बित्रा द्वीप पर रक्षा अधिग्रहण की योजना: विरोध और चिंता के बीच उभरा विवाद

एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, लक्षद्वीप प्रशासन ने बित्रा द्वीप को सैन्य और सामरिक जरूरतों के लिए अधिग्रहित करने की योजना तैयार की है। यह प्रक्रिया लक्षद्वीप के राजस्व विभाग द्वारा जारी अधिसूचना से शुरू हुई है, जिसमें द्वीप को केंद्रीय रक्षा और रणनीतिक एजेंसियों को सौंपने की तैयारी का उल्लेख है।

हालांकि, इस प्रस्ताव ने स्थानीय समुदाय और लक्षद्वीप के सांसद हामदुल्ला सईद के बीच गहरी चिंता और विरोध को जन्म दिया है। सांसद ने इसे “असंवैधानिक और एकतरफा” कदम बताते हुए आदिवासी समुदाय को विस्थापित करने की कोशिश बताया है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस अधिग्रहण से उनकी पारंपरिक आजीविका—जैसे मछली पकड़ना और नारियल की खेती—तथा सांस्कृतिक विरासत खतरे में पड़ सकती है।

बित्रा द्वीप के बारे में:

बित्रा, लक्षद्वीप के उत्तरी सिरे पर स्थित सबसे छोटा आबादी वाला द्वीप है। इसकी लंबाई मात्र 0.57 किमी और चौड़ाई 0.28 किमी है, तथा यह केरल के कोच्चि से लगभग 483 किमी की दूरी पर स्थित है। 2011 की जनगणना के अनुसार, यहाँ की जनसंख्या मात्र 271 है। यह द्वीप धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ अरब संत मलिक मुल्ला की दरगाह स्थित है। माना जाता है कि उनका अंतिम संस्कार यहीं हुआ था, और यह स्थल आज भी एक पवित्र तीर्थ के रूप में देखा जाता है।

बित्रा द्वीप की जलवायु केरल के समान है। मार्च से मई के बीच सबसे अधिक गर्मी पड़ती है जब तापमान 25°C से 35°C तक पहुँचता है। वर्षभर आर्द्रता 70% से 76% के बीच बनी रहती है।
पारिस्थितिक रूप से यह द्वीप समुद्री पक्षियों के प्रजनन स्थल के रूप में जाना जाता था, जिससे इसकी जैव विविधता को पहचान मिली। अब यह लक्षद्वीप का तीसरा द्वीप बनने जा रहा है, जहाँ सैन्य गतिविधियाँ स्थापित की जाएँगी। इससे पहले INS द्वीपप्रकाश (कवरत्ती) और INS जटायु (मिनिकॉय) जैसे रक्षा ठिकाने मौजूद हैं। बित्रा में सैन्य उपस्थिति से इस द्वीपसमूह की सामरिक स्थिति और मजबूत होगी।

 

बित्रा द्वीप का अधिग्रहण क्यों? लक्षद्वीप प्रशासन की योजना:

लक्षद्वीप प्रशासन ने 11 जुलाई 2025 को एक अधिसूचना जारी की, जिसमें बित्रा द्वीप की समस्त भूमि अधिग्रहित कर केंद्र सरकार की रक्षा एवं रणनीतिक एजेंसियों को सौंपने के निर्देश दिए गए। इसके पीछे प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  1. रणनीतिक स्थिति:अरब सागर में स्थित बित्रा द्वीप रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है और समुद्री निगरानी के लिए उपयुक्त माना गया है।
  2. राष्ट्रीय सुरक्षा प्राथमिकता:हिंद महासागर में बढ़ती अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों के चलते, सरकार बित्रा को एक मजबूत रक्षा चौकी के रूप में विकसित करना चाहती है।
  3. प्रशासनिक चुनौतियाँ:प्रशासन का तर्क है कि इतने छोटे और दूरस्थ द्वीप पर नागरिक जीवन बनाए रखना कठिन है, अतः इसे सैन्य उपयोग हेतु अधिक उपयुक्त माना गया है।
  4. सैन्य उपस्थिति का विस्तार:बित्रा, INS द्वीपप्रकाश (कवरत्ती) और INS जटायु (मिनिकॉय) के बाद लक्षद्वीप का तीसरा रक्षा केंद्र बन सकता है।

हालाँकि, इस योजना को लेकर स्थानीय लोगों में विरोध की भावना है, जो इसे विस्थापन, आजीविका के नुकसान और पर्यावरणीय खतरे के रूप में देख रहे हैं।

 

बित्रा: हिंद महासागर में एक उभरता हुआ निगरानी केंद्र

बित्रा द्वीप से चीन, तुर्की और मालदीव जैसे देशों की समुद्री गतिविधियों पर निगरानी रखना संभव होगा। यह भारत को अरब सागर में पाकिस्तानी नौसेना की हरकतों पर नजर रखने की भी सुविधा देगा। साथ ही, यहाँ रडार और निगरानी प्रणालियाँ स्थापित कर समुद्री सीमाओं की सुरक्षा को और भी अधिक मज़बूती दी जा सकेगी।

 

स्थानीय विरोध और संवैधानिक सवाल

बित्रा के निवासी और समुदाय के प्रतिनिधि इस अधिग्रहण का कड़ा विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रशासन ने बिना किसी पूर्व जनसुनवाई या वैकल्पिक सुझावों के इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है।

लक्षद्वीप सांसद हामदुल्ला सईद ने कहा, “बित्रा जैसे द्वीप, जहाँ पीढ़ियों से मूल निवासी रह रहे हैं, उन्हें बिना वैकल्पिक योजना के निशाना बनाना पूरी तरह अस्वीकार्य है।”

 

सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल

हालाँकि प्रशासन की अधिसूचना में यह स्वीकार किया गया है कि अधिग्रहण से पहले सामाजिक प्रभाव का आकलन किया जाएगा और इसके तहत ग्राम सभाओं व अन्य हितधारकों से परामर्श होगा, लेकिन यह भी स्पष्ट किया गया है कि भूमि स्वामियों या ग्राम सभाओं की सहमति आवश्यक नहीं” है। इस बयान ने स्थानीय लोगों की भागीदारी और निर्णय प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

हामदुल्ला सईद ने कहा, “यह निर्णय क्षेत्र की शांति को बाधित करता है। सरकार इस तरह बसे हुए किसी भी द्वीप का अधिग्रहण नहीं कर सकती, खासकर तब, जब न तो परामर्श किया गया हो और न ही संवेदनशीलता दिखाई गई हो। हम इस निर्णय का हर स्तर पर विरोध करेंगे।”

 

निष्कर्ष:
बित्रा द्वीप पर लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा प्रस्तावित रक्षा अधिग्रहण ने एक ओर भारत की सामरिक आवश्यकताओं और समुद्री सुरक्षा के विस्तार की दृष्टि से नई संभावनाएँ प्रस्तुत की हैं, तो दूसरी ओर यह स्थानीय समुदाय की आजीविका, संस्कृति और अधिकारों को लेकर गंभीर चिंताएँ भी पैदा करता है। राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थानीय हितों के बीच संतुलन बनाना इस मुद्दे की सबसे बड़ी चुनौती है। ऐसे में यह आवश्यक है कि सभी पक्षों—सरकार, स्थानीय समुदाय, और नीति-निर्माताओं—के बीच संवाद, पारदर्शिता और परामर्श की प्रक्रिया को प्राथमिकता दी जाए, ताकि कोई भी निर्णय व्यापक सहमति और दीर्घकालिक संतुलन के साथ लिया जा सके।