पूर्ण राज्य का दर्जा: जम्मू-कश्मीर को मिलने पर क्या होंगे बड़े राजनीतिक और प्रशासनिक परिवर्तन?

साल 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने के साथ केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर की विशेष राज्यीय पहचान को समाप्त कर दिया था। इसके साथ ही राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख  में विभाजित कर दिया गया। इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद से ही जम्मू-कश्मीर के कई राजनीतिक दलों, नागरिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा राज्य की पुनर्बहाली की मांग लगातार उठती रही है।

इसी क्रम में, जम्मू-कश्मीर को पुनः पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किए जाने की मांग को लेकर एक अहम याचिका पर 8 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने जा रही है। यह याचिका ज़हूर अहमद भट और खुर्शीद अहमद मलिक नामक दो कार्यकर्ताओं द्वारा दायर की गई है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई के समक्ष प्रस्तुत किया था, जिनके द्वारा इसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया है।

 

क्या होता है ‘पूर्ण राज्य’ का दर्जा?

‘पूर्ण राज्य’ का दर्जा वह संवैधानिक मान्यता है, जिसके तहत किसी भारतीय क्षेत्र को स्वशासित राज्य के रूप में मान्यता प्राप्त होती है। ऐसे राज्य को स्वतंत्र विधायिका (विधानसभा), कार्यपालिका (मुख्यमंत्री व मंत्रिपरिषद) तथा वित्तीय और विधायी अधिकार प्राप्त होते हैं। भारत में प्रशासनिक दृष्टि से दो प्रकार की व्यवस्थाएं हैं, पूर्ण राज्य और केंद्रशासित प्रदेश।

पूर्ण राज्य वह होता है, जहां की जनता अपने प्रतिनिधियों को सीधे चुनती है और राज्य की नीतियां, कानून तथा विकास संबंधी निर्णय स्थानीय सरकार द्वारा लिए जाते हैं। इसके विपरीत, केंद्रशासित प्रदेशों में अधिकांश अधिकार केंद्र सरकार के अधीन होते हैं। कई केंद्रशासित प्रदेशों में विधानसभा नहीं होती और शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी सीधे केंद्र द्वारा नियुक्त प्रशासक या उपराज्यपाल) के अधीन होती है।

कैसे प्राप्त होता है पूर्ण राज्य का दर्जा?

किसी भी क्षेत्र को पूर्ण राज्य का दर्जा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत प्राप्त होता है। इस प्रक्रिया की शुरुआत केंद्र सरकार द्वारा की जाती है, आमतौर पर गृह मंत्रालय उस क्षेत्र की प्रशासनिक आवश्यकताओं, जनता की भावनाओं, क्षेत्रीय नेताओं और हितधारकों की राय के आधार पर एक प्रस्ताव तैयार करता है।

इसके बाद संसद में एक विधेयक प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें संबंधित क्षेत्र को पूर्ण राज्य का दर्जा देने, नाम बदलने, सीमाओं में संशोधन अथवा नया राज्य बनाने का प्रस्ताव होता है। यह विधेयक लोकसभा और राज्यसभा में साधारण बहुमत से पारित होना आवश्यक होता है।

विधेयक पारित होने के बाद, अंतिम मंजूरी राष्ट्रपति द्वारा दी जाती है। राष्ट्रपति की सहमति के पश्चात ही यह संवैधानिक रूप से लागू होता है और क्षेत्र को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हो जाता है।

जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने से क्या होंगे बड़े बदलाव

यदि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को पुनः पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करती है, तो इससे प्रशासनिक, विधायी और वित्तीय क्षेत्रों में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिलेंगे:

  1. विधायी शक्तियों का विस्तार: जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को सार्वजनिक व्यवस्था (Public Order) और समवर्ती सूची (Concurrent List) के विषयों पर स्वतंत्र रूप से कानून बनाने का अधिकार प्राप्त होगा।
  2. वित्तीय स्वायत्तता में वृद्धि: राज्य सरकार को बजट या अन्य वित्तीय विधेयक पेश करने के लिए उपराज्यपाल की पूर्व मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं होगी। यह प्रक्रिया अधिक स्वायत्त और राज्य के हित में होगी।
  3. प्रशासनिक नियंत्रण राज्य सरकार के पास
    • एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB)और अखिल भारतीय सेवाओं (IAS, IPS) पर नियंत्रण राज्य सरकार को मिल जाएगा।
    • अधिकारियों की नियुक्ति, तबादले और पदस्थापन का निर्णय राज्य सरकार द्वारा ही लिया जाएगा, उपराज्यपाल की भूमिका सीमित हो जाएगी।
  4. व्यापार और वाणिज्य में राज्य सरकार की भूमिका सशक्त होगी: आर्टिकल 286, 287, 288 और 304 में राज्य को मिलने वाले अधिकारों के माध्यम से व्यापार, टैक्स और अंतर-राज्यीय वाणिज्य पर निर्णय लेने की शक्ति राज्य सरकार को प्राप्त होगी।
  5. मंत्रिपरिषद की संख्या में वृद्धि की संभावना: वर्तमान में केंद्र शासित प्रदेशों में केवल 10% विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है। राज्य का दर्जा मिलने के बाद यह सीमा बढ़ाकर 15% तक हो जाएगी, जिससे अधिक प्रतिनिधित्व संभव होगा।
  6. कानून-व्यवस्था पर राज्य का नियंत्रण: केंद्र शासित प्रदेशों में पुलिस और कानून-व्यवस्था केंद्र के अधीन होती है। लेकिन पूर्ण राज्य बनने पर यह जिम्मेदारी राज्य सरकार के अधीन आ जाएगी, जिससे सुरक्षा और प्रशासनिक निर्णयों पर अधिक नियंत्रण मिलेगा।
  7. भूमि और राजस्व पर अधिकार: पूर्ण राज्य बनने पर भूमि, खनिज और राजस्व से संबंधित सभी अधिकार केंद्र से स्थानांतरित होकर राज्य सरकार को प्राप्त हो जाएंगे, जिससे राज्य की स्वायत्तता और निर्णय क्षमता में वृद्धि होगी।
  8. राज्यपाल की भूमिका होगी प्रतीकात्मक: उपराज्यपाल की जगह राज्यपाल की नियुक्ति होगी, जिनकी भूमिका अधिकांशतः औपचारिक होगी, जैसा कि भारत के अन्य राज्यों में प्रचलित है।

 

किन केंद्रशासित प्रदेशों को प्राप्त हुआ पूर्ण राज्य का दर्जा?

भारत के संविधान के अंतर्गत कुछ केंद्रशासित प्रदेशों को समय-समय पर पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया है। प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • आंध्र प्रदेश: वर्ष 1956 में आंध्र प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया। इससे पूर्व यह मद्रास राज्य का एक भाग हुआ करता था।
  • गुजरात और महाराष्ट्र: पूर्व में ये दोनों राज्य संयुक्त रूप से बॉम्बे राज्य के अंतर्गत आते थे। भाषायी आधार पर विभाजन के उपरांत, 1 मई 1960 को गुजरात और महाराष्ट्र दो स्वतंत्र पूर्ण राज्य के रूप में अस्तित्व में आए।
  • नागालैंड: इस पूर्वोत्तर क्षेत्र को 1 दिसंबर 1963 को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
  • तेलंगाना: आंध्र प्रदेश से पृथक होकर, 1 जून 2014 को तेलंगाना भारत का 29वाँ राज्य बना और इसे पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ।

 

राजनीतिक दलों की राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग तेज़

अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से जम्मू-कश्मीर के अधिकांश प्रमुख राजनीतिक दल- जैसे नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) और कांग्रेस निरंतर राज्य का पूर्ण दर्जा बहाल करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में परिवर्तित करना वहां के नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है।

हाल ही में, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस मुद्दे को लेकर विभिन्न विपक्षी दलों को पत्र लिखकर समर्थन मांगा है। स्थानीय राजनीतिक नेतृत्व का मानना है कि यह निर्णय आम जनता की लोकतांत्रिक आवाज़ को दबाने जैसा है। उनका यह भी तर्क है कि यदि पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल होता है, तो एक निर्वाचित सरकार के पास प्रशासनिक और विधायी अधिकार पुनः स्थापित हो सकेंगे, जिससे शासन प्रणाली अधिक जवाबदेह और प्रभावी बन सकेगी।