भारत और भूटान की सरकारों के बीच सीमा पार रेलवे परियोजनाएं शुरू करने के लिए अहम सहमति बन गई है। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने सोमवार को इस बात की घोषणा कर दी है। जानकारी के मुताबिक, ये भारत और भूटान के बीच ऐसी पहली क्रॉस बॉर्डर रेल परियोजना होने जा रही है।
जानकारी के मुताबिक, भारत और भूटान के बीच रेलवे कनेक्टिविटी को लेकर हुई डील के तहत पश्चिम बंगाल के बानरहाट को भूटान के समत्से से जोड़ा जाएगा। इसके साथ ही दूसरी लाइन असम के कोकराझार को भूटान के गेलेफू से जोड़ेगी।
विदेश सचिव विक्रम मिस्री इस रेल परियोजना की घोषणा करते हुए कहा- “यह भूटान के साथ रेल कनेक्टिविटी की परियोजनाओं का पहला सेट होगा। इस संपर्क के लिए समझौता ज्ञापन पर पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूटान यात्रा के दौरान हस्ताक्षर किए गए थे।”

4 साल में पूरी होगी परियोजना:
कोकराझार और गेलेफू के बीच पहली 69 किलोमीटर लंबी रेल लाइन का विवरण साझा करते हुए अश्विनी वैष्णव ने कहा कि दोनों शहरों के बीच छह स्टेशन होंगे और पूरी लाइन के निर्माण में दो महत्वपूर्ण पुल, 29 बड़े पुल, 65 छोटे पुल, एक रोड-ओवर-ब्रिज और 39 रोड-अंडर-ब्रिजभी शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि परियोजना चार वर्षों में पूरी होगी और 69 किलोमीटर में से 2.39 किलोमीटर लाइन भूटान की तरफ होगी।
परियोजना में कितना खर्च आएगा?
केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव जानकारी दी है कि “भारत-भूटान के बीच रेल परियोजना के लिए अनुमानित निवेश लगभग 4033 करोड़ रुपये है। इस रेल परियोजना की कुल लंबाई करीब 90 किलोमीटर है। 89 किलोमीटर का रेलवे नेटवर्क बनाया जाएगा।”
भारत सरकार उठाएगी प्रोजेक्ट का खर्च
विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि दोनों रेल लाइनों में पूरा खर्च भारत सरकार करेगी. “भारत की सीमा में आने वाले रेल लिंक का खर्च रेलवे मंत्रालय उठाएगा. वहीं भूटान की सीमा में आने वाले दोनों रेल लिंक का खर्च भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा उठाया जाएगा, जो भूटान की 13वीं पंचवर्षीय योजना के तहत भारत की सहायता का हिस्सा है।
विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा, “भूटान की 13वीं पंचवर्षीय योजना (2024-2029) के लिए भारत ने 10,000 करोड़ रुपये की सहायता देने का वादा किया है. इसमें विभिन्न परियोजनाओं, सामुदायिक विकास योजनाओं, आर्थिक प्रोत्साहन कार्यक्रम और अनुदान शामिल हैं। यह राशि पिछली (12वीं) पंचवर्षीय योजना की तुलना में दोगुनी है।
पिछले साल मोदी के भूटान दौरे पर सहमति बनी:
विक्रम मिस्री ने बताया कि ये दोनों परियोजनाएं भारत और भूटान के बीच रेल संपर्क परियोजनाओं के पहले सेट का हिस्सा हैं। इन परियोजनाओं के लिए पिछले साल पीएम मोदी की भूटान यात्रा के दौरान समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर हुए थे। समझौते के मुताबिक भारत सरकार इन दोनों रेल प्रोजेक्ट्स में पूरी मदद करेगी। भारत की तरफ की रेलवे लाइन का खर्च रेल मंत्रालय उठाएगा। भूटान की तरफ का हिस्सा भारत सरकार की मदद से भूटान की 5-वर्षीय योजना के तहत बनेगा
क्या है इस परियोजना का मकसद?
