देश के प्रमुख औद्योगिक घराने टाटा ग्रुप में जारी आंतरिक कलह अब सार्वजनिक हो गई है। इस बढ़ते विवाद के बीच, टाटा ट्रस्ट्स के अध्यक्ष नोएल टाटा और टाटा संस के अध्यक्ष एन. चंद्रशेखरन ने मंगलवार, 7 अक्टूबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लगभग 45 मिनट तक बैठक की।
बैठक में टाटा ट्रस्ट्स के उपाध्यक्ष वेणु श्रीनिवासन और ट्रस्टी डेरियस खंबाटा भी उपस्थित थे, जबकि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी चर्चा में भाग लिया।

टाटा ट्रस्ट्स में विवाद क्या है?
विवाद की जड़ में टाटा संस बोर्ड में नामित निदेशक विजय सिंह की पुनर्नियुक्ति का मुद्दा है। रतन टाटा के अक्टूबर 2024 में निधन के बाद, ट्रस्टों ने एक नीति बनाई थी कि 75 वर्ष से अधिक उम्र के नामित निदेशकों को प्रदर्शन की समीक्षा के बाद हर साल दोबारा नियुक्त किया जाएगा। 77 वर्षीय विजय सिंह की पुनर्नियुक्ति के प्रस्ताव को कुछ ट्रस्टियों ने खारिज कर दिया।
नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन ने सिंह की री-अपॉइंटमेंट का प्रस्ताव रखा, लेकिन चार ट्रस्टियों मेहली मिस्त्री, प्रमित झावेरी, जहांगीर एचसी जहांगीर और डेरियस खंबाटा ने इसका विरोध किया। चूंकि ये चारों बहुमत में थे, प्रस्ताव रद्द कर दिया गया। इसके बाद चार ट्रस्टियों ने मेहली मिस्त्री को टाटा संस बोर्ड पर नॉमिनी के रूप में प्रस्तावित करने की कोशिश की, लेकिन नोएल टाटा और श्रीनिवासन ने इसे रोक दिया।
टाटा ट्रस्ट्स दो गुटों में बटा:
आंतरिक गुटबाजी: इस मामले में ट्रस्टी दो गुटों में बँट गए हैं।
- एक गुट, जिसमें ट्रस्ट्स के अध्यक्ष नोएल टाटा और उपाध्यक्ष वेणु श्रीनिवासन शामिल हैं, ने पुनर्नियुक्ति का समर्थन किया।
- दूसरा गुट, जिसमें मेहली मिस्त्री जैसे ट्रस्टी शामिल हैं, ने इसका विरोध किया और उन्होंने अपनी ओर से एक और व्यक्ति को नामित करने का प्रयास किया।
शासन (गवर्नेंस) संबंधी मुद्दे: रिपोर्टों के अनुसार, कुछ ट्रस्टियों ने ट्रस्ट्स के भीतर “सुपर बोर्ड” के रूप में काम करने की कोशिश की, जिससे नोएल टाटा के अधिकार को कमजोर किया जा रहा था। इन ट्रस्टियों पर आरोप है कि वे टाटा संस से संबंधित महत्वपूर्ण फैसलों के बारे में पूरी जानकारी साझा नहीं करते हैं।
सितंबर में हुई बैठक के बाद बढ़ा विवाद:
टाटा ट्रस्ट्स में विवाद की शुरुआत 6 ट्रस्टियों की बैठक से हुई, जो सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और रतन टाटा ट्रस्ट सहित कई धर्मार्थ ट्रस्टों का प्रतिनिधित्व करती है। 11 सितंबर को पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह की टाटा संस बोर्ड में नामित निदेशक के रूप में पुनर्नियुक्ति पर विचार करने के लिए यह बैठक बुलाई गई थी।
टाटा ट्रस्ट्स में कुल सात ट्रस्टी हैं, जिसमें विजय सिंह भी शामिल हैं। सिंह 11 सितंबर की बैठक में उपस्थित नहीं हुए क्योंकि उनका नामांकन एजेंडे में था। अक्टूबर 2024 में रतन टाटा के निधन के बाद ट्रस्ट्स ने यह नीति बनाई थी कि टाटा संस बोर्ड में नामित निदेशकों को 75 वर्ष की आयु पूरी होने पर वार्षिक नवीनीकरण कराना अनिवार्य होगा।
विजय सिंह ने टाटा संस बोर्ड से इस्तीफा दिया:
11 सितंबर की बैठक में, 77 वर्षीय विजय सिंह, जो 2012 से निदेशक और 2018 से ट्रस्टी रहे, की पुनर्नियुक्ति का प्रस्ताव नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन ने रखा। हालांकि, चार अन्य ट्रस्टियों मेहली मिस्त्री, प्रमित झावेरी, जहांगीर एचसी जहांगीर और डेरियस खंबाटा ने इसका विरोध किया और प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।
