दिल्ली की अदालत ने मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर राणा की न्यायिक हिरासत बढ़ा दी

26/11 मुंबई आतंकवादी हमले का आरोपी तहव्वुर राणा को अदालत से एक बार फिर राहत नहीं मिली है। दिल्ली की एक अदालत ने उसकी न्यायिक हिरासत को अब 13 अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया है। इससे पहले 6 जून को हुई सुनवाई में कोर्ट ने उसकी हिरासत 9 जुलाई तक के लिए बढ़ाई थी।

क्या है कस्टडी? जानिए हिरासत, गिरफ्तारी और उनके प्रकारों में अंतर

कस्टडी का अर्थ होता है हिरासत, यानी किसी व्यक्ति को अस्थायी तौर पर सुरक्षात्मक देखभाल या जांच के लिए कैद में रखना। हालांकि अक्सर लोग कस्टडी और गिरफ्तारी को एक जैसा समझते हैं, लेकिन दोनों में फर्क होता है। हर गिरफ्तारी में हिरासत होती है, लेकिन हर हिरासत गिरफ्तारी नहीं मानी जाती। गिरफ्तारी तब होती है जब किसी व्यक्ति पर अपराध करने का संदेह हो या वह अपराध में लिप्त पाया गया हो। वहीं, कस्टडी का उद्देश्य जांच या पूछताछ के लिए व्यक्ति को कुछ समय तक नियंत्रण में रखना होता है।

पुलिस कस्टडी क्या होती है?

पुलिस कस्टडी उस स्थिति को कहते हैं जब किसी आरोपी को अपराध के सिलसिले में पूछताछ के लिए पुलिस की निगरानी में रखा जाता है। इस दौरान पुलिस आरोपी को घटनास्थल पर लेकर जाती है, सबूत इकट्ठा करती है और उससे सवाल-जवाब करती है। भारतीय कानून के अनुसार, गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना अनिवार्य होता है। इसके बाद मजिस्ट्रेट यह तय करता है कि आरोपी को आगे की पूछताछ के लिए पुलिस हिरासत में रखा जाए या न्यायिक हिरासत में भेजा जाए। आमतौर पर, मजिस्ट्रेट अधिकतम 15 दिन की पुलिस हिरासत दे सकता है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में इसे 30 दिन तक बढ़ाया जा सकता है।

न्यायिक हिरासत या ज्यूडिशियल कस्टडी किसे कहते है?

जब आरोपी को मजिस्ट्रेट के आदेश पर जेल में रखा जाता है, तो इसे न्यायिक हिरासत या ज्यूडिशियल कस्टडी कहा जाता है। इस दौरान आरोपी पुलिस की बजाय अदालत की निगरानी में होता है और उसे जेल में रखा जाता है। न्यायिक हिरासत में रखे गए व्यक्ति को बाहरी उत्पीड़न से बचाने की जिम्मेदारी अदालत की होती है। कानून यह भी कहता है कि अगर कोई आरोपी न्यायिक हिरासत में है, तो पुलिस को 60 दिनों के भीतर आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल करना होता है। अन्यथा आरोपी को जमानत मिल सकती है।

कौन है, तहव्वुर हुसैन राणा:

64 वर्षीय तहव्वुर हुसैन राणा पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है, जिसे हाल ही में 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों से संबंधित आरोपों का सामना करने के लिए अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित किया गया है। तहव्वुर राणा ने पाकिस्तान के प्रतिष्ठित कैडेट कॉलेज हसन अब्दाल में शिक्षा प्राप्त की, जहां उसकी मित्रता डेविड कोलमैन हेडली से हुई। जो आगे चलकर मुंबई हमलों के प्रमुख साजिशकर्ताओं में शामिल रहा। मेडिकल डिग्री पूरी करने के पश्चात राणा पाकिस्तानी सेना की मेडिकल कोर में कैप्टन जनरल ड्यूटी प्रैक्टिशनर के रूप में शामिल हुआ।

कनाडा की नागरिकता और अमेरिका में कारोबार

अपनी सैन्य सेवा के बाद, तहव्वुर राणा और उसकी पत्नी (जो स्वयं भी चिकित्सक थीं) वर्ष 2001 में कनाडा चले गए और वहीं के नागरिक बन गए। 2009 में गिरफ्तारी से पूर्व, राणा शिकागो में रह रहा था, जहां वह कई व्यवसायों का संचालन कर रहा था। इनमें “फर्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज” नामक एक इमिग्रेशन और ट्रैवल एजेंसी भी शामिल थी। वर्ष 2006 में राणा ने अपने मित्र डेविड हेडली को इस फर्म की मुंबई शाखा खोलने में सहायता की। जिसका उदेश्य भारत सरकार की नजरों से बचना था, ताकि बार-बार आने पर एजेंसियों को शक न हो।  भारत की हर यात्रा पर हेडली संभावित लक्ष्यों के वीडियो रिकार्ड करता, रुचि के स्थानों की निगरानी और सुरक्षा उपायों का आकलन करता था।

तहव्वुर हुसैन राणा की मुंबई हमलों में संलिप्तता

मुंबई में वर्ष 2008 में हुए आतंकवादी हमलों की साजिश की शुरुआत 2005 के आसपास हुई थी, जब तहव्वुर राणा लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी (HUJI) जैसे आतंकी संगठनों से जुड़ गया था। अभियोजन पक्ष का कहना था कि राणा की इमिग्रेशन फर्म की मुंबई शाखा जानबूझकर ऐसे ही उद्देश्यों के लिए स्थापित की गई थी। डेविड हेडली, जो इस मामले में प्रमुख गवाह बना, उसने स्वीकार किया था कि राणा ने न केवल उसे भारत के लिए वीजा प्राप्त करने में मदद की, बल्कि मुंबई में “इमिग्रेशन सेंट” स्थापित कर उसकी आतंकी गतिविधियों को वैध व्यापार के रूप में छिपाने में मदद की।

जांच में यह भी सामने आया कि राणा ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) के अधिकारी के साथ निकट संपर्क में रहकर साजिश को अंजाम दिया। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई  के अधिकारियों ने हेडली को मुंबई कार्यालय संचालित करने और भविष्य की योजनाएं लागू करने के लिए लगभग 1,500 डॉलर की धनराशि भी दी थी। इस दौरान, मुंबई ऑफिस से एक भी वैध इमिग्रेशन केस संचालित नहीं किया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि व्यापार केवल एक दिखावा था।

हमलों की योजना और हेडली की भूमिका

26 नवंबर, 2008 को दस पाकिस्तानी आतंकवादियों ने मुंबई में एक समन्वित हमला किया, जिसमें ताज महल होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट, लियोपोल्ड कैफे, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और नरीमन हाउस जैसी जगहों को निशाना बनाया गया। हमलों में छह अमेरिकियों सहित 166 लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए। इन हमलों की योजना राणा और हेडली दोनों ने मिलकर बनाई थी। हेडली ने 2007 और 2008 के बीच पांच बार मुंबई की यात्राएं कीं और प्रत्येक मिशन के बाद पाकिस्तान लौटकर लश्कर के सदस्यों को निगरानी वीडियो और जानकारी सौंपता था। इन मिशनों को राणा की इमिग्रेशन फर्म की आड़ में अंजाम दिया गया।

पाकिस्तान से संबंध और ISI कनेक्शन

तहव्वुर राणा का पाकिस्तान से संबंध केवल जन्म और शिक्षा तक सीमित नहीं था, बल्कि उसने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों और आतंकी संगठनों से भी घनिष्ठ संपर्क बनाए रखा। जांच में यह सिद्ध हुआ कि वह एक सक्रिय आतंकी कार्यकर्ता था, न कि मात्र एक निष्क्रिय सहभागी। ISI के मेजर इकबाल के साथ राणा और हेडली की घनिष्ठ बातचीत टेलीफोन, ईमेल और व्यक्तिगत स्तर पर उसकी भागीदारी को और प्रमाणित करती है। हेडली ने यह भी स्वीकार किया कि आईएसआई ने लश्कर को सैन्य और नैतिक समर्थन प्रदान किया।

कानूनी कार्यवाही और सजा

अक्टूबर 2009 में तहव्वुर राणा और हेडली को अमेरिका में उस समय गिरफ्तार किया गया, जब वे डेनमार्क स्थित अखबार “जाइलैंड्स-पोस्टेन” पर हमला करने की योजना बना रहे थे। इसी जांच के दौरान राणा की मुंबई हमलों में भूमिका उजागर हुई। जून 2011 में अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने राणा को लश्कर-ए-तैयबा को समर्थन देने और डेनिश अखबार पर हमले की योजना में भागीदारी के लिए दोषी ठहराया, हालांकि उसे मुंबई हमलों में सीधे तौर पर दोषी नहीं माना गया। 17 जनवरी 2013 को उसे 14 वर्ष की सजा सुनाई गई।

हेडली ने 12 आतंकवाद संबंधी आरोपों को स्वीकार किया और उसे 35 वर्ष की सजा सुनाई गई। उसने राणा के खिलाफ भी गवाही दी, और उसकी सक्रियता के बारे में भी उजागर किया। मुकदमे के दौरान प्रस्तुत रिकॉर्डेड टेप्स में राणा आतंकियों को पाकिस्तान का सर्वोच्च सैन्य सम्मान देने की वकालत करता हुआ पाया गया, जिससे आतंकवाद के प्रति उसकी सहानुभूति स्पष्ट होती है।

तहव्वुर राणा को अमेरिका से लाने के भारत के प्रयास

  • 28 अगस्त 2018: NIA की स्पेशल कोर्ट ने राणा के खिलाफ गिरफ्तारी वॉरंट जारी किया।
  • 4 दिसंबर 2019: भारत ने अमेरिका को प्रत्यर्पण के लिए डिप्लोमैटिक नोट दिया।
  • 10 जून 2020: भारत ने राणा की जमानत के खिलाफ शिकायत की, अमेरिका ने प्रत्यर्पण का समर्थन किया।
  • 2020: कोविड पॉजिटिव होने पर राणा को अमेरिका की जेल से छोड़ा गया।
  • 16 मई 2023: अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने प्रत्यर्पण का आदेश दिया, राणा ने अपील की।
  • 9 अगस्त 2023: गृह मंत्री अमित शाह बोले—राणा को जल्द भारत लाया जाएगा।
  • सितंबर 2024: अपील कोर्ट ने राणा की याचिका खारिज की।
  • 13 नवंबर 2024: राणा गिरफ्तार, सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटिशन दाखिल।
  • 21 जनवरी 2025: सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की, प्रत्यर्पण को मंजूरी मिली।
  • 10 अप्रैल 2025: राणा को विशेष विमान से भारत लाया गया।

 

भारत प्रत्यर्पण और ट्रंप की घोषणा

भारत सरकार वर्ष 2019 से राणा के प्रत्यर्पण की मांग कर रही थी। दिसंबर 2019 में भारत ने अमेरिका को राजनयिक नोट सौंपा और 10 जून 2020 को औपचारिक शिकायत प्रस्तुत की। फरवरी 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आधिकारिक रूप से घोषणा की कि तहव्वुर राणा को भारत प्रत्यर्पित करने की मंजूरी दे दी गई है। इस प्रत्यर्पण की प्रक्रिया की निगरानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और गृह मंत्रालय द्वारा की जा रही थी।

 

10 अप्रैल 2025 को भारत लाया गया तहव्वुर राणा प्रत्यर्पण संधि के तहत अमेरिका से मिली बड़ी सफलता

2008 मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को आखिरकार 10 अप्रैल 2025 को भारत लाया गया। अमेरिका की हिरासत में लंबे समय से बंद राणा को अमेरिकी मार्शल्स द्वारा दिल्ली लाकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपा गया। यह प्रत्यर्पण भारत और अमेरिका के बीच 1997 में हुई प्रत्यर्पण संधि के तहत संभव हुआ, जिसके अंतर्गत दोनों देश गंभीर अपराधों में लिप्त भगोड़े आरोपियों को कानूनी प्रक्रिया के बाद एक-दूसरे को सौंप सकते हैं।

राणा को भारत लाना इस संधि के तहत एक महत्वपूर्ण राजनयिक और कानूनी सफलता माना जा रहा है। अमेरिकी अदालत ने लंबी कानूनी प्रक्रिया और राणा की तमाम आपत्तियों के बाद उसके प्रत्यर्पण को मंजूरी दी थी।

भारत में तहव्वुर राणा पर कुल 10 गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज हैं, जिनमें हत्या, आतंकवादी गतिविधियों में भागीदारी, और भारत में साजिश रचना जैसे संगीन आरोप शामिल हैं। अब NIA की निगरानी में राणा के खिलाफ कानूनी कार्यवाही आगे बढ़ेगी।

 

तहव्वुर राणा ने NIA के सामने कबूला 26/11 हमले के दौरान वह मुंबई में मौजूद था

मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर राणा ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की पूछताछ में बड़ा खुलासा किया है। सूत्रों के अनुसार, राणा ने स्वीकार किया है कि 26 नवंबर 2008 को जब मुंबई पर आतंकी हमला हुआ था, उस समय वह शहर में ही मौजूद था। यही नहीं, राणा ने खुद को पाकिस्तानी सेना का एजेंट बताते हुए माना कि उसने अपने साथी डेविड कोलमैन हेडली के साथ मिलकर पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा के कई ट्रेनिंग सेशन में हिस्सा लिया था। पूछताछ के दौरान राणा ने यह भी कहा कि लश्कर एक आतंकी संगठन से बढ़कर एक जासूसी नेटवर्क की तरह काम करता है, जो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों से जुड़ा हुआ है।

इस बीच मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच अब राणा को हिरासत में लेने और उससे आगे की पूछताछ के लिए रिमांड पर लेने की तैयारी कर रही है। फिलहाल तहव्वुर राणा NIA की न्यायिक हिरासत में है, जिसे दिल्ली की अदालत ने 13 अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया हैं।