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया है कि “भारत, भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और भूटान का ज्यादातर फ्री ट्रेड भारतीय बंदरगाहों के माध्यम से होता है। भूटानी अर्थव्यवस्था के विकास और लोगों की वैश्विक नेटवर्क तक बेहतर पहुंच के लिए एक अच्छा और निर्बाध रेल संपर्क होना बहुत जरूरी है। इसीलिए इस पूरी परियोजना को शुरू किया गया है।”
वंदे भारत के अनुरूप डिज़ाइन:
इन रेलमार्गों को वंदे भारत ट्रेनों के अनुरूप डिजाइन किया जाएगा। यानी यह पूरी तरह विद्युतीकृत होंगे, तेज गति से चलने योग्य होंगे और आधुनिक तकनीकी मानकों पर आधारित होंगे। परियोजनाओं से न सिर्फ भारी आर्थिक लाभ होगा बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी भारत और भूटान के बीच यह कनेक्टिविटी बेहद महत्वपूर्ण होगी।
तकनीक और कोच पूरी तरह भारतीय:
रेल मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि इस प्रोजेक्ट में इस्तेमाल की जाने वाली पूरी तकनीक भारत की होगी। ट्रेन के कोच भारत में ही बनाए जाएंगे और वही भरोसेमंद तकनीक उपयोग में लाई जाएगी, जो भारत पहले से सफलतापूर्वक इस्तेमाल कर रहा है।
सुरक्षा और स्थानीय भागीदारी:
दोनों देशों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा व्यवस्था आपसी सहमति से तय की जाएगी। इसके अलावा, भूटान के अधिक से अधिक नागरिकों को रेलवे संचालन की ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि वे इस पूरे नेटवर्क का हिस्सा बन सकें और स्थानीय स्तर पर उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
भारत–भूटान संबंध: रणनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक साझेदारी
भारत और भूटान के बीच औपचारिक कूटनीतिक संबंध वर्ष 1968 में स्थापित हुए। इन संबंधों की नींव 1949 की मैत्री और सहयोग संधि पर आधारित है, जिसे समय की आवश्यकताओं के अनुसार वर्ष 2007 में संशोधित किया गया।
विकास सहयोग
भूटान की पहली पंचवर्षीय योजना (1971) से ही भारत उसके प्रमुख विकास सहयोगी के रूप में जुड़ा रहा है। भारत की विकास सहायता वार्षिक योजना वार्ता (Plan Talks) के माध्यम से तय होती है। इसमें बुनियादी ढाँचे, सड़क, ऊर्जा, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, शहरी विकास और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में सहयोग शामिल है।
इसके अंतर्गत हाई इम्पैक्ट कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स भी चलते हैं जिनका उद्देश्य शीघ्र परिणाम देने वाले प्रोजेक्ट्स जैसे पेयजल आपूर्ति नेटवर्क, सिंचाई नहरें, ग्रामीण सड़कें, प्राथमिक स्वास्थ्य इकाइयाँ और अन्य ग्रामीण अवसंरचना का विकास करना है। भारत भूटान को प्रत्यक्ष बजटीय सहायता (Programme Grant) भी प्रदान करता है।
द्विपक्षीय संबंधों का महत्व:
दोनों देशों के लिए
भारत और भूटान के संबंध राजनीतिक रूप से मजबूत हैं जिनकी नींव मैत्री संधि पर आधारित है। सबसे अहम क्षेत्र जलविद्युत सहयोग है, जिसे 2006 के समझौते और 2009 के प्रोटोकॉल द्वारा नियंत्रित किया जाता है। भारत भूटान को वित्तीय, तकनीकी और ऊर्जा बाज़ार उपलब्ध कराता है जिससे भूटान के सामाजिक-आर्थिक विकास को गति मिलती है। बदले में भारत को स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त होती है।
दोनों देशों के बीच गहरी बौद्ध सांस्कृतिक कड़ी भी है। भारत ने भूटान को 16वीं सदी के संत झाबद्रंग नागवांग नामग्याल की प्रतिमा भी उधार दी, जिन्हें आधुनिक भूटान का संस्थापक माना जाता है। इसके अतिरिक्त दोनों देश ट्रांसबाउंड्री मानस कंज़र्वेशन एरिया के माध्यम से सीमा-पार वन्यजीव संरक्षण में भी सहयोग कर रहे हैं।
भूटान के लिए
भारत–भूटान व्यापार और पारगमन समझौता (1972, संशोधित 2016) के तहत मुक्त व्यापार की सुविधा उपलब्ध है, जिससे भूटान को तीसरे देशों तक ड्यूटी-फ्री निर्यात की अनुमति मिलती है।
भारत ने भूटान की 13वीं पंचवर्षीय योजना (2024–29) और उसके आर्थिक प्रोत्साहन कार्यक्रम को सहयोग दिया है।
सुरक्षा के क्षेत्र में भी भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 2017 डोकलाम संकट में भारत ने मैत्री संधि का हवाला देते हुए हस्तक्षेप किया और चीन को सड़क निर्माण से रोका।
आईएमटीआरएटी (1961–62) भारतीय सैन्य प्रशिक्षण दल भूटानी सेना को प्रशिक्षित करता है। वहीं बीआरओ की परियोजना दंतक के तहत भूटान की अधिकतर सड़कों का निर्माण भारत ने किया।
इसके अलावा, भारत भूटानी छात्रों को छात्रवृत्ति देता है, कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का लगभग 50% भारत से आता है और डिजिटल द्रुक्युल परियोजना के तहत भारत ने ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क के लिए सहयोग किया।
भारत के लिए
भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है।
रणनीतिक दृष्टि से भूटान भारत के लिए महत्वपूर्ण बफर ज़ोन है क्योंकि यह सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
उभरती चुनौतियाँ
हाल के वर्षों में भूटान और चीन की नज़दीकियों ने भारत की चिंताओं को बढ़ा दिया है। 2023 में पहली बार भूटान के विदेश मंत्री ने चीन का दौरा किया। चीन अब भूटान के व्यापार का 25% से अधिक हिस्सा रखता है।
चीन की “फाइव-फिंगर पॉलिसी” और भूटान–चीन सीमा विवाद भारत के लिए संवेदनशील मुद्दे हैं। 2021 में दोनों देशों ने सीमा विवाद निपटाने के लिए तीन-चरणीय रोडमैप पर हस्ताक्षर किए। भारत को आशंका है कि चीन दबाव डालकर भूटान से डोकलाम पठार पर नियंत्रण हासिल कर सकता है, जिससे भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
इसके अतिरिक्त, भारत के उत्तर-पूर्व के उग्रवादी संगठन जैसे उल्फा (ULFA) और एनडीएफबी (NDFB) भूटान को शरणस्थली की तरह उपयोग करते रहे हैं। वहीं भूटान ने पर्यावरणीय चिंताओं के कारण बांग्लादेश–भूटान–भारत–नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौते को भी रोक दिया है।
निष्कर्ष
भारत–भूटान के बीच पहली बार रेल सेवा की शुरुआत दोनों देशों के संबंधों में एक ऐतिहासिक कदम है। यह परियोजना न केवल आर्थिक विकास और व्यापारिक कनेक्टिविटी को नई गति देगी, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी भारत की पूर्वोत्तर सीमाओं को और मजबूत बनाएगी। वंदे भारत मानकों पर आधारित यह आधुनिक रेलमार्ग तकनीकी आत्मनिर्भरता का प्रतीक होगा और भूटान के लोगों को प्रत्यक्ष लाभ पहुंचाते हुए दोनों देशों की साझेदारी को और गहरा करेगा।