दिल्ली दंगे 2020: पुलिस ने उमर खालिद और शरजील इमाम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में ‘शासन-परिवर्तन अभियान’ का आरोप लगाया: जाने पूरा मामला-

दिल्ली पुलिस ने 2020 के दिल्ली दंगों की साजिश से जुड़े मामले में आरोपी उमर खालिद, शरजील इमाम, मीरान हैदर, गुलफिशा फातिमा और अन्य के जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दाखिल किया है। पुलिस ने अपने हलफनामे में दावा किया कि यह हिंसा एक सुनियोजित “शासन परिवर्तन अभियान” का हिस्सा थी, जिसका उद्देश्य भारत को अस्थिर करना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी छवि को धूमिल करना था। पुलिस ने कहा कि उनके पास प्रत्यक्षदर्शी, दस्तावेजी और तकनीकी सबूत हैं जो आरोपियों की गहरी संलिप्तता को दर्शाते हैं, इसलिए यह मामला “जेल का है, जमानत का नहीं।”

Delhi riots 2020

2020 में दिल्ली में CAA के विरोध प्रदर्शन के दौरान भड़की थी हिंसा:

दिल्ली पुलिस ने सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामे में कहा है कि 2020 के दिल्ली दंगे कोई अचानक हुई घटना नहीं थे, बल्कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध को हथियार बनाकर रची गई एक सुनियोजित साजिश का परिणाम थे।

पुलिस के मुताबिक, जांच में मिले गवाहों के बयान, दस्तावेजी और तकनीकी सबूत यह दर्शाते हैं कि इस साजिश के तहत देशभर में हिंसा फैलाने की कोशिश की गई थी। इसमें उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, केरल और कर्नाटक जैसे राज्य भी शामिल थे।

पुलिस ने दावा किया है कि उमर खालिद और शरजील इमाम इस साजिश के मुख्य सूत्रधार थे, जिन्होंने लोगों को भड़काने और दंगे भड़काने की भूमिका निभाई। फरवरी 2020 में दिल्ली में CAA के विरोध प्रदर्शनों के दौरान 23 से 26 फरवरी के बीच हिंसा भड़क गई थी, जिसमें 53 लोगों की मौत हुई और सैकड़ों लोग घायल हुए थे।

 

ट्रम्प के भारत यात्रा के दौरान रची गई थी साजिश:

दिल्ली पुलिस ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा है कि 2020 की हिंसा कोई स्वतःस्फूर्त विरोध नहीं थी, बल्कि इसे योजनाबद्ध तरीके से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान भड़काया गया था ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाया जा सके।

दिल्ली पुलिस ने अदालत में कहा कि आरोपियों का उद्देश्य न तो राजनीतिक असहमति जताना था और न ही कोई व्यक्तिगत शिकायत, बल्कि उनका असली मकसद हिंसा फैलाना था। इस हिंसा के सीधे असर देश के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने पर पड़े, जिससे समाज पर गंभीर परिणाम हुए।

President Donald Trump and First Lady Melania Trump listen to India’s Prime Minister Narendra Modi as they sit next to a charkha, or spinning wheel, during their visit at Gandhi Ashram in Ahmedabad on Feb. 24, 2020.

 

ट्रंप की यात्रा के साथ दंगे की साजिश जोड़ी गई

पुलिस ने अदालत में बताया कि उसके पास ऐसे चैट संदेशों और डिजिटल सबूतों के प्रमाण हैं जिनमें डोनाल्ड ट्रंप का जिक्र किया गया है। इन सबूतों के आधार पर पुलिस का कहना है कि दिल्ली दंगे पूर्वनियोजित थे और इन्हें ट्रंप की भारत यात्रा के समय के साथ जानबूझकर जोड़ा गया था।

पुलिस के अनुसार, इस समय का चयन इसलिए किया गया ताकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकर्षित किया जा सके और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोध को वैश्विक मंच पर मुस्लिमों के खिलाफ कार्रवाई के रूप में प्रस्तुत किया जा सके।

 

दिल्ली दंगों की पृष्ठभूमि:

दिल्ली दंगों से पहले पूरे देश में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहे थे। दिल्ली में शाहीन बाग जैसे कई इलाकों में लोग महीनों तक शांतिपूर्ण धरनों पर बैठे थे। इसी बीच, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद और मौजपुर जैसे क्षेत्रों में भी माहौल तनावपूर्ण बना हुआ था।

 

उमर खालिद पर साजिश के आरोप:

दिल्ली पुलिस के अनुसार, सीलमपुर में हुई एक गुप्त बैठक (secret meeting) में उमर खालिद ने महिलाओं को उकसाया कि वे चाकू, बोतल, एसिड, पत्थर और मिर्च पाउडर जैसे सामान जमा करें।

पुलिस का दावा है कि जब स्थानीय महिलाओं से मनचाहा सहयोग नहीं मिला, तो उमर खालिद ने जहांगीरपुरी से बांग्लादेशी महिलाओं को बुलवाकर जाफराबाद भेजा। गवाहों के बयान और तस्वीरें उमर खालिद की भूमिका को मजबूत करते हैं। पुलिस ने यह भी आरोप लगाया कि उमर खालिद ने अन्य साजिशकर्ताओं के साथ मिलकर 13 से 20 दिसंबर 2019 के बीच दिल्ली दंगों का पहला चरण रचा। इस दौरान, मस्जिदों के इमामों को भड़काऊ पर्चे पढ़ने और लोगों को भड़काने के लिए कहा गया ताकि माहौल को हिंसक बनाया जा सके।

