DRDO ने सैन्य संचार के लिए IRSA 1.0 किया लॉन्च: जाने इसका तकनीकी ढांचा और महत्व..

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने एकीकृत रक्षा स्टाफ (IDS) और तीनों सेनाओं के सहयोग से 6 अक्टूबर 2025 को नई दिल्ली स्थित DRDO भवन में आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यशाला के दौरान “भारतीय रेडियो सॉफ्टवेयर आर्किटेक्चर (IRSA)” मानक 1.0 जारी किया। यह भारत की सैन्य संचार प्रणाली में एक बड़ा तकनीकी बदलाव साबित होगा, जो स्वदेशी और परस्पर-संचालन योग्य सॉफ्टवेयर परिभाषित रेडियो (SDR) के विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

DRDO launches IRSA 1.0 for military communications

राष्ट्रीय कार्यशाला की प्रमुख बातें:

नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला के दौरान IRSA के तकनीकी ढांचे और इसके विकास की रूपरेखा पर विस्तार से चर्चा की गई। इस मौके पर सशस्त्र बलों, रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (DPSU), उद्योग जगत के विशेषज्ञों और शैक्षणिक व अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग के लिए मंच प्रदान किया गया।

प्रतिभागियों ने पायलट परियोजनाओं, मानक को अपनाने की रणनीतियों और IRSA ढांचे में अगली पीढ़ी की तकनीकों को शामिल करने की संभावनाओं पर भी विचार-विमर्श किया।

इस कार्यक्रम में DD R&D के सचिव और DRDO के अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत मुख्य अतिथि थे। एकीकृत रक्षा स्टाफ प्रमुख एयर मार्शल आशुतोष दीक्षित और आईआईटी गांधीनगर के निदेशक प्रो. रजत मूना विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए। राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन DRDO के महानिदेशक (ECS) डॉ. बी.के. दास के मार्गदर्शन में किया गया।

 

रक्षा मंत्रालय ने कहा,

IRSA 1.0 भारत के उस प्रयास का अहम हिस्सा है, जिसका मकसद स्वदेशी, आपस में जुड़ने योग्य और भविष्य की जरूरतों के मुताबिक रक्षा संचार तकनीक विकसित करना है। यह पहल भारत में बनी, भारत के लिए और दुनिया के लिए तैयार प्रणाली का प्रतीक है।

 

IRSA क्या है?

IRSA सॉफ्टवेयर परिभाषित रेडियो (SDR) के लिए बनाया गया एक मानक सॉफ्टवेयर ढांचा है। यह अलग-अलग रेडियो सिस्टम को एक-दूसरे से जोड़ने और मिलकर काम करने में मदद करता है। इसमें इंटरफेस, एपीआई (API), और वेवफॉर्म जैसी तकनीकी चीजों के लिए एक समान नियम तय किए गए हैं। इससे सभी सेनाओं के रेडियो सिस्टम एक-दूसरे के साथ आसानी से काम कर सकेंगे और भविष्य की नई तकनीकों के अनुसार इसे अपडेट किया जा सकेगा।

IRSA 1.0 का तकनीकी ढांचा:

IRSA ने NATO के Software Communications Architecture (SCA) 4.1 मानक को अपनाया है और इसे भारतीय सैन्य जरूरतों के अनुसार संशोधित किया गया है। इससे अंतरराष्ट्रीय संगतता बनी रहती है और भारत अपनी आवश्यकताओं के अनुसार बदलाव कर सकता है।

IRSA GPPs (General Purpose Processors), DSPs (Digital Signal Processors) और FPGAs (Field Programmable Gate Arrays) जैसे हार्डवेयर के लिए समर्थन देता है। यह SDRs को हल्का (lightweight), मध्यम (medium) और भारी (heavy) श्रेणियों में वर्गीकृत करने के लिए रेडियो प्रोफाइल भी प्रदान करता है।

 

IRSA का महत्व:

IRSA रक्षा क्षेत्र के लिए स्वदेशी, अंतर-संचालनीय और भविष्य-तैयार संचार समाधान विकसित करने की भारत की प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करता है। यह स्वदेशी मानक प्रदान करके विदेशी तकनीक पर निर्भरता कम करता है। यह आर्किटेक्चर तरंगों की सुवाह्यता का समर्थन करता है, जिससे विभिन्न रेडियो निर्बाध रूप से संचार कर सकते हैं। यह मानकीकरण थल सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच संयुक्त अभियानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 

चुनिंदा देशों की श्रेणी में भारत:

IRSA के साथ भारत अब उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है जिनके पास अपने सॉफ्टवेयर परिभाषित रेडियो (SDR) मानक हैं, जैसे:

  • अमेरिका: SCA फ्रेमवर्क
  • यूरोप: ESSOR और
  • नाटो: STANAG मानक

इसे रक्षा मंत्रालय के मानकीकरण निदेशालय (DoS) के तहत विकसित किया गया है।

 

IRSA की विकास प्रक्रिया:

IRSA की विकास प्रक्रिया 2021 में शुरू हुई, जब आधुनिक सैन्य संचार में सॉफ्टवेयर परिभाषित रेडियो (SDR) की अहमियत को पहचाना गया। DRDO ने 2022 में एक कोर टीम बनाकर इस पर काम शुरू किया, जिसमें IDS और तीनों सेनाओं के प्रतिनिधि शामिल थे। उन्होंने मिलकर सेनाओं की ज़रूरतों को समझा और उनके अनुसार मानक तैयार किया। कई समीक्षाओं और परामर्शों के बाद इसे और बेहतर बनाया गया।

2025 में उच्च स्तरीय सलाहकार समिति ने IRSA 1.0 को मंजूरी दी। इस पूरी प्रक्रिया में रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों, उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों का भी सहयोग लिया गया, ताकि एक मजबूत और स्वदेशी तकनीकी ढांचा तैयार किया जा सके।

 

भविष्य की दिशाएँ:

भविष्य में IRSA का लक्ष्य ऐसी प्रणाली बनाना है जो नई तकनीकों और बदलती जरूरतों के साथ आसानी से तालमेल बिठा सके। यह भारत की रक्षा संचार प्रणालियों में नई और उन्नत तकनीकों को जोड़ने की दिशा में एक मजबूत आधार तैयार करता है। भारत का उद्देश्य है कि IRSA को सॉफ्टवेयर परिभाषित रेडियो (SDR) के लिए एक वैश्विक मानक बनाया जाए, जिससे भारत मित्र देशों को IRSA आधारित समाधान निर्यात कर सके और रक्षा क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय साझेदारी को मजबूत कर सके।

 

सॉफ्टवेयर परिभाषित रेडियो (SDR) क्या है?

सॉफ्टवेयर परिभाषित रेडियो (SDR) ऐसे रेडियो सिस्टम हैं जो पारंपरिक हार्डवेयर की बजाय सॉफ्टवेयर का उपयोग करके संचार को नियंत्रित करते हैं। ये सिस्टम लचीले होते हैं, आसानी से अपग्रेड किए जा सकते हैं और आधुनिक डिजिटल वातावरण में तेज़ी से बदलते मल्टी-बैंड संचालन के लिए उपयुक्त हैं।

 

आइये जानते है DRDO के बारे में:

स्थापना: DRDO की स्थापना 1958 में हुई थी। इसे भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (TDE) और तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय (DTDP) को रक्षा विज्ञान संगठन (DSO) के साथ मिलाकर बनाया गया।

संगठनात्मक संरचना:

  • अध्यक्षता: रक्षा विभाग के अनुसंधान एवं विकास सचिव और DRDO के महानिदेशक इसकी अध्यक्षता करते हैं।
  • महानिदेशक: विभिन्न प्रौद्योगिकी क्षेत्रों के प्रमुख वैज्ञानिकों की सहायता प्राप्त करते हैं।
  • प्रौद्योगिकी क्लस्टर: DRDO में सात मुख्य प्रौद्योगिकी क्लस्टर हैं:– एयरोनॉटिक्स, आयुध (Armament), कॉम्बैट इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार प्रणाली, माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्प्यूटेशनल सिस्टम, जीवन विज्ञान, और नौसेना प्रणाली।
  • प्रयोगशालाएँ: भारत में 53 विशेष प्रयोगशालाएँ हैं, जो सशस्त्र बलों, उद्योग और शिक्षा संस्थानों के साथ सहयोग करती हैं। ये प्रयोगशालाएँ सात प्रौद्योगिकी समूहों के अंतर्गत काम करती हैं।

जिम्मेदारियां और उद्देश्य:

  • DRDO सशस्त्र बलों के लिए आधुनिक हथियार प्रणालियों का स्वदेशी डिजाइन, विकास और उत्पादन करता है।
  • मिसाइल, आयुध, इलेक्ट्रॉनिक्स, लड़ाकू वाहन जैसे क्षेत्रों में भविष्य की रक्षा तकनीक विकसित करता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए NBC खतरे, उन्नत सामग्रियाँ, रोबोटिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता आदि के लिए उपाय तैयार करता है।
  • भारतीय उद्योगों के साथ साझेदारी कर तकनीकी हस्तांतरण के माध्यम से रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत बनाता है और उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद करता है।
  • मुख्य उद्देश्य: आत्मनिर्भरता हासिल करना और स्वदेशी अनुसंधान, विकास एवं विनिर्माण क्षमताओं का निर्माण।

 

निष्कर्ष:

IRSA 1.0 भारत की रक्षा संचार प्रणाली में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह स्वदेशी और परस्पर-संचालन योग्य SDR के विकास को सक्षम बनाता है और भारतीय सशस्त्र बलों की तकनीकी आत्मनिर्भरता और भविष्य की चुनौतियों के अनुकूल तैयार रहने की क्षमता को मजबूत करता है।