भारत में बेचे जा रहे पेट्रोल में वर्तमान में 10 से 20% तक एथेनॉल मिश्रण किया जा रहा है। ई20 (20% एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल) की सफलता के पश्चात, सरकार अब ई27 (27% एथेनॉल युक्त पेट्रोल) लाने की योजना पर कार्य कर रही है। इसके लिए आवश्यक मानकों का मसौदा तैयार किया जा रहा है, जिसे अगस्त के अंत तक अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है। ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) ई27 के अनुकूल इंजनों के लिए आवश्यक संशोधनों का मूल्यांकन कर रही है।
इस बीच एक सर्वेक्षण में पेट्रोल चालित कारों और दोपहिया वाहनों के दो-तिहाई मालिकों ने ई20 पेट्रोल को अनिवार्य किए जाने का विरोध दर्ज कराया है। उन्होंने एथेनॉल मिश्रित ईंधन के कारण इंजन को संभावित नुकसान की आशंका जताई है। विशेष रूप से, पुरानी गाड़ियों में ई20 ईंधन के उपयोग से माइलेज में गिरावट और इंजन की आयु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की चिंता व्यक्त की गई है।
ई20 पेट्रोल को लेकर वाहन मालिकों की चिंता
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि वाहन को ई20 पेट्रोल (20% एथेनॉल मिश्रण) के अनुकूल बनाने हेतु आवश्यक तकनीकी बदलाव नहीं किए गए हैं, तो इससे कई प्रकार की यांत्रिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। वर्ष 2023 से पूर्व निर्मित अधिकांश गाड़ियों में यह अनुकूलता नहीं होती, जिसके चलते 20% मिश्रित पेट्रोल के उपयोग से इंजन में जंग लगने की आशंका रहती है। साथ ही, रबर और प्लास्टिक से बने पुर्जों के क्षतिग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है। इससे न केवल माइलेज में तात्कालिक गिरावट देखने को मिल सकती है, बल्कि कुछ मामलों में इंजन फेल होने का जोखिम भी बताया गया है।
ई20 पेट्रोल से माइलेज में गिरावट: क्या कहती है जनता
हाल ही में एक सर्वेक्षण में 2022 या उससे पहले की कारों के मालिकों से पूछा गया कि ई20 फ्यूल के उपयोग के बाद उनके वाहनों के माइलेज में कितनी गिरावट दर्ज की गई है। इस पर 11% प्रतिभागियों ने बताया कि उनके वाहन का माइलेज लगभग 20% तक घट गया है, जबकि 22% लोगों ने माइलेज में 15-20% की गिरावट महसूस की। इसके अतिरिक्त, 11% ने इसे 10-15%, और 14% ने 5-10% तक की कमी बताया। वहीं, 4% लोगों ने 2-5% असर महसूस किया और 5% प्रतिभागियों ने 1-2% गिरावट का उल्लेख किया। लगभग 11% लोगों का कहना था कि उन्हें ई20 फ्यूल से कोई नुकसान नहीं हुआ, जबकि 22% ने कोई राय नहीं दी।

सर्वेक्षण की प्रक्रिया और प्रतिनिधित्व
यह सर्वे देश के 315 जिलों में फैले 36,000 से अधिक पेट्रोल वाहन चालकों की प्रतिक्रियाओं पर आधारित था। इसमें भाग लेने वालों में 68% पुरुष और 32% महिलाएं थीं। सर्वे के उत्तरदाताओं में से 44% टियर-1 शहरों, 27% टियर-2 शहरों और शेष 29% टियर-3, टियर-4, टियर-5 और ग्रामीण क्षेत्रों से थे।
सरकार का पक्ष: माइलेज में गिरावट मामूली
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MoPNG) ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर एक विस्तृत लेख के माध्यम से इस विषय पर अपनी स्थिति स्पष्ट की है। मंत्रालय के अनुसार, पारंपरिक पेट्रोल की तुलना में एथेनॉल की ऊर्जा घनता कम होने के कारण माइलेज में कुछ हद तक कमी आती है। ई10 डिज़ाइन और ई20 कैलिब्रेशन वाले चार पहिया वाहनों में यह गिरावट लगभग 1-2% तक सीमित रहती है, जबकि अन्य प्रकार के वाहनों में 3-6% तक की गिरावट देखी जा सकती है।
एथेनॉल ब्लेंडेड फ्यूल क्या है:
एथेनॉल ब्लेंडेड फ्यूल एक मिश्रित ईंधन है, जिसमें पारंपरिक पेट्रोल के साथ जैविक रूप से उत्पादित एथेनॉल को मिलाया जाता है। ‘ई20’ जैसे मिश्रणों में 20% एथेनॉल और 80% पेट्रोल होता है। यह जैव ईंधन गन्ना या मक्का जैसी फसलों से बनने वाले शर्करा को किण्वित कर तैयार किया जाता है।
सरकार ने फरवरी 2023 में देश के कुछ हिस्सों में ई20 की शुरुआत की थी, जो अब व्यापक रूप से पेट्रोल पंपों पर उपलब्ध है। एथेनॉल का उपयोग पारंपरिक पेट्रोल की तुलना में अधिक पर्यावरण-अनुकूल माना जाता है, क्योंकि यह बायोमास से बनता है और इसके लिए कच्चे तेल के आयात की आवश्यकता नहीं होती। यही कारण है कि भारत सरकार इसे बढ़ावा देकर ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और पर्यावरण संरक्षण दोनों लक्ष्यों को साधने का प्रयास कर रही है।
एथेनॉल ब्लेंडिंग: विज्ञान, पर्यावरण और वाहन पर प्रभाव
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण: एथेनॉल एक जैविक ईंधन है जो पेट्रोल की तुलना में अधिक स्वच्छ रूप से जलता है। यह एक ऑक्सीजन युक्त यौगिक होने के कारण ईंधन के दहन को अधिक पूर्ण बनाता है, जिससे कार्बन मोनोऑक्साइड और अधजले हाइड्रोकार्बन जैसे हानिकारक उत्सर्जन में कमी आती है। इसके साथ ही यह पेट्रोल का विकल्प भी बनता है, जिससे जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटती है।
हालांकि एथेनॉल की ऊर्जा सघनता पेट्रोल से थोड़ी कम होती है, लेकिन कम मिश्रण स्तर (जैसे E10 या E20) पर इसका ईंधन दक्षता पर प्रभाव मामूली होता है। उच्च प्रतिशत वाले मिश्रणों के लिए इंजन में तकनीकी बदलाव की आवश्यकता हो सकती है, क्योंकि एथेनॉल का स्वभाव जंगकारी (corrosive) होता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: एथेनॉल मिश्रित ईंधन से कई पर्यावरणीय लाभ मिलते हैं:
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी
- प्रदूषक तत्वों जैसे CO, HC, और PM का उत्सर्जन घटता है
- दहन प्रक्रिया अधिक स्वच्छ होती है
एथेनॉल में मौजूद ऑक्सीजन तत्व दहन की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है, जिससे वातावरण में कम हानिकारक गैसें जाती हैं।
- वाहनों पर प्रभाव: एथेनॉल ब्लेंडिंग पर आधारित अध्ययनों में पाया गया है कि जैसे-जैसे मिश्रण में एथेनॉल की मात्रा बढ़ती है, वाहनों की माइलेज में थोड़ी गिरावट देखी जा सकती है। यानी एक ही दूरी तय करने के लिए थोड़ा अधिक ईंधन लगता है।
अधिकांश आधुनिक वाहन E10 मिश्रण को बिना किसी तकनीकी परेशानी के स्वीकार कर सकते हैं। E20 के लिए वाहन निर्माता “फ्लेक्स फ्यूल” इंजन विकसित कर रहे हैं, जो रबर सील और प्लास्टिक फ्यूल लाइन जैसे संवेदनशील पुर्जों को क्षति से बचाते हुए उच्च एथेनॉल मात्रा को सहन कर सकते हैं।
- आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: एथेनॉल मिश्रण नीति का व्यापक आर्थिक असर भी देखा जा रहा है:
- गन्ना और मक्का जैसी फसलों की मांग बढ़ने से किसानों को लाभ
- कच्चे तेल के आयात में कमी से ऊर्जा सुरक्षा को बल
- ग्रामीण रोजगार के अवसरों में वृद्धि और जैव-ऊर्जा क्षेत्र को प्रोत्साहन
हालांकि, उच्च मिश्रण स्तर की ओर बढ़ते समय ईंधन स्टेशनों और भंडारण प्रणालियों में बदलाव की जरूरत होगी। इसके साथ ही फसलों को ईंधन के लिए उपयोग करने पर खाद्य सुरक्षा से जुड़ी बहस भी सामने आती है, विशेष रूप से जब फसल उत्पादन कमजोर हो।