 

शरजील इमाम की भूमिका:

दिल्ली पुलिस के हलफनामे में शरजील इमाम को दंगों की साजिश में अहम भूमिका निभाने वाला बताया गया है। पुलिस के अनुसार, वह उमर खालिद और अन्य प्रमुख साजिशकर्ताओं के निर्देश में काम कर रहा था और दिसंबर 13 से 20, 2019 के बीच दंगों के पहले चरण का मुख्य योजनाकार था।

पुलिस का आरोप है कि शरजील इमाम ने जामिया मिलिया इस्लामिया और आसनसोल में भाषण देकर भीड़ को उकसाया और दिल्ली में “चक्का जाम” की अपील की ताकि दूध और पानी जैसी आवश्यक सेवाओं को ठप किया जा सके।

हलफनामे में कहा गया है कि इमाम ने कट्टरपंथी संगठनों से संपर्क किया था, जो भड़काऊ पर्चे बांटकर सांप्रदायिक माहौल को भड़काने का काम कर रहे थे। पुलिस के मुताबिक, शरजील इमाम ने जामिया और जेएनयू के छात्रों को राजधानी में बाधा डालने और सड़कों को रोकने के लिए उकसाया, यह कहते हुए कि अगर दिल्ली में कुछ बड़ा हुआ, तो पूरी दुनिया का ध्यान भारत पर जाएगा।

 

हिंसा में 53 लोगों की मौत हुई:

फरवरी 2020 में मुख्य रूप से मुस्लिम महिलाओं और स्थानीय निवासियों ने जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे CAA के खिलाफ प्रदर्शन शुरू किया, जिसके कारण सड़क बंद हो गई। इसके बाद हालात तेजी से बिगड़ते गए और फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भीषण सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। इस हिंसा में 53 लोगों की मौत हुई और 250 से ज्यादा घायल हुए। ये दंगे मुख्य रूप से नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के समर्थक और विरोधी समूहों के बीच बढ़ते तनाव का परिणाम थे।

 

मामले की समयरेखा:

  • अगस्त 2020:शरजील इमाम को गिरफ्तार किया गया।
  • सितंबर 2020:उमर खालिद को पुलिस ने हिरासत में लिया। अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार किया गया।
  • 2022:निचली अदालत ने सभी आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं।
  • 2022–2024:कई आरोपियों ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
  • 9 जुलाई 2025:दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा।
  • 2 सितंबर 2025:दिल्ली हाईकोर्ट ने उमर खालिद, शरजील इमाम सहित 9 आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं।
  • 13 अक्टूबर 2025:शरजील इमाम ने बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट में अंतरिम जमानत (interim bail) की याचिका दायर की।

 

कार्यवाही में जानबूझकर की गई देरी:

दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद, शरजील इमाम, मीरान हैदर और गुलफिशा फातिमा समेत अन्य आरोपियों पर मुकदमे की कार्यवाही को जानबूझकर धीमा करने का आरोप लगाया है। पुलिस के अनुसार, आरोपियों ने “बेकार की अर्ज़ियों” (frivolous applications) और “संगठित असहयोग”  के ज़रिए सुनवाई में देरी की कोशिश की।

पुलिस ने अपने हलफनामे में कहा कि आरोपियों ने निचली अदालत में आरोप तय होने और मुकदमे की शुरुआत रोकने के लिए “कानूनी प्रक्रिया का खुलेआम दुरुपयोग”किया। पुलिस का दावा है कि मुकदमे में देरी की जिम्मेदारी जांच एजेंसियों की नहीं, बल्कि खुद आरोपियों की है।

इसके अलावा, पुलिस ने आरोपियों द्वारा 900 गवाहों के कारण मुकदमा लंबा चलने के दावे को “बेल पाने के लिए बनाई गई झूठी दलील” बताया। पुलिस ने स्पष्ट किया कि केवल लगभग 100 प्रमुख गवाहों से ही पूछताछ की जानी है, और यदि आरोपी सहयोग करें, तो मुकदमा जल्दी पूरा हो सकता है।

 

“UAPA मामलों में जमानत नहीं, जेल ही नियम”- दिल्ली पुलिस का तर्क:

दिल्ली पुलिस ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा है कि यूएपीए (UAPA) जैसे गंभीर मामलों में जमानत नहीं, बल्कि जेल ही नियम है।”

पुलिस का कहना है कि मुकदमे में देरी के लिए खुद आरोपी जिम्मेदार हैं, जो बार-बार बहाने बनाकर सुनवाई टालते रहे हैं। पुलिस के अनुसार, धारा 207 सीआरपीसी (CrPC) की कार्यवाही में ही 39 तारीखें लग चुकी हैं क्योंकि आरोपियों ने जानबूझकर केस की फाइलें लेने में देर की। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी अपने फैसले में यह माना कि मुकदमे में देरी की मुख्य वजह आरोपियों का रवैया है। पुलिस ने आगे कहा कि 900 गवाहों की दलील पूरी तरह भ्रामक है- वास्तव में केवल 100 से 150 प्रमुख गवाह हैं, जिनकी गवाही जल्दी पूरी हो सकती है, अगर आरोपी सहयोग करें।

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