सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में जलवायु न्याय पर बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अभय एस. ओका ने पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन पर सख्ती की मांग की है। उन्होंने कहा कि पटाखे फोड़ना, तेज़ लाउडस्पीकर बजाना या नदियों में मूर्ति विसर्जन को धर्म के नाम पर सही नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि कोई भी धर्म प्रकृति को नुकसान पहुँचाने की अनुमति नहीं देता। ओका ने अदालतों से अपील की कि वे ऐसे मामलों में “शून्य सहनशीलता” की नीति अपनाएँ, ताकि मानव, पशु और पौधों का जीवन सुरक्षित रह सके।
ओका ने आगे कहा,
ओका ने कहा कि समाज भी पर्यावरण की रक्षा करने वालों का साथ नहीं देता, बल्कि ऐसे मामलों में न्यायाधीशों को ही “विकास विरोधी” कहकर निशाना बनाया जाता है। उन्होंने बताया कि पटाखे फोड़ने की प्रथा सिर्फ दिवाली तक सीमित नहीं है- बल्कि ईसाई नववर्ष, शादियों और दूसरे त्योहारों में भी यही होता है।
कौन है अभय श्रीनिवास ओका?
अभय श्रीनिवास ओका एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं, जिन्होंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य किया। उनका जन्म 25 मई 1960 को हुआ था। उन्होंने 1983 में वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया और करीब 19 साल तक बॉम्बे उच्च न्यायालय में सिविल, संवैधानिक और सेवा मामलों में वकालत की। वर्ष 2003 में उन्हें बॉम्बे उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश और 2005 में स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। बाद में, 2019 में वे कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने। 2021 में उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया, जहाँ से वे 2024 में सेवानिवृत्त हुए।
धर्म के नाम पर पर्यावरण को नुकसान- अभय एस ओका:
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका ने कहा कि धर्म के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाना गलत है। उन्होंने सवाल किया, “क्या पटाखे फोड़ना या लाउडस्पीकर बजाना किसी धर्म का ज़रूरी हिस्सा है?” मेरा जवाब होगा — “नहीं।” उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से आज लोग धर्म के नाम पर प्रकृति को नुकसान पहुँचाने लगे हैं, जबकि हर धर्म हमें पर्यावरण की रक्षा करने और सभी जीवों के प्रति करुणा दिखाने की सीख देता है। ओका ने साफ कहा कि कोई भी धर्म त्योहार मनाते समय पर्यावरण को नष्ट करने या जानवरों पर क्रूरता करने की अनुमति नहीं देता।
भारत में बढ़ते पर्यावरण संकट की मूल वजह:
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका ने कहा कि भारत में पर्यावरण संकट बढ़ने की सबसे बड़ी वजह यह है कि न तो नागरिक और न ही सरकार संविधान के अनुच्छेद 51ए में बताए गए अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर हर व्यक्ति और सरकारी संस्था ईमानदारी से पर्यावरण की रक्षा का अपना कर्तव्य निभाए, तो प्रदूषण और पर्यावरण को होने वाला नुकसान काफी हद तक रोका जा सकता है।
राजनीतिक और धार्मिक नेताओं पर साधा निशाना:
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में जलवायु न्याय पर बोलते हुए न्यायमूर्ति अभय एस. ओका ने राजनीतिक और धार्मिक नेताओं पर सख्त टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यह दुख की बात है कि न तो राजनेता और न ही धर्मगुरु प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या पर खुलकर बात करते हैं या लोगों से प्रदूषण फैलाने वाली परंपराओं से दूर रहने की अपील करते हैं। उन्होंने अफसोस जताया कि कोई भी राजनीतिक नेता नागरिकों से यह नहीं कहता कि त्योहार मनाते समय पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाएँ; उल्टा, वे ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।
अदालतों को क्या सलाह दी?
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका ने अदालतों से कहा कि वे पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाएँ और कठोर आदेश पारित करें। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को लोकप्रियता या धार्मिक भावनाओं से प्रभावित नहीं होना चाहिए। उनका कहना था कि पर्यावरणीय न्याय, जो लोगों के मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों पर आधारित है, उसमें धार्मिक भावनाओं के लिए जगह नहीं होनी चाहिए — जब तक कि वह आचरण संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत वास्तविक धार्मिक अधिकार न हो।
उन्होंने जोर दिया कि अगर न्यायाधीश सच में पर्यावरण और मौलिक अधिकारों की रक्षा करना चाहते हैं, तो उन्हें किसी भी तरह की धार्मिक भावनाओं से ऊपर उठकर निर्णय लेना चाहिए। अदालतें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों की संरक्षक हैं, जिसमें स्वच्छ और प्रदूषण-मुक्त वातावरण में जीने का अधिकार भी शामिल है। उन्होंने कहा कि उनके विचार में, आज के समय में पर्यावरण की रक्षा करने वाली सबसे महत्वपूर्ण और सक्रिय संस्था अदालतें ही हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दी थी दिवाली पर पटाखा फोड़ने की अनुमति:
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 18 से 21 अक्टूबर 2025 तक दिल्ली-NCR में केवल क्यूआर कोड वाले ग्रीन पटाखे बेचे और फोड़े जा सकते हैं। ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल सुबह 6 से 7 बजे और रात 8 से 10 बजे तक ही किया जा सकेगा।
पुलिस गश्ती दल बनाने और नियम तोड़ने वालों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया था। इसके अलावा, ई-कॉमर्स साइटों जैसे अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर पटाखों की ऑनलाइन बिक्री पूरी तरह बंद थी। बता दें कि 10 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने दिल्ली-NCR में हरित पटाखों के निर्माण और बिक्री की अनुमति मांगने वाली याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।
दिल्ली-NCR में पटाखों पर 2017 से प्रतिबंध:
दिल्ली-NCR में पटाखों पर 2017 से प्रतिबंध है। शुरुआत में केवल ग्रीन पटाखों की अनुमति थी, लेकिन 2018 में पूर्ण प्रतिबंध लागू कर दिया गया, जो 2024 तक था। सरकारी और अदालत के आंकड़ों से पता चलता है कि हवा साफ नहीं हुई और लोग अक्सर नियम तोड़ते रहे। दिसंबर 2024 में दिल्ली सरकार ने 2025 तक सभी पटाखों पर प्रतिबंध जारी रखने को कहा था।
वर्त्तमान में कई शहरों में AQI का स्तर 300 पार:
वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) हवा में मौजूद प्रदूषण के स्तर को मापता है। यह 0 से 500 तक के पैमाने पर तय किया जाता है और इसमें कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂), और धूलकण (PM 2.5 और PM 10) जैसे प्रदूषकों को शामिल किया जाता है। 200 से ऊपर का स्तर “अस्वास्थ्यकर” माना जाता है, जबकि 300 से ज़्यादा का स्तर “खतरनाक” होता है। फिलहाल राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई शहरों में AQI 300 से पार हो चुका है, जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है और प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।
आइये जानते है प्रदूषण के बारे में:
प्रदूषण का मतलब है, जब कोई हानिकारक पदार्थ हमारे पर्यावरण में मिलकर उसे गंदा या नुकसान पहुँचाता है। ऐसे पदार्थों को प्रदूषक कहा जाता है।
- ये प्रदूषक प्राकृतिक भी हो सकते हैं जैसे: ज्वालामुखी की राख, और
- मानव द्वारा बनाए गए भी जैसे: कचरा, धुआं, या कारखानों से निकलने वाला मलबा।
पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य कारण:
- तीव्र औद्योगीकरण: शहरों में बढ़ते उद्योग हवा, पानी और मिट्टी में हानिकारक पदार्थ छोड़ते हैं, जिससे प्रदूषण फैलता है।
- तेज़ शहरीकरण: शहरों का तेजी से विस्तार वनों की कटाई, कचरे में बढ़ोतरी और संसाधनों के अत्यधिक उपयोग का कारण बनता है।
- जंगल की आग: मानव गतिविधियों से लगने वाली आग बड़ी मात्रा में धुआँ और गैसें छोड़ती है, जो प्रदूषण बढ़ाती हैं।
- अनुचित कृषि पद्धतियाँ: रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक मिट्टी व पानी को दूषित करते हैं और ग्रीनहाउस गैसें बढ़ाते हैं।
- वनों की कटाई: जंगलों की कमी से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता है और प्रदूषकों को सोखने की क्षमता घट जाती है।
- अन्य कारण: वाहनों से निकलने वाला धुआँ, जीवाश्म ईंधनों का उपयोग और कचरे का गलत निपटान भी प्रमुख कारण हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के नुकसान:
- स्वास्थ्य पर असर: सांस, हृदय और पेट की बीमारियाँ बढ़ती हैं।
- प्रकृति को नुकसान: पेड़-पौधे, जानवर और जलजीव प्रभावित होते हैं।
- जलवायु परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग, ग्लेशियर पिघलना और चरम मौसम बढ़ते हैं।
- आर्थिक हानि: खेती, मत्स्य पालन और पर्यटन को नुकसान होता है।
- जीवन की गुणवत्ता में गिरावट: हवा, पानी और ध्वनि प्रदूषण से जीवन अस्वस्थ और असुविधाजनक बन जाता है।
निष्कर्ष:
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका का संदेश साफ है कि पर्यावरण की रक्षा हर नागरिक का कर्तव्य है। धर्म या परंपरा के नाम पर प्रकृति को नुकसान पहुँचाना किसी भी रूप में उचित नहीं है। अदालतों द्वारा “शून्य सहनशीलता” की नीति अपनाना न केवल कानून का पालन है, बल्कि समाज के प्रति हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है। पर्यावरण की रक्षा ही हमारे जीवन और भविष्य की सुरक्षा है।