इसके बाद, चारों ट्रस्टियों ने मेहली मिस्त्री को टाटा संस बोर्ड में नामित करने का प्रयास किया, लेकिन नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन ने इसे रोक दिया और टाटा के मूल्यों के अनुरूप पारदर्शी प्रक्रिया की आवश्यकता पर बल दिया। बैठक के बाद, विजय सिंह ने स्वेच्छा से टाटा संस बोर्ड से इस्तीफा दे दिया।
विवाद के पीछे कुछ अन्य वजह भी है जैसे-
निर्णयों से बाहर रहना: मेहली मिस्त्री, जो शापूरजी पलोनजी परिवार से जुड़े हैं, का कहना है कि उन्हें टाटा संस से संबंधित महत्वपूर्ण फैसलों से बाहर रखा गया है। वे एक सुधारवादी गुट का हिस्सा हैं, जो ट्रस्ट्स के नॉमिनी डायरेक्टर्स से अधिक पारदर्शिता और दृश्यता की मांग करता है।
गवर्नेंस पर दृष्टिकोण में अंतर: टाटा ट्रस्ट्स के दो गुटों के बीच गवर्नेंस दर्शन में अंतर है:
- नोएल टाटा का “कॉन्टिन्यूटी कैंप“: पारंपरिक, सहमति-आधारित निगरानी मॉडल को बनाए रखने का पक्षधर।
- मेहली मिस्त्री का “सुधारवादी कैंप“: सख्त गवर्नेंस प्रथाओं, संरचित सूचना प्रवाह और आधुनिक नियुक्ति प्रोटोकॉल की वकालत करता है।
टाटा संस में प्रमुख शेयरधारक:
- टाटा ट्रस्ट्स टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड में लगभग 66% हिस्सेदारी रखते हैं, जो टाटा समूह की प्रमुख होल्डिंग कंपनी है। यह नियंत्रणकारी हिस्सेदारी ट्रस्ट्स को पूरे समूह के दिशा और गवर्नेंस पर बड़ा प्रभाव देती है।
- इसके अलावा, मेहली मिस्त्री, जिनका संबंध विस्तारित शापूरजी पलोनजी परिवार से है, के पास टाटा संस में लगभग 37% हिस्सेदारी है। शेष हिस्सेदारी में टाटा ग्रुप की कंपनियों का 13% और अन्य शेयरधारकों का 2.6% शामिल है।
टाटा संस की भूमिका:
टाटा ट्रस्ट्स टाटा संस में लगभग 66% हिस्सेदारी रखते हैं। टाटा संस असल में टाटा ग्रुप की मुख्य होल्डिंग कंपनी है, जो समूह की अलग-अलग सेक्टर में काम करने वाली 100 से अधिक कंपनियों को अंततः मैनेज करती है। इनमें से करीब 30 कंपनियां शेयर बाजार में लिस्टेड हैं।
टाटा संस ग्रुप की कंपनियों में प्रमोटर के रूप में कार्य करती है और समूह के लिए एक फाइनेंस और ब्रांड कंपनी की तरह काम करती है। टाटा ग्रुप की कंपनियों को अपने लोगो और नाम का इस्तेमाल करने के लिए टाटा संस को रॉयल्टी मिलती है। इसके अलावा, समूह की कंपनियों में टाटा संस की हिस्सेदारी से होने वाली आय का प्रबंधन और निवेश टाटा ट्रस्ट्स के बोर्ड के द्वारा किया जाता है।
टाटा ग्रुप के बारे मे:
टाटा ग्रुप का मतलब है टाटा से जुड़ी सभी कंपनियों का सम्मिलित कारोबार। चाहे वह टाटा कंसल्टेंसी सर्विस (TCS) हो, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टाटा पावर, टाइटन, टाटा प्रोजेक्ट्स, एयर इंडिया, ताज होटल्स (इंडियन होटल्स कंपनी), टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, टाटा केमिकल्स, टाटा टी, वोल्टास, ट्रेंट और क्रोमा या बिग बास्केट ये सभी टाटा ग्रुप का हिस्सा हैं।
सरकार की चिंता और समाधान की दिशा:
सरकार का मानना है कि टाटा ट्रस्ट्स के भीतर चल रहे मतभेद अगर समय पर सुलझाए नहीं गए, तो यह पूरे समूह की कार्यप्रणाली पर असर डाल सकते हैं। मंत्रियों ने कंपनी नेतृत्व को यह सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहित किया कि जरूरत पड़ने पर सख्त कदम उठाए जाएं, जिसमें ऐसे ट्रस्टी को हटाना भी शामिल है, जो समूह के सुचारू कामकाज में बाधा डाल रहे हों।
सरकार के सूत्रों के अनुसार, “देश की अर्थव्यवस्था में टाटा समूह की अहमियत को देखते हुए सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इसे किसी एक व्यक्ति को सौंपा जा सकता है। टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टियों के बीच चल रही आंतरिक कलह का असर टाटा संस पर भी पड़ रहा है।”
सरकार समाधान कैसे निकालेगी:
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, सरकार टाटा ट्रस्ट्स और उनके ट्रस्टियों के बीच शक्तियों के विभाजन पर ध्यान देगी, ताकि टाटा संस और उसकी कंपनियों का संचालन प्रभावित न हो।
अगली टाटा ट्रस्ट्स की बैठक 10 अक्टूबर को होने वाली है, और सरकार इससे पहले ही समाधान कराने का प्रयास करेगी। विवाद का सबसे बड़ा बिंदु है टाटा संस बोर्ड में नॉमिनी डायरेक्टर्स की नियुक्ति और यह कि क्या बोर्ड की चर्चाओं को अन्य ट्रस्टियों के साथ साझा किया जाना चाहिए।
टाटा ट्रस्ट: इतिहास, महत्व और कार्यक्षेत्र
टाटा ट्रस्ट भारत के सबसे पुराने और गैर-सांप्रदायिक परोपकारी संगठनों में से एक है। इसकी स्थापना 1892 में जमशेदजी टाटा ने की थी। यह कई छोटे-बड़े ट्रस्टों का समूह है, जिसमें सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट जैसे प्रमुख ट्रस्ट शामिल हैं।
मुख्य जानकारी:
- सबसे बड़ा शेयरधारक: टाटा ट्रस्ट टाटा समूह की शीर्ष कंपनी टाटा संस का सबसे बड़ा शेयरधारक है, जिसके पास लगभग 66% हिस्सेदारी है।
- कमाई का उद्देश्य: टाटा संस से मिलने वाला लाभांश विभिन्न कल्याणकारी और परोपकारी कार्यों में उपयोग किया जाता है।
- व्यापक कार्यक्षेत्र: ट्रस्ट स्वास्थ्य सेवा, पोषण, शिक्षा, जल और स्वच्छता (WASH), आजीविका, सामाजिक न्याय, कला और संस्कृति, खेल, और आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में काम करता है।
- प्रमुख संस्थान: टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, टाटा मेमोरियल सेंटर (कैंसर अनुसंधान और उपचार के लिए), और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च जैसे संस्थानों की स्थापना में ट्रस्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- व्यक्तिगत सहायता: योग्य व्यक्तियों को शिक्षा और चिकित्सा सहायता के लिए अनुदान प्रदान किया जाता है।
टाटा ट्रस्ट का महत्व और विरासत:
टाटा परिवार द्वारा 20वीं सदी की शुरुआत में स्थापित, टाटा ट्रस्ट्स ने न केवल टाटा संस के बहुमत शेयरधारक के रूप में बल्कि भारत के प्रमुख परोपकारी संस्थाओं के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पीढ़ियों तक कार्य करते हुए, ट्रस्ट ने शैक्षिक, वैज्ञानिक, स्वास्थ्य और सामाजिक संस्थाओं को आकार दिया जैसे कि इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस, टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल और कई स्थानीय स्तर की पहलकदमी।
ट्रस्ट की यह अनूठी संरचना, जो व्यावसायिक संपत्ति और सार्वजनिक भलाई दोनों की संरक्षक है, आंतरिक गवर्नेंस पर विशेष ध्यान देती है। यही कारण है कि ट्रस्ट के नेतृत्व विवाद या प्रक्रिया-संबंधी किसी भी विवाद का प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर महसूस किया जाता है।
निष्कर्ष:
टाटा ट्रस्ट्स की यह आंतरिक लड़ाई अब सरकार के हस्तक्षेप में आ चुकी है और चूँकि टाटा समूह का देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर है, इसलिए विवाद को जल्द और संतुलित तरीके से सुलझाना अनिवार्य है, सभी पक्षों के बीच पारदर्शी मध्यस्थता के जरिए ही किसी स्थायी और राष्ट्रहित में निर्णय तक पहुँचा जाना चाहिए।