भारत की यात्रा पर आए साइप्रस के विदेश मंत्री कॉन्सटैन्टिनोस कॉम्बोस ने कहा कि साइप्रस भूमध्यसागर क्षेत्र में भारत के शिपिंग उद्योग का मजबूत साझेदार बन सकता है। उन्होंने कहा कि अपने रणनीतिक भौगोलिक स्थान के कारण साइप्रस भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC) परियोजनाओं में भाग लेने के लिए तैयार है।
कॉम्बोस ने स्पष्ट किया कि साइप्रस-भारत संबंध किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि यह संबंध अपने आप में “मूल्य आधारित” और स्वतंत्र हैं। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच सहयोग से न केवल समुद्री व्यापार को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि यूरोप और एशिया के बीच संपर्क और निवेश के नए रास्ते भी खुलेंगे।
साइप्रस के विदेश मंत्री कॉन्सटैन्टिनोस कॉम्बोस की पहली भारत यात्रा:
साइप्रस के विदेश मंत्री कॉन्सटैन्टिनोस कॉम्बोस 29 से 31 अक्टूबर 2025 तक अपनी पहली आधिकारिक यात्रा पर भारत में रहे। इस दौरान उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की और भारत-साइप्रस संयुक्त कार्य योजना (2025–2029) के क्रियान्वयन पर चर्चा की।
मुख्य बिंदु:
- दोनों नेताओं ने व्यापार, रक्षा और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की और अब तक हुई प्रगति पर संतोष व्यक्त किया। भारत ने साइप्रस की संप्रभुता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति अपने समर्थन की पुनर्पुष्टि की।
- कॉम्बोस ने भारत को एक “प्राकृतिक साझेदार” और “सहयोगी” बताया, जो बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि साइप्रस भारत को न केवल एक पुराने मित्र के रूप में देखता है, बल्कि एक भविष्य के रणनीतिक साझेदार के रूप में भी मानता है।
- कॉम्बोस ने यह भी उल्लेख किया कि 2026 में जब साइप्रस यूरोपीय संघ की परिषद की अध्यक्षता संभालेगा, तब भारत-यूरोपीय संघ संबंध और मजबूत होंगे। उन्होंने यूरोपीय संघ-भारत मुक्त व्यापार समझौते (EU-India FTA) को शीघ्रता से पूरा करने की वकालत की, जिससे आर्थिक अवसरों के नए द्वार खुल सकते हैं।
- साइप्रस ने भारत के “आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता” रुख का समर्थन करते हुए भारत के साथ एकजुटता व्यक्त की।
- कॉम्बोस ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC) परियोजना में भाग लेने की इच्छा जताई और कहा कि यह पहल वैश्विक व्यापार को नए सिरे से परिभाषित कर सकती है।
- अपनी यात्रा के दौरान कॉम्बोस ने भारतीय विश्व मामलों की परिषद (ICWA) द्वारा आयोजित 55वें सप्रू हाउस लेक्चर में “साइप्रस और विश्व” विषय पर व्याख्यान भी दिया, जिसमें उन्होंने साइप्रस की वैश्विक भूमिका और भारत के साथ उसके भविष्य के सहयोग पर अपने विचार साझा किए।
साइप्रस बनेगा भारत का समुद्री साझेदार:
साइप्रस ने भारत के साथ शिपिंग उद्योग और अंतरराष्ट्रीय समुद्री मार्गों में सहयोग बढ़ाने की इच्छा जताई है। दुनिया के बड़े शिपिंग केंद्रों में शामिल साइप्रस का शिपिंग सेक्टर उसके GDP का 7% हिस्सा है और यह सैकड़ों वैश्विक कंपनियों का केंद्र है।
हाल ही में बनी भारत-साइप्रस संयुक्त कार्य योजना (2025–2029) के तहत दोनों देश समुद्री साझेदारी को और मजबूत करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी की जून 2025 की साइप्रस यात्रा के दौरान यह तय हुआ कि अधिक भारतीय शिपिंग कंपनियां साइप्रस में अपनी उपस्थिति दर्ज करेंगी।
साइप्रस भारत का 10वां सबसे बड़ा FDI स्रोत है, जो सेवाओं, IT और अब शिपिंग क्षेत्र में निवेश बढ़ा रहा है। इससे दोनों देशों के बीच आर्थिक और समुद्री सहयोग को नई दिशा मिलने की उम्मीद है।
IMEC में साझेदार के रूप में साइप्रस की भूमिका:
साइप्रस IMEC (India–Middle East–Europe Corridor) परियोजना को अत्यंत महत्व देता है, क्योंकि यह सुरक्षा, व्यापार, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में अंतर-क्षेत्रीय सहयोग और संपर्क को बढ़ाने की बड़ी संभावनाएं प्रदान करती है। अपनी रणनीतिक स्थिति, यूरोपीय संघ (EU) की सदस्यता, और अनुकूल व्यवसायिक वातावरण जिसमें अंग्रेज़ीभाषी कार्यबल, आधुनिक अवसंरचना तथा सशक्त सेवा क्षेत्र शामिल हैं, के कारण साइप्रस आईएमईसी परियोजनाओं में सक्रिय भागीदारी के लिए उपयुक्त रूप से तैयार है।
विशेष रूप से इसका मजबूत नौवहन क्षेत्र, जो वैश्विक समुद्री परिदृश्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, इस परियोजना की सफलता में अहम योगदान दे सकता है। साइप्रस और व्यापक पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र को इस परियोजना से उल्लेखनीय लाभ मिलने की संभावना है। इस उद्देश्य से साइप्रस भारत और अन्य वैश्विक हितधारकों के साथ निकट संपर्क में है।
साइप्रस और आईएमईसी के प्रमुख पहलू:
- रणनीतिक स्थिति: साइप्रस की भौगोलिक स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहस्वेज नहर को यूरोपीय बंदरगाहों से जोड़ने वाले प्रमुख समुद्री मार्गों के निकट स्थित है। इससे यह एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच एक स्वाभाविक संपर्क बिंदु बनता है।
- संभावित केंद्र: साइप्रस केगहरे पानी वाले बंदरगाह लिमासोल (Limassol) और लारनाका (Larnaca) बड़े पैमाने पर माल परिवहन (cargo handling) के लिए उपयुक्त हैं। ये खाड़ी देशों और यूरोप के बीच मध्य बिंदु के रूप में कार्य कर सकते हैं, जिससे आईएमईसी कॉरिडोर की दक्षता बढ़ेगी।
- ऊर्जा भूमिका: साइप्रस में हाल के वर्षों मेंप्राकृतिक गैस (natural gas) के नए भंडार खोजे गए हैं, जो यूरोप के लिए ऊर्जा विविधीकरण के लक्ष्य से मेल खाते हैं। इस प्रकार, साइप्रस आईएमईसी की ऊर्जा अवसंरचना परियोजनाओं में एक महत्वपूर्ण भागीदार बन सकता है।
- भू-राजनीतिक उपकरण: आईएमईसी में साइप्रस का समावेशकॉरिडोर के पश्चिमी छोर को मजबूत करने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने का माध्यम माना जा रहा है। इससे भूमध्यसागर क्षेत्र में राजनीतिक और आर्थिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।
इंडिया–मिडल ईस्ट–यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) के बारे में:
इंडिया–मिडल ईस्ट–यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) एक बहुराष्ट्रीय अवसंरचना परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारत, अरब प्रायद्वीप और यूरोप के बीच व्यापार, संपर्क (connectivity) और आर्थिक एकीकरण (economic integration) को सुदृढ़ करना है।
इस परियोजना की घोषणा सितंबर 2023 में नई दिल्ली में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी। यह पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (PGII) का एक प्रमुख हिस्सा है और इसे चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
परियोजना के दो मुख्य खंड:
- पूर्वी कॉरिडोर (Eastern Corridor): यह मार्ग भारत को अरब की खाड़ी (Arabian Gulf) से जोड़ता है। इसमें भारत के बंदरगाह जैसेमुंद्रा और कांडला से समुद्री मार्गों के माध्यम से संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के फुजैराह और जेबेल अली बंदरगाहों तक संपर्क स्थापित किया जाएगा।
- उत्तरी कॉरिडोर (Northern Corridor): यह मार्ग अरब की खाड़ी को यूरोप से जोड़ता है। इसमेंयूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन और इज़राइल के माध्यम से एक रेलवे नेटवर्क बनाया जाएगा, जो यूरोप तक यूनान (Greece) के पिराएस बंदरगाह या इटली के मेसीना बंदरगाह के जरिए पहुँचेगा।
उद्देश्य और दृष्टिकोण:
आईएमईसी (India–Middle East–Europe Economic Corridor) को केवल एक परिवहन मार्ग के रूप में नहीं, बल्कि एक व्यापक आर्थिक गलियारा के रूप में देखा जा रहा है। इसका उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में संपर्क, ऊर्जा, डिजिटल एकीकरण और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
- उन्नत संपर्क: यह परियोजनाजहाज से रेल तक निर्बाध परिवहन नेटवर्क बनाने का लक्ष्य रखती है, जिससे मौजूदा समुद्री और सड़क परिवहन को मजबूती मिलेगी। इससे स्वेज नहर मार्ग की तुलना में लगभग 40% तक ट्रांजिट समय कम होने की संभावना है।
- ऊर्जा अवसंरचना: परियोजना के तहत एकबिजली केबल और ग्रीन हाइड्रोजन पाइपलाइन बिछाने की योजना है, जिससे क्षेत्रीय स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
- डिजिटल एकीकरण: इसमें एकहाई-स्पीड अंडरसी डेटा केबल की स्थापना शामिल है, जो विभिन्न क्षेत्रों के डिजिटल इकोसिस्टम को जोड़ेगी और डिजिटल व्यापार को गति देगी।
- आर्थिक विकास: आईएमईसी का उद्देश्यव्यापार को प्रोत्साहित करना, लॉजिस्टिक लागत कम करना, और नए रोजगार के अवसर उत्पन्न करना है। इससे जुड़े देशों में सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
भारत के लिए IMEC का रणनीतिक और आर्थिक महत्व:
- व्यापार मार्गों का विविधीकरण: IMEC भारत को स्वेज नहर जैसे चोकपॉइंट्स पर निर्भरता घटाने का अवसर देता है।
- यूरोप तक बेहतर पहुँच: यह कॉरिडोर भारत को भूमध्यसागर के ज़रिए यूरोपीय बाज़ारों तक पहुँचाने में मदद करता है, जिससे चीन की BRI पहल का संतुलन बनता है।
- व्यापार वृद्धि की संभावना: यूरोपीय संघ (EU) भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसके साथ 2024 में द्विपक्षीय व्यापार $136 बिलियन से अधिक रहा। IMEC भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को और मज़बूत कर सकता है।
- ‘Act West’ नीति को बल: यह परियोजना भारत की पश्चिम एशिया के साथ भागीदारी को गहरा करती है, जो ऊर्जा सुरक्षा, प्रवासी भारतीयों और प्रेषण के लिए अहम है।
- रणनीतिक संतुलन: IMEC के माध्यम से आर्थिक जुड़ाव बढ़ाकर भारत पाकिस्तान की खाड़ी देशों में बढ़ती रणनीतिक सक्रियता का संतुलन साध सकता है।
निष्कर्ष:
साइप्रस का IMEEC परियोजना से जुड़ने का निर्णय उसकी रणनीतिक स्थिति, यूरोपीय संघ की सदस्यता और मजबूत समुद्री व सेवा क्षेत्र की क्षमताओं को दर्शाता है। यह कदम न केवल साइप्रस को भारत और अन्य साझेदार देशों के साथ आर्थिक व रणनीतिक रूप से जोड़ता है, बल्कि भूमध्यसागरीय क्षेत्र में भारत की उपस्थिति और संपर्क को भी सुदृढ़ बनाता है।
