, उन्हें भी घटाया जाएगा। सीतारमण ने कहा कि कई काम अभी बाकी हैं, लेकिन बजट से पहले कस्टम्स सिस्टम को पूरी तरह बदल दिया जाएगा, ताकि लोग इसे थकाऊ या बोझिल न समझें और नियमों का पालन आसान हो।
सीमा शुल्क में सुधार का असर:
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सीमा शुल्क में सुधार से ट्रेडर्स को राहत मिलेगी और बिजनेस का माहौल बेहतर होगा। पिछले दो साल में ड्यूटी दरें कम की गई हैं, लेकिन कुछ सेक्टर्स में अभी भी अधिक हैं, जिन्हें घटाया जाएगा। यह सुधार सरल नियम, तेज़ प्रक्रिया और स्कैनिंग तकनीक के जरिए अवैध ट्रेड को रोकते हुए व्यापार को आसान बनाएगा। छोटे-मझोले व्यवसाय और कंज्यूमर दोनों को फायदा मिलेगा। सीतारमण ने कहा कि यह कदम भारत को लंबे समय में ग्लोबल ट्रेड हब बनाने में मदद करेगा और बजट से पहले इसे पूरा करने की योजना है।
पिछले दो साल में सीमा शुल्क दरें लगातार कम की गई:
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि पिछले दो साल में सीमा शुल्क दरें लगातार कम की गई हैं। अब कुछ ऐसी वस्तुएँ हैं जिन पर दरें अभी भी ज्यादा हैं, उन्हें भी घटाया जाएगा। उन्होंने बताया कि यह उनका अगला बड़ा सुधार अभियान है। इस साल के बजट में औद्योगिक वस्तुओं पर सात अतिरिक्त सीमा शुल्क दरें हटाने का प्रस्ताव रखा गया है। इससे पहले भी पिछले साल सात दरें हटी थीं। अब कुल आठ दर स्लैब बचे हैं, जिनमें जीरो टैक्स रेट भी शामिल है।
आइए जानते है, सीमा शुल्क क्या है?
सीमा शुल्क (Customs Duty) वह कर है जो किसी देश की सीमा के पार आने-जाने वाले माल पर लगाया जाता है। यह अप्रत्यक्ष कर होता है और आयात (इंपोर्ट) और निर्यात (एक्सपोर्ट) दोनों पर लागू होता है। आयात पर लगाया जाने वाला कर आयात शुल्क कहलाता है और निर्यात पर लगाया जाने वाला कर निर्यात शुल्क।
सीमा शुल्क का मुख्य उद्देश्य सरकार के लिए राजस्व बढ़ाना, स्थानीय उद्योगों और रोजगार की रक्षा करना, पर्यावरण की सुरक्षा करना और विदेशी प्रतिस्पर्धा से देश के व्यापार को बचाना है। साथ ही, यह धोखाधड़ी और काले धन को रोकने में भी मदद करता है। भारत में बेसिक सीमा शुल्क दर 10% है, लेकिन कुछ वस्तुओं पर यह इससे अधिक हो सकती है।
सीमा शुल्क कैसे तय होता है?
- वस्तु कहाँ खरीदी गई है।
- सामान कहाँ बनाया गया है।
- माल की सामग्री।
- वस्तु का वजन और आकार।
इसके अलावा, अगर कोई व्यक्ति भारत में पहली बार कोई वस्तु ला रहा है, तो उसे सीमा शुल्क नियमों के अनुसार उस वस्तु की घोषणा करनी होती है।
भारत में सीमा शुल्क का नियंत्रण:
भारत में सीमा शुल्क को 1962 के सीमा शुल्क अधिनियम के तहत परिभाषित किया गया है। इसके तहत सरकार को माल के आयात और निर्यात पर कर लगाने, कुछ सामान पर प्रतिबंध लगाने, प्रक्रियाएँ तय करने और नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माना लगाने की अनुमति है।
भारत में सीमा शुल्क के मामलों का संचालन केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBEC) करता है। यह बोर्ड वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अंतर्गत काम करता है। CBEC सीमा शुल्क की वसूली, चोरी और तस्करी रोकने, प्रशासनिक फैसलों और नीतियों के निर्माण का काम करता है।
भारत में कस्टम ड्यूटी के मुख्य प्रकार:
- बेसिक कस्टम ड्यूटी (BCD): यह सबसे सामान्य टैक्स है जो इंपोर्ट किए गए सामान पर लगता है। रेट सामान के हिसाब से अलग-अलग होता है।
- आईजीएसटी (IGST): इंपोर्टेड सामान पर जीएसटी जैसा टैक्स। यह उसी रेट पर लगता है जो भारत में सामान खरीदने पर लगता है।
- GST कम्पेनसेशन सेस: कुछ खास चीज़ों (जैसे लग्ज़री आइटम, तंबाकू) पर अतिरिक्त टैक्स, ताकि राज्यों का नुकसान पूरा किया जा सके।
- शिक्षा उपकर (Education Cess): कुल कस्टम ड्यूटी पर 2% और 1% अतिरिक्त सेस। यह शिक्षा फंडिंग के लिए होता है।
- काउंटरवेलिंग ड्यूटी (CVD): जिस सामान को दूसरे देश में सब्सिडी मिली हो, उस पर लगाया जाता है ताकि भारतीय उद्योगों को नुकसान न हो।
- एंटी-डंपिंग ड्यूटी: जब कोई विदेशी कंपनी भारत में बहुत सस्ता सामान बेचती है, तो लोकल उद्योग को बचाने के लिए यह ड्यूटी लगाई जाती है।
- सेफगार्ड ड्यूटी: अगर किसी सामान का इंपोर्ट अचानक बहुत बढ़ जाए और भारतीय कंपनियों को नुकसान होने लगे, तो यह ड्यूटी लगती है।
- सामाजिक कल्याण अधिभार (Social Welfare Surcharge): कुल कस्टम ड्यूटी पर 10% का अतिरिक्त सरचार्ज, सामाजिक योजनाओं के लिए।
- राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक ड्यूटी (NCCD): तंबाकू जैसे कुछ विशेष सामान पर लगाया जाने वाला टैक्स, ताकि देश की आपदाओं और इमरजेंसी के लिए फंड मिल सके।
विकास दर को लेकर वित्त मंत्री ने क्या कहा ?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की आर्थिक वृद्धि इस साल कम से कम 7% तक रहने की संभावना है। उन्होंने बताया कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है और कम मुद्रास्फीति व हाल में किए गए GST कटौती से उपभोक्ता खर्च स्थिर रहेगा। उन्होंने कहा कि दूसरी तिमाही के आंकड़े भी अच्छे रहे हैं और कुल मिलाकर इस साल विकास दर 7% या उससे अधिक रहने की उम्मीद है।
निष्कर्ष:
यह घोषणा स्पष्ट करती है कि सरकार सीमा शुल्क ढाँचे को आधुनिक, सरल और अधिक पारदर्शी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने जा रही है। कस्टम प्रक्रियाओं में सुधार न केवल व्यापारियों और उद्योगों के लिए अनुपालन को आसान बनाएगा, बल्कि उच्च शुल्क वाली वस्तुओं पर पुनर्विचार से व्यापारिक वातावरण और अधिक प्रतिस्पर्धी होगा